नमस्कार , परसों मना कर चुके हैं हम राष्ट्रीय त्योहार …विषय से सम्बंधित चिट्ठों की थी भरमार …. ऐसे समय में हमारी वाणी ने किया प्रहार …. और बहुत से चिट्ठे नहीं खुल पाए किसी भी प्रकार …खैर अभी ऐसा कुछ पता चला है कि हमारी वाणी ने इस कमी को दूर कर दिया है …लेकिन अभी भी इसका लोगो लगाने की हिम्मत नहीं हो रही है …यह सब यहाँ बताने का तात्पर्य बस यही है कि मैं बहुत से ब्लॉग नहीं देख पाई …चलिए आज मैं आपको मिलवाती हूँ कुछ लोगों से जिनकी रचनाएँ मुझे काफी प्रभावित करती हैं ….तो आप भी मिलें …मेरी नज़र से …. |
राजकुमार सोनी जी मूल रूप से पत्रकार हैं …बेबाक लिखते हैं …इनके लेखन में बहुत तीखी धार है .अभी इनकी एक पुस्तक प्रकाशित हुयी है “ बिना शीर्षक “ जिसमें इन्होंने बहुत से लोक कलाकारों का रेखाचित्र खींचा है …इनके लेखन से पता चलता है कि एक ईमानदार पत्रकार हैं ..यहाँ मैं इनकी कविताओं की ही बात करुँगी…अब तक जितनी भी कविताएँ पढ़ी हैं उनके आधार पर कह सकती हूँ कि अपने आस पास की परिस्थितियों का अवलोकन कर बहुत संवेदनशील कविताओं का सृजन करते हैं … घर
घर की परिभाषा में इनकी यह बात भावुक मन को दिखाती है ..
जब मैं घर लौटूं तो पत्नी और बच्चों के चेहरे पर शिकायतों की एक छोटी सी लायब्रेरी जरूर मिले. ताकि शिद्दत के साथ जरूरत की किताबें बांच सकूं हौसले के साथ..
एक और संवेदनशीलता की बानगी देखिये ..
मुडा-तुडा नोट
जो नोट
इसमें कवि मन गरीब किसान की दुर्दशा से द्रवित है … मां के आंसूओं से थोड़ा भींग गए हो क्या वे खराब हो सकते हैं पुरानी खांसी
इतना सब कुछ बताते-बताते
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वंदना गुप्ता जी का लेखन बहुत विविधता लिए हुए है …कहीं भक्ति-रस में डूबी मीरा लगती हैं तो कहीं विरह से व्याकुल राधा ..तो कहीं जीवन दर्शन को कहती रुक्मणि ….हर कविता गहरे भाव लिए हुए विभिन्न दृष्टि कोणों को सामने लाती है …इंसान तो इंसान भगवान की तरफ से भी उनकी भावनाओं को उकेर देती हैं ..इसका उदाहरण उनकी .. हाय !ये मैंने क्या किया? में देखने को मिलता है …कुछ और बानगी देखिये .. "नैनन पड़ गए फीके"सखी री मेरेनैनन पड़ गए फीके रो-रो धार अँसुवन की छोड़ गयी कितनी लकीरें आस सूख गयी प्यास सूख गयी सावन -भादों बीते सूखे सखी री मेरे नैनन पड़ गए फीके यहाँ श्याम रंग में डूबी मीरा जैसी ही लग रही हैं …. "कमरों वाला मकान"
यूँ एक कमरा
फ़र्ज़ की कब्रगाह का था कभी रोटियों में ढलता कभी बर्तनों में मंजता कभी कपड़ों में सिमटता तो कभी झाड़ू में बिखरता कभी नेह के दिखावटी मेह में भीगता कभी अपशब्दों की मार सहता…
इस रचना में नारी के जीवन की त्रासदी को बखूबी लिखा है
पिंजरे का पंछी"ये पिंजरा कौन सा है ............ ये है प्रेम का पिंजरा ये है समर्पण का पिंजरा भावनाओं का पिंजरा अपने अस्तित्व का पिंजरा त्याग का पिंजरा अहसासों का पिंजरा मन की भावनाओं के यथार्थ को बताती रचना है…. |
सोनल रस्तोगी जी के ब्लॉग भ्रमण के बाद पता चला कि यह कविता ही खूबसूरत नहीं लिखती हैं कहानी भी बहुत संज़ीदगी से लिखती हैं …खैर यहाँ इनके काव्य की ही बात करें तो ..सभी कविताएँ बहुत भावना प्रधान होती हैं …कहीं लगता है कि दिल से मनुहार कर रही हैं तो कहीं थोड़ा उदास हैं ..कभी कल्पना में जीती हैं तो कभी यथार्थ धरातल पर … लेकिन हर कविता में प्रवाह बना रहता है … इस रचना में देखिये किस तरह मनुहार कर रही हैं ..सारे पल लिखो नलिखो ना .
पहली छुअन
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अविनाश चन्द्र की कविताएँ मात्र कविताएँ नहीं हैं ..हर कविता सोचने पर मजबूर करती हुई …क्षणिकाओं में इतनी गहरी बात कर जाते हैं कि लगता है सागर समाया हुआ है … बहुत सी कविताएँ माँ से शरू होती हैं और पिता पर खत्म …इनकी ऐसी रचनाओं को पढ़ कभी कभी सोचना पड़ जाता है कि एक बेटे की भावनाओं को समझने में कहीं माता - पिता गल्ती तो नहीं कर रहे ..हिंदी के शब्दों का विशाल भण्डार है इनके पास …कई बार शब्दकोष का सहारा लेना पड़ जाता है .. आप भी ज़रा नज़र डालें … सुनो स्वेद...जो कंधे सूर्य-उजाले थे,तुम बहते जहाँ मतवाले थे. स्वयं उनका ही अवलम्ब नहीं, देंगे क्या और प्रमेय तुम्हे. बस एक धरा ना बदली है, माँ है, वैसी ही पगली है. बैजयंती पुष्प खिलाएगी, दे कर जीवन का ध्येय तुम्हे. क्षणिकाएँ..
परी..माँ...
कहती थी बेशकीमती, होते हैं पँख, आसमानी परियों के. और एक साड़ी में, निकाल देती थी, वो पूरा साल
चोर आदतें...
एडियों के बल, उचकने की आदत. पिता जी की जेबों में, जेबखर्च रखने की आदत. माँ की तरह ही, बासी चखने की आदत. कुछ चोर आदतें, ना बदलें तो अच्छा. पूज्य-पूजन.पेरूमल-पवान्ज-पदमज,होंगे नितांत ऊपर, श्रेष्ठ अपनी जगह. किन्तु हे पनमोली, कल्पों करूँ पूजित, वह प्रणव-प्राण-प्रकाश, तुम ही हो जननी. |
अब आपको ले चलती हूँ इस सप्ताह के काव्य मंच पर जहाँ विभिन्न रचनाकारों की कविताएँ आपका मनोरंजन भी करेंगी और सोचने पर विवश भी ….ब्लॉग पर पहुँचने के लिए आप लिंक या चित्र पर क्लिक कर सकते हैं …. |
समीर लाल जी की एक बेहद खूबसूरत गज़ल मुद्दतों बाद…मुद्दतों बाद उसे दूर से जाते देखाधूप को आज यूँ ही नज़रें चुराते देखा मुद्दतों बाद हुई आज ये कैसी हालत आँख को बेवज़ह आंसू भी बहाते देखा |
स्वप्न मंजूषा जी इस बार कह रही हैं कि डोंट माइंड ….. अजी यहाँ तो माइंड ही नहीं है …डोंट तो अपने आप ही हो जायेगा …वैसे अच्छा ख़ासा व्यंग कर दिया है ……खैर आप पढ़िए |
डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी नमन कर रहे हैं उन शहीदों को जिन्होंने अपनी कुर्बानी दे कर देश को आज़ाद करवाया था …आइये हम भी मिल कर उन सब शहीदों को नमन करें जिनके कारण आज हम आज़ाद भारत में साँस ले रहे हैं … “… ..नमन है नमन!”खूब सींचा जिन्होंने लहू से चमन,उन शहीदों को मेरा नमन है नमन। दिल में आजाद भारत की तसबीर थी, दोनों हाथों में दोधारी शमशीर थी, कुछ के लब पे अहिंसा की ताबीर थी, कितने वीरों ने कुर्बान की जान-ओ-तन। उन शहीदों को मेरा नमन है नमन।। |
एम० वर्मा जी एक बहुत खूबसूरत गज़ल लाए हैं … हो रही है चहलकदमी अजनबियों की~
रोज़ बामुश्किल यह शहर संभलता है
सांझ ढलते फिर धूँ-धूँ कर जलता है
.
हो रही है चहलकदमी अजनबियों की
खौफ़ के साये तले यह अब चलता है
|
मनोज कुमार जी बहुत से प्रश्न उठा रहे हैं स्वतंत्रता दिवस पर … यदि आपके पास उत्तर हो तो ज़रूर दीजियेगा … क्या यही है स्वतंत्रताहो तो गए स्वतंत्र, हमारीक्या मिट सकी उदासी। सैंतालिस के मध्य निशा की, क्या हमको है याद ज़रा सी बापू के सुन्दर सपनों का, हमने ख़ूब किया अभिनंदन। नाम कलंकित किया देश का, टीक भाल पर ख़ूनी चंदन। |
शिखा वार्ष्णेय न जाने क्या- क्या करती रहती हैं … यूँ ही बैठे ठाले . …पर बैठे ठाले भी बहुत गंभीर चिंतन कर डाला है …
इंसान को इंसान की आज चाह नहीं है
आज हमारे सीने में कोई उद्दगार नहीं हैं
क्योंकि इस देश में पत्थर पूजे जाते हैं.
धड़कते दिलों की कोई बिसात नहीं है
राम को पूजने वालों
मुझे सिर्फ इतना बता दो
क्या राम के हाथों उद्धार पाने के लिए
तुम्हारा पत्थर होना जरुरी है
|
पारुल जी इस बार एक हूक! ले कर आई हैं …. वो बेवजह ही एक वजह होना एक चाह...... न खुद में ही खुद का होना ! रोज आवाज देना और कहना खुद से रात होते ही ख़्वाबों को बस सुला देना …. ये मन का खंजर इस से बेहतर है कि इसको 'कलम' बना देना |
ओम् आर्य कविताओं की अहमियत को बताते हुए कह रहे हैं कि कवितायेँ बचाती है हरीतिमा
हर नयी कविता
जगह बनाती है दूसरी नयी कविता के लिए प्रकृति के हर जीव की तरह कवितायेँ भी रखती हैं अपना बीज स्वयं में हीं और लगातार बचाती हैं हरीतिमा |
प्रतिभा सक्सेना जी शब्दों की धनी हैं … इनकी लेखनी से एक से एक नायाब रचना निकलती हैं … शिप्रा की लहरें » पर आप इनकी बेहतरीन रचना पढ़ सकते हैं …. व्याध का तीर.. ये सब तो मात्र मोहरे थे यहाँ की चालों के . इस महासमर की भूमिका बहुत पहले से लिखी जाने लगी थी. वंश न पांडु का, न कुरु का. बीज बो गया धीवर-कन्या का पुत्र भयभीत और वितृष्णामय परिवेश में , उन विकृत संतानो इतिहास कितना चलता ? जहाँ विवश नारी , पति का मुख देखे बिना आँखों पर पट्टी बाँध यंत्रवत् पैदा कर दे सौ पुत्र |
अनामिका जी इस बार अलग ही रंग में है और सन्देश दे रही हैं … वीरता को अपरिहार्य करो
सुसज्जित कर दो
संसार की
इस चित्रशाला को
अपने शौर्य से !
जो शूर हैं
वही...
सदियों तक
अमर रहे
इतिहास में..!
|
रंजू भाटिया का पढ़िए बहाना कविता में उतरे यह एहसास ज़िन्दगी की टूटी हुई कांच की किरचें हैं जिन्हें महसूस करके मैं लफ्जों में ढाल देती हूँ |
विभा रानी बता रही हैं कि - क्या कुछ भी नहीं था हमारे पास?
तब हमारे पास फोन नहीं था,
बूथ या दफ्तर से फोन करके तय करते थे- मिलना-जुलना पहुंच भी जाते थे, बगैर धीरज खोए नियत जगह पर अंगूठे को कष्ट पहुंचाए बिना. |
हँस राज “सुज्ञ “ को सुबोध पर पढ़िए …. ॥व्यर्थ वाद विवाद॥बौधिक उलझे तर्क में, कर कर वाद विवाद।धर्म तत्व जाने नहिं, करे समय बर्बाद॥1॥ सद्भाग्य को स्वश्रम कहे, दुर्भाग्य पर विवाद । कर्मफ़ल जाने नहिं, व्यर्थ तर्क सम्वाद ॥2॥ |
श्याम कोरी उदय जी अपनी रचना में कडुवा सच कह रहे हैं .. इंसान कम ..... शैतान ज्यादा हो गया है
इंसान अब, इंसान कम,
हैवान ज्यादा हो गया है हर गली - हर मोड पर, शैतान बन कर घूमता है क्या मिला उसको वो जब तक इंसा था हैवान जब से बना तो सरेआम हो गया है |
मधु गजाधर को पढ़िए पंजाब स्क्रीन पर .. मेरा देश .. में देश छुट जाता है, बाहरी रूप से , मगर देश नहीं छुटता अंतर्मन से क्यों होता है ऐसा सिर्फ हमारे साथ, हम भारतीयों के साथ, कि किस्मत की हवा जहाँ भी ले जाए हमें |
शोभना चौरे जी लायी हैं इस बार … नदी और चाँद
पूनम का चाँद
नदी के तल में , अपना प्रतिबिम्ब देखकर गर्वित हो गया | सितारों के झुरमुट के बीच उसने अपनी रौशनी और तेज कर दी , |
जीवन की मझधार में देखो फंस गए,
अब क्या करे असमंजस में है पड़ गए. किस राह का चुनाव करें, किस विचार का समर्थन, किस डगर के मुसाफिर बने, चल रहा है दिल में मंथन. |
धर्म सिंह अपने ब्लॉग बिन माझी की नाव पर लाये हैं … तुम से रू-बरू होंगे ...!!! चाँद को देख कर ज़िंदगी से रु – ब- रु हो रहे हैं …
आज फिर
चाँद के जरिये
ऐ जिंदगी
तुम से रू-बरू होंगे ...
मीलों की धरातल की
दूरियां
सिमट के
शून्य होगी
|
सौम्या अपनी रचना में पूछना चाह रही हैं कि क्या गलत है? और पूछते पूछते जवाब भी दे रही हैं कि गलत आखिर है क्या …. |क्या गलत है जो बिरजू घर-घर भीख मांगता है.
जब भूख लगती है ,तो दिल बिलखता है.
महंगाई की मार में, सिर्फ बचपन बिकता है
क्या गलत है जो वो मासूम ,यूँ दर-दर फिरता है
|
नीरज पाल अपनी कविता में कहना चाह रहे हैं कि काश हम आज़ाद परिंदे होते …
कुछ आज़ाद परिंदे
जब बेबाक हवा में उड़ते हैं
मन हुक हुक कर जाता है
कि काश हम परिंदे होते
फैलाते अपने पंख
थकने तक उड़ते रहते
|
तुम जो सुन लेते एक बार
तो कहाँ जा पाते दूर कोई कमिटमेंट नहीं मांगती बस! इतना कहती " सुनो! आगे राहे पथरीली हैं जरा संभल के " |
अनूप जोशी नए रचनाकार हैं ….आज की रचना एक बढ़िया कटाक्ष लिए हुए है ….प्रसिद्धि पाने के नुस्खे बता रहे हैं ….अब मैंने तो थोड़ी इनकी शिकायत दूर करने की कोशिश की है ..बाकी आप जानिये .. |
हर तीली में
समाई है वही आग जो करती है
प्रज्वलित पावन दीप
जलाती है चूल्हा सुलगाती है अंगीठी दहकाती है भट्टी |
राज़ी शहाब अपने ब्लॉग आवाज़ दो हमको पर कह रहे हैं … जब हम तन्हा तन्हातुम्हें कुछ सुनाना चाहता हूंकुछ बातें, कुछ यादें उन दिनों की जब हम मिले नहीं थे मैं ने तुम को देखा था दूर सितारों की बज़्म में चमकता हुआ, बिलकुल चांद जैसे |
अनुपमा पाठक द्वारा लिखी कविता पढ़िए.. इनका कहना है कि परिस्थितियों को दोषी न ठहराते हुए कुछ करने का जोश होना चाहिए
ऐसा हो ....! ("एक संकल्प ...एक सोच")
मान-अभिमान
से परे रूठने-मनाने के सिलसिले सा कुछ तो भावुक आकर्षण हो! |
दीपशिखा वर्मा इन्तिहाँ पर कुछ विद्युत की बात कर रही हैं ….पढ़िए ज़रा यह सर्किट क्या है ? एक सर्किट सा होता है जीवन , एक छोर से विघुत समरूप जिंदिगी का प्रवाह , उर्जा का स्त्रोत कोई महीम है जिसका खुद का कुछ आंतरिक प्रतिरोध है . |
[१]
अज़ीब शख़्स था, आँखों में ख़्वाब छोड़ गया
वो मेरी मेज़ पे, अपनी किताब छोड़ गया
[२]
आँसुओं से सींची है, शायद ज़मीं ने फ़स्ल ये
क्या तअज्जुब पेड़ पर ये फल जो खारे आ गए
[३]
पलट के देखेगा माज़ी, तू जब उठा के चराग़
क़दम-क़दम पे मिलेंगे, मेरी वफ़ा के चराग़
[४]
हँस के जीवन काटने का, मशवरा देते रहे
आँख में आँसू लिए हम, हौसला देते रहे. |
सी० एस० देवेन्द्र अपने ब्लॉग मेरी सोच, मेरी अभिव्यक्ति » पर पर्यावरण से सम्बंधित एक अच्छी रचना प्रस्तुत कर रहे हैं … पेड़मैं पेड़ धरती का श्रृंगार मानो तो सबसे बड़ा दातार. सदा ही देता आया तुम इंसानों को पानी, हवा फल, छाँव आदि आदि. |
रानी विशाल कुछ अंतराल के बाद ब्लॉग जगत में सक्रीय हुई हैं …और लायी हैं कुछ न्यूयार्क के चित्र और एक भावपूर्ण कविता … एक कविता और कुछ नए द्रश्यउलझती जाती हैहर बात उन यादों के जंजाल में जैसे जिन यादों को बातों की ज़रूरत ही नहीं |
तुम्हारी याद आती है
अनुपम नूपुर धुन सुनकर
स्वप्निल निंदिया जब दूर कहीं उड़ जाती है, तुम्हारी याद आती है! |
आज की चर्चा इस मधुर गीत के साथ समाप्त करती हूँ …आशा है आज की चर्चा आपको पसंद आई होगी …आपकी अभिव्यक्ति ही हमारा मनोबल है ….अगले मंगलवार को कुछ व्यस्तता के कारण उपस्थित नहीं हो सकूंगी ….तो फिर मिलते हैं एक ब्रेक के बाद ……नमस्कार |
----------------------------------------
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा पढ़कर जो अनूठा आनंद मिला,
उसे शब्दों में ढाल पाना बहुत मुश्किल है!
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बहुत बहुत आनंद देती चर्चा |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
चर्चा इतने सुन्दर ढंग से भी हो सकती है!
जवाब देंहटाएंदेखकर आश्चर्यचकित हूँ!
--
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
बहुत सुन्दर चर्चा की आपने संगीता दी...
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं“कोई देश विदेशी भाषा के द्वारा न तो उन्नति कर सकता है और ना ही राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति।”
सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएं“कोई देश विदेशी भाषा के द्वारा न तो उन्नति कर सकता है और ना ही राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति।”
जो चर्चा राजकुमार सोनी जी से शुरू हो और मनोज जी, सोनल जी , अविनाश चन्द्र आदि से सुसज्जित हो वह चर्चा नायाब तो होगी ही... राजकुमार जी कि कविताये सदा ही उद्वेलित करती हैं.. मनोज जी की कविता हमे १९४७ का स्मरण दिलाते हुए अपने जिम्मेदारियों की ओर उन्मुख करती है.. इस बीच "मेरेभाव" पर 'माचिस की तीली' अलग सी कविता लगी... बहुत सही कहा है कवियत्री ने ... "हर तीली में
जवाब देंहटाएंसमाई है वही आग
जो करती है
प्रज्वलित पावन दीप
जलाती है चूल्हा
सुलगाती है अंगीठी
दहकाती है भट्टी
जो गलाती है लोहा
बनाती है इस्पात
भीतर की चिंगारी
माचिस की एक तीली ."
कुछ प्रतिस्थिक ब्लॉगर जैसे समीर लाल जी की ग़ज़ल चर्चा को नई ऊंचाई देती है.. संक्षेप में आज की चर्चा सार्थक और संवेदनशील रचनाओं का सुंदर गुलदस्ता है.. बधाई!
सबसे पहले मुझे चाह्र्चा मंच में ख्यातिप्राप्त रचनाकारों के बीच स्थान दे ने के लिए धन्यवाद.. आज की चर्चा में जो रचनाएं मुझे प्रभावित की उनमे.. राजकुमार सोनी जी , मनोज जी, अविनाश चन्द्र जी , देवेन्द्र जी, शोभना चौरे जी प्रमुख हैं. बाकि पोस्टें भी प्रभावशाली हैं... बधाई एवं शुभकामना सहित !
जवाब देंहटाएंहर रोज नफरत, हिंसा, घृणा और धोखे पर धोखा देखने के लिए मजबूर हो चले रिपोर्टर को कोई इतना सम्मान और प्यार देगा तो वह तो मर ही जाएगा न...
जवाब देंहटाएंकैसे शुक्रिया अदा करूं संगीताजी आपका.
वंदनाजी, मनोजजी, एम वर्मा साहब,समीरजी, शास्त्रीजी, अनामिकाजी, सोनलजी और मेरी फेवरेट शिखा जी सहित अन्य महत्वपूर्ण लोगों की रचनाओं के बीच आपने मेरी रचनाओं की जो चर्चा की है उसके लिए आपका आभारी हूं.
अरूण सीराय जी की टिप्पणी भी मेरे लिए बहुत मायने रखती है.वे अच्छे इंसान है और मुझे बहुत चाहते हैं यह बात मैं अच्छे से जानता हूं.
अपने उन पाठकों का भी शुक्रिया जो मुझे पढते हैं.
bahut acha laga pad kar....
जवाब देंहटाएंMeri Nayi Kavita par aapke Comments ka intzar rahega.....
A Silent Silence : Ye Kya Hua...
Banned Area News : Blair O Neal
संगीता दी
जवाब देंहटाएंआदरणीय नमस्ते
आपका बहुत सुकर गुजार हूँ की आपने मुझे यहाँ स्थान दिया अब क्या कहूँ मेरे पास शब्द नहीं हैं
कल तक मैं भी अनजान था और आज आपने मुझे यहाँ बड़े बड़े लोगों के बीच खड़ा कर के एक नईं पहिचान दी है
कितनी सुन्दरता,कितनी मेहनत से सजाया है आपने चर्चा मंच को आप को बहुत बहुत धन्यवाद
हर बार की तरह इस बार भी बेहतरीन प्रभावशाली चर्चा, संगीता जी ! आपकी चर्चा में पूरे चर्चा मंच से गुजरने के बाद महसूस होता है की किसी साहित्य ग्राम से घूम कर आये है !
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा बहुत ही प्यारे प्यारे रंग लिये है……………यही तो आपकी खासियत है कि हम जैसे आम इंसान को भी खास बना देती हैं……………मुझे खास स्थान देने के लिये आपकी आभारी हूँ……………आपने तो मुझे कुछ कहने लायक ही नही रखा……………बेहद शुक्रिया…………………बाकी चर्चा तो हमेशा की तरह बेहद उम्दा……………काफ़ी लिंक्स जो रह गये थे वो भी मिल गये……………आभार्।
जवाब देंहटाएंbahut accha laga is kavya manch mein shameel ho kar!
जवाब देंहटाएंaapke liye bas itna hi kahenge ki...u have done a great job!
The real great man is one who makes everyone feel great .....
sangeeta ji, u are definitely one of them!
meri rachna ko is manch par prabuddh rachnakaron ke saath sthan dekar aapne abhibhut kar diya...
sabhi rachnaon ko padhna visisht anubhav tha...
aapko dher sari badhai... itne logo ko bandh diya.... prerna ke sutra se!
"yah sangeetmay aabha se purna swaroop uttarottar nikhre!
aapki mala sugathit bani rahe..
hain bhaav jaroor bikhre!!"
regards,
बहुत ही बढ़िया चर्चा...इतने दिन नेट से दूर रहने का कोई अफ़सोस नहीं हुआ...सारे अच्छे लिंक्स मिल गए..शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसुन्दर ,सुव्यवस्थित,रोचक ये तीन गुण हमेशा पाए जाते हैं आपकी चर्चा में और इसी कारण पूरी चर्चा घोट कर पी जाने का मन करता है :)
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स मिले दी !
सुंदर काव्यमाला निरुपित की गई है।
जवाब देंहटाएंहर पुष्प का एक अनुठा रंग,सुगंध और रूप विश्लेषित हुआ है। इस चर्चा के लिये आभार!!
मैं क्या कहूँ?
जवाब देंहटाएंयोग्य नहीं हूँ, सो मौन हूँ....
शायद चिट्ठा चर्चा भी अब आपकी चर्चा के कारण चर्चा में आ रहा है पहली बार ..
जवाब देंहटाएंअनूठा अन्दाज कविताओं के लिंक के साथ -- कवि हृदय ही प्रस्तुत कर सकता है
बधाई इतने सुन्दर चर्चा के लिये
संगीता जी
जवाब देंहटाएंआम को खास बना देती है चर्चा मंच में हमारी रचना शामिल करके आप |
सुंदर तरीके से चर्चा मंच सजाया है और हमे भी उसमे स्थान दिया है बहुत बहुत आभार |
ma'm me naraj nahi tha. fir bhi dhnyabad.aaapne jo mujhe bade bade logo ke bich jagah di.
जवाब देंहटाएंthanks...........
bahut khoob...................
तुमने जो गागर में सागर भरा है उसमें ढेरों मोती मिले और उन मोतियों की माला पिरो ली है मैंने रोज रोज उनको पढ़ा करूंगी. एक दिन में तो सब नहीं पढ़ सकती .
जवाब देंहटाएंकुछ व्यस्तताओं के चलते ब्लॉगजगत को जरुरी समय न देने का अफसोस रहता है. यहाँ भी देर से ही आ ही पाया और देख रहा हूँ कितने ही लिंक अभी देखना बाकी है. आपका आभारी हूँ..यहाँ सब एक साथ मिल गये, अब उन ब्लॉगस पर आराम से जाता हूँ.
जवाब देंहटाएंविस्तृत और उम्दा चर्चा. आभार.
aadarniya,
जवाब देंहटाएंpehli baar charchamanch dekha..bahut acha laga.....apne charcha me har tarah ke vishay shaamil kar gaagar me saagar jaisa laabh pradaan kiya hai...
sath me apne meri rachna "paid" ko yaha pratishthik rachnakaro ke beech rakha yah mere liye harsh ka vishay hai....iske liye bahut bahut aabhar......yah mere aatm wishas ko bhi badhayega...
aasha hai aage bhi ache ache sangrah charcha me padhne ko milte rahenge....
मूलत: कवितामयी चर्चा अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपकी चर्चा का हमेशा इंतज़ार रहता है. सुव्यवस्थित चित्रण के साथ साथ नए ब्लोग्गर्स की भी अच्छी अच्छी चुनिन्दा कविताये आप ही के काव्य मंच पर मिलती हैं.
जवाब देंहटाएंआपको इस से भी अधिक प्रसिद्धि मिले यही मनोकामना है.
आभार इस सुंदर और रोचक चर्चा के लिए.
बहुत अच्छी चर्चा।
जवाब देंहटाएंnice links 4 worth reading !
जवाब देंहटाएंजीवन के विविध रंगों से रँगी ,सुन्दर कविताओं का चयन किया है संगीता जी,आपने.
जवाब देंहटाएंइतने अधिक ब्लाग्ज़ हैं कि मुश्किल लगता है कहाँ जाएँ और कैसे थाहें- इन सुरुचिपूर्ण चर्चाओं से एक दिशा मिल जाती है.इन रचनाकारों को पढ़ना अच्छा लगेगा .
काफ़ी मेहनत से तैयार की गई सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंहम भी देर आये लेकिन दुरुस्त आये....चर्चा का हिस्सा बनकर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंयूँ इस तरह शब्द विचारो का तार खींचकर आपको अपनी सीमाओं में बाँध लेते हैं.
जों और जितना पढ़ा .....दिल को छुआ है
एकल चर्चा में सर्वथा योग्य कवियों को चुना आपने सभी कवियों को बधाई..... अन्य कवितायें भी ज़ोरदार रहीं..
जवाब देंहटाएंसंगीता जी,
जवाब देंहटाएंमैं शुक्रगुजार हूँ चर्चामंच का, जहाँ meri panktiyon ko itni ahamiyat dee jaati hai. aur aapka vishesh roop se ki har kavita pe aapki najar tainaat hoti hai jaise kisi aashik का apni mahbooba pe. saadhuvaad. मैं kai baar nahi aa pata aap logon का hausla badhane, par dil se hamesh anugrahit mahsoos karta हूँ.
संगीता जी ,
जवाब देंहटाएंदेर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ, इतना प्यार और अपनापन मिल रहा है आप सब से की लगता है शुक्रिया बहुत छोटा शब्द है, आपकी चर्चा ऑनलाइन कविसम्मेलन का एहसास देती है जहाँ आप सार्थक रचनाये पढ़ सके..
sangeeta ji bahut bahut shukriya,der se aane ke liye maafi chahungi!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा बहुत-बहुत शुभकामनाएँ सभी कवियों को बधाई
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी मेहनत की जितनी भी दाद दी जाए , कम है ..
जवाब देंहटाएंहर बार बेहतर लिंक्स ढूंढ लती हैं आप ...
बहुत आभार ...!
Sundar aur vayavshtit charcha....apani charcha main meri rachana ko isthaan dene ke liye dhanywaad.
जवाब देंहटाएं