लो जी आ गये हम फिर भोलेनाथ के साथ सोमवार की चर्चा लेकर्………अब देखिये कोई भोले पर अपने भावों के पुष्प , तो कोई जल , तो कोई बेलपत्र ,तो कोई अपने आहूत होते सपनो की भस्म चढा रहा है ………आप भी इस शिवालय में अपने भावों को अर्पण किजीये और जीवन लाभ लीजिये…………
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परदे के पीछे का सच तो सिर्फ़ उसके पीछे रहने वाला ही जान सकता है और इस कडवे सच से जूझता सिपाही जब अपनी जुबाँ खोलता है तो खुद पर शर्म आने लगती है अगर जानना है हकीकत तो यहाँ आइये और फिर कुछ बोलने की हिम्मत कीजिये………
इन "भारतीय कुत्तों वापस जाओ" के नारों से मन उतना खिन्न नहीं होता जितना चिनारों के बदस्तूर खिलखिलाने से। मन करता है वादी के एक-एक चिनार को झकझोड़ कर पूछूँ कि तुम इतना खिलखिला कैसे सकते हो जब तुम्हारी छाया में पले-बढ़े नौनिहाल तुम्हारे अपने ही मुल्क को गंदी गालियाँ निकाल रहे हों।
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छोटा हो या बडा कोई भी हिंदुस्तानी ऐसा नही जिसे अपने देश पर नाज़ ना हो…………देखिये ना यहाँ भी……………
धर्मनिरपेक्ष राज-काज है। जनता का जनता पे राज है। हमको अपने भारत पे नाज़ है।। नीलकण्ठ गंगा सवाँरता, चरणों को सागर पखारता, सिर पर हिमालय
एक प्रयास तो कीजिये ज़माना खुद-ब-खुद आपके साथ आ जायेगा उसका उदाहरण यहाँ देखिये………………
“कौन कहता है आसमाँ में छेद नहीं हो सकता,एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारों”।इन्हीं पंक्तियों को यथार्थ में बदलने की कोशिश में लगा है दिल्ली का “प्रयास बाल ...समाज
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राम को देखकर के जनक नन्दिनी
बाग मे बस खडी की खडी रह गयी
राम देखें सिया को सिया राम को
चारों अँखियाँ लडी की लडी रह गयीं
कुछ ऐसा ही हाल राहुल जी का हो रहा है एक बार नयन जो मिले तो बस फिर देखिये क्या हाल होता है……………
नयनो से मिले नयन, नयन चार हो गए नज़रें हटा सके नहीं, लाचार हो गए ना खुद का रह होश, रही ना कोई ख़बर बेबस अरे हम यूँ, सरे बाज़ार हो गए उन झील सी आँखों में, जाने कैसी ...समाज
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अब लुटने के लिये तैयार हो जाइये सच एक बार यदि इस मयखाने मे आ गये तो बच कहाँ जाइयेगा जनाब्……………आइयेगा जरूर नये और पुराने के संगम मे कुछ देर के लिये खुद को भूल जाइयेगा
हुस्न वालों पर इस क़व्वाली में इल्ज़ाम लगाने वालों की लम्बी फ़ेहरिश्त है कुछ नमूने आज़ यहां कुछेक नमूने यानी बानग़ी देखिये सुनिये ये भी मज़ेदार है न :-
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आशा की किरण लेकर आशा जी की विनती कितनी मासूम है ज़रा गौर फ़रमाइयेगा…………
वर्षा ऋतु में जब भी , दृष्टि पड़ी अम्बर पर , कभी छितरे छितरे , कभी बिखरते बादलों को , तो कभी काली घनघोर घटाओं को , यहाँ वहां विचरते देखा , कई बार जल से ओत प्रोत , लगता ...समाज
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सवालिया अहसासों में सेंध लगाते ख्याल , वक्त , हालात और कडवाहट्…… कैसे दुनिया खूबसूरत दिखे फिर
नज़रपरस्त है फिर भी यकीं नहीं जाता तारीख रह रह सर उठाती है ख्यालों में सेंध लगाती है वक़्त साथ साथ चलता है कितनी सादगी से छलता है खरीदने वाले को सिर्फ बाजार ...समाज
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अपराजिता जी की मुस्कान सिर्फ़ एक ही अहसास मे छिपी बैठी है जानना चाह्ते हैं उस अहसास को तो ज़रा उसमें भीग कर देखिये…………
तुम्हारी कनखियों में कहीं आज भी छिपी बैठी है मेरी मुस्कान जिसे तुम्हारी आँखों की चमक से, चुरा लिया था मैंने !! अब भी तुम्हारे हाथों में रची है मेरे तन की महक मेरी ...कला
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अनिल जी की बात बेशक छोटी है जिस पर कोई ध्यान नही देता मगर सवाल बहुत बडा है…………क्या आपके पास है इसका जवाब?
एक बहुत छोटी सी पोस्ट जिसमे बहुत बड़ा सवाल भी है।मोबाईल फ़ोन जितना सुविधाजनक है उतना ही वो अपनी एसएमएस सेवा के कारण परेशानी का सबब भी बनता जा रहा है।
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शरीर का नष्ट होना जानना हो तो एक बार जरूर पढियेगा और फिर जो निषेध किया गया है उस पर अमल करियेगा तो जीवन सुखकर तो होगा ही नष्ट होने मे भी कष्ट कम होगा…………………
अनुगीता संस्कृत महाकाव्य महाभारत, अश्वमेधिकापर्व का हिस्सा है. इसमे अर्जुन के साथ कृष्ण की बातचीत के उस समय का वर्णन है, जब कृष्ण पांडवों के लिए राज्य बहाल ...समाज
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एक हास्य पर भी नज़र डालिये और आगे के लिये संभल जाइये कहीं आपके साथ भी ऐसा न हो जाये………………
अपने तबादले से वह खुश नहीं थे, क्योंकि नयी जगह पर ऊपरी कमाई के अवसर कुछ नहीं थे, इसलिये अपने बॉस के जाकर बोले, ‘‘मैंने तो आपकी आज्ञा का पालन हमेशा वफादार की तरह ...समाज
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हवन ही हवन में हवन हो गये सभ्यता से मिले संस्कार , पता नही उनके कैसे गबन हो गये ! धर्म, एकता, अखण्डता, और शांति बस बचे नाम के, इनके अर्थ तो लगता है, जैसे दफ़न हो गये, इंसानों ...समाज
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अगर जीवन का अर्थ जानना हो उसकी सार्थकता जाननी हो तो हिम के एक कण के पास आइये …………
एक तुच्छ कण भी जीवन का बोध करा जाता है
मगर इंसान बुद्धिमान होते हुये भी जीवन भर संभल ना पाता है…………
ललित कुमार द्वारा वर्ष 01 अगस्त 2010 को लिखित आखिरकार एक नई रचना लिखी गई है। जीवन-दर्शन पर अधारित यह कविता हिम के एक कण की कहानी कहती है और इसके माध्यम से मनुष्य ...समा
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भीड मे गुम होते अस्तित्व की तडप अगर जाननी है तो एक बार यहाँ जरूर आइये ………अपना दर्द ही पायेंगे
एक मुस्कान जिंदगी के नाम. हम अपने दिन की शुरुआत जिस तरह से करतें हैं हमरा पूरा दिन उसी तरह से गुजरता है, ये हम सभी जानते हैं। प्रायः ये देखा गया है की हमारे ...समाज
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काव्य क्या है जानना है तो यहाँ आइये और साथ साथ अपने विचार भी व्यक्त कीजिये…………
काव्य भाव का स्वच्छंद प्रवाह नहीं, भाव से मुक्ति या पलायन है। काव्य लक्षण-19 (पाश्चात्य काव्यशास्त्र-7)
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गुलज़ार साहब का नाम आते ही दिल गुलज़ार हो जाता है फिर कहने को कुछ नही बचता बस सिर्फ़ उन्हें पढने का दिल करता है तो लीजिये पढिये ना…………
*तमाम सफ़हे किताबों के फड़फडा़ने लगे हवा धकेल के दरवाजा़ आ गई घर में! कभी हवा की तरह तुम भी आया जाया करो!* सुबह सुबह जब उठा तो दिन कुछ अलग सा दिख रहा था, शायद कुछ बातें याद आ रही थी या कुछ और..पता नहीं,पास...
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कंचन जी का दर्द कैसे लफ़्ज़ों में ढलता है उसकी एक बानगी यहाँ देखिये ………
हमें हमारे हवाले, जो तुमने छोड़ा है, पलट के लौट भी आओ, ये कोई बात नही। वो शम्मा, जिससे हमारी हयात रोशन थी, उसी से हमको जलाओ, ये कोई बात नही। |
राकेश जी ने इस कहानी मे आगे आने वाले हालात का ऐसा खाका खींचा है कि रोंगटे खडे हो जायें ………………हमें पानी की एक एक बूँद् की कीमत समझनी होगी वरना वो दिन दूर नही जब ऐसे ही हालात से दो चार होना पडे………………इन की कहानियों मे गहरी पीडा के साथ भविष्य दर्शन भी होता है……………………
अरे! क्या हुआ...?, पूरे गांव में ये कैसा श्मशान सा सन्नाटा पसरा है, सब ठीक तो है ना पार्वती? अरे! कहां हो? घर आ कुर्ते को आस्तीन से अलग करता पंकज एक कमरे से दूसरे कमरे किसी अन्जाने भय से भयभीत अधीर हो अप...
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सरस्वती की खरीद फ़रोख्त भी होती है …………विश्वास ना हो तो यहाँ देखिये………आपका हमारा सबका सच्…………
| Author: Tej Pratap Singh | Source: साहित्य योग
............................................................................................................... आज ही इंजीनियरिंग कॉलेज का रिजल्ट आया था.... "बेटा मनोज तुम्हारे रिजल्ट का क्या हुआ? हाँ पापा लिस्ट में दूसरा नंबर है, अच्छा कॉलेज मिल जायेगा गुड, मैं तुम्हारे लिए बहुत खुश हूँ. वो तुम्हारे दोस्त सोनू का क्या हुआ ? पापा उसको शायद कोई कॉलेज ना मिल पाए उसके नंबर बहुत कम हैं. चलो कोई बात नहीं अगली बार शायद उसे भी कुछ अच्छा मिल जाये." अगले दिन मनोज कॉलेज में दाखिला लेने पहुंचा ... [read more]
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वासनायें असीमित हैं और दिन पर दिन बढती ही जाती हैं जब तक अंकुश ना लगाया जाये…………देखियेगा
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खोती ज़िन्दगी का दर्द कैसे उभर कर आया है यहाँ……………
भूख से बिलख-बिलख के रो रही है ज़िन्दगी अपने आंसुओं को पी के सो रही है ज़िन्दगी चल पडी थी गांव से तो रोटियों की खोज में अब महानगर में प्लेट धो रही है ज़िन्दगी या ...समाज
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ज़िन्दगी भर इंसान कुछ सीखता ही रहता है और ज़िन्दगी की हर प्रक्रिया कुछ ना कुछ सिखाती ही रहती है यदि ये जानना है कैसे तो यहाँ आइये और खुद ही देख लीजिये…………
posted by संगीता स्वरुप ( गीत ) at गीत.......मेरी अनुभूतियाँ
पीड़ा से लड़ना मैंने सीखा है पीड़ा को दास बनाना सीखा है फिर मैं पीड़ा से कैसे डर जाऊं जब उस पर अधिकार ज़माना सीखा है कभी कभी मन जब यूँ ही आहत हो जाता है अश्कों का सागर भी ज...
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पलाश और करेली के संवाद से आप भी रु-ब-रु हो जाइये ……………
तुम पलाश के अमर पुष्प हो, मैं कडवी सी बेल करेली. कैसे अपना नेह बनेगा? करते क्यूँ कर हो अठखेली? हे सत्वचन, सदगुणी, गुनिता! अम्लहरिणी तुम श्रेष्ठ पुनीता. मैं अरण्य ...समाज
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वक्त के प्रवाह के साथ तो कोई भी बह जाये मगर प्रवाह से उलट दिशा मे बहकर अपना रास्ता बनाने वाले बहुत कम लोग होते हैं……………देखिये यहाँ वो कौन से लोग हैं…………
बेहतर दुनिया का सपना देखते लोग सुभाष नीरव बहुत बड़ी गिनती में हैं ऐसे लोग इस दुनिया में जो चढ़ते सूरज को करते हैं नमस्कार जुटाते हैं सुख-सुविधाएँ और पाते हैं ...कला
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मन की परेशानियों से बचना है तो ये जरूर पढिये…………
कुछ तो होगा कुछ तो होगा अगर मैं बोलूंगा न टूटे न टूटे तिलस्म सत्ता का मेरे अंदर का एक कायर टूटेगा टूट मेरे मन टूट अब अच्छी तरह टूट झूठ मूठ मत अब रूठ-रघुवीर सहाय सहाय ...समाज
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आस्माँ पर छाये बादल कैसे कैसे अहसास दे जाते हैं उसकी एक बानगी यहाँ देखिये……………
आसमां...(आशु रचना )
#### आसमां , ये मन का मेरे विस्तृत नील गगन के जैसा अरमानों के छाते बादल चित्र बनाते कैसा कैसा . कभी श्वेत रुई से बादल बिल्ली जैसे बन के दिखते कभी सलेटी स्याही ...समाज
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चलिये पंडित जी के साथ भय और अविश्वास के सफ़र पर्……………
पिछले सप्ताह की बात है, अचानक किसी आवश्यक कार्य से हिमाचल प्रदेश स्थित कांगडा जी जाने का कार्यक्रम बन गया.रात के समय ही हम गाडी में बैठे सफर के लिए निकल ...समाज
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अब भोले के दरबार मे आये हैं तो जब तक द्वादश ज्योतिर्लिंग के दर्शन ना करें तो क्या फ़ायदा…………तो कीजिये पाठ दर्शनों के साथ
श्री सदगुरुवे नमः ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ...समाज
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और अब अन्त मे जब तक भोलेनाथ की आरती ना हो तो पूजा अधूरी रह जाती है तो आइये हिमांशु जी के साथ आरती मे शामिल हो जाइये और जीवन सफ़ल बनाइये…………
जय शिव ओंकारा, हर शिव ओंकारा, ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा। एकानन चतुरानन पंचानन राजै हंसानन गरुणासन वृषवाहन साजै। दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति ...समाज
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दोस्तों,
आज के लिये बस इतना ही …………अब इजाज़त चाहुँगी और आपके विचार जानने के लिये उत्कंठित रहूँगी।
ॐ नम: शिवाय
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सावन में यह इन्द्रधनुषी चर्चा बहुत बढ़िया रही!
जवाब देंहटाएंसावन में यह इन्द्रधनुषी चर्चा बहुत बढ़िया रही!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी चर्चा बधाई |आपने मुझे इस मंच पर याद किया इस हेतु बहुत बहुत आभार |
जवाब देंहटाएंबहुत सारे लिंको के साथ अच्छी चर्चा !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी चर्चा बधाई ..!
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंकों के साथ बेहद सुन्दर चर्चा वंदना जी !
जवाब देंहटाएंभावनाओं के समन्वय के साथ की गयी हर पोस्ट और उस पर चर्चा बहुत सुन्दर लगी ....आज का यह रंग बिरंगा मंच मन को मोह गया ...आभार
जवाब देंहटाएंरंगबिरंगा गुलदस्ता खूब भाया... मेरी रचना को शामिल करने का आभार
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स मिले .
जवाब देंहटाएंshamil karne ka shukriya...
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा।
जवाब देंहटाएंढेरों उपयोगी लिंक!
dhanywaad app ka
जवाब देंहटाएंaachi charcha ki aap ne, aur logon ko padna bhi aacha laga.
शुक्रिया वन्दना जी, मेरे पोस्ट को भी शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंआभार !!
आभार!
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिन्कस और उम्दा चर्चा.
जवाब देंहटाएंबहुत ही रंगबिरंगी और रोचक चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुन्दर चर्चा !
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रयास
जवाब देंहटाएंदीपक भारतदीप
बहुत अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंशिव जी की कृपा से ये चर्चा खूब रंग जमा रही है.
जवाब देंहटाएंओम नमः शिवाय
रंगों की सुन्दर छटा बिखेरती बेहद उम्दा चर्चा.....
जवाब देंहटाएंआभार्!
बेहतरीन चर्चा सुंदर सज्जा के साथ ! शुभकामनाएं आपको !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चामंच माँ दुर्गा मंत्र एवं स्तुति
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