नेट से हूँ त्रस्त ।
कृपया सहें ।।
कृपया सहें ।।
किसी शजर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे
अजल से है ये बशर की आदत, जिसे न अब तक बदल सका है
ख़ुदा ने जितना अता किया वो, उमीद से कम उसे लगा है
अजल: अनंतकाल
किसी शजर के सगे नहीं हैं ये चहचहाते हुए परिंदे
तभी तलक ये करें बसेरा दरख़्त जब तक हरा भरा है
शजर : पेड़
जला रहा हूँ हुलस हुलस कर, चराग घर के खुले दरों पर
न आएंगे वो मुझे पता है, मगर ये दिल तो बहल रहा है
यहीं रही है यहीं रहेगी ये शानो शौकत ज़मीन दौलत
फकीर हो या नवाब सबको, कफन वही ढाई गज मिला है
चलो हवाओं का रुख बदल दें, बदल दें नदियों के बहते धारे
जुनून जिनमें है जीतने का, ये उनके जीवन का फलसफा है
रहा चरागों का काम जलना
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पाकिस्तानी लोकतंत्र की परीक्षा
प्रमोद जोशी
जिसकी उम्मीद थी वही हुआ। पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री युसुफ
रज़ा गिलानी को अदालत की अवमानना का दोषी पाया। उन्हें कैद की सज़ा नहीं दी
गई। पर अदालत उठने तक की सज़ा भी तकनीकी लिहाज से सजा है। पहले अंदेशा यह था
कि शायद प्रधानमंत्री को अपना पद और संसद की सदस्यता छोड़नी पड़े, पर अदालत ने
इस किस्म के आदेश जारी करने के बजाय कौमी असेम्बली के स्पीकर के पास अपना
फैसला भेज दिया है। साथ ही निवेदन किया है कि वे देखें कि क्या गिलानी की
सदस्यता खत्म की जा सकती है। पाकिस्तानी संविधान के अनुच्छेद 63 के अंतर्गत
स्पीकर के पास यह अधिकार है कि वे तय करें कि यह सदस्यता खत्म करने का मामला
बनता...
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सागर मंथन
कटूक्तियाँ ,
मन के भँवर में
घूमती रहती हैं
गोल गोल
संवेदनाएं
तोड़ देती हैं दम
अपने अस्तित्व को
उसमें घोल ,
भावनाएं
साहिल पर
पड़ी रेत सी
वक़्त के पैरों तले
कुचल दी जाती हैं
जो अपने
क्षत- विक्षत हाल पर
पछताती हैं ,
तभी ज़िंदगी के
समंदर से
कोई तेज़ लहर
आती है
जो उनको
अपने प्रवाह संग
बहा ले जाती है ,
फिर होती है
कोई नयी शुरुआत
सुनहरी सी भावनाओं का
चढ़ता है ताप
चाँद भी आसमां में
जैसे मुस्काता है
आँखों का सैलाब भी
ठहर सा जाता है
बस यूं ही
समंदर की लहरें
आती - जाती हैं
ज़िंदगी को जीना है
यही समझाती हैं ,
मैं भी जी रही हूँ
कर के ये चिंतन
रोज़ ही करती हूँ
मैं .
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गीतामृत अर्जुन को ही क्यों?
युद्धिष्ठिर तो धर्म धुरंधर थे
गदाधर भीम थे बलशाली,
पर गीताज्ञान अर्जुन को क्यों
पूछे यह प्रश्न मन का माली.
ज्ञान उसी को मिलता है
जो होता है, उसका अधिकारी,
उसको भी सहज ही मिल जाता
जो 'वरण' यथेष्ट को करता है.
कन्या करती वरण है वर को
करता है शिष्य गुरु को वरण,
वारनेय अपना धर्म निभाता
देता है उसको उर में शरण.
योगी पाते जिसे कठिन योग से
तपसी जिसे कठिन तपस्या से,
पाता जिसे पुरुषार्थी कर्मयोग से
शरणागत पाता उसे वरेण्यं से.
अर्जुन ने मान श्रुति का निर्देश
किया था वरण, सखा कृष्ण को
ठुकराके धनबल जनबल सैन्यबल
वारनेय धर्म ही हुआ प्रस्फुटित
रणक्षेत्र मध्य वहाँ, कुरुक्षेत्र के.
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किरचों की तरह हटाया तुमने
क्यूं रिश्ता अपना मुझसे रेत सा बनाया तुमने।
और तमाम वायदों को कांच सा बनाया तुमने।
साथ रहना नहीं था तो टूट ही जाना था इसको,
फिर क्यूं ऐसे ख्वाबों का महल सजाया तुमने।
वक्त का क्या, बावफा कब रहा है किसी का,
और वक्त की तरह मुझको आजमाया तुमने।
तन्हाई के खराब मौसम में रिश्तों को सम्हाला मैंने,
दुपट्टे के कोरों से किरचों की तरह हटाया तुमने।
मेरे साथ ताउम्र रहने की बात तुमने ही कही थी,
जोड़ना कभी, कितनी कस्मों को निभाया तुमने।
- *रविकुमार बाबुल*
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शब्द नहीं
अभिराम है जीवन में अभिव्यक्ति।
न जाने क्यूं फिर भी यह व्यक्त नहीं। तुम्हारे लिए अनुराग है नैनों में मेरे, मगर मेरे होठों पर कोई शब्द नहीं। इस धोखे की संक्षिप्तता से, दिल मेरा प्रेम से विरक्त नहीं। पल-प्रतिपल साया सा चाहा तुमको, रोशनी की दिल में हुकूमत नहीं। प्यार की डोर से बुने जो रिश्ते मैंने, क्यूं तेरे दिल में ऐसे जज्बात नहीं।
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मुझे सूर्य की ओर लौट चलने के लिए न कहो
*आज देर शाम को रायपुर से फोन के मार्फत सूचना मिली कि आज की 'नई दुनिया' के
रविवारीय पन्ने पर मेरा एक अनुवाद छपा हुआ है ; निज़ार क़ब्बानी की एक छोटी
- सी कविता का अनुवाद। अब यह अख़बार हमारी तरफ़ मिलता नहीं । पता नहीं कब
देखने को मिले। अच्छा लगा कि एक कविता प्रेमी की हैसियत से जो कुछ अनुवाद
कार्य मैं चुपचाप कर रहा हूँ वह पत्र - पत्रिकाओं के माध्यम से धीरे - धीरे
कविता प्रेमियों - पाठकों तक पहुँच पा रहा है। लीजिए , इसी क्रम में आज एक
बार फिर सीरियाई कवि निज़ार क़ब्बानी ( 21 मार्च 1923 - 30 अप्रेल 1998) की
एक और कविता का यह अनुवाद...*
*
*
*
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*निज़ार क़ब्बानी की कविता*
*वर्षा..
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परीक्षा से पहले तमाम रात जागकर पढने का मतलब
*एक बार और सारे पाठ्यक्रम को परीक्षा से पहले दोहराने के लिए अक्सर छात्र रात
रात भर जागतें हैं .लेकिन क्या इसका फायदा भी है *
*?कहीं ऐसा तो नहीं की अगली सुबह सब कुछ गुड गोबर हो जाए एक भ्रम की स्थिति
पैदा हो जाए और याद किया याद ही न आये एन वक्त पर परीक्षा की घडी में ?*
*
*
स्कूल आफ लाइफ साइंसिज़ जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी के रिसर्चरों ने अपने एक
अध्ययन में यह खुलासा किया है कि दिन भर में पढ़ी याद की गई सूचना को इस तरह
रूपांतरित करने में कि वह मौके पर दिमाग को याद आ सके संगठित करके रखने
में नींद एक विधाई भूमिका निभाती है .
लेकिन रात भर नींद से महरूम रहने पर ऐसा हो ही यह क.
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मैं अकसर देख आया हूँ (ग़ज़ल)
मैं रोते हुए बेबाक चन्द मंजर देख आया हूँ
संभलते हुए बेहिसाब लश्कर देख आया हूँ
काजल से सजी आँखें भी रूठ जाया करती है
पलकों पे सजे अश्कों के दफ्तर देख आया हूँ
इक अरसे बाद हंसा है वो तो कोई बात जरुर है
वरना उसे सिसकते हुए मैं अकसर देख आया हूँ
मैं डूबते हुए सूरज से शिकायत करता भी तो कैसे
हर साँझ मुस्कुराते हुए उसे अपने घर देख आया हूँ
|
मजदूर के दर्द पर मेरी एक रचना जो बहुत पहले लिखी थी, आज आप सभी के बीच साझा
कर रही
आज दिल का दर्द घोल रहा हूँ,
मज़दूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ |
ग़रीबी मेरा पीछा नहीं छोड़ती,
क़र्ज़ को कांधे पर लादे डोळ रहा हूँ |
पसीने से तर -ब -तर बीत रहा है दिन,
रात पेट भरने को नमक पानी घोल रहा हूँ |
आज दिल का दर्द घोल रहा हूँ,
मज़दूर हूँ अपनी मजबूरी बोल रहा हूँ |
बुनियाद रखता हूँ सपनों की हर बार,
टूटे सपनों के ज़ख्म तौल रहा हूँ |
मज़दूरी का बोनस बस सपना है,
सपनों
|
जिंदगी ही तो है |
चन्दा -चकोर....... डा श्याम गुप्त
डा. श्याम गुप्त
चकोर !
तू क्यों निहारता रहता है
चाँद की ओर ?
वह दूर है
अप्राप्य है ,
फिर भी क्यों साधे है
मन की डोर !
प्रीति में है बड़ी गहराई
प्रियतम की आस, जब-
मन में समाई;
दूर हो या पास
मन लेता है अंगडाई ।
प्रेमी-प्रेमिका तो,
नयनों में ही बात करते हैं,
इक दूजे की आहों में ही
बस रहते हैं,
इसी को तो प्यार कहते हैं ।
मिलकर तो सभी प्यार कर लेते हैं ,
जो दूर से ही रूप-रस पीते हैं -
वही तो अमर-प्रेम जीते हैं ।। |
अवनति का इतिहास, महाभारत है गाता-रामायण छोड, भागवत क्यों बांचे ।
सामाजिक उत्थान का, रामायण दृष्टांत ।
श्रवण करे श्रृद्धा सहित, मन हो जावे शांत ।
मन हो जावे शांत , सदा सन्मार्ग दिखाता ।
अवनति का इतिहास, महाभारत है गाता ।
रविकर दे आभार, विषय बढ़िया प्रतिपादित ।
ढोंगी बाबा काज , करे सब गैर-समाजिक ।।
थोड़ी सी वेवफाई... ..
सज्जन खुशियाँ बांटते, दुर्जन कष्ट बढ़ाय ।
दुर्जन मरके खुश करे, सज्जन जाय रूलाय ।रात आधी, खींच कर मेरी हथेली एक उंगली से लिखा था "प्यार" तुमने ।प्रेम सरोवर
सरल शब्द में बंध रहा, प्रेम-सरोवर-चाँद ।
उच्च रूढ़ियाँ थीं खड़ी, कैसे जाये फांद ।।
नुक्कड़
चोर चोर मौसेरे भाई. हुई कहावत बड़ी पुरानी | सम्बन्ध सगा यह सबसे पक्का, झूठ कहूँ मर जाये नानी । जिसने आर्डर दिया दिलाया, जो लाया झेले गुमनामी । पुर्जे पुर्जे हुआ कलेजा, हुई मशिनिया बड़ी सयानी । सौ प्रतिशत का छुआ आंकडा, होने लगी बड़ी बदनामी । कम्बख्तन को पडा मिटाना, इसीलिए भैया जी दानी ।। |
विश्वास का मंत्र .... |
मेरे अंदर का बच्चा |
दवा कोई भी जखम भर नहीं पाईअरुण शर्मा
दवा कोई भी मेरे जखम भर नहीं पाई ,
बिगड़े हालात तो हालत सुधर नहीं पाई, मुश्किलों ने दरवाजे पर ताला लगा दिया, रौशनी कमरों में फिर कभी भर नहीं पाई, मैं हर दिन तिनका -तिनका मरा हूँ, यादें तेरी लेकिन मुझमे मर नहीं पाई, घंटों बैठा रहता हूँ समंदर किनारे, जो डुबा दे मुझे वो लहर नहीं आई.... |
रूप-अरूपगुलमोहर और कब्रजिस सड़क से उससे उतरकर बायीं तरफ एक कब्र है जिसमें जाने कितने बरसों से सोया है कोई हर रोज वहां जाकर पल भर के लिए ठिठकती हूं सोचती हूं |
दिल बोल रिएला रे...अश्लीलता:खुद महिलाओं का नजरिया क्या हैं? |
"शैतान बदरिया""उल्लूक टाईम्सहै गरमी का मौसम और तू रोज रोज क्यों आ जा रही बेटाईम आ आ के भिगा रही बरस जा रही सबको ठंड लगा रही जाडो़ भर तूने नहीं बताया कि तू क्यों |
सभ्यता, शालीनता के गाँव में,
खो गया जाने कहाँ है आचरण?
कर्णधारों की कुटिलता देखकर,
देश का दूषित हुआ वातावरण।
सुर हुए गायब, मृदुल शुभगान में,
गन्ध है अपमान की, सम्मान में,
आब खोता जा रहा है आभरण।
खो गया जाने कहाँ है आचरण?
|
उत्कृष्ट लिंक्स चयन ...बढ़िया चर्चा ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ....
बहुरंगी विचारों के साथ भारतीयता का समवेत स्वर लिए सच्चा प्रयास ,निहितार्थ मुखर अभिव्यक्ति समग्र विकास, बधाईयाँ जी /
जवाब देंहटाएंमयक जी की जगह
जवाब देंहटाएंफैजाबादी आये हैं
झोली में जलेबियां
रसीली लाये हैं
अन्नास्वामी का
नुक्कड़ भी आज
घूंघट में दिखाये हैं
कलरफुल टेस्टफुल
चर्चा आज बनाये हैं
उल्लूक के करतब
भी दिखाये हैं।
आभार !!!
gyanwardhak, dilchasp links
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंआपके मंच पर आकर पढ़ने का स्तर बढ़ रहा है।
जवाब देंहटाएंसतरंगी सुंदर चर्चा,...
जवाब देंहटाएंआपने कई नए लिंक्स दिये ... आभार
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे लिंक्स का चयन जिनके साथ मेरी रचना शामिल करने का आभार ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा.
जवाब देंहटाएंबधाई.
जवाब देंहटाएंbahut badiya links ke saath sarthak charcha prastuti...aabhar!
जवाब देंहटाएंचर्चा का अंदाज़ हमेशा ही अलग होता है।
जवाब देंहटाएंसभ्यता, शालीनता के गाँव में,
खो गया जाने कहाँ है आचरण?
कर्णधारों की कुटिलता देखकर,
देश का दूषित हुआ वातावरण।
कटु मगर सत्य।
सादर
मेरी पोस्ट भी शामिल करने के लिए शुक्रिया !
जवाब देंहटाएंविविधता का स्तरीय पैरहन पहरे हैं सारे लिंक ज्ञान विज्ञान का संवर्धन करती चर्चा.आभार हमें खपाने को .चर्चा में लाने को .
जवाब देंहटाएंकृपया यहाँ भी पधारें -
डिमैन्शा : राष्ट्रीय परिदृश्य ,एक विहंगावलोकन
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
सोमवार, 30 अप्रैल 2012
जल्दी तैयार हो सकती मोटापे और एनेरेक्सिया के इलाज़ में सहायक दवा
कैंसर रोगसमूह से हिफाज़त करता है स्तन पान .
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/
Posted 1st May by veerubhai
सुंदर चर्चा...मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंgood links.thanx sir.
जवाब देंहटाएंतह-ऐ-दिल से शुक्रिया...हमारी हौसला बुलंदगी के लिए आपका ये खूबसूरत सहयोग जरुरी था
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंरविकर जी मेरा ब्लॉग चर्चामंच पर सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंचर्चामंच में स्थान देने के लिए बहुत आभार
जवाब देंहटाएं