चर्चाकार - डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
नमन करूँ माँ शारदे, दीजे कुछ गुण-ज्ञान।
चर्चा में महकाइए, दोहा छन्द विधान।।
आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहा हूँ-
** सीरियाई कवि निज़ार क़ब्बानी की बहुत - सी कविताओं के मेरे द्वारा किए गए
अनुवाद आप यहाँ 'कर्मनाशा' पर और 'कबाड़खा़ना' 'अनुनाद' तथा 'सबद' पर पढ़ कई
बार पढ़ ...
"छाप रहे अनुवाद को, सबद और अनुनाद। सिद्धेश्वर सिंह कर रहे, श्रम करके अनुवाद।। |
बिन्दी वाले वर्ण का, कठिन नही अभ्यास।
नाक बन्द कर बोल दो, मिट जाये संत्रास।।
एक मित्र ( वो ब्लॉग लिन्क के मोहताज नही हैं, इसलिये उनके ब्लॉग की लिन्क नही दे रही. मिल गये ऑन लाइन तो उनसे मैने कुछ अक्षर सही तरह से लिखना सीखे जो मै नही ...
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अपनी भारत-भूमि है, देवताओं की खान।
इस सुवर्ण की खान में, सौ करोड़ इन्सान।।
ममतामई -
ममतामयी अनोखी जग में कोई न जिसका शानी। सौ करोड़ संताने फिर भी लगे रूप की रानी।। उम्र न जाने कोई उसकी कहते बहुत बड़ी है। लेकिन उसके चेहरे पर कोई झुर्री नहीं पड़ी...
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दिल सागर की भीँति है, पानी भरा अथाह।
कितनी ही गागर भरो, नहीं इसे परवाह।।
*जितना बाँटा दिल का दरिया * *उतना जीवन हो गया सागर ।* *कोई बूँद ले अन्तर क्या है* *चाहे कोई भर ले गागर ।* *रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’*** जीवन एक कला है...
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शब्द-शिखर के हृदय से, निकले हैं आशीष।
साजन कृष्णकुमार की, रक्षा करना ईश।।
*आज पतिदेव कृष्ण कुमार जी का जन्म-दिवस है. जन्म-दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई और प्यार. इस जन्म-दिवस पर बाल-दुनिया और पाखी की दुनिया पर आप मेरे बाल-ग...
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दो पैसे की बात भी, हो जाती अनमोल।
निर्धन सन्त फकीर की, वाणी का नही मोल।।
- याद आती होंगी न मेरी वो दो पैसे की बातें वो गुल्लक सी खनकती अनगिनत सपनों की रातें # वो फटे-पुराने पन्नो की ऊँची सी उड़ाने वो मिटटी में दबे हुए मन के कई खजान...
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लड़के लड़-लड़के सदा, रहे हृदय को बेध।
बेटी-बेटों में कभी, माँ नही रखती भेद।।
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दुर्ग-झील के शहर का, अपना है आनन्द।
तस्बीरे सब खास हैं, आयी हमें पसन्द।।
बहुत दिनों से ना कुछ लिखा गया और ना ही कुछ विशेष पढ़ा गया। परिवार में जब बच्चे साथ हों तो किताबें और नेट चुपचाप से दूर किनारे पर बैठ जाते हैं, वे कहते हैं ...
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अक्सर छोटे छंद में, देती है सन्देश।
निज साजन के साथ में, बबली बसी विदेश।।
दिलकश मिलन की छवियाँ आँखों में समा जाए,
हाथ आए जो भी लम्हें वो ऐसी छाप छोड़े,
ताउम्र उनको हरगिज़ हम फिर न भूल पाए।
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बल लिखने का शौक है, मगर न गाया गीत।
बादल के इक गीत को, सुना रही मनमीत।।
*मेरे पति * * **(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")** * *ने
बारिश शुरू होने पर, * *"बादल" शीर्षक से यह गीत लिखा था।
**इसे मैं अपनी आवाज में प्रस्तुत कर रही हू...
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परछाई की बात को, दिया काव्य में ढाल।
विद्वानों के सामने, दिया सवाल उछाल।।
- सुबह हो या दोपहर हो , जब मैं बाहर जाती हूं , कभी आगे चलती हो , कभी पीछे , पर सदा साथ साथ चलती हो , मुझे कारण पता नहीं होता , तुम क्यूँ मेरा पीछा करती हो , क्...
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सास-बहू के आचरण, दिये खूब बिखराय।
छोटी सी इस कथा ने, मर्म दिया समझाय।।
*केंद्र* *लघुकथा -सत्येन्द्र झा*
उसकी माँ और पत्नी में छत्तीस का आंकड़ा था।
बेचारा थका-मांदा जब शाम को घर आये तो पत्नी दरवाज़े पर से ही माँ के प्रति वि...
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भीगी सी इस खामोशी में, नयनों की भाषा भी है।
खामोशियों की
पैरहन को
आँखों की
बारिश ने
भिगो दिया है
इतना कि
चिपक कर
रह गयी है
जेहन से
इसे उतारने की
कोशिश भी
नाकाम हो चली...
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भोग रही सुख स्वतन्त्रता का, बहुत मजे से खादी है।
बलिदानी वीरों की खातिर, मिली हमें आजादी है।।
मेरा हिंद !!
मेरे ख़यालों की वादी है
सपनों में आज़ादी है,
मैं आज भी शहीदों
के लिए रोता हूँ,
कर्जे में राष्ट्र को डूबोता हूँ,
पुरखों ने जो खून बहाया है
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सुख के बादल कभी न बरसे, दुख-सन्ताप बहुत झेले हैं!
जीवन की आपाधापी में, झंझावात बहुत फैले हैं!!
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*कई बार *
*खामोशियाँ भी *
*कितने झन्झावात ले आती हैं .*
*खामोशियाँ ...*
*खामोशियाँ ना रह कर *
*विचारों की *
*उठा -पटक करती हैं *
*मान...
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पूजन-अर्चन से करो, शमन ग्रह-नक्षत्र।
देव ओम के जाप से, हो जाते एकत्र।
Signs-Body partsमनुष्य का जन्म ग्रहों की शक्ति के मिश्रण से होता है. यदि यह
मिश्रण उचित मात्रा में न हो अर्थात किसी तत्व की न्यूनाधिकता हो तो ही शरीर
में व...
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पर्वत पर है हँस रहे, प्रिय बुराँश के फूल।
रोग, शोक , संताप को, ये करते अनुकूल।। |
कान्तिकारियों ने किया, खुद को जब बलिदान।
लाने को स्वाधीनता, दी लाखों ने जान।।
एक रिपोस्ट - ..और धोती पहनने लगे नौजवान - खुदीराम बोस के बलिदान दिवस पर विशेष
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*आजादी की लड़ाई का इतिहास क्रांतिकारियों के त्याग और बलिदान के अनगिनत
कारनामों से भरा पड़ा है। क्रांतिकारियों की सूची में ऐसा ही एक नाम है खुदीराम
बोस ...
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मेरे प्यारे वतन, जग से न्यारे वतन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।। अपने पावों को रुकने न दूँगा कहीं,
मैं तिरंगे को झुकने न दूँगा कहीं,
तुझपे कुर्बान कर दूँगा मैं जानो तन।
मेरे प्यारे वतन, ऐ दुलारे वतन।।...
आइये आज से मनाइए स्वतंत्रता पर्व ----- मेरी आवाज में सुनिए डॉ. रूपचन्द्र
शास्त्री "मयंक" जी की एक देशभक्ति रचना------
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*क्या कहा जाए भैया, अब तो समय ऐसा आ गया है की बड़े-बड़े पत्रकार बड़े अखबारों
में, अपने लिए नौकरी भी आईएएस के मार्फ़त तलाशते हैं, इस से ज्यादा पत्रकारों का
प...
चर्चा का हूँ कर रहा, अब मैं पूर्णविराम।
रात बहुत गहरा गई, करता हूँ आराम।।
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बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
सुख के बादल कभी न बरसे, दुख-सन्ताप बहुत झेले हैं!
जवाब देंहटाएंजीवन की आपाधापी में, झंझावात बहुत फैले हैं!! ---' बहुत खूब --'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंदोहा -दोहा कह गए , खूब जमाया रंग
चर्चा का यह रूप मुझे , भाया सबके संग |
चर्चा का बहुत सुंदर अंदाज .. अच्छा लगा !!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी ,
जवाब देंहटाएंदोहों से सजा चर्चा मंच बहुत अच्छा लगा बधाई |
मैं इस ब्लॉग की नियमित पाठक हो गई हूं |
मेरी रचना को यहाँ जगह दे कर आपने जो मेरा
हौसला बढाया है उसके लिए मैं बहुत आभारा हूं |
आशा
बेहद उम्दा ब्लॉग चर्चा........ मेरी पोस्ट को शामिल कर सम्मानित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएं्हमेशा की तरह दोहों से सजा चर्चा मंच बहुत ही भाया………………सुन्दर लिन्क के साथ सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा ढेर सारे लिंकों और दोहों के साथ !
जवाब देंहटाएंचर्चा देख निज पोस्ट की मन में है आह्लाद।
जवाब देंहटाएंआपके आशीर्वाद से निखर गया अनुवाद॥
बढ़िया रही ये भी..
जवाब देंहटाएंवाह इस बार तो छटा ही निराली है। दोहों के संग चर्चा, क्या बात है? बहुत बधाई।
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