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Thursday, August 26, 2010

";चिट्ठाजगत में टॉप-टेन" (चर्चा मंच-257)


चर्चा मंच पर आज चर्चा करता हूँ चिट्ठा-जगत की सक्रियता में टॉप-टेन की पायदान पर कदम रखने वाले श्री ललित शर्मा की !
अभनपुर (छत्तीसगढ़) के रहने वाले श्री ललित शर्मा    बहुत ही लगनशील और परिश्रमी हैं ये अपने बारे में लिखते हैं-
परिचय क्या दुं मैं तो अपना, नेह भरी जल की बदरी हुँ।
किसी पथिक की प्यास बुझाने, कुँए पर बंधी हुई गगरी हुँ।
मीत बनाने जग मे आया, मानवता का सजग प्रहरी हुँ।
हर द्वार खुला जिसके घर का, सबका स्वागत करती नगरी हुँ।
इनकी रुचियाँ हैं
इनके ब्लॉग हैं-
तेताला 
नुक्कड़ 
एक लोहार की 
चिट्ठाकार-चर्चा
चलती का नाम गाड़ी
पिताजी
सर्प संसार (World of Snakes)
शिल्पकार के मुख से
चर्चा पान की दुकान पर
ब्लॉग 4 वार्ता
ललितडॉटकॉम
छत्तीसगढ़
अड़हा के गोठ
ललित वाणी


चिट्ठा-जगत  द्वारा दी जाने वाली सक्रियता में क्रमांक-10 पर इनका ब्लॉग है-

आज देखिए ललितडॉटकॉम की प्रथम और अद्यतन पोस्ट!




मंगलवार, १५ सितम्बर २००९
हमें प्रत्येक साँस को ही हिन्दी दिवस समझना चाहिए।
कल हम सब ने हिन्दी दिवस मनाया,बड़ी गरमा-गरम बहस हिन्दी के प्रसार प्रसार के लिए चली. कल लगभग हिन्दी ब्लोगों में लगभग सभी ने हिन्दी राग अलापा, और एक दिन हिन्दी की बात कह के कर्तव्य की इतिश्री कर ली. बहती गंगा में हाथ धो लिए ,हिन्दी के लिए शहीद होने वालो की सूची में अपना नाम लिखा लिया. कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने सबको इसकी चर्चा करते देख "लोग क्या कहेंगे मेरे बारे में" इस लिए चार लाइन लिख दी .उनमे मैं भी शामिल हूँ. क्योंकि मैभी नया-नया ही इस ब्लोगरी मायावी जाल से जुड़ा हूँ. यहाँ के क्या रस्मो रिवाज हैं. कोन वरिष्ठ है, कौन गरिष्ठ है,कौन उत्तिष्ठ है,कौन वशिष्ठ है, मुझे नही मालूम, लेकिन अपनी बात कहने का अधिकार सबको है. क्या एक दिन हिन्दी हिन्दी कह कर चिल्लाने से हिन्दी का प्रचार हो जाएगा? भाई हम तो सुबह से हिन्दी में चालू होते हैं तो सोने के बादभी हिन्दी ही चलती रहती है.सपने में भी वार्तालाप हिन्दी में ही होता है. किसी को गल्लियाँ निकालनी होती है तभी अंग्रेजी बोलते है,

मैं विगत कई वर्षों से दक्षिण भारत की यात्रा कर रहा हूँ, लेकिन मुझे सबसे ज्यादा परेशानी पुद्दुचेरी और तमिलनाडू में होती है लगता है मै किसी ऐसे टापू पर आ गया हूँ जहाँ कोई मेरी भाषा भी समझने वाला नही है ,कोई मुझे सुनने को तैयार नही, मैं जरुर उनके मुह की तरफ़ देखता था की ये क्या बोल रहे हैं और समझने की कोशिश करता था. आज़ादी के ६३ बरसों के बाद भी जो हिन्दी सुनने समझने को तैयार नहीं है. उनको हिन्दी के लिए कैसे मनाया जाएगा? ये चिंतन विषय है. हम उनसे अपनी भाषा छोड़ने नही कहते हैं पर सम्पर्क भाषा के रूप में हिन्दी अनिवार्य होनी चाहिए, पोंद्य्चेरी में एक बार मुझे शिल्पकारों के कार्यक्रम की अध्यक्षता करने जाना था अपने एक मित्र जो तीन पीढियों से हिन्दी भाषी क्षेत्र में रह रहे हैं उनको अपने खर्चे पर साथ लेकर गया की मुझे अनुवाद करके वहां के लोगों की बात समझायेंगे लेकिन वहां की तमिल से उनकी भी हवा निकल गई ,और मेरा प्रयास निरर्थक रहा. उनको साथ ले जाने का भी मुझे लाभ नही मिल पाया, केरल,कर्नाटका,में जयादा परेशानी नही है. वहां पर लोग हिन्दी समझते हैं और बोलते भी हैं।

हिन्दी एक अविरल प्रवाहित महानदी मन्दाकिनी है जो सदियों से जनमानस को सिंचित करती आई है, प्राणवायु के रूप में हमारे सरिरों में साक्षात् समाहित है।

इसलिए हमें प्रत्येक साँस को ही हिन्दी दिवस समझना चाहिए।

ललित शर्मा
Read More: http://lalitdotcom.blogspot.com/2009/09/blog-post.html
                                                                                         

ललितडॉटकॉम की अद्यतन पोस्ट-
बृहस्पतिवार, २६ अगस्त २०१०
श्रावणी उपाकर्म से रक्षा-बंधन तक की यात्रा-------------ललित शर्मा
प्राचीन काल में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को श्रावणी पर्व के रुप में मनाया जाता था। उस समय वेद और वैदिक साहित्य का स्वाध्याय होता था। लोग वैदिक साहित्य पढते थे प्रतिदिन, लेकिन वर्षा काल में विशेष रुप से पढा जाता था। वेद पाठ का आयोजन विशेष रुप से किया जाता था। भारत की अर्थव्यवस्था कृषि पर आधारित है। पूर्णिमा को गुरुकुलों में विद्यार्थियों का प्रवेश हुआ करता था। इस दिन को विशेष रुप से विद्यारंभ दिवस के रुप में मनाया जाता था। बटूकों का यज्ञोपवीत संस्कार भी किया जाता था। श्रावणी पूर्णिमा को पुराने यज्ञोपवीत को धारण करके नए यज्ञोपवीत को धारण करने की परम्परा भी रही है, जिसे हम वर्तमान में भी निभाते चले आ रहे हैं।

हमारे देश में आषाढ से लेकर सावन तक फ़सल की बुआई सम्पन्न हो जाती है। ॠषि-मुनि अरण्य में वर्षा की अधिकता के कारण गांव के निकट आकर रहने लगते थे। जिसका लाभ ग्रामवासी उठाते थे। जिसे चातुर्मास या चौमासा करना कहते हैं। चौमासे में ॠषि मुनि एक जगह वर्षा काल के चार महीनों तक ठहर जाते थे। आज भी यह परम्परा जारी है। इन चार महीनों में वेद अध्ययन, धर्म-उपदेश और ज्ञान चर्चा होती थी। श्रद्धालु एवं वेदाभ्यासी इनकी सेवा करते थे और ज्ञान प्राप्त करते थे। इस अवधि को "ॠषि तर्पण" कहा जाता था।

जिस दिन से वेद पारायण का उपक्रम आरम्भ होता था उसे “उपाकर्म” कहते हैं। यह वेदाध्यन श्रावण सुदी पूर्णिमा से प्रारंभ किया जाता था। इसलिए इसे “श्रावणी उपाकर्म” भी कहा जाता है। पारस्कर के गुह्य सुत्र में लिखा है-“ अथातोSध्यायोपाकर्म। औषधिनां प्रादुर्भावे श्रावण्यां पौर्णमासस्यम् “ (2/10/2-2) यह वेदाध्ययन का उपाकर्म श्वावणी पूर्णिमा से प्रारंभ होकर पौष मास की अमावस्या तक साढे  चार मास चलता था। पौष में इस उपाकर्म का उत्सर्जन किया जाता था। इसी परम्परा में हिंदु संत एवं जैन मुनि वर्तमान में भी चातुर्मास का आयोजन करते हैं, भ्रमण त्याग कर चार मास एक स्थान पर ही रह कर प्रवचन और उपदेश करते हैं।

मनुस्मृति में लिखा है-
श्रावण्यां पौष्ठपद्यां वाप्युपाकृत्य यथाविधि।
युक्तश्छन्दांस्यधीयीत मासान् विप्रोSर्ध पंचमान्।।
पुष्ये तु छंदस कुर्याद बहिरुत्सर्जनं द्विज:।
माघशुक्लस्य वा प्राप्ते पूर्वार्धे प्रथमेSहनि॥

अर्थात श्रावणी और पौष्ठपदी भ्राद्रपद, पौर्णमासी तिथि से प्रारंभ करके ब्राह्मण लगनपूर्वक साढे चार मास तक छन्द वेदों का अध्ययन करे और पौष मास में अथवा माघ शुक्ल प्रतिपदा को इस उपाकर्म का उत्सर्जन करे।
इस कालावधि में प्रतिदिन वेदाध्यन किया जाता था, प्रतिदिन संध्या और अग्निहोत्र किया जाता था। नए यज्ञोपवीत को धारण करके स्वाध्याय में शिथिलता न लाने का व्रत लिया जाता था। वेद का स्वाध्याय न करने से द्विजातियां शुद्र एवं स्वाध्याय करने से शुद्र भी ब्राह्मण की कोटि में चला जाता है। इस तरह वेदादि अध्ययन एव स्वाध्याय का प्राचीनकाल में बहुत महत्व था।
राजपूत काल में यह पर्व राखी के रुप में परिवर्तित हुआ। नारियाँ को दुश्मन यवनों से बहुत खतरा रहता था। वे बलात् अपहरण कर लेते थे। इससे बचने के लिए उन्होने वीरों को कलाई परे सूत्र बांध कर अपनी रक्षा का संकल्प दिलाया। तब से यह प्रसंग चल पड़ और रक्षा बंधन का पर्व भी श्रावण सुदी पूर्णिमा को मनाया जाने लगा। राख का अर्थ ही होता है, रखना, सहेजना, रक्षित करना। कोई भी नारी किसी भी वीर को रक्षा सूत्र (राखी) भेज अपना राखी-बंध भाई बना लेती थी वह आजीवन उसकी रक्षा करना अपना कर्तव्य समझाता था।

चित्तौड़ की महारानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूं को गुजरात के शासक से अपनी रक्षा हेतु राखी भेजी थी और बादशाह हुमायूं ने राखी का मान रखते हुए तत्काल चित्तौड़ पहुंच कर उसकी रक्षा की थी। तब से रक्षा-सूत्र के बंधन का व्यापक प्रचार प्रसार हुआ और रक्षा बंधन पर्व मनाया जाने लगा। जिसका वर्तमान स्वरुप आप सभी के सामने है।
Read More: http://lalitdotcom.blogspot.com/2010/08/blog-post_26.html

                                 

26 comments:

  1. ललित भाई द जवाब नई ।

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  2. "ललित समग्र" की प्रस्तुति अच्छी लगी । आप दोनो को बधाई ।

    ReplyDelete
  3. बेहद उम्दा चर्चा ........ललित भाई के बारे में काफी जानकारी मिली ......आभार आपका !

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  4. ललित जी के बारे में जानना अच्छा लगा ...

    आभार

    ReplyDelete
  5. lalit sharmaa '' top ten'' mey dekh kar khushi hui. hamto kabhi ho hi nahi sakte. chhota bhai ho gaya, yahi bahut hai. lalit mey yogyata bhi hai isaki..

    ReplyDelete
  6. ललित जी की जानकारी देती नए अंदाज की चर्चा |बधाई
    आशा

    ReplyDelete
  7. ललित जी के बारे में जानना अच्छा लगा ...

    आभार

    ReplyDelete
  8. जानकारी देती नए अंदाज की चर्चा |

    ReplyDelete
  9. ब्लॉग जगत के शिखर पर

    पताका इनकी नित फहराए

    मनसा वाचा कर्मणा

    नित ज्ञान की गंगा लहराए

    शिखर पर पहुँचने को

    केवल नौ सोपान है शेष

    अंतिम सोपान में रखेंगे जब कदम

    वह अवसर होगा 'विशेष'

    ललित भाई को बहुत बहुत बधाई व शुभ कामनाएं

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  10. वाह! शास्त्री जी आपने कमाल कर दिया।
    अकिंचन की चर्चा करके निहाल कर दिया॥

    संवाद मिटाता कलुष कष्टों का होता शमन है।
    महर्षि दयानंद के सिपाही को मेरा नमन है॥

    शुभकामनाएं

    ReplyDelete
  11. वाह! शास्त्री जी आपने कमाल कर दिया।
    अकिंचन की चर्चा करके निहाल कर दिया॥

    संवाद मिटाता कलुष कष्टों का होता शमन है।
    महर्षि दयानंद के सिपाही को मेरा नमन है॥

    शुभकामनाएं

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  12. आपके माध्‍यम से ललित शर्मा जी का परिचय अच्‍छा लगा .. बहुत बढिया !!

    ReplyDelete
  13. ललित जी के बारे में जानकर अच्छा लगा .
    बढ़िया चर्चा की है.

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  14. इस चर्चा के माध्यम से ललित शर्मा जी के बारे में बहुत कुछ जानने को मिला.....
    आभार्!

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  15. वाह बहुत बढ़िया... ललित भईया को बधाई.

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  16. आपने जो बड़प्पन का परिचय दिया है उससे बंदा राजकुमार अभिभूत है.
    जीना शायद इसी का नाम है.
    आपको दिल से साधुवाद और बधाई.

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  17. जो जँचा - रुचा सो ललित जी की ब्लॉग सूची और रुचिक्रम देख-समझ कर - वह यह कि:
    ललित जी "ललित" हैं!
    ख़ूब रही गुरू!!

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  18. ललित जी के बारे में विस्तृत रूप से जानकर बहुत अच्छा लगा, आपका बहुत आभार.

    रामराम.

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  19. चलो, इसी बहाने पता चला कि कोई ललित जी हैं..हा हा!!


    मजा आ गया.

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  20. ललित भाई और आपको शुभकामनायें

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  21. .
    ललित जी नमस्ते ।
    आपके बारे में जानना सुखकर रहा ।
    .

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  22. टॉप टेन यानी दस नम्‍बरी
    हे चिट्ठाजगत दारोगा साहब
    मुझे कब दस नंबरी बनाएगा
    लगता है जिस दिन
    ललित शर्मा को एक नंबरी
    का तमगा लगाया जाएगा।

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  23. अरे वाह.. क्या खुशखबरी है.. बधाई सर जी..

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