नमस्कार , साप्ताहिक काव्य मंच पर आप सभी का स्वागत है ….रचनाकार के लिए पाठक ईश्वर समान है ..जिस प्रकार ईश्वर को श्रद्धा से पुष्पांजलि भेंट की जाती है मैंने भी काव्य-प्रसून भेंट कर दिए हैं …ईश्वर में आस्था रखते हुए ….चलिए पहले कुछ विशेष – परिचय …. |
लीक पर चलना, कहाँ दुश्वार है
खौफ का जो कर रहा व्यापार है
आदमी वो मानिये बीमार है
चार दिन की ज़िन्दगी में क्यूँ बता
तल्खियाँ हैं, दुश्मनी, तकरार है
यूँ बस्तों का बोझ बढ़ाना, ठीक नहींसब को अपना हाल सुनाना, ठीक नहींऔरों के यूँ दर्द जगाना, ठीक नहीं इन पंक्तियों में सलाह दे रहे हैं कि हर किसी को मन की बात बताना ठीक नहीं …मुझे रहीम दास जी का दोहा याद आ गया … “रहिमन निज मन की व्यथा मन ही राखे गोय |” बच्चों को अपना बचपन तो जीने दो यूँ बस्तों का बोझ बढ़ाना, ठीक नहीं इसमें कितनी बड़ी सच्चाई कही है …पर कौन सुनता है? बच्चों का बचपन आज उनके बस्ते तले दब रहा है ..
और इस गज़ल में नेकी कर कुएँ में डाल वाली बात चरितार्थ हो रही है ---
भलाई किये जा इबादत समझ कर
न समझे किसी को मुकाबिल जो अपने
वही देख शीशा बड़े सकपकाये
भलाई किये जा इबादत समझ कर
भले पीठ कोई नहीं थपथपाये
मन की व्यथा को कुछ अलग ही अंदाज़ में बयाँ किया है …गुलाबों से मुहब्बत है जिसेमजे की बात है जिनका, हमेशा ध्यान रखते हैंवोही अपने निशाने पर, हमारी जान रखते हैं गुलाबों से मुहब्बत है जिसे, उसको ख़बर कर दो चुभा करते वो कांटे भी, बहुत अरमान रखते हैं |
![]() झूठा विजेता--जहाँ भी लगाओ मेरी विजय के उपलक्ष्य में स्तम्भवहीं मेरी हार को भी अंकित करना.. क्योंकि इतिहास की किताबों में छिप के बैठा एक तथाकथित महान मगर झूठा विजेता नहीं बनना मुझे देख अचरज भी है हैरानी भी है--
कैसे माने जहाँ विष पिलाए बिना
मीरा रानी भी है, दिवानी भी है
एक अदृश्य सूलीनारी कि वेदना को इस रचना में बखूबी ढाला है …लेकिन मेरा असल वजूद आज भी गाँव की, कस्बों की तंग गलियों में ही सिमटा है यूं तो पूजाघर की दीवारों पर टंगी तस्वीरों में मेरे हाथों में तीर है.. तलवार है.. त्रिशूल है पर हकीकत में सिर्फ बेलन है चिमटा है माँ------
यह विषय ही ऐसा है कि मन संवेदनशील हो उठता है ..
माँ
आज भी तेरी बेबसी मेरी आँखों में घूमती है तेरे अपने अरमानों की ख़ुदकुशी मेरी आँखों में घूमती है.. |
अनामिका के लेखन से अधिकांश लोग परिचित हैं …हर रचना सीधे दिल से निकल शब्दों के परिधान में सुसज्जित हो जाती है ….प्रेम की अभिव्यक्ति करना कोई सीखे तो इनकी रचनाओं को पढ़ें …इनकी भाषा की एक खासियत यह है कि इनकी रचनाओं में हिंदी के साथ उर्दू शब्दों का बहुतायत से प्रयोग होता है……हर रचना जैसे प्यार के सागर में डूब कर निकलती है…विरह हो , वेदना हो , उपालंभ हो या जीवन दर्शन भी सब प्रेम रस में डूबा हुआ … इनकी रचनाओं में प्रेम की पराकाष्ठा दृष्टिगोचर होती है…. कुछ से आप भी रु – ब - रु होइए …
असहाए, दरिद्र सी उत्कंठाये.. .. उजास नहीं है किसी पथ में.. नैराश्य की घन-घोर घटा.. छाई जीवन के उपवन में..!! शून्य....
जब खतम हो जाता है ..
ये निर्दयी प्रारब्ध सुख की उम्मीदो का साथ . तब शांत हो जाता है अंगारो से जलता वज़ूद, और पसर जाता है चहू ओर एक असीम शून्य !! पैशाचिक नृत्य करता हुआ.. क्षण - क्षण.. जिंदगी को लीले जाता है..!! प्रयाण.
दीपक मंद हो चला है
टिमटिमाना धीमा हो गया है आयु का जल भी सूख चला है लौ की उपर उठने की शक्ति क्षीण है |
![]() अब तो जागो कब तक तुम अपने अस्तित्व को पिता या भाई पति या पुत्र के साँचे में ढालने के लिये काटती छाँटती और तराशती रहोगी ? तुम मोम की गुड़िया तो नहीं ! मैं एकाकी कहाँ
मैं एकाकी कहाँ !
जब भी मेरा मन उदास होता है अपने कमरे की प्लास्टर उखड़ी दीवारों पर बनी मेरे संगी साथियों की अनगिनत काल्पनिक आकृतियाँ मुझे हाथ पकड़ अपने साथ खीच ले जाती हैं, ऐसा क्यों होता हैऐसा क्यों होता हैजब भी कोई शब्द तुम्हारे मुख से मुखरित होते हैं उनका रंग रूप, अर्थ आकार, भाव पभाव सभी बदल जाते हैं और वे साधारण से शब्द भी चाबुक से लगते हैं, शक्ति रूपिणी नारी
‘असहाय’, ‘बेचारी’, ‘दयापात्र‘,
’अबला नारी’, ‘कमज़ोर जात’, ’दासी’,‘बाँदी’,‘गोली’,‘गुलाम’ इन सारे नामों को सलाम ! |
और अब …… सप्ताह की बेहतरीन कविताएँ और कुछ नए चेहरे ….. आशा है कि नए लोगों को आप सभी से प्रोत्साहन मिलेगा …. |
![]() पूरा होता है पेट भरने का दस्तूर कमरे में लौटते हुए जुबान पर आता है माँ के हाथों बने खाने का स्वाद
8 अगस्त को शरद जी की माँ की पुण्य तिथि थी …इस अवसर पर उनकी एक पुरानी रचना देना चाहूंगी ..
माँ की मृत देह के पास बैठकर-छह
देह को मिट्टी कहते हैं मिट्टी मिल जाती है मिट्टी में महकती है बारिश की पहली फुहार मे तुम भी महकोगी माँ हर बारिश में.. |
दिनेशराय द्विवेदी जी अपने ब्लॉग पर प्रस्तुत कर रहे हैं "कल-युग-दर्शन" यादवचंद्र के प्रबंध काव्य "परंपरा और विद्रोह" का त्रयोदश सर्ग
मत बांध खुदा की फितरत को
आजाद खुदई, कुदरत को
दोजख को, रोते जन्नत को
आदम की नादाँ जुर्रत को
पूरी कविता पढते हुए एक जोश पैदा होता है ….आप भी इसका आनंद ज़रूर लें ..
चिमनियाँ धुआँ जो उगल रहीं
सीधी मीनार बनाती हैं
आसार सभी ये कहते हैं
यह आँधी कोई आती है
यादवचंद्र पाण्डेय
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![]() मैं तुमसे प्यार नही करती...मेरे कुछ शेरों में शामिल है तेरा नाम भी मेरी कुछ शामों में शामिल है तेरा ख्याल भी मेरे कुछ आंसुओं का कारण है तेरी कमी भी मेरी कुछ मुस्कुराहटों में शामिल है तेरी याद भी मगर फिर भी यह सच है .... मैं तुमसे प्यार नही करती ...!! मैंने तुमसे कभी प्यार नही किया ...!! |
![]() हमज़बान पर पढ़िए शाहिद अख्तर की बेहतरीन कविताएँ .. ख़ामोशी के ख़िलाफ़
[१]
तितलियां पंख फड़फड़ती हैं
तितलियां उड़ जाती हैं
तितलियां वक्त की तरह हैं
यादें छोड़ जाती हैं
खुद याद बन जाती हैं
[२]
अंतरिक्ष पर जगमगा रहे हैं
हमारे दर्जनों उपग्रह
चांद पर कदम रखने की
हम कर रहे हैं तैयारियां
[३]
अब भी ताजा है
इन जर्द पंखुडि़यों पर तुम्हारे मरमरीं हाथों का वह हसीं लम्स
उससे झांकता है
तुम्हारा अक्स
[४]
कोई नारा, कोई सदा
उछालो जुल्मत की इस रात में
आवाजों के बम और बारूद
ढह जाएंगे इन से
जालिमों के किले
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![]() अनकही सी एक बात अनकही सी एक बात, सालती रही दिल को कितने ही दिन कितनी ही रातें, हिम्मत जुटाकर फिर कह ही दिया "लौट आओ" | ये सावन मन भाये ना ..ये सावन मन भाये ना बदरा तुमको लाये ना दूर बिदेस में बैठे तुम सौतन कहीं लुभाए ना |
![]() वंदना गुप्ता आज जीवन की एक अहम बात बताते हुए कह रही हैं कि "मैं "का कोई अस्तित्व नहीं
मैं क्या हूँ ?
कुछ भी तो नहीं ब्रह्मांड में घूमते एक कण के सिवा कुछ भी तो नहीं अकेले किसी कण की सार्थकता नहीं |
पतों के बीच लापता होते हुयेआजकल तो शहर में इतनी भीड़ है कि कभीकभी खुद परछांई को भी मुश्किल होता है तलाश लेना ज़मीन अपने लिये इंसानों से बचते हुये | अशोक व्यास जी बता रहे हैं मनुष्य होने का गौरवरक्षा राखियाँ करती हैं या वो भाव जिसको लेकर राखी बंधती है आत्मीय कटिबद्धता क्या एक दिन तक सीमित है? राखी जिस जीवन शैली को सहेजने, जिस जीवन दृष्टि को व्यवहार में लाने का नाम है |
मनसा आनंद मानस कहते हैं कि जिनको स्वयं पर भरोसा हो उसे आगे बढने से कौन रोक सकता है…. अटल है विश्वास जिसको
चल पडा पथ पर पथिक जब,
कौन बाधा रोकेगी उसको। कौन डगर भटका सकेगी, दृढ़ है विश्वास जिसको।। |
विभा रानी माँ को समर्पित कर रही हैं अपनी रचना मां तुम काम करो!खेत में, खलिहान में स्कूल में, मैदान में, दफ्तर में , दुकान में, तुम्हारा काम, हमारा विश्वास पढने का, आगे बढने का अच्छा सीखने का, अच्छा कमाने का तुम काम करो मां! | अनीता सक्सेना जी अनुभूति पर लायी हैं … शब्दों का कराहना इनके दिल में सभी धर्मों के उपदेश हैं मेरी रगों में खून नहीं शब्द बहते हैं |
![]() वंदना सिंह हर आहट पर याद करते हुए कह रही हैं ….आती है … याद तुम्हारी
एक आहट ........जैसे
हवा में घुल के.....
हलके फुल्के से लिबास में
सहमी सी ....घबराई सी
थोड़ी सी शरमाई सी
करती है होले से दस्तक
दिल के दरवाजे पर जैसे
कुछ ऐसे ही आया करती है
अक्सर याद तुम्हारी
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![]() कविता रावत जी की मनभावनवर्षा!! पढ़िएमुरझाये पौधे भी खिल उठतेजब उमड़- घुमड़ बरसे पानी, आह! इन काली घटाओं की दिखती हरदम अजब- गजब की मनमानी। देख बरसते बादलों को ऊपर मलिन पौधे प्रफुल्लित हो जाते हैं, ज्यों बरसाये बादल बूंद- बूंद त्यों नित ये अद्भुत छटा बिखेरते हैं। | ![]() कंचन सिंह जी को पढ़िए भी और सुनिए भी पलट के लौट भी आओ, ये कोई बात नहीहमें हमारे हवाले, जो तुमने छोड़ा है,पलट के लौट भी आओ, ये कोई बात नही। वो शम्मा, जिससे हमारी हयात रोशन थी, उसी से हमको जलाओ, ये कोई बात नही। |
![]() विनोद पांडे किस बूढ़े इंसान को भगवान बता रहे हैं जानिये उनकी कविता पढ़ कर .. वो बूढ़ा इंसान नही है,वो तो इक भगवान है.
वो बूढ़ा इंसान नही है,
वो तो इक भगवान है.
जो यह बात समझ न पाया,
वो पागल-नादान है|
बचपन से लेकर के अब तक,
हर पल साथ तुम्हारे है,
जब से तुम दुनिया में आए ,
हर पल तुम्हे संवारें है,
सूरज से तप रही धूप में,
वो शीतल परिधान है |
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HINDI SAHITYA
पर पढ़िए नंदलाल भारती की
बौनी कसमे
गरीबो की बस्ती में
दीया जुगनू होता है । वहा अंधियारे कनक का उजियारा होता है। माथे चिंता, रोम-रोम चिता, सुलगते है ।
दिल में गूंजती आह
बेवस साँस भरते है। | ![]() ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत हैये शोर, ये धुंआये गर्मी - हवा में भी .. और दिमाग़ में.... हर तरफ़ दौड़ते - भागते लोगों का सैलाब ज़िन्दगी जी लेने को बेताब कितनी घुटन है !!……… ऐसे में तुम्हारी याद .. ऐसे में तुम्हीं तो याद आती हो मुझे सब कुछ कितना अच्छा है .. ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत है !! |
मुहब्बतें हैं कहाँ, अब तो वासनाएं हैंघुटन है, पीर है, कुंठा है, यातनाएं हैंमुहब्बतें हैं कहाँ, अब तो वासनाएं हैं जमाना जब भी कोई धुन बजाने लगता है थिरकने लगतीं उसी ताल पर फिजाएं हैं |
![]() जयशंकर तुषार की पढ़िए … मेरी दो गजलें[१]सलीका बांस को बजने का जीवन भर नहीं होता। बिना होठों के वंशी का भी मीठा स्वर नहीं होता॥ [२] नये घर में पुराने एक दो आले तो रहने दो, दिया बनकर वहीं से मां हमेशा रोशनी देगी। | ![]() डिम्पल परेशान हैं कि …. सपने जो सोने नहीं देतेएक लंबा सफर, इक छोटा सा सपना... जादुई संकेतों की अस्पष्ट अजनबी भाषा के नए शब्द गढ़ने के लिए उसे कुशल कारीगर बनना है |
![]() सावन का महीना बीता नहीं है और बादल खूब उमड़ घुमड़ कर आ रहे हैं ….डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी कितना मनोरम वर्णन कर रहे हैं अपनी रचना “बादल” में
भरी दोपहरी में दिनकर को,
चादर से ढक आये बादल।
खूब खेलते आँख-मिचौली,
ठुमक-ठुमककर आये बादल
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![]() अमरजीत कौंके को पढ़िए कविता संग निपट अकेलाअपने आंसू रही भीगतीअपनी सूखी काया जीवन गुज़रा मिली कहीं न सघन बृक्ष की छाया गहन उदासी मन पर छाये उतरे साँझ की बेला मैं कविता संग निपट अकेला..... | ![]() तनु उर्फ शर्मा जोशी को महुआ पर पढ़ें .. बस प्यार .........!!दिखायी देते हो तुम..... मासूमियमत से सोते...... सिगरेट पीते.... तफ्सील से जीते.... बिना बात गमकते...... कहीं किसी सपनों में जैसे |
समीर लाल जी इस बार बहुत संवेदनशील रचना लाये हैं ….ऐसे रिश्तों की बात कर रहे हैं जो भूख से जन्मते हैं …. वो रिश्ते..जो उपजते हैं मजबूरी मेंपेट की भूख से और विलीन हो जाते जिस्म में कहीं!! |
आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ …..आशा है आपको आज की चर्चा पसंद आई होगी ….आपकी अभिव्यक्ति ही हमारी प्रेरणा है ….फिर मिलेंगे …अगले मंगलवार ..इसी मंच पर ..नयी चर्चाओं को लेकर …तब तक के लिए नमस्कार …… |
सार्थक ब्लॉग चर्चा .........आभार आपका !
ReplyDelete"साप्ताहिक काव्य मंच ---१२" बहुत ही करीने से सजाया है आपने!
ReplyDelete--
सभी लिंक बहुत ही महत्वपूर्ण हैं!
bahut acchi lagi charchaa aapki di..
ReplyDeletedhnywaad aapka..
behatareen!
ReplyDeleteमेरी हौसला अफजाई करने का बहुत बहुत शुक्रिया संगीताजी ! मुझे आपने इस योग्य समझा यही मेरे लिये बहुत है ! चर्चामंच की सभी लिंक्स बेहतरीन हैं और सभी को पढ़ना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि होगी ! और मेरी कोशिश रहेगी को मैं सभीको पढ़ पाऊँ ! इतनी बढ़िया चर्चा के लिये बधाई एवं आभार स्वीकार करें !
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसंगीता जी बहुत सुन्दर. इस तरह ब्लागजगत में रचनात्मक हलचलों से रूबरू होने का मौका देकर आप सार्थक काम करते है. ओम प्रकाश नदीम जैसे बड़े शायर, जो ब्लाग जगत से अंभिग्य हैं, को चरचा में रखकर आप ने कविता का उपकार किया है. धन्यवाद.
ReplyDeleteबहोत ही प्यारी प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दरता से चर्चा किया है आपने और बहुत सारे लिंक भी मिले! धन्यवाद!
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक से बढकर एक कवितायें लगाई हैं…………आभार्।
ReplyDeletesaare links sahej liye hai ... shaam kaa intezaam ho gaya
ReplyDeletemeri rachnaa ko sthaan dene ke liye aabhaar
Sangeeta ji,behtareen kavitaon se saji ek sundar charcha ..sabhi ke sabhi link bahut khas hai aur ek badhiya pathniy samagri se bahre hai...meri kavita sammilit karane ke liye bahut bahut aabhar..dhanywaad sangeeta ji..
ReplyDeletebahut sundar peshkash....
ReplyDeleteMeri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
aapke comments ke intzaar mein...
A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas
आपकी चर्चा से हमेशा ही बहुत बेहतरीन लिंक्स मिलते हैं ...बहुत सुन्दर ओर सार्थक रही आज की चर्चा..
ReplyDeleteआभार कि आपने हमज़बान की पोस्ट का भी ज़िक्र किया है !
ReplyDeleteसार्थक ब्लॉग चर्चा !
एक अदना सी राय है कि सिर्फ कविताओं की ही चर्चा न हो..सामाजिक विमर्शों को भी स्थान दिया करें.
बेहतरीन चर्चा !
ReplyDeletenice links
ReplyDeleteचर्चा मंच में मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका आभार.
ReplyDeleteसार्थक लिंक्स और चर्चा के लिए धन्यवाद
एक ही स्थान पर कविताओं के ढेर सारे ब्लॉग्स के लिंक ...
ReplyDeleteप्रशंसनीय और श्रमसाध्य कार्य है ...
बहुत आभार ...!
AS usual, too good. :)
ReplyDeleteसंगीताजी
ReplyDeleteअद्भुत!
इस काव्य मंच द्वारा, विविध काव्य रस धार से जुड़ने और जोड़ने का आपका मधुर परिश्रम और रचनात्मकता नमन करने योग्य है
सृजनशील प्रवाह को प्रखर बनाती आपकी समर्पित दृष्टि को प्रणाम
और सोच समझ कर सार्थकता तक पहुँचने का प्रयास करते सभी रचनाकारों के लिए मंगल कामनाएं
बधाइयां
अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteसंगीता जी जिस मेहनत और लगन से आप इस चर्चा मंच को सजाती हैं वो सब आपके व्यक्तित्व का आईना बन जाती हैं. निसंदेह आपकी पारखी निगाहें निश्छलता और पारदर्शिता के आधार पर रचनाकारों और रचनाओं के नायाब मोती ढूंढ लाती हैं . जिस प्रेम और उत्साह से आप रचनाकारों पर मनन कर के अपने सुंदर शब्दों के चुनाव से उनकी यथायोग्य उपाधियों से उन्हें सम्मानित करती हैं उससे आपकी संवेदना,आपके अपनेपन, आपकी सजगता, ऊर्जा और आपकी सुरुचि का एहसास मिलता है. आप का चर्चा मंच को यह योगदान अत्यंत ही प्रशंसनीय है.
ReplyDeleteचर्चा मंच में मेरी रचना शामिल करने के लिए आपका धन्यवाद
ReplyDeleteयादव चंद्र पाण्डे जी के लेखन और व्यक्तित्व पर अभी चर्चा के लिए बहुत कुछ शेष है।
ReplyDeleteसभी लिंक बहुत ही महत्वपूर्ण हैं...बहुत सुन्दर ओर सार्थक है आज की चर्चा मंच...आभार
ReplyDeleteआपकी चर्चा की शैली देख कर चमत्कृत और प्रभावित हुआ। कृपया बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteहमारे ब्लॉग की रचना को शामिल करने के लिए आभार!
बहुत बढ़िया चर्चा अभी आधे पढना बाकि है |धन्यवाद |
ReplyDeleteबहुत उम्दा चर्चा....परिचय और चर्चा-दोनों देखकर आनन्द आया. आभार.
ReplyDeleteमेरे अपरिपक्व प्रयास को भी चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए कोटिशः धन्यवाद ! आपने बड़ी ही रुचिकर मंच सजाई है!!
ReplyDeleteसंगीता जी किसे अपनी प्रशंशा अच्छी नहीं लगती लेकिन मेरे साथ उल्टा है मैं अपनी प्रशंशा पढ़ सुन कर संकोच से गढ़ जाता हूँ...ये आपकी महानता है के आप मेरे लेखन के प्रति जो साधारण की श्रेणी का ही है, इतना स्नेह रखती हैं.
ReplyDeleteचर्चा मंच पर किये गए आपके अथक प्रयास की जितनी तारीफ़ की जाये कम है...आज के दौर में कोई तो है जो दूसरों की रचनाओं में खूबियाँ ढूंढ कर उन्हें सार्वजानिक मंच प्रदान कर रहा है... ये प्रयास स्तुत्य है...
नीरज
आदरणीया दी.. आजकल ना चाह कर भी ब्लॉग दुनिया से दूरी बनाये रखनी पड़ रही है.. और कारण है कि समय कम और साथ में लैपटॉप पर बैठते ही आँखों और सर में दर्द.. इसलिए देर से आने के लिए क्षमा चाहता हूँ और साष्टांग दंडवत होकर प्रणाम करता हूँ, प्राणदान मांगता हूँ.. :) इस अनुज के ब्लॉग का उल्लेख करने के लिए यही कहूँगा कि जब नीरज सर जैसे दिग्गज अपने आप को साधारण की श्रेणी में रखते हैं तो मेरी औकात क्या है.. यहाँ पर सिर्फ आपके स्नेह की वजह से टिका हूँ और बाकी क्या है..
ReplyDeleteसंगीता जी,
ReplyDeleteकई बड़ी कविताओं को बाँचने का मौका मिला कुछ ऐसी भी कि जिनसे लेखन में प्रयोगों को सीखा जा सकता है।
बहुत अच्छी चर्चा....कई महत्वपूर्ण लिंक्स मिले...
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
मेरी कविता को चर्चा में शामिल करने का आभार!