सभी पाठक गणों को अनामिका का सादर नमस्कार. कोशिश की है कुछ अच्छे लिंक्स लेने की, उम्मीद करती हूँ पसंद आयेंगे और आप सब की अभिव्यक्ति बताएगी कि लिंक्स अच्छे थे या नहीं...तो आपकी नज़र करती हूँ आज की ये चर्चा... |
लीजिए सबसे पहले पढ़िए एक समीक्षा ऑंच – 32 : संगीता स्वरूप जी की कविता 'चक्रव्यूह' की मनोज ब्लॉग पर जिसे कर रहे हैं श्री हरीश प्रकाश गुप्त जी. सागर के किनारे चक्रव्यूह भेदते ही ’सागर’ जीवन का विस्तार है तो ‘किनारे बैठकर’ जीवन का असंलिप्त व निरपेक्ष भाव से अवलोकन है। कवयित्री ने अपने इस अवलोकन व विश्लेषण को सहज अथवा आसान न मानते हुए गीली रेत कह कठिन परिस्थिति में सन्तोष की आर्द्रता के रूप में व्यंजित किया है। ‘चक्रव्यूह को भेदना’ उसी नियति को भेदने में सफल होने के अर्थ को करती व्यंजित है और इस प्रकार कविता आदर्शोन्मुख समापन की ओर अग्रसर होती है......... |
झरते हैं भाव ,मेरे दिल से ..एहसास अंतर्मन के... पर मुदिता जी जो अपने बारे में कहती हैं कि ना मैं शायरा हूँ ना लेखिका बस अंतर्मन के भावों को शब्द देती हूँ...तो लीजिए पढ़िए इनकी नयी रचना..बातें जब किसी और से होती | आशा जी याद कर रही हैं बचपन के उन स्वर्णिम पलों को जो जिंदगी भर हमारे साथ रहते हैं....आइये उनके ब्लॉग Akanksha पर पढ़िए उनके बचपन की स्मृतियां ...
कभी न्यायाधीश बन , |
तुम क्यूं चले आते हो कविता आशा जोगलेकर जी के ब्लॉग स्व प्न रं जि ता पर पढ़िए ...तुम क्यूं चले आते हो….. | चाहतें ज़िन्दगी गर रेत का ढेला है, अवनि जैन के ब्लॉग कलम का कलमा पर पढ़िए . |
ये हैं हमारे वरिष्ठ कवि श्री रमेश जोशी जी जो गद्य और पद्य दोनों में लिखते हैं | व्यंग पर तीखी नज़र, कविता और ग़ज़ल इनके पसंदीदा विषय हैं...आइये इनकी कुछ व्यंग्य चुटकियाँ पढते हैं इनके ब्लॉग जोशी कविराय की कवितायें... पर joshi kavirai की कविता जूते और कामन वेल्थ सबका ही अधिकार है जब कामन है वेल्थ | मंत्री इतने शुद्ध ज्यों चौबीस कैरेट स्वर्ण | | अरे नहीं पहचाना इन्हें, ये हैं हमारे चर्चा स्तंभ श्री रूप चन्द्र शास्त्री जी और काट रहे हैं केक ...और याद कर रहे हैं अपना बचपन... अपनी इन पंक्तियों में.. इन्हें मनाना अच्छा लगता, लीजिए इन्हें पढ़िए और देखिये इनके परिवार को भी यहाँ..“मेरा बचपन” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”) |
लीजिए अदा जी की अदा गज़लों को भी क़त्ले आम किये जाती है....ये गज़ल लिखें और आपके मुहं से वाह वाह ना निकले ऐसा हो नहीं सकता...पढ़िए ...आप खुद ही मान जायेंगे.. एक तो हो रही बरसात उसपर इतनी लम्बी रात कश्ती मेरी डूब के उबरी तूफाँ ने फिर खाई मात ज़िक्र किया था पतझड़ का फूलों पर टिक गई है बात फूलों पर टिक गई है बात ... पढ़िए इनके ब्लॉग काव्य मंजूषा पर |
वंदना गुप्ता जी की रचना जो बता रही है कि हम अपनी मैं से ही नहीं निकल पाते तो देश की खबर क्या लेंगे...लीजिए पढ़िए .."मैं" का व्यूहजाल की ये पंक्तियाँ ...ज़ख्म…जो फूलों ने दिये ब्लॉग पर..."मैं" के व्यूहजाल से ना निकल पाते हैं समाज का सशक्त अंग ना बन पाते हैं |
अरे डरिये नहीं ये मुक्का नहीं मारेंगे...बस आप सब से एक गुज़ारिश कर रहे हैं.....की नीचे लिखी कविता की आखरी पंक्तियाँ समझ नहीं पा रहे कि कौन सी बेहतर रहेंगीं इसलिए जो २ शेर टाइप कुछ समझ में आये वो लिख दिए.. अब उन दोनों में से जो बेहतर आपको लगे सुझाने की तकलीफ उठाइएगा उस्ताद... अगर दोनों में से कोई ठीक ना लगे तो अपनी तरफ से कुछ बनाइये.. उम्मीद है निराश नहीं करेंगे.. इक तड़पन सी उठी है सीने में(समीर जी) वो भी हलकान हो तो बात बने वो निगहबान हो तो बात बने--------दीपक मशाल ब्लॉग मसि-कागद पर | संगीता स्वरुप जी का चित्र चुनाव जितना बढ़िया है उनकी कलम से निकले शब्दों के मोती भी उतने ही खूबसूरत ...हर एहसास को हर खाब को शब्दों में ऐसे बाँध देती हैं की मन उद्वेलित हो उन भावो में चलचित्र रूप देखने पर विवश हो जाता है.....लीजिए पढ़िए इनकी नयी रचना नीला आसमान की ये पंक्तियाँ... इंतज़ार है कि एक गर्जना हो उन्माद की...... तुम पाओगे एक स्वच्छ , चमकता हुआ नीला आसमान...गीत.......मेरी अनुभूतियाँ पर. |
क्रूरता आकर करूणा के, पाठ पढा रही हैकविता पढ़िए सुज्ञ..जी के ब्लॉग पर...सौ सौ चुहे खा के बिल्ली, हज़ को जा रही है। | तनहा फ़लक पर अलविदाकी ये पंक्तियाँ जो त्रिपुरारि कुमार शर्मा लिख रहे हैं...पढ़िए... प्यार से चूम कर मेरा माथा |
यहाँ हैं कुछ लेख .... |
यमुना की तरक्की में तबाही की उम्मीद-हिन्दी आलेख (yamuna ki tarakki men tabahi ki ummeed-hindi alekh) दीपक भारतदीप की शब्दलेख-पत्रिका... पर दीपक भारतदीपइस लेख में पढ़िए शब्दों का खेल जो हिंदी शब्दों के मायने नहीं जानते उनकी वाणी से हिन्दी की चिंदी करने की कोशिशें चर्चा का विषय है.उम्मीद उर्दू शब्द है जिसका विपरीत शब्द खतरा या खौफ होता है। हिन्दी में आशा और आशंका शब्द इसके समानार्थी हैं। हैरानी तब होती है जब नदी का जलस्तर सामान्य ऊंचाई से अधिक होने की संभावना होती है तब आशंका की बजाय यही संवाददाता और उद्घोषक आशा शब्द का उपयोग करते हैं। एक तरह से यह शब्द फैंकना है। साथ ही पढ़िए कृष्ण और गोपियों की एक दिलचस्प कहानी..... और अंत में पढ़िए बाढ़ के संकट के समय हम कैसे जूझ सकते हैं.......एक आदमी एक की मदद को भी तैयार रहे तो यह देश अनेक संकटों से जूझ सकता है। |
कभी कभी सुखद बदलाव की गुंजाइश दिख जाती है जब ताज़ा खबर में पाती हूँ कि लेकिन ये तय है कि मेरी अखबार पढ़ने की न आदत छूटेगी न ताज़ा खबर में कोई माकूल खबर हीं होना है| पढ़िए जेन्नी शबनम जी की आज की ताज़ा ख़बर.. ब्लॉग साझा-संसार पर | राजेश त्रिपाठी जी ले आये हैं आपके बीच मशहूर फिल्मकार महबूब खान की जिंदगी के सफों के कुछ किस्से.. महबूब खान छोटा कद. बुलंद हौसलाछोटे कद और बुलंद हौसले वाले महबूब खान का जन्म गुजरात में बड़ौदा जिले के अंतर्गत एक छोटे से गांव सरार काशीपुर में 7 सितंबर 1906 को हुआ था। लिखने-पढ़ने के नाम पर वे सिर्फ उर्दू में अपना हस्ताक्षर करना भर जानते थे।चेकों पर भी वे लोगों के नाम नहीं लिख पाते थे। बस सिर्फ हस्ताक्षर कर देते थे। |
पढ़िए रेखा श्रीवास्तव जी के विचार इस मुद्दे पर...पाकिस्तान भारतीय राहतकर्मियों को वीजा देने के लिए तैयार नहीं है Lucknow Bloggers' Association लख़नऊ ब्लॉगर्स असोसिएशन... पर रेखा श्रीवास्तवपाकिस्तान भारतीय राहतकर्मियों को वीजा देने के लिए तैयार नहीं है लेकिन भारतीय सहायता राशि स्वीकार कर चुका है. किस लिए? क्या हमारे पास इतना इफरात धन है कि हम ऐसे अहसानफरामोशों को देते फिरें ? गुड खाएं और गुलगुले से परहेज - पाकिस्तान के रवैये से तो यही कहा जा सकता है. | दिल है क़दमों पर किसी के गर खुदा हो या न हो हमें भी क्या पता कि भगवान् होते हैं या नहीं मगर बचपन में एक शक्ति को माथा नवाने की आदत डाल दी गयी ! बड़े होकर जब कभी दिल घबराता है तो कभी कभी इनकी शरण में जाने का दिल करता है, उसमें बड़ी राहत मिलती है ! ये पंक्तियाँ लिखते हुए पूछ रहे हैं भगवान् कहाँ हैं ? -सतीश सक्सेना जी |
तुम्हारी जो स्वाभाविक स्थिति है, उसे आप स्वीकार भाव से जीओ । कैसे जीवन में अवेयर होकर जीया जा सकता है । यह जरुरी नहीं है कि सुख ही सुख आएं जीवन में anteryatra... पर pardeepchawla तुम्हारी जो स्वाभाविक स्थिति है, उसे | एक सुंदरी हीरा चोर, दूसरी बनी मिस यूनिवर्स ..!नज़राना........ पर MANOJEET SINGH जिन्होंने लोकतंत्र के चौथे खम्भे को पकड़ लिया है और चल दिए कलम का हाथ पकड़ने और बन गए पत्रकार ! ये कहते हैं इस काम में संतुष्टि नही है लेकिन अशंतुष्टि भी नही है ... और अपनों का प्यार और इश्वर का आशीर्वाद रहा तो चाँद पर भी टहल के आएंगे एक दिन... तो लीजिए इनकी कलम का जादू देखिये... |
गेहूं या गेहूं से बने उत्पाद भी किसी को बीमार कर सकते हैं, भले ही यह सुनने में अटपटा लगे लेकिन बहुत लोगों की ऐसी तादाद है जिन्हें गेहूं और गेहूं के उत्पाद नुकसान पहुंचाते हैं। गेहूं से होने वाली बीमारी को सीलियक डिजीज के नाम से पुकारा जाता है। गेहूं में ग्लूटीन प्रोटीन होता है जिसके दो हिस्से होते हैं। एकग्लायडीन और दूसरा ग्लूटानीन। जी हाँ ये लेख हैं कुमार राधारमण जी के ब्लॉग स्वास्थ्य-सबके लिए पर. कुमार राधारमण जी जो समय समय पर स्वास्थ्य सम्बन्धी ज्ञानवर्धक जानकारियां देते हैं.. |
समीर जी की तश्तरी निकली है तलाश में एक शीर्षक के...देखिये चिंता में इन्होने अपनी तस्वीर के नीचे भी लिखवा डाला है की शीर्षक के लिए चिंतित....अब चूँकि किताब तो छपवानी ही है समीर जी ने और मुझे चिंता है कहीं ये इसी चिंता में दुबले न हो जाएँ...कुछ आप ही मदद कर दीजिए इनकी शीर्षक की तलाश! करवा कर....उड़न तश्तरी ..पर बता दीजिए प्लीस . |
इसी के साथ ही आज की चर्चा को विराम देती हूँ और आशा करती हूँ की आप अपने सुझाव और टिप्पणियां देकर मेरा मनोबल बढायेंगे... नमस्कार. अनामिका . |
badhiya charcha hai.
जवाब देंहटाएंक्या गज़ब करते हो जी ...!!
जवाब देंहटाएंअनामिका जी, विशिष्ठ शैली में की गई चर्चा उत्सुकता पैदा कर रही है...एक एक कर जाते है सभी ब्लॉग पर....
जवाब देंहटाएंआपका आभार.
अनामिका जी
जवाब देंहटाएंआज का चर्चा मंच पढ़ा
पढ़ कर बहुत अच्छा लगा
बहुत ज्ञान वर्धक चर्चा रही
बहुत नए और गणमान्य लोगों के बारे में जानने का मोका मिला अच्छा लगा
आपकी मेहनत स्पष्ट झलकती है ..... ...आभार
बहुत मेहनत से तैयार की गई सुंदर समीक्षा। अच्छे लिंक्स।
जवाब देंहटाएंहमारे ब्लोग को सम्मान देने के लिए आभार।
आज का चर्चा मंच तो बहुत ही सुन्दर ढंग से सजाया है!
जवाब देंहटाएं--
बहुत-बहुत बधाई!
आपने हर पोस्ट के साथ जो मेहनत की वो सराहनीय और प्रशंसनीय है मैम.. बहुत आभार आपका.. सच में चर्चा भी रोचक हो गई.. पोस्ट से कहीं ज्यादा..
जवाब देंहटाएंनई लिंक्स और चर्चा मंच का स्वरुप देख बहुत प्रसन्नता का अनुभव कर रही हूं |बहुत बधाई |मेरे ब्लॉग को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आभारी हूं|
जवाब देंहटाएंआशा
शानदार चर्चा ,आभार
जवाब देंहटाएंकुछेक पोस्टों के शीर्षक पर तो नज़र गई थी मगर उन्हें पढ़ने का मौक़ा नहीं मिल सका था। आपने ध्यान दिलाकर अच्छा किया।
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा में चार चांद लगे हुए हैं
जवाब देंहटाएंबधाई आपको
अनामिका जी,
जवाब देंहटाएंचर्चामंच पर सम्मान देने के लिए आपका आभारी हूँ।
anamika ji,
जवाब देंहटाएंaapka bahut aabhar ki aapne mere aalekh ko charcha manch mein jagah diya. kai logon ko padhi, bahut achha laga. bahut dhanyawaad.
विभिन्न विषयों पर लिखे गए लेखों को प्रस्तुत करने का हर बार कुछ अलग अंदाज़ हैं ! मुझे लगता है हिंदी ब्लाग जगत में नए उदाहरण और आयाम बनाएंगी आप !
जवाब देंहटाएंआपकी मेहनत सफल रही है ! हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत अच्छी चर्चा ...मेहनत से की गयी चर्चा ...पोस्ट के विषय में आपकी टिप्पणियाँ पोस्ट तक पहुँचने की प्रेरणा देती हैं ...मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार ..
जवाब देंहटाएंबिट्टी! किसी मेगजीन की एडिटर बन ही जाओ.सच्ची. तुम्हारा प्र्जेंटेशन शानदार है. इमानदारी से कहूँ तो सबको पढ़ने जितना समय इस समय नही मिल रहा,पर धीरे धीरे सबको पढूंगी जरुर.
जवाब देंहटाएंप्यार
गन्दी मुमु
बहुत ही नियोजित सार्थक चर्चा , श्रम स्वतः दृष्टिगोचर है। एक जगह सभी को पढने का सुअवसर।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार ..
वाह बहुत ही सुन्दर और शानदार चर्चा रहा!
जवाब देंहटाएंअनामिका जी
जवाब देंहटाएंबहुत चुन चुन के रचनायें लायी हैं आप चर्चा के लिए..सभी विषयों को छुआ है बचपन, स्वपन, चाहत ,प्रेम, स्वास्थ्य... बहुत मेहनत से सजाया गया मंच.... बधाई आपको..और मेरी रचना को शामिल करने का आभार
आपका इस दिशा में किया गया परिश्रम सराहनीय है. बहुत सी अच्छी कृतियाँ पढ़ने के लिए दिग्दर्शन करना अपने आप में एक बहुत बड़ा उपकार है. हम जैसे तो गालियों में भटक कर रह जाते हैं.
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को इस चर्चा में शामिल करने के लिए आभार.
आपका इस दिशा में किया गया परिश्रम सराहनीय है. बहुत सी अच्छी कृतियाँ पढ़ने के लिए दिग्दर्शन करना अपने आप में एक बहुत बड़ा उपकार है. हम जैसे तो गालियों में भटक कर रह जाते हैं.
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को इस चर्चा में शामिल करने के लिए आभार.
एक अलग ही शैली है इस चर्चा की । कुछ ब्लॉग्ज पर गई हूँ । बाकी भी आज देखूंगी । ज्यादा तर पर तो ऐसे ही विजिट होती रहती है । मेरी रचना को शामिल करने के लिये धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंरूप चंद शास्त्री जी का अलग रूप दिखाने के लिए आभार :) शास्त्री जी को जन्मदिन की बधाई...[चाहे वो जब भी रही हो]
जवाब देंहटाएंहा हा!! दुबले तो इससे बड़ी बड़ी चिन्ता नहीं कर पाई ...हाँ, मगर शीर्षक मिल जाये तो मुस्कान लौटे. :)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा. बधाई.
आपकी चर्चा तो वाकई में काबिलेतारीफ है....
जवाब देंहटाएंआभार्!
सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम
हम्म्म्म.
जवाब देंहटाएंsundar charcha...badhai.
जवाब देंहटाएंअनामिका जी,
जवाब देंहटाएंआपके इंतख़्वाब का वाकई कोई जवाब नहीं !
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंहिंदी, नागरी और राष्ट्रीयता अन्योन्याश्रित हैं।
sundar prastuti!
जवाब देंहटाएं