आज के चर्चामंच में कुछ जानी-मानी ब्लॉगाराओं से आपको परिचित कराता हूँ! |
सबसे पहले मिलिए- Ontario : Ottawa : Canada में प्रवासी भारतीय ब्लॉगर स्वप्नमञ्जूषा शैल “अदा” से- इनके ब्लॉग हैं- संतोष शैल काव्य मंजूषा ब्लॉग रेडियो Radio Ada इनकी आज की पोस्ट है- काव्य मंजूषा रामायण की चौपाइयाँ....(यह प्रविष्ठी मैं दोबारा डाल रही हूँ... इस कविता को मैंने उस दिन लिखा था, जिस दिन मेरे बड़े बेटे मयंक शेखर का जन्म हुआ था, याद है मुझे इसे लिखकर जैसे ही मैंने पूरा किया था डाक्टर साहिबा ने मेरे हाथ से मेरी कलम और नोटबुक लगभग छीन ही लिया था, और धमकी दी थी...कोई लिखना पढ़ना नहीं है अभी...बस आराम करो...:):) जैसे उन्होंने कहा और मैं मान गई..:):) हा हा हा .. और आज फिर वही दिन आया है, २७ अगस्त, मेरे बड़े बेटे मयंक का जन्मदिन है, उस पल अस्पताल के कमरे में चार पीढियाँ विद्यमान थी, नवजात, मेरी नानी, मेरी माँ और मैं, मेरी नानी के मुखारविंद पर जो ज्योति मैंने देखी थी, उसे शब्द देना मेरे वश की बात न तब थी न अब है, लेकिन मेरा प्रयास ज़रूर है आपका आशीर्वाद चाहिए मयंक के लिए, उसी मयंक के लिए जिसका चित्रांकन आप सब देख चुके हैं...) खुरदरी हथेलियाँ, रामायण की चौपाइयाँ, श्वेत बिखरे कुंतल, सत्य की आभा लिए हुए उम्र की डयोड़ियाँ, फलाँगती फलाँगती क्षीण होती काया फिर भी, संघर्ष और अनुभव का स्तंभ बने हुए तभी !! नवागत को, युवा से लेकर, अधेड़ ने, बूढ़ी जर्जर पीढ़ी के हाथों में रखा हाथों के बदलते ही, पीढ़ियों का अंतराल दिखा सुस्त धमनियाँ जाग गयीं, मानसून के छीटों सी देदीप्यमान हो गयीं झुर्रियाँ आनन की बाहर से ही मुझे, चश्मे के अन्दर का कोहरा नज़र आया था, शायद, बुझती आँखों में बचपन तैर गया था नवागत पीढ़ी, निश्चिंत, निडर, हथेली पर, चौपाइयाँ सोखती रही, रामायण की !! और ऊष्मा मातृत्व की लुटाती रहीं, हम तीनों - नानी, माँ और मैं ! और अब एक गीत...आज का गीत है प्रज्ञा और उसके पापा की आवाज़ में.... प्रज्ञा की तरफ से उसके भईया के लिए...हा हा हा... |
अब मिलिए इन्दौर (मध्य प्रदेश) indore/Khargone : M.P : India की ब्लॉगर अर्चना चावजी से- इनके ब्लॉग हैं- मिसफिट:सीधीबात मेरे मन की ये अपने बारे में लिखती हैं- मै, सबसे पहले एक बेटी,फ़िर बहन,फ़िर सहेली,फ़िर पत्नी,फ़िर बहू, फ़िर माँ,फ़िर पिता,फ़िर वार्डन, फ़िर स्पोर्ट्स टीचर और फ़िलहाल "ब्लॊगर" के किरदार को निभाती हुई,"ईश्वर" द्वारा रचित "जीवन" नामक नाटक की एक पात्र। ये है इनकी अद्यतन पोस्ट मेरे मन की आज फिर एक पुरानी पोस्ट जिसे किसी ने पढ़ा नहीं था ............ ऐसी कोई लाइने नही है मेरे पास, जिनमे हो कुछ अलग, या कुछ खास, पता नही लोग ऐसा क्या लिख देते है, जिसे पढ़कर सब उन्हें कवि कह देते है, आज तक नया कुछ नही पढने में आया है, जो माता -पिता ने बताया - वही सबने दोहराया है, शायद इसलिए, क्योकि जब वे कहते है, तब समय रहते हम उन्हें नही सुनते है, उनके "जाने" के बाद, परिस्तिथियों से लड़कर , या डरकर , हम उन्हें याद करके, अपना सिर धुनते है। मैंने भी उन्हें सुना और उनसे सीखाहै, और अपने अनुभवों को आधार बना कर फ़िर वही लिखा है --- १.सदा सच बोलो। २.सबका आदर करो। ३.बिना पूछे किसी की चीज को मत छुओ। ४.किसी को दुःख मत दो। ५.समय पर अपना काम करो। ६.रोज किसी एक व्यक्ति की मदद करो। ७.अपने हर अच्छे कार्य के लिए ईश्वर को धन्यवाद् दो और बुरे के लिए माफ़ी मांगो। posted by Archana at 7:02 AM on Aug 27, 2010 |
अब मिलिए- पेटरवार , बोकारो : झारखंड : India की चिर-परिचित ज्योतिषाचार्या संगीता पुरी जी से- ये अपने बारे में लिखती हैं- पोस्ट-ग्रेज्युएट डिग्री ली है अर्थशास्त्र में .. पर सारा जीवन समर्पित कर दिया ज्योतिष को .. अपने बारे में कुछ खास नहीं बताने को अभी तक .. ज्योतिष का गम्भीर अध्ययन-मनन करके उसमे से वैज्ञानिक तथ्यों को निकलने में सफ़लता पाते रहना .. बस सकारात्मक सोंच रखती हूं .. सकारात्मक काम करती हूं .. हर जगह सकारात्मक सोंच देखना चाहती हूं .. आकाश को छूने के सपने हैं मेरे .. और उसे हकीकत में बदलने को प्रयासरत हूं .. सफलता का इंतजार है।इनके ब्लॉग हैं-My BlogsTeam Membersगत्यात्मक चिंतनगत्यात्मक ज्योतिष सीखें 'गत्यात्मक ज्योतिष' फलित ज्योतिष : सच या झूठ विद्यासागर महथा ब्लॉग 4 वार्ता शिवम् मिश्रा गिरीश बिल्लोरे Yashwant Mehta "Yash" मास्टर जी ताऊ रामपुरिया ललित शर्मा-للت شرما राजीव तनेजा राजकुमार ग्वालानी सूर्यकान्त गुप्ता हमारा खत्री समाज हमारा जिला बोकारो और यह रही इनकी अद्यतन पोस्ट- शुक्रवार, २७ अगस्त २०१०काश हम बच्चे ही होते .. धर्म के नाम पर तो न लडते !!बात पिछले नवरात्र की है , मेरी छोटी बहन को कंजिका पूजन के लिए कुछ बच्चियों की जरूरत थी। इन दिनों में कंजिका ओं की संख्या कम होने के कारण मांग काफी बढ़ जाती है। मुहल्ले के सारे घरों में घूमने से तो अच्छा है , किसी स्कूल से बच्चियां मंगवा ली जाएं। यही सोंचकर मेरी बहन ने मुहल्ले के ही नर्सरी स्कूल की शिक्षिका से लंच ब्रेक में कक्षा की सात बच्चियों को उसके यहां भेज देने को कहा। उस वक्त मेरी बहन की बच्ची बब्बी भी उसी स्कूल में नर्सरी की छात्रा थी। शिक्षिका को कहकर वह घर आकर वह अष्टमी की पूजा की तैयारी में व्यस्त हो गयी।अभी वह पूजा में व्यस्त ही थी कि दोपहर में छह बच्चियों के साथ बब्बी खूब रोती हुई घर पहुंची। मेरी बहन घबडायी हुई बाहर आकर उसे चुप कराते हुए रोने का कारण पूछा। उसने बतलाया कि उसकी मैडम ने उसकी एक खास दोस्त हेमा को यहां नहीं आने दिया। वह सुबक सुबक कर रो रही थी और कहे जा रही थी, 'मेरे ही घर की पार्टी , मैने घर लाने के लिए हेमा का हाथ भी पकडा , पर मैडम ने मेरे हाथ से उसे छुडाते हुए कहा ,'हेमा नहीं जाएगी'। वो इतना रो रही थी कि बाकी का कार्यक्रम पूरा करना मेरी बहन के लिए संभव नहीं था। वह सब काम छोडकर बगल में ही स्थित उस स्कूल में पहूंची। उसके पूछने पर शिक्षिका ने बताया कि हेमा मुस्लिम है , हिंदू धर्म से जुडे कार्यक्रम की वजह से आपके या हेमा के परिवार वालों को आपत्ति होती , इसलिए मैने उसे नहीं भेजा। मेरी बहन भी किंकर्तब्यविमूढ ही थी कि उसके पति कह उठे, 'पूजा करने और प्रसाद खिलाने का किसी धर्म से क्या लेना देना, उसे बुला लो।' मेरी बहन भी इससे सहमत थी , पर हेमा के मम्मी पापा को कहीं बुरा न लग जाए , इसलिए उनकी स्वीकृति लेना आवश्यक था। संयोग था कि हेमा के माता पिता भी खुले दिमाग के थे और उसे इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने की स्वीकृति मिल गयी। बहन जब हेमा को साथ लेकर आयी , तो बब्बी की खुशी का ठिकाना न था। उसने फिर से अपनी सहेली का हाथ पकडा , उसे बैठाया और पूजा होने से लेकर खिलाने पिलाने तक के पूरे कार्यक्रम के दौरान उसके साथ ही साथ रही। इस पूरे वाकये को सुनने के बाद मैं यही सोंच रही थी कि रोकर ही सही , एक 4 वर्ष की बच्ची अपने दोस्त के लिए , उसे अधिकार दिलाने के लिए प्रयत्नशील रही। छोटी सी बच्ची के जीवन में धर्म का कोई स्थान न होते हुए भी उसने अपने दोस्ती के धर्म का पालन किया। बडों को भी सही रास्ते पर चलने को मजबूर कर दिया। ऐसी घटनाओं को सुनने के बाद हम तो यही कह सकते हैं कि काश हम भी बच्चे ही होते !! प्रस्तुतकर्ता संगीता पुरी पर ६:१७ अपराह्न |
अब आपको मिलवाता हूँ उत्तराखण्ड कूर्माञ्चल हल्दवानी की मास्टरनी साहिबा शेफाली पाण्डे से- ये अपने बारे में लिखती हैं- मैं अंग्रेज़ी, अर्थशास्त्र एवं शिक्षा-शास्त्र (एम. एड.) विषयों से स्नातकोत्तर हूँ, लेकिन मेरे प्राण हिंदी में बसते हैं| उत्तराखंड के ग्रामीण अंचल के एक सरकारी विद्यालय में कार्यरत, मैं अंग्रेजी की अध्यापिका हूँ| मेरा निवास-स्थान हल्द्वानी, ज़िला नैनीताल, उत्तराखंड है| अपने आस-पास घटित होने वाली घटनाओं से मुझे लिखने की प्रेरणा मिलती है| बचपन में कविताओं से शुरू हुई मेरी लेखन-यात्रा कहानियों, लघुकथाओं इत्यादि से गुज़रते हुए 'व्यंग्य' नामक पड़ाव पर पहुँच चुकी है| मेरे व्यंग्य-लेखन से यदि किसी को कोई कष्ट या दुःख पहुंचे तो मैं क्षमाप्रार्थी हूँ| इनके ब्लॉग हैं- My BlogsTeam Membersनुक्कड़उपदेश सक्सेना सुशील कुमार रवीन्द्र प्रभात rashmi ravija संजीव शर्माSadhak Ummedsingh Baid "Saadhak " राजेश उत्साही नमिता राकेशतेजेन्द्र शर्मा सतीश चन्द्र सत्यार्थी बलराम अग्रवाल इरशाद अली shamavarsha अविनाश वाचस्पति Atul CHATURVEDI सुनील गज्जाणी HEY PRABHU YEH TERA PATH कमल शर्मा sareetha 79 more हँसते रहो हँसाते रहो आलोक सिंह "साहिल" अविनाश वाचस्पति आनन्द पाठक sanju अविनाशराजीव तनेजा सुशील कुमार छौक्कर सुशील कुमार पवन *चंदन* Kirtish Bhatt, Cartoonist कुमाउँनी चेली मास्टरनी-नामा पिताजी वेदिका डॉ. कमलकांत बुधकर डॉ.कविता वाचक्नवी Dr.Kavita VachaknaveePD आलोक सिंह "साहिल" ललित शर्मा-للت شرما गिरीश बिल्लोरे डा.सुभाष रायडॉ. मोनिका शर्मा दिलीप कवठेकर विष्णु बैरागी संगीता पुरी Dev हरिराम नरेन्द्र व्यास रेखा श्रीवास्तव बलराम अग्रवाल पवन *चंदन* राजीव तनेजा 34 more स्मृति-दीर्घा ... संगीता पुरी पवन *चंदन* आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल' कमल शर्मा सुशील कुमारAlok Shankar राजीव तनेजा H P SHARMA Arun Kumar Jha कथाकारUdan Tashtari राजेश उत्साही "Aks" अजित वडनेरकर उमाशंकर मिश्र राजीव रंजन प्रसाद Rati yehsilsila सिद्धार्थ जोशी Sidharth Joshi 14 more यह रही इनकी अद्यतन पोस्ट-कुमाउँनी चेलीबृहस्पतिवार, २६ अगस्त २०१०कितने कब्रिस्तान ?कितने कब्रिस्तान ?मेरी आँखें बहुत सुखद सपना देख रही हैं | सरकारी स्कूलों में जगह - जगह पड़े गड्ढे वाले फर्श के स्थान पर सुन्दर टाइल वाले फर्श हैं | उन गड्ढों में से साँप, बिच्छू, जोंक इत्यादि निकल कर कक्षाओं में भ्रमण नहीं कर रहे हैं | जर्जर, खस्ताहाल, टपकती दीवारों की जगह मज़बूत और सुन्दर रंग - रोगन करी हुई दीवारों ने ले ली है | दीवारों का चूना बच्चों की पीठ में नहीं चिपक रहा है | दीमक के वजह से भूरी हो गई दीवारें अब अपने असली रंग में लौट आई हैं | अब बरसात के मौसम में कक्षाओं के अन्दर छाता लगाकर नहीं बैठना पड़ता | खिड़की और दरवाज़े तक आश्चर्यजनक रूप से सही सलामत हैं | कुण्डियों में ताले लग पा रहे हैं | बैठने के लिए फटी - चिथड़ी चटाई की जगह सुन्दर और सजावटी फर्नीचर कक्षाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं | पीले मरियल बल्ब जो हर हफ्ते तथाकथित अदृश्य ताकतों द्वारा गायब कर दिए जाते हैं, की जगह कभी ना निकलने वाली हेलोज़न लाइटें जगमगाने लगी है | बाबा आदम के ज़माने के पंखे, जिनका होना न होना बराबर है, बरसात में जिनके नीचे बैठने के लिए बच्चों को मना किया जाता है कि ना जाने कब सिर पर गिर पड़े, की जगह आधुनिक तेज़ हवा वाले पंखो ने ले ली है | मेरे सपने भी इतने समझदार हैं कि कूलर और ए. सी. के बारे में भूल कर भी नहीं सोच रहे हैं | इन भविष्य के निर्माताओं की झुकी हुई गर्दन और रीढ़ की हड्डी कुर्सी - मेज में बैठने के कारण सीधी हो गई है | कुर्सियों से निकलने वाली बड़ी - बड़ी कीलें कपड़ों को फाड़ना भूल चुकी हैं | बैठने पर शर्म से मुँह छिपा रही हैं | ब्लेक बोर्ड मात्र नाम का ब्लैक ना होकर वास्तव में ब्लैक हो गया है | कक्षाओं में रोज़ झाड़ू लगता है |शौचालय साफ़ सुथरे हैं | अब उनमे आँख और नाक बंद करके नहीं जाना पड़ता | कक्षा - कक्षों में इतनी जगह हो गई है कि इन भविष्य के नागरिकों के सिरों ने एक दूसरे से टकराने से इनकार कर दिया है | जुओं का पारस्परिक आवागमन बंद हो गया है | स्कूलों के लिए आया हुआ धन वाकई स्कूल के निर्माण और मरम्मत के कार्य में लग रहा है | उन रुपयों से प्रधानाचार्य के बेटे की मोटर साइकिल, इंजीनियर की नई कार, ठेकेदार की लड़की की शादी, निर्माण समिति के सदस्यों के कैमरे वाले मोबाइल नहीं आ रहे हैं | सबसे आश्चर्य की बात यह रही कि स्थानीय विधायक, जिनकी कृपा से धन अवमुक्त हुआ, का दस प्रतिशत के लिए आने वाला अनिवार्य फ़ोन नहीं आया | कीट - पतंगों के छोंके के बिना रोज़ साफ़ - सुथरा मिड डे मील बन रहा है | विद्यालय के चौकीदार की पाली गई बकरियां और मुर्गियां, दाल और चावल पर मुँह नहीं मार रही हैं | इन्हें वह उसी दिन खरीद कर लाया था जिस दिन से स्कूल में भोजन बनना शुरू हुआ था | सवर्ण जाति के बच्चे अनुसूचित जाति की भोजनमाता के हाथ से बिना अलग पंक्ति बनाए और बिना नाक - भौं सिकोड़े खुशी - खुशी भोजन कर रहे हैं | अध्यापकगण जनगणना, बालगणना, पशुगणना, बी. पी. एल. कार्ड, बी.एल. ओ. ड्यूटी, निर्वाचन नामावली, फोटो पहचान पत्र, मिड डे मील का रजिस्टर भरने के बजाय सिर्फ़ अध्यापन का कार्य कर रहे हैं | कतिपय अध्यापकों ने एल. आई. सी. की पोलिसी, आर. डी. , म्युचुअल फंडों के फंदों में साथी अध्यापकों को कसना छोड़ दिया है | ट्यूशन खोरी लुप्तप्राय हो गई है | ब्राह्मण अद्यापकों द्वारा जजमानी और कर्मकांड करना बंद कर दिया गया है | नौनिहालों को ''कुत्तों, कमीनों, हरामजादों, तुम्हारी बुद्धि में गोबर भरा हुआ है, पता नहीं कैसे - कैसे घरों से आते हो '' कहने के स्थान पर ''प्यारे बच्चों'', ''डार्लिंग'', ''हनी'' के संबोधन से संबोधित किया जा रहा है | अध्यापकों के चेहरों पर चौबीसों घंटे टपकने वाली मनहूसियत का स्थान आत्मीयता से भरी प्यारी सी मुस्कान ने ले लिया है | डंडों की जगह हाथों में फूल बरसने लगे हैं | कक्षाओं में यदा - कदा ठहाकों की आवाज़ भी सुनाई दे रही है | पढ़ाई के समय मोबाइल पर बातें करने के किये अंतरात्मा स्वयं को धिक्कार रही है | स्टाफ ट्रांसफर, इन्क्रीमेंट, प्रमोशन, हड़ताल, गुटबाजी, वेतनमान, डी. ए. के स्थान पर शिक्षण की नई तकनीकों और पाठ को किस तरह सरल करके पढ़ाया जाए, के विषय में चर्चा और बहस कर रहे हैं | अधिकारी वर्ग मात्र खाना - पूरी करने के लिए आस - पास के स्कूलों का दौरा करने के बजाय दूर - दराज के स्कूलों पर भी दृष्टिपात करने का कष्ट उठा रहे हैं | सब समय से स्कूल आ रहे हैं | फ्रेंच लीव मुँह छिपा कर वापिस फ्रांस चली गई है | निर्धन छात्रों के लिए आए हुए रुपयों से दावतों का दौर ख़त्म हो चुका है | अत्यधिक निर्धन बच्चों की फीस सब मिल जुल कर भर रहे हैं | पैसों के अभाव में किसी को स्कूल छोड़ने की ज़रुरत नहीं रही | सारे बच्चों के तन पर बिना फटे और उधडे हुए कपड़े हैं | पैरों में बिना छेद वाले जूते - मोज़े विराजमान हैं | सिरों में तेल डाला हुआ है और बाल जटा जैसे ना होकर करीने से बने हुए हैं | कड़कते जाड़े में कोई बच्चा बिना स्वेटर के दांत किटकिटाता नज़र नहीं आ रहा है | फीस लाने में देरी हो जाने पर बालों को काटे जाने की प्रथा समाप्त हो चुकी है | माता - पिता अपने बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित हो गए हैं | हर महीने स्कूल आकर उनकी प्रगति एवं गतिविधियों की जानकारी ले रहे हैं |बच्चों के बस्ते रोजाना चेक हो रहे हैं | एक हफ्ते में धुलने वाली यूनिफ़ॉर्म रोज़ धुल रही है | उन पर प्रेस भी हो रही है | भविष्य के नागरिक ''भविष्य में क्या बनना चाहते हो?" पूछने पर मरियल स्वर में ''पोलीटेक्निक, आई. टी. आई., फार्मेसी या बी.टी.सी. करेंगे'' कहने के स्थान पर जोशो - खरोश के साथ ''बी. टेक., एम्.बी. ए., पी.एम्.टी. करेंगे'' कह रहे हैं | भारत के भाग्यविधाताओं को अब खाली पेट स्कूल नहीं आना पड़ता | प्रार्थना स्थल पर छात्राएं धड़ाधड करके बेहोश नहीं हो रही हैं | उनके शरीर पर देवी माताओं ने आकर कब्जा करना बंद कर दिया है, ना ही कोई विज्ञान का अध्यापक उनकी झाड़ - फूंक, पूजा - अर्चना करके उन्हें भभूत लगा कर शांत कर रहा है | एक और सपना साथ - साथ चल रहा है | मलबे में दबे हुए अठारह मासूम बच्चों के लिए सारे स्कूलों में शोक सभाएं की जा रही हैं | स्कूलों में छुट्टी होने पर कोई खुश नहीं हो रहा है | लोग ह्रदय से दुखी हैं | दूसरे धर्मों को मानने वाले स्कूल यह नहीं कह रहे हैं ''इस स्कूल के बच्चे वन्दे - मातरम् गाते थे अतः हम इनके लिए शोक नहीं करेंगे '' ना ही किसी के मुँह से यह सुनाई दे रहा है कि '' अरे! बच्चे पैदा करना तो इनका कुटीर उद्योग है, फिर कर लेंगे | इन्हें मुआवज़े की इतनी तगड़ी रकम मिल गई यही क्या कम है'' विद्यालय कब्रिस्तान के बजाय फिर से विद्या के स्थान बन गए हैं, जहाँ से वास्तव में विद्यार्थी निकल रहे हैं, विद्यार्थियों की अर्थियां नहीं | प्रस्तुतकर्ता शेफाली पाण्डे |
अब मिलिए-दिल्ली की श्रीमती संगीता स्वरूप जी से- ये अपने बारे में लिखती हैं- कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ... मन के भावों को कैसे सब तक पहुँचाऊँ कुछ लिखूं या फिर कुछ गाऊँ । चिंतन हो जब किसी बात पर और मन में मंथन चलता हो उन भावों को लिख कर मैं शब्दों में तिरोहित कर जाऊं । सोच - विचारों की शक्ति जब कुछ उथल -पुथल सा करती हो उन भावों को गढ़ कर मैं अपनी बात सुना जाऊँ जो दिखता है आस - पास मन उससे उद्वेलित होता है उन भावों को साक्ष्य रूप दे मैं कविता सी कह जाऊं. इनके ब्लॉग हैं- बिखरे मोती गीत.......मेरी अनुभूतियाँ और यह रही इनकी अद्यतन पोस्ट- गीत.......मेरी अनुभूतियाँनीला आसमानमैं - आसमान हूँ , एक ऐसा आसमान जहाँ बहुत से बादल आ कर इकट्ठे हो गए हैं छा गई है बदली और आसमान का रंग काला पड़ गया है। ये बदली हैं तनाव की , चिंता की उकताहट और चिडचिडाहट की बस इंतज़ार है कि एक गर्जना हो उन्माद की और - ये सारे बादल छंट जाएँ जब बरस जायेंगे ये सब तो तुम पाओगे एक स्वच्छ , चमकता हुआ नीला आसमान... |
हमारी अगली ब्लॉगर हैं - डॉ.(श्रीमती) अजित गुप्ता ये अपने बारे में लिखती हैं- शब्द साधना राह कठिन/ शब्द-शब्द से दीप बनेंगे/ तमस रात में लिख देंगे/ शब्दों में ना बेर भरेंगे। इनके ब्लॉग हैं- इनकी अद्यतन पोस्ट है- अजित गुप्ता का कोना शहर से बाहर जाना एक ब्लागर का और ब्लागिंग से दूर होने के मायने – मैं ग्वालियर जा रही हूँ –अजित गुप्ता
मैं
देखती हूँ कि अक्सर लोग शहर से बाहर जाने पर या काम की व्यस्तता के
कारण ब्लाग पर सूचना देते हैं कि हम इतने दिनों के लिए बाहर हैं या फिर
व्यस्त हैं। ब्लागिंग के प्रारम्भिक दिनों में मुझे समझ नहीं आता था कि
लोग ऐसा क्यों लिखते हैं? किसी को क्या फर्क पड़ेगा कि आप घर में हैं या
बाहर? लेकिन अब ब्लागिंग के दस्तूर समझ आने लगे
हैं। जैसे किसी बगिया में फूल महक रहे हों या फिर किसी खेत में फसल लहलहा
रही हो तब फूलों से मकरंद पीने को मधुमक्खियां और फसल के कीड़े खाने के
लिए चिड़ियाएं खेत में आती हैं और उनके चहकने और गुनगुन करने से जीवन्तता
आती है। फसल चिड़ियों के गुनगुनाने से ही बढ़ती है। यदि दो-तीन दिन भी
चिडिया खेत में या बगीचे में नहीं आए तो मायूसी सी छा जाती है। बागवान और
किसान भी ध्यान रखता है कि कौन सी चिडिया खेत में रोज आ रही है और कौन सी
नहीं। ऐसे ही ब्लागिंग का हाल है। हमने पोस्ट लिखी, यानी की आपकी पोस्ट
आपके ब्लाग पर फसल की तरह लहलहाने लगी है और अब आपको इंतजार है कि
चिड़ियाएं आंएं और आपकी पोस्ट पर अपनी गुनगुन करके जाए।
इतनी
लम्बी अपनी बात कहने का अर्थ केवल इतना भर है कि आपको ध्यान रहता है कि
किस व्यक्ति ने मेरी पोस्ट पर टिप्पणी की है या नहीं। आपको बुरा लगने
लगता है कि क्या बात है फला व्यक्ति मेरी पोस्ट पर क्यों नहीं आया?
लेकिन वह बेचारा तो आपकी नाराजी से अनजान कहीं अपने काम में व्यस्त है।
इसलिए आपकी नाराजी नहीं बने कि हमारे ब्लाग पर मेरी टिप्पणी क्यों नहीं
है? इसलिए मैं आपको बता दूं कि मैं आज ग्वालियर जा रही हूँ और वहाँ से
तीन दिन बाद वापस आऊँगी। इन दिनों की पोस्ट को मैं मिस करूँगी और मेरी
टिप्पणियों का आप। आने के बाद मिलते हैं।
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अब नम्बर आता है दिल्ली की ही ब्लॉगर श्रीमती वन्दना गुप्ता का- ये अपने बारे में लिखती हैं- मैं एक गृहिणी हूँ। मुझे पढ़ने-लिखने का शौक है तथा झूठ से मुझे सख्त नफरत है। मैं जो भी महसूस करती हूँ, निर्भयता से उसे लिखती हूँ। अपनी प्रशंसा करना मुझे आता नही इसलिए मुझे अपने बारे में सभी मित्रों की टिप्पणियों पर कोई एतराज भी नही होता है। मेरा ब्लॉग पढ़कर आप नि:संकोच मेरी त्रुटियों को अवश्य बताएँ। मैं विश्वास दिलाती हूँ कि हरेक ब्लॉगर मित्र के अच्छे स्रजन की अवश्य सराहना करूँगी। ज़ाल-जगतरूपी महासागर की मैं तो मात्र एक अकिंचन बून्द हूँ। आपके आशीर्वाद की आकांक्षिणी- "श्रीमती वन्दना गुप्ता" इनके ब्लॉग हैं-
इनकी अद्यतन पोस्ट है- ज़ख्म…जो फूलों ने दिये
एक सिमटी
वन्दना द्वारा 4:00 AM परदुनिया में जीने वाले हम मैं, मेरा घर , मेरी बीवी, मेरे बच्चे मैं और मेरा के खेल में "मैं" की कठपुतली बन नाचते रहते हैं और तुझे दुनिया का हर उपदेश समझा जाते हैं देश के लिए कुछ कर गुजरने की ताकीद कर जाते हैं मगर कभी खुद ना उस पर चल पाते हैं क्योंकि "मैं" के व्यूहजाल से ना निकल पाते हैं समाज का सशक्त अंग ना बन पाते हैं |
अब चर्चा करते हैं- फरीदावाद, हरियाणा की ब्लॉगर अनामिका की- ये अपने बारे में लिखती हैं- मेरे पास अपना कुछ नहीं है, जो कुछ है मन में उठी सच्ची भावनाओं का चित्र है और सच्ची भावनाएं चाहे वो दुःख की हों या सुख की....मेरे भीतर चलती हैं.. ...... महसूस होती हैं ...और मेरी कलम में उतर आती हैं .....!! इनके ब्लॉग हैं- इनकी अद्यतन पोस्ट है- अनामिका की सदायें ... Tuesday, 24 August 2010कर्मठ बनें..
उम्मीदें ...उम्मीदें
और बस उम्मीदें
फिर कुछ तानें बानें
सपनों के .
कभी सोचा है
कि....जब
उम्मीदें टूटेंगी
तो क्या होगा ?
क्या संभाल पाएंगे
खुद को ?
सपने भी तो
उधार के हैं
सदा दूसरों पर
आधारित ...
सदा किसी का
आवलंबन किये हुए
तो...
उधार के ही तो हुए सपनें.
कितना आहत होता है अंतस
कितना क्रंदन करते हैं जज़्बात
और ऐसा तो नहीं
कि पहली बार ऐसा होता है
कई बार ऐसा होता है
फिर भी हम संभल नहीं पाते.
बार बार ....हर बार
फिर वही उम्मीदें
फिर वही स्वप्न ...
क्या बिना उम्मीदों के
सांसे टूट जाएँगी ?
क्या बिना उम्मीदों के
रिश्ते छूट जायेंगे ?
हमें सीखना होगा
बिन उम्मीदों के जीना
बिन उधार के सपनो के
जीवन यापन करना.
हमें बनना होगा कर्म योद्धा
अपने बाजुओं की ताकत से
पाना होगा आसमान
अपने क़दमों की तेज़ी से
नापनी होगी ये ज़मीन
अपने विवेक बोध से
करना होगा हर मुश्किल
को आसान.
कर्मठ बनें तो
क्यों करें
झूठी उम्मीदों का
व्यापार ?
क्यों जिएँ
उधार के
स्वप्नों की जिंदगी.
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अब मैं चर्चा कर रहा हूँ एक महान कवयित्री श्रीमती ज्ञानवती सक्सेना "किरण" की सुपुत्री श्रीमती साधना वैद्य की जो Agra : Uttar Pradesh : India की निवासी हैं! ये अपने बारे में लिखती हैं- एक संवेदनशील, भावुक और न्यायप्रिय महिला हूँ । अपने स्तर पर अपने आस पास के लोगों के जीवन में खुशियाँ जोड़ने की यथासम्भव कोशिश में जुटे रहना मुझे अच्छा लगता है । इनके ब्लॉग हैं- इनके ब्लॉग पर अद्यतन पोस्ट है- Unmanaa * जिज्ञासा *
देव तुम्हारी मंजु मूर्ति को
लेकर मैंने प्यार किया, दुनिया के सारे वैभव को तव चरणों में वार दिया ! किन्तु अविश्वासी जगती से छिपा न मेरा प्यार महान्, पागल कहा किसीने मुझको कहा किसीने निपट अजान ! कहा एक ने ढोंगी है यह जग छलने का स्वांग किया, कहा किसी ने प्रस्तर पर इस पगली ने वैराग्य लिया ! लख कर मंजुल मूर्ति तुम्हारी मैंने था सौभाग्य लिया , कह दो मेरे इष्ट देव क्या मैंने यह अपराध किया ? किरण |
और अन्त में चर्चा करता हूँ - Ujjain : M.P. : India की ब्लॉगर आशा जी की - ये अपने बारे में लिखती हैं- I am M.A. in Economics& English.Though I was a science student and wanted to become a doctor,I could not. I joined education department as a lecturer in English.I have a little literary taste . इनका ब्लॉग है- Akanksha और इनकी अद्यतन पोस्ट है- स्मृतियां
सुरम्य वादियों में
दौनों ओर वृक्षों से घिरी , है एक पगडंडी , फूल पत्तियों से लदी डालियाँ , हिलती डुलती हैं ऐसे , जैसे करती हों स्वागत किसी का , चारों ओर हरियाली , सकरी सी सफेद सर्पिनी सी , दिखाई देती पगडंडी , जाती है बहुत दूर टीले तक , एक परिचिता सी , पहुंचते ही उस तक , गति आ जाती है पैरों में , टीले तक खींच ले जाती है , कई यादें ताजी कर जाती है , लगता है टीला, किसी स्वर्ग के कौने सा , और यादों के रथ पर सवार , हो कर कई तस्वीरें , सामने से गुजरने लगती हैं , याद आता है वह बीता बचपन , जब अक्सर यहाँ आ जाते थे , घंटों खेला करते थे , बड़े छोटे का भेद न था , केवल प्यार ही पलता था , कभी न्यायाधीश बन , विक्रमादित्य की तरह , कई फैसले करते थे , न्याय सभी को देते थे , जब दिखते आसमान में , भूरे काले सुनहरे बादल , उनमे कई आकृतियाँ खोज , , कल्पना की उड़ान भरते थे , बढ़ चढ कर वर्णन उनका , कई बार किया करते थे , छोटे बड़े रंग बिरंगे पत्थर, जब भी इकठ्ठा करते थे , अनमोल खजाना उन्हें समझ , गौरान्वित अनुभव करते थे , खजाने में संचित रत्नों की , अदला बदली भी करते थे , बचपन बीत गया , वह लौट कर ना आएगा , वे पुराने दिन , चल चित्र से साकार हो , स्मृतियों में छा जाते हैं , वे आज भी याद आते हैं | आशा
अब दीजिए आज्ञा!
कल फिर मिलेंगे!! |
bahut sunder charcha...
जवाब देंहटाएंbahut mehanat kee aapane.
जवाब देंहटाएंमुलाकात अच्छी रही .
जवाब देंहटाएंआपकी महनत देख हतप्रभ हूँ. कितने मनोयोग से आपने ये चर्चा लगायी है और नए आयाम दे रहे हैं चर्चा मंच को. हर बार हर चर्चाकार की नयी नयी कोशिशे, नए नए अंदाज़ कौतुहल जगाते हैं और उत्सुकता बनाए रखते हैं इस चर्चा मंच से बंधे रहने और चर्चा मंच पर रोज हाजिरी देने के लिए.
जवाब देंहटाएंमुझे इस ब्लोगरा टीम में मिला कर जो आपने सम्मान दिया उसके लिए बहुत आभारी हूँ.
अदा दी, संगीता जी, अजित जी और साधना जी से तो अच्छी तरह परिचित हूँ. शेफाली पांडे जी भी हमारे फरीदाबाद शहर और यहाँ तक की हमारी कर्मभूमि पर भी आई हुई हैं सो उन से भी मुलाकात हो चुकी है.
संगीता पूरी जी, अर्चना जी और आशा जी को कभी नज़दीक से जानने का मौका नहीं मिला..आज आपने परिचय करवाया. बहुत बहुत शुक्रिया.
और वंदना जी हमारी चर्चा मंच की साथी हैं. ये दिल्ली की हैं तो उम्मीद है इनसे भी जल्दी ही अच्छी जान-पहचान हो पायेगी.
एक बार फिर से आभार इतनी अच्छी चर्चा के लिए.
आपका शुक्रिया ....इन सबके बीच गौण हूँ मै फिर भी आपने इन सबके बीच शामिल किया और ये सम्मान दिया ....आभार....साधना जी से मिलवाने के लिए धन्यवाद ...इनके अलावा सबको पढ़ती रहती हूँ.....
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंआपने इतना सम्मान दे दिया ..जिसके योग्य पता नहीं मैं हूँ भी या नहीं..
सचमुच ..चर्चा मंच आज एक बहुत ही प्रतिष्ठित मंच माना जा रहा है..और यह सिर्फ़ आपके अथक परिश्रम का ही परिणाम है....
बहुत ही अनुशासित और रोचक होती है प्रस्तुति...पूरी टीम नए नए प्रयोग करने का प्रयास करती है...हर बार नवीनता का बोध होता है...
आज भी ऐसा ही कुछ हुआ है...
मैं हृदय से आभारी हूँ...
शास्त्री जी .. ब्लॉगिंग मे आप बहुत मेहनत करते हैं .. सभी ब्लॉगराओं से परिचय करवाने के लिए बहुत आभार .. मुझे याद रखने का भी शुक्रिया .. आप सबों का सहयोग रहा तो मेरे सपने जरूर पूरे होंगे !!
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी ,
जवाब देंहटाएंआज आपकी यह विशेष चर्चा देख जहाँ खुशी का अनुभव हो रहा है वहाँ आपने महिला ब्लोगेर्स की ज़िम्मेदारी को बढा भी दिया है ...आपने मुझे इन नामों के बीच शामिल किया इसके लिए हृदय से आभारी हूँ ...इस योग्य हूँ भी या नहीं ..मैं स्वयं ही असमंजस में हूँ ...आपके दिए इस सम्मान के लिए मैं नतमस्तक हूँ ...
आपकी मेहनत से आज चर्चा मंच नयी ऊँचाई पर है ...आपकी कार्य क्षमता पर जितना भी नाज़ किया जाये कम है ..
सभी से परिचय करने के लिए आभार
आज के चर्चा मंच की चर्चा ने तो रोम रोम में खड़ा कर दिया
जवाब देंहटाएंमुह से कुछ शब्द नहीं फूट रहे हैं शासें तेज हो गयी ....
अब मयकं जी मैं क्या कहूँ......
ब्लोगार कि दुनियां के महां नायकों का संकलन बहुत ही सफलता से और न्याय पूर्ण ढंग से प्रस्तुत किया है ....
मेरी एक रचना भी कभी चर्चा मंच तक गयी थी ..
और मैं बड़ा प्रफुल्लित हुआ था .....
पर आज आपने चर्चा मंच को इतनी ऊँचाइयों पर ले जा के खड़ा कर दिया कि क्या कहूँ ....
आप को कोटि कोटि धन्यवाद ....
कभी दुबारा चर्चा मंच तक पहुंचूं ...
कोसिस करूँगा .....
बहुत अच्छी चर्चा ..बस ब्लॉगरा लिखन अखर रहा है ...
जवाब देंहटाएंसिर्फ ब्लॉगर या फिर सिर्फ महिला ब्लॉगर भी चलता ...!
आपने बहुत ही शानदार चर्चा लगाई है
जवाब देंहटाएंसच तो यह है शास्त्रीजी जिन महिलाओं का जिक्र आपने किया है वे वास्तव में बहुत परिश्रम करती है। घर-परिवार, दफ्तर व बच्चों की जिम्मेदारियों के बीच लिखने-पढ़ने के लिए समय निकाल लेना आसान काम नहीं है।
मैं सात-आठ महीने से ही ब्लाग जगत में हूं लेकिन मैं यह भी देखता हूं कि किसी महिला ने कभी किसी से झगड़ा करने की बात नहीं सोची और न ही कोई ऐसी-वैसी पोस्ट लगाई।
अपनी कविता, कहानी, दुख-दर्द लिखने में लगी हुई है वे। मैं तो इन सबको प्रणाम करता हूं.
नारीशक्ति को मेरा बार-बार नमन है।
अच्छी चर्चा लगी शास्त्री जी। और भी परिचय करवाईये क्योंकि इन्हें तो सब पहले से ही जानते हैं। प्रोत्साहन सबको चाहिये। ऐसी और चर्चाओं का इन्तज़ार रहेगा।
जवाब देंहटाएंआज के चर्चामंच में कुछ जानी-मानी ब्लॉगाराओं से
जवाब देंहटाएंआपको परिचित कराता हूँ!
इस पोस्ट पर जिस प्रकार से "ब्लोगरा " शब्द से अपने को सम्मानित महसूस कर रही हैं ब्लॉग लिखती महिला लगता हैं बहुत जल्दी न्यूट्रल शब्द "ब्लॉगर " का स्त्रीलिंग बन ही जाएगा और ये भी स्थापित हो ही जायेगा की ब्लॉग लिखना पहले पुरुषो ने शुरू किया और फिर महिला ने । अपने अधिकारों के प्रति इतनी उदासीनता बस महिला मे ही देखने को मिलती हैं
इस पोस्ट पर जिस प्रकार से "ब्लोगरा " शब्द से अपने को सम्मानित महसूस कर रही हैं ब्लॉग लिखती महिला लगता हैं बहुत जल्दी न्यूट्रल शब्द "ब्लॉगर " का स्त्रीलिंग बन ही जाएगा और ये भी स्थापित हो ही जायेगा की ब्लॉग लिखना पहले पुरुषो ने शुरू किया और फिर महिला ने । अपने अधिकारों के प्रति इतनी उदासीनता बस महिला मे ही देखने को मिलती हैं
हम कैसे कैसे अपने लिये गलत संबोधनों को स्वीकृति देते हैं ये पोस्ट , इसकी हेअडिंग और इस पर आये कमेन्ट इसी बात को दरशाते हैं
एक निहायत अफ़सोस जनक स्थिति हैं ये
रचना जी ,
जवाब देंहटाएंआपकी बात से सहमत होते हुए भी मैं आपको यह बताना चाहूंगी कि यहाँ हम "ब्लोगारा" शब्द से सम्मानित महसूस नहीं कर रहे ...बल्कि चर्चा में शामिल होने की वजह से कर रहे हैं ...
आप मेरी की गयी टिप्पणी में देख सकती हैं ..वहाँ पर महिला ब्लोगर शब्द ही प्रयुक्त हुआ है ...ज़रूरी नहीं है कि व्यर्थ के विवादों को बढ़ाया जाये ....
संगीता जी
जवाब देंहटाएंसम्मान लेने के लिये क्या हम किस प्रकार से सम्मान दिया जा रहा हैं ये भूल जायेगे और आने वाली पीढ़ियों पर उसका क्या असर होगा ये भी भूल जायेगे । आप को क्या सम्मान की जरुरत हैं । इतना विविध हैं आप का दायरा जिस को अगर सोचा भी जाए तो सम्मानित नहीं किया जा सकता ।
विवाद कह कर सही बात को गलत बनाना एक सामाजिक प्रवृति हैं और गलत के खिलाफ आवाज ना उठा कर नारी सदियों से अपने अधिकारों से वंचित रही हैं । नारी को इस देश ने देवी कह कर दासी जाना हैं जिसको कोई अधिकार नहीं वो घर की रानी माना हैं ।
सादर रचना
बहुत अच्छी, ज्ञानवर्धक मुलाक़ात ।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंक्या ब्लॉगर शब्द पुल्लिंग हैं ?? जागिये महिला ब्लॉगर जागिये
लो भई.....हो गया अब बवाल शुरू... ब्लौगर और ब्लौगरा.... ही ही ही ही ही ही ही ......
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट चर्चा और सार्थक टिप्पणि बहस.
जवाब देंहटाएंरामराम.
mehfooz
जवाब देंहटाएंjo log bevakt hastey haen wo khud apna samman khotey haen
अच्छी प्रस्तुति ,अभी और भी बहुत से नाम हैं ,उनसे भी मिलवाइये ।
जवाब देंहटाएंसाथी ब्लागर्स की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत हूँ...
जवाब देंहटाएं'ब्लॉगरा' कोई शब्द नहीं है...इस शब्द पर पहले भी बहुत लम्बी बहस हो चुकी है...अंग्रेजी शब्द 'ब्लॉगर' का प्रयोग भी 'टीचर', डाक्टर की तरह ही होना चाहिए....कोई महिलाओं के लिए 'टीचरा' या 'डाक्टरा' नहीं कहता है....यह आपत्ति सही है....सही शब्द 'ब्लॉगर' ही है...और इसी शब्द का प्रयोग उपयुक्त होगा....
धन्यवाद...
बढिया है जी,
जवाब देंहटाएंमुलाकात कराने के लिए धन्यवाद,
आभार
सचमुच मैने इसपर ध्यान नहीं दिया था .. शास्त्री जी ने मुझे ज्योतिषी संगीता पुरी कहा .. ज्योतिषिणी तो नहीं .. फिर ब्लॉगर की जगह ब्लॉगरा क्यूं ??
जवाब देंहटाएं@ रचना जी
जवाब देंहटाएंमेरी तो शक्ल ही ऐसी है... बेवक्त और बेवजह हंसती हुई.... और मुझे वैसे भी ब्लॉग जगत पे कोई सम्मान लेना थोड़े ही है... यहाँ इतना हाई स्टैण्डर्ड नहीं है की मैं लोगों से सम्मान लेता फिरूं.... जहाँ से सम्मान मिलना चाहिए उतना बहुत है... और वैसे भी मैंने आज पहली बार आपसे बहस की है... तो अगर आपसे बहस की है तो इतना तो श्योर है की आपका स्टैण्डर्ड मेरी नज़र में बहुत हाई है... मैं तो आपके डीटरमिनेशन का कायल हूँ... और मैं बहस हमेशा बराबरी वालों से ही करता हूँ और उन्ही को जवाब देता हूँ... तो यह समझिये न...कि आपका लेवल क्या है मेरी नज़र में....मैं तो थोडा मौज ले रहा हूँ इस ब्लॉगर और ब्लौगरा वर्ड पे.... और आपसे इतना बता दूं.... मैं नारी विरोधी नहीं हूँ... होप यू वों'ट माइंड दिस टाइम.... आप खुद सोचिये न की रियल लाइफ में इतनी टेंशन है... तो नेट की दुनिया पर आदमी टेंशन रिलीज़ करने ही तो आता है..... कोई झगडा करने तो नहीं न.... थोडा सा मौज ही ले लिया तो क्या बुरा किया? प्लीज़ मुझे माइंड मत करियेगा ... छोटा समझ कर ...मेरी बातों को पास कर दीजियेगा... आज पहली बार आपसे बात की है न इसलिए....
रिगार्ड्स...
ब्लोगर, डॉक्टर, टीचर ये सब अंग्रेजी शब्द हैं
जवाब देंहटाएंहम पूछ रही हैं ई सब का हो रहा है? काहे शाश्त्रीजी हम आपसे पूछती हैं कि ई बुढौती में का नाटक प्रपंच लगाये हो? या चर्चा करते करते शुकूल की आत्मा सवार हो गई का आपके सर पे? अरे जिस पर भी शुकूल की आत्मा सवार हूई है आज तक...समझल्यो कि ऊ कहीं का नही रहा। ई मौज अऊर पापुलरैटी का शुकूल तरीका ना ही अपनावो त बहुते बढिया रहेगा। आगे हम का कहें? बस करके दिखायेंगी अम्माजी।
जवाब देंहटाएंकोई ब्लागरा व्लागरा नाही चलेगी...सिर्फ़ जैसन डाक्टर वैसन ब्लागर...अब अम्माजी ने जो कह दिया सो कह दिया।
सबकी अमाजी।
सबसे पहले तो अम्मा जी को प्रणाम!
जवाब देंहटाएं--
यह देख कर बहुत अच्छा लगा कि आप अपने ब्लॉग की पोस्ट भले ही छोटी लिखें मगर टिप्पणी तो बहुत ही शानदार करती हैं!
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आपके ब्लॉग पर आपका परिचय नहीं मिला नहीं तो अम्मा जी की ही चर्चा हो जाती!
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आप खुद सोचिये न की रियल लाइफ में इतनी टेंशन है... तो नेट की दुनिया पर आदमी टेंशन रिलीज़ करने ही तो आता है.....
जवाब देंहटाएंmehfooz
aap sae pehlae bhi kayee baar yae baat uthi haen haa hii thaa thaa thee ki aur maene nirantar kehaa haen ki net aur blog par hansi kae allawa samajik muddae bhi haen
aap hasiyae wahaan jahaan majak ho waahn nahin jahaan aap ki hansi dusro kaa majak udaatii see lagae
blog par sab baraabar haen so badey aur chhotey ki baat karana theek nahin lagtaa
बहिन संगीता पुरी जी!
जवाब देंहटाएंआपको "ज्योतिषाचार्या" लिखना चाहता था परन्तु मानव सुलभ भूल ही समझिएगा कि पोस्ट पब्लिश करते समय करैक्शन नहीं किया!
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क्षमा या सॉरी ही कह सकता हूँ इसके लिए!
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मुझे नहीं पता था कि महिलाओं को ङाई-लाइट करने में इतना विवाद शुरू हो जायेगा!
अन्तर ही क्या पड़ता है! लोग ब्लौगर समझे या महिला ब्लॉगर या ब्लॉगारा!
किसी का भी अपमान करने का मेरा मंशा कदापि नही था!
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ब्लॉगर तो वैसे भी विदेशी शब्द है यदि मैंने इसका हिन्दीकरण किया है तो मेरे या मेरी कुछ मित्रकों को बुरा क्यों लग रहा है?
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मैंने तो किसी के भी सम्मान को आघात पहुँचाने का लेशमात्र भी प्रयास नहीं किया है!
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जाने अन्जाने यदि किसी को भी कोई कष्ट पहुँचा हो तो इसके लिए तो एक ही शब्द है- "क्षमा" !
ब्लॉगर तो वैसे भी विदेशी शब्द है यदि मैंने इसका हिन्दीकरण किया है तो मेरे या मेरी कुछ मित्रकों को बुरा क्यों लग रहा है?
जवाब देंहटाएंaap ne blogger shabd kaa hindi karna nahin kiyaa haen uska striling shabd banayaa haen
is ko badal kar heading sahii karey taaki aagey aanae waali peedhiyan ladkiyon ki aap ko apshabd naa kahaey
जाने अन्जाने यदि किसी को भी कोई कष्ट पहुँचा हो तो इसके लिए तो एक ही शब्द है- "क्षमा" !
जवाब देंहटाएंkshama sae bhi jyada jaruri hotaa haen galat prayog ko sahii karnaa
kisi bhi shabd ki vyom aur utpatti aesae hi nahin kii jaa tee haen jasee aap kar rahey haen
heading change kii jaa saktee haen aesa maera mannana haen taaki aagey koi phir is prakaar ki galti naa karey
जवाब देंहटाएंमहोदय ,
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर मेरी रचना देख अच्छा लगा |आभार|
पर उत्सुकता अवश्य है, ब्लोगारा शब्द आप कहाँ से लाए|क्या यह भाषा का सही उपयोग है |
आशा
आपका बहुत बहुत आभार सब से अपने ही अंदाज़ में परिचय करवाने का !
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा तो गज़ब ढा रही है………………आपका ये अन्दाज़ तो सबसे जुदा रहा और दिल को भी भा गया………………बधाई और आभार्।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआये थे हरि भजन को,
जवाब देंहटाएंओटन लगे कपास!
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आप ही के लिए पोस्ट लिखी गई और आपको ही पसंद न आई तो मेरी तो मेहनत बेकार ही गई!
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शिकायतकर्ता बहनों की माँग पर पोस्ट का शीर्षक और बीच-बीच में खटक रहे शब्द ठीक कर दिये हैं!
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सलामत रहे आंग्ल-भाषा हमारी!
सर जी ,कमाल करते हैँ आप महिला और पुरुष ब्लाँगर , या सिर्फ ब्लाँगर
जवाब देंहटाएंसर जी ,कमाल करते हैँ आप महिला और पुरुष ब्लाँगर , या सिर्फ ब्लाँगर
जवाब देंहटाएंअरे शाश्तरी जी आपने हमका परणाम करके मन खुश कर दिया। आजकल के कपूत तो परणाम वरणाम करना ही भुला दिये हैं..खैर जीते रहिये..लंबी उमर हो आपकी।
जवाब देंहटाएंअब आप हमरा का परिचय पूछते हैं? किसका परिचय? कौन सा परिचय? हमको सब जानते हैं इसलिये हम परिचय नाही दिया हुआ है.
अब जिसके पूत ही कपूत हो जायें उसका हाल आप का जानो? हमरे क्फुर के कारनामें आप पढ ही चुके होंगे।
अब हमरे ऊपर पोस्ट लिखना चाहो त जरूर लिखो अऊर कभी हमरे नखलेऊ मा आना होय त जरूर मिलना।
सबकी अम्माजी
अरे शाश्तरी जी आपने हमका परणाम करके मन खुश कर दिया। आजकल के कपूत तो परणाम वरणाम करना ही भुला दिये हैं..खैर जीते रहिये..लंबी उमर हो आपकी।
जवाब देंहटाएंअब आप हमरा का परिचय पूछते हैं? किसका परिचय? कौन सा परिचय? हमको सब जानते हैं इसलिये हम परिचय नाही दिया हुआ है.
अब जिसके पूत ही कपूत हो जायें उसका हाल आप का जानो? हमरे कपूत के कारनामें आप पढ ही चुके होंगे।
पर हम एक बात जरूर कहना चाहेंगी कि ई जौन चर्चा का कह्टराग है ना ई आदमी को कहीं का नाही रखत है...शुकुलवा भी चर्चा किंग बन कर बहुत लोग्न की इज्जत से खिलवाड किया है अऊर आज उसको कौन जानत है? इसलिये हम कहा चाहत हैं कि ई जौन चर्चा रोग है ना इसको पावर नही समझने का, वर्ना शुकुलवा जैसन ही हाल होगा आपका।
आपने हमका परणाम किया इसलिये हम आपको समझाय दिये हैं बाकी आप खुदे बुजुरग हैं।
अब हमरे ऊपर पोस्ट लिखना चाहो त जरूर लिखो अऊर कभी हमरे नखलेऊ मा आना होय त जरूर मिलना।
सबकी अम्माजी
शाश्तरी झी पोस्ट का शीर्षक बदलना हमका नाही समझ आया। काहे से कि ई चर्चा जिंदा रहे का चाही कि नाही? अब आप एक बार शीर्षक लागा दिये त हटाना समझ नाही आवा। हमरी राय मा शीर्षक हटाना अऊर पोस्ट मा फ़ेरबदल करना उचित नाही।
जवाब देंहटाएंवापस पोस्ट का शीर्षक ऊही "“मिलिए कुछ ब्लागारा से” (चर्चा मंच-260)" किया जाना चाहिये जिससे बाद मे आने वाले लोगन को पता रहे कि असल मुद्दा ई था।
-सबकी अम्माजी
अरे महफ़ूज बिटवा आजकल तुम दिखाई ही नाही देत हो? हम कब से तुजार इंतजार करत करत थक गई हैं। अऊर ई का संसी ठठ्ठा लगाये हो? हंसी ठठ्ठा करे का चाही त हमरे पास काहे नाही आते हो? हम पूछती हैं बाहर भटकने की क्या जरुरत है? तुरंते घर चले आवो अऊर इधर उधर हंसी ठठ्ठा नाही करने का, आजकल जमाना बहुते खराब बा।
जवाब देंहटाएंशाश्तरीजी आज ऊ का है ना कि हम चौथ का व्रत किये हैं त चांद उगने से पहले त हम अन्न जल ग्रहण नाही ना करेंगी। इसका वास्ते हम इहां ज्ञान बांटने चली आई थी। अऊर ऊ हमार कपूत दिखे त उसको घर भिजवाय देना। अऊर महफ़ूज बिटवा का खास ख्याल रखना जरा नादान है अऊर जोश जोश मा कहीं भी पंगे भिदाय लेता है अऊर आप त समझदार आदमी हैं कि जमाना केतना खराब है? खराब है कि नाही?
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंसभी ब्लोगर्स से मिलवाने का बेहद आभार।
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आज की चर्चा तो बड़ी ख़ास है......बेहतरीन!
जवाब देंहटाएंब्लॉग लेखन में सक्रिय महिलाओं को अलग से पहचानने और उनका परिचय कराने के आपके अभियान का स्वागत है.
जवाब देंहटाएंसाभार -जी नीरजा
आज के चर्चामंच में ब्लॉग जगत की इतनी प्रतिष्ठित एवं मशहूर हस्तियों के साथ मुझे भी सम्मिलित करने के लिये आपकी बहुत आभारी हूँ और ह्रदय से धन्यवाद देना चाहती हूँ ! चर्चामंच दिन प्रतिदिन लोकप्रियता के नए सोपान चढता जा रहा है इसके लिये आपकी टीम के सभी सदस्य बधाई के पात्र हैं ! मेरी मम्मी की कविता के चयन के लिये एक बार पुन: आपका धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंmujhe samman dene ke liye bahut bahut aabhaar...
जवाब देंहटाएंअद्भुत!
जवाब देंहटाएंअपूर्व!
महिला ब्लॉगर्स का अपमान करने का तो कोई इरादा नहीं रहा होगा , हम सब जानते हैं ...
जवाब देंहटाएंअसावधानीवश या अनजाने ही लिखा गया शब्द ठीक भी कर दिया ... ये आपका बड़प्पन है ...
बहुत आभार !
bahut sundar!
जवाब देंहटाएंइत्ती मेहनत बेक़ार हो गई आपकी रचना जी को दीजिये ज़वाब
जवाब देंहटाएंBhaut veshesh charcha rahi ye to ..bahut abhaar
जवाब देंहटाएंaur han aapka mahila blogars ka apmaan karne ka irada katai nahi tha ye sam jante hain. .bahut shukriya shabd badalne ka .
शानदार चर्चा...पुराने लिंक्स पढ़कर बहुत अच्छा लगा...आभार !!
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा...पुराने लिंक्स पढ़कर बहुत अच्छा लगा...आभार !!
जवाब देंहटाएंbahut achcha laga......
जवाब देंहटाएं