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चक्रधर की चकल्लस पर अशोक चक्रधर जी कहते हैं कि तुम्हारा ‘ना’ तुम्हारा ‘हां’ —चौं रे चम्पू! पुरानी याद ताजा है जाएं, ऐसौ कोई सेर है तेरे पास? —क्यों नहीं चचा! अर्ज़ किया है— ‘इकहत्तर, बहत्तर, तिहत्तर, चौहत्तर.... —इरसाद, इरसाद, आगै! —पिचहत्तर, छियत्तर, सतत्तर, अठत्तर। —जे कैसौ सेर ऐ रे? —इकहत्तर से अठत्तर तक का काल शानदार यादों का था। जिन चार महाकवियों का यह जन्मशती वर्ष है, बाबा नागार्जुन, अज्ञेय, केदारनाथ अग्रवाल और शमशेर, उनके साथ सत्संग का मौक़ा मिला। सबसे ज़्यादा सत्संग हुआ बाबा नागार्जुन के साथ। |
संजय अनेजा जी कह रहे हैं कि बड़े लोग और बड़ी बातें, अपन छोटे ही भले!एक होता है ग्रह और एक होता है पूर्वाग्रह। होने को तो एक दूसरा गॄह भी होता है और उपग्रह भी होते हैं, और भी इस टाईप के शब्द होते होंगे लेकिन आज का बिना राशन का हमारा भाषण पूर्वाग्रह पर केन्द्रित है। बचपन से ही देख रहा हूँ कि लोग पूर्वाग्रह से ग्रस्त होते हैं,अब तो ऐसा लगता है कि यदि कोई इससे बचा हुआ है तो हमें शक ही होने लगता है कि वो इंसान भी है कि नहीं? तो जी, बचपन से जो प्रचलित पूर्वाग्रह महसूस किये,उनमें लोगों का बड़ों के आगे झुकने और अपने से छोटों को लतियाने का पूर्वाग्रह सबसे टॉप पर दिखा। अब टॉप से मतलब चिट्ठाजगत के टॉप से भी न लेना और स्कर्ट के साथ पहने जाने वाले टॉप से भी नहीं।
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नेता बेकार पर पगार पचास हज़ार.. (भास्कर मिश्रा)सरकारी व्यवस्था चलाते कौन हैं?..अपनी मनमानी करते कौन हैं.?.यही नेता...इसीलिए ये बात आती है कि अगर इनको मजबूर किया जाए किसी कानून के द्वारा (जो कि एक कल्पना है..ये कभी नहीं हो सकता..) सरकारी व्यवस्थाओं के अंतर्गत ही रहने का...तो इन्हें पता चले कि किस तरह से लोग संघर्ष करते हैं...इन व्यवस्थाओं के अन्दर जीने के लिए...
एक एहसास ....(अनुपमा)एक एहसास ही कई बार जीवन की कई अप्रतिम सच्चाईयों से जूझते इंसान का त्राता बन जाता है.....उलझी हुई हमारी बुद्धि एहसास के धरातल पर ही अपने आप को कुछ सुलझा पाती है और चेतना सजग हो रास्ते ढूँढने का प्रयास करती है! हम सब सफ़र में हैं....जीवन में सहारों के सहारे चलते हैं.....सहारा लेते हुए...सहारे देते हुए डगर पर चलें.....जलती लौ से प्रेरणा लें...कर्मों की लौ से...शब्दों की मशाल से धरती को आलोकित करें.....फिर तो धरती सिंची भी जाएगी और लहलहायेगी भी.....बस एहसास जिन्दा रहे !!!!!!!!!!!एक एहसास ... जिसने बांधे रखा है जीवन को- उसकी जय गानी है! बीतते समय की भीड़ से दो चार पल जो याद रहे- वही असल जिंदगानी है! |
* जिज्ञासा * (साधना वैद्य)देव तुम्हारी मंजु मूर्ति कोलेकर मैंने प्यार किया, दुनिया के सारे वैभव को तव चरणों में वार दिया ! किन्तु अविश्वासी जगती से छिपा न मेरा प्यार महान्, पागल कहा किसीने मुझको कहा किसीने निपट अजान ! | इधर देखिए ये ताऊ मजमा लगाकर कैसा खडपन्ची राग सुना रहा है--तीन तीन खुशखबरियां....ताऊ टीवी का स्पेशल बुलेटिनताऊ टीवी के इस विशेष बुलेटिन में मैं कल्लू मदारी आपका हार्दिक स्वागत करता हूं. इस विशेष बुलेटिन में मेरे साथ साथ ताऊ और ताई भी बधाई देने के लिये विशेष रूप से मौजूद हैं. |
अभी इक नज़्म मेरे अन्दर जंग छेड़े बैठी है....(हरकीकरत ‘हीर’)अभी तोआग का इक दरिया लांघना बाकी है..... अभी इक झील की गहराई को समेटना है अपने भीतर.... दोपहर के इस जलते सूरज की आग में तपाना है ज़िस्म.... इन सिसक- सिसक कर दम तोडती हवाओं संग चलना है उनके पत्थर हो जाने से पहले | झंझट के झटकेग़ज़ल (सुरेन्द्र बहादुर सिंह "झंझट गोंडवी")जीत कहूं या हार जिंदगीहै कितनी दुश्वार ज़िन्दगी ! कभी कभी लगता था जैसे है फूलों का हार ज़िन्दगी ! घूँट हलाहल के कह दूं ,या कहूं सुधा की धार ज़िन्दगी ! ऊपर से तो खिली खिली ,पर भीतर से पतझार ज़िन्दगी !! |
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डे जी आप लोगों के सामने एक सवाल रख रहे है कि क्या आपकी भी मूर्खता छटपटाती है?अनेक परिस्थितियों में मूर्खता के अश्वमेघ यज्ञ होते देख मेरे अन्दर की मूर्खता ने विद्रोह कर दिया। कहने लगी कि लोकतन्त्र में सबको अपनी बात कहने का अधिकार है। आप हर बार विद्वता का सहारा लेकर अपने आप को सिद्ध करने में लगे रहते हैं और मुँह लटकाये घर चले आते हैं। संविधान के अनुच्छेद 14 का मान न रख पायें तो, मन बदलने के ही नाते मुझे भी एक अवसर प्रदान करें। |
हंस राज 'सुज्ञ'जी नें कितने तार्किक रूप से मांसाहार प्रचार का भ्रमज़ाल मिटाने का एक मानवीय प्रयास किया है मानव को उर्ज़ा पाने के लिये भोजन करना आवश्यक है,पर सृष्टि का सबसे बुद्धिमान प्राणी होने के नाते, अन्य जीवन के लिये भी उत्तरदायित्व पूर्वक सोचना मानव का कर्तव्य है। अतः उसका भोजन ऐसा हो कि उसकी इच्छा होने से लेकर ग्रहण करनें तक सृष्टि की जीवराशी कम से कम खर्च हो। और लोग भोजन को एक सौमय सात्विक आधार दे सके। इसलिए मांसाहार प्रचार से फ़ैलाई जा रही,मांस की उपयोगिता व आवश्यकता का भ्रमजाल हटाना आवश्यक है। जीवन जीने की हर प्राणी में अदम्य इच्छा होती है,यहां तक की कीट व जंतु भी कीटनाशक दवाओं के प्रतिकार की शक्ति उत्पन्न कर लेते है। सुक्ष्म जीवाणु भी कुछ समय बाद रोगप्रतिरोधक दवाओं की प्रतिकार शक्ति पैदा कर लेते है। यह उनके जीनें की अदम्य जीजिविषा का परिणाम होती है। सभी जीना चाह्ते है मरना कोई नहिं चाहता। इसलिये मानव मात्र का यह फ़र्ज़ है जिये और जीने दे। |
ज्योतिष की सार्थकता पर आप जान सकते हैं कर्म सिद्धान्त के बारे में कर्म क्या वस्तु है ? भौतिक जगत का आधारभूत नियम कार्य-कारण का नियम है,इस बात को तो प्रत्येक व्यक्ति जानता है.कोई कार्य ऎसा नहीं हो सकता जिसका कारण न हो और न ही कोई कारण ऎसा हो सकता है कि जिसका कोई कार्य न हो.यही कार्य-कारण का सिद्धान्त जब भौतिक जगत के स्थान पर आध्यात्मिक जगत में काम कर रहा होता है, तो इसे कर्म का सिद्धान्त कहते है.कार्य-कारण के भौतिक नियम का अध्यात्मिक रूप ही "कर्म" है. |
बुरा-भला पर शलभ शर्मा आगाह कर रहे हैं कि अपनी औकात में रहो और हमारे मामलों में मत बोलो !!आज की खबर :- सिख इस्लाम अपनाये या कश्मीर छोड़ दें !! कल की खबर :-सारे हिदुस्तानी इस्लाम अपनाएँ या भारत छोड़ दें !! फिर कहेंगे...... सारे इस्लाम अपनाएँ या दुनिया छोड़ दें !! |
देखो हसीना मान जायेगी ???? | कार्टून : पड़ोस वाले शर्माजी !! |
चलते-चलते अन्त में कुछ नये चिट्ठों पर भी निगाह डाल लीजिए…….. चिट्ठा:- वन्दे मातरम् पोस्ट:- यह जो देश है मेराआज हम आजाद उस पंक्षी की तरह हैं,जिसका बसेरा पूरे विश्व,यूँ कहें तो पूरे भूखण्ड के हर कोने में है,कोई ऐसा देश नहीं होगा,जहां अपने देश की महक और संस्कृति की खुशबू न मिले। जरूरत है इस खुशबू को बनाये रखने की,और जो प्रेम व शांति का संदेश हमारे पूर्वजों ने दुनिया को पढ़ाया है,उसे याद दिलाते रहने की। यह अलग बात है कि बहुत से पड़ोसी हमारी इस अखण्डता और हृदय विशालता से जलते रहते हैं,तो इसका मतलब यह तो नहीं की हम भी इंसानियत का दामन छोड़ दें। |
चिट्ठा- जाने क्या मैंने कही पोस्ट:-हम चाहते नहीं,फ़िर दु:ख क्यों आता है ! तन की पीड़ा मिटाने की अनेक औषधियॉं हैं। इन औषधियों के निर्माण,प्रचार-प्रसार और वितरण के भी अनेक साधन हैं। किन्तु,मन की पीड़ा मिटाने की औषधि कहॉं मिलेगी ? हमारे यहॉं, संतों-महात्माओं,मनीषियों,गुरुओं और औलियाओं ने आध्यात्मिक रास्ते से अनेक उपाय सुझाए हैं स्वमन को दुरूस्त करने और वृत्तियों में पलने वाले दुःख को दूर करने के। शास्त्र भरे पड़े हैं हमारे यहॉं मन को स्वस्थ करने के बारे में । |
Technorati टैग्स: {टैग-समूह}चर्चा,पं.डी.के.शर्मा "वत्स"
पंडित जी, इस बेहद उम्दा ब्लॉग चर्चा में बुरा भला की पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच की प्रस्तुति के लिए बधाई, बहुत कुछ पढ़ने को मिल जाता है और आपको पुनः बधाई की हमारे लिए आप ये मोती चुन कर लाते हैं.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा वत्स साहब , आजकल समयाभाव के कारण ब्लॉग जगत पर विचरण कम रहता है इसलिए यही पर चिठ्ठा जगत से आँखों से कुछ ब्लॉग पढ़ लिए !
जवाब देंहटाएंbahut hi sundar rahi aapki charcha...
जवाब देंहटाएंsadaiv aabhaari...
bahut badhiya rahi
जवाब देंहटाएंcharcha manch ki prastuti
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
उम्दा चर्चा ...
जवाब देंहटाएंवाह बहुत ही उम्दा और विस्तृत चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
जनाब वत्स साहब चर्चा के लिए आपने बेहतरीन चुनिन्दा पोस्टस का संकलन किया है!
जवाब देंहटाएंआपकी पसनद वाकई काबिलेतारीफ है! हमें तो सब की सब पोस्टस खूब लगी!
धन्यवाद!
जनाब वत्स साहब चर्चा के लिए आपने बेहतरीन चुनिन्दा पोस्टस का संकलन किया है!
जवाब देंहटाएंआपकी पसनद वाकई काबिलेतारीफ है! हमें तो सब की सब पोस्टस खूब लगी!
धन्यवाद!
एक ही मंच से कई ब्लोगर भाइयों की पोस्ट पड़ने को मिली बहुत ही बदिया.
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया रही आज की यह चर्चा!
जवाब देंहटाएं--
हलाहल तो हम पी लेंगे!
आप सुधा का पान करो!
आपने शानदार चर्चा की है
जवाब देंहटाएंआपको बधाई.
ब्लॉग चर्चा की शानदार भाषा शैली ने यहां दिए गए लिंक तक जाने की जिज्ञासा पैदा कर दी है.
जवाब देंहटाएंअच्छी सुंदर सुघड़ चर्चा ठीक वैसी ही जैसे खाने के बाद डकार लेकर अच्छा लगता है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन......
जवाब देंहटाएंसभी पोस्टों का चयन बहुत अच्छा रहा .....!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया .....!!
बढ़िया चर्चा..!
जवाब देंहटाएंपंडित जी ,सुन्दर लिंक्स दिए हैं आपनें ! आभार !
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