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रविवार, मई 20, 2012

"मंदिर और मस्जिद देश की साझा संस्कृति हैं" (चर्चा मंच-885)

मुझे काम का बोझ सताता।
समय हाथ से निकला जाता।।
लिंक छाँटना बहुत जरूरी।
चर्चा करना है मजबूरी।।
जब तक तन में प्राण रहेंगे।
गागर अपनी यहाँ भरेंगे।।
*कॉलेज कैंटीन में बैठे रिकी और रॉकी अपनी ओर आती हुई
सुन्दर लड़की को देखकर फूले नहीं समां रहे थे .
लड़की ने उनके पास आकर पूछा -''भैया ! अभी अभी कुछ...
कैसे बाहर आयें इस सेक्स्तिंग चक्र व्यू से .ये नादाँ .??
इन दिनों किशोरियों पर अजीब किस्म का दवाब बरपा है
यह दवाब संगी साथ हमजोलियों का पीयर्स का बनाया हुआ है
जिसके तहत ....
सुनने में आया है कि महान लोग
*आत्मकथा* लिख ही डालते हैं।
ऐसा भी कहा जा सकता है कि
आत्मकथा लिखी जाने के बाद व्यक्ति
महानता को ...
पिछले माह (अप्रैल 2012) के मध्य में हैदराबाद के
उस्मानिया विश्वविद्यालय में गौमांस भक्षण के मुद्दे पर अनापेक्षित हिंसा हुई।
विश्वविद्यालय के दलित छात्रों का एक तबका लंबे समय से
मांग कर रहा था कि होस्टलों ...
कुछ लिखा और मिटा दिया
आज तेरी याद ने यूँ हरा दिया
ओ अजनबी………
कौन हो तुम?
मैने तो मोहब्बत को
झाडा पोंछा और सुखाया
मगर तेरे अश्कों ने ही
उसे है रुसवा किया
तेरी अजनबियत को
सांसो मे उतारा फिर भी...
द्वितीय अध्याय (सांख्य योग - २.३८-४४)
सुख दुःख, लाभ हानि सम, हार जीत न चिंतित करते.
जो ऐसा सोच युद्ध में उतरें, वे नहीं पाप के भागी बनते....
राहों के पत्थरों को, हटा कर बढे हो तुम?
कोशिश नहीं है, नींद के आलम में दौड़ना,
बेदारियों की शर्त को, कितना पढ़े हो तुम?...
चारों ओर दंगल ही दंगल
वाहनों की आवाजाही
भीड़ से पटी सड़कें
घर हैं या मधुमक्खी के छत्ते
अनगिनत लोग रहते एक ही छत के नीचे
रहते व्यस्त सदा रोजी रोटी के चक्कर में...
"अगे मैया मर जइबे"
छाती की बढती धड़कन का दर्द या,
कभी कभी न पढने का बहाना !
फिर मचा देती थी कोहराम......... मेरी दादी माँ!
आज पूरी रात अथाह परेशानियों के
दर्द तले सो जाते हैं सिसकते हुए,...
*रचना रचना बहुत सरल है,
मुश्किल है पुस्तक छपवाना।
रिश्ते रखना बहुत सरल है,
मगर कठिन है उन्हें निभाना।।....
मौन को सुना है ?
कभी बातें की हैं ?
ठहरो ...
एक बार उससे जुड़ो फिर ज़िन्दगी की हर शाख से
एक रिश्ता होगा क्योंकि मौन हर अकेले का साथी होता है !.....
एक संसार मेरा तुम्‍हारे शब्‍दों से,
तुमसे बन गया है
मेरे शब्‍द तुम्‍हारे शब्‍दों की उंगली थाम कर चलने लगे हैं
कोई कुछ कहे इनसे पहले वो
तुम्‍हारे शब्‍दों का अनुसरण कर अपना सच कहते हैं
सारी धरती एक परिवार है।
बड़ा ब्लॉगर ऐसा मानता है।
इसीलिए जब भी मौक़ा मिलता है,
वह अपने परिवार से मिलने के लिए निकल लेता है।
श्रीनगर की डल झील से लेकर
थाईलैंड के मसाज पार्लर तक वह घूम चुका है।
अब उसकी नज़र इस ...
झूठ ने कब्जा किया सच के सिहासन पे,
कौरवों की नजरे इनायत दुसाशन पे।
............"रैना"
कागज मेरा मीत है, कलम मेरी सहेली......
न दर्द न गिला न चुभन कोई
घुट के रह गयी है घुटन कोई !
शिद्दत से मुस्कुराईं हैं नम आँखें
है जरूर राज़ इनमे दफ़न कोई
खुद को खुद में न तुम कैद रक्खो
कि जला दे न तुमको जलन कोई...
पुस्तक समीक्षा
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है...
मर्सीये मर्जी से क्यों गाने लगे,
राजपथ के रास्ते क्यों रुक गए
जनपथों पर लोग क्यों जाने लगे
इस शहर में लोग तो भयभीत थे
फिर अचानक भूख क्यों गुनगुनाने लगे...
समाजशास्त्र की किताबों में पढ़ा था कि
मनुष्य एक सामाजिक पशु है .
पशु समूह में रहना पसंद करते हैं ,
मनुष्य के लिए भी विभिन्न कारणों से
अकेले रहना संभव नहीं .
वह परिवार , कबीला ,गाँव आदि बनाकर
एक समूह में...
जो बात हममें तुममें थी
वोबात आम हो गई...!
खुशी का एक पल भी नहीं सुहाता उसे
उसकी आहट भर से ही
भेष बदल बदल कर आ जाता
कभी चोट,कभी बीमारी अपनों की नाराजगी
कभी दुनियादारी में तकलीफ बन कर आ धमकता...
[आज आप 78 वर्ष पूरे करके 79 वें वर्ष में प्रवेश कर रही हैं ।
सभी सहृदय रचनाकारों की अशेष शुभकामनाओं आपके साथ हैं ]
*1*
काँटों की खेती *
*जीवन जोत दिया*
*चुभे तो रोती ?
ये सच है कि आँखें बोल देती हैं,
गर इश्क की जबाँ न हुई तो क्या हुआ ...
मिले हैं राहों में दोस्त सुकूं के लिए
गर जो हमारा कोई न हुआ तो क्या हुआ...
निभा तो जाएंगे रस्में सारी हम
गर जमाने का दस्तूर न हुआ ...
क्या चैदुं त्वे हे पहाड़
पहाडु तैं विकाश चैदुं जनता तैं हिसाब
चैदुं इन मरियुं यूँ नेताऊ कु युं दलालु तैं ताज
चैदुं ठेकादारी युंकी खूब चलदी रुपयों पर
युं तै ब्याज चैदुं गरीबु तै गास चैदुं बेरोज्गारू ...
हिंदुस्तान में एक ऐसे समाज की ज़रूरत है,
जिसमें मंदिर टूटने पर मुसलमान तड़प उठें और
मस्जिद टूटने पर हिन्दू ...
एक समीक्षा.
डा. दिव्या जी की पोस्ट पर ब्लॉगर्स भी अपनी राय दे रहे हैं।
हमने कहा कि आपके सुझाव वास्तव में ही अच्छे हैं
और इन पर ध्यान दिया जाना चाहिए।
बेशक इक दिन जाना होगा,
वापिस न कभी आना होगा।
वो बैठा दरबार सजाये,
अपना हाल सुनाना होगा।....
ब्राह्मणों ने शुरु किया जब से मीट है खाना
बूचडो़ ने सोच लिया मीट का दाम है बढ़ाना
चाह रहे थे बैंक वाले भाई तिवारी जी को समझाना...
जिस वक़्त रौशनी का तसव्वुर मुहाल था
उस शख़्स का चिराग़ जलाना कमाल था
रस्ता अलग बना ही लिया मैंने साहिबो
हालाँकि दायरे से निकलना मुहाल था..
बंगलोर में अभी कुछ दिन पहले
सीट बेल्ट बाँधना अनिवार्य कर दिया गया है।
इस निर्णय ने मुझे कई कोणों से और
बहुत गहरे तक प्रभावित किया है...
खोल दिए पट श्यामल अभ्रपारों ने *
*मुक्त का दिए वारि बंधन *
*नहा गए उन्नत शिखर *
*धुल गई बदन की मलिनता *
*दमक उठे हिमगिरी *
*झूम उठी घाटियाँ...
मेरा फोटो
हम प्रायः सोचते है
विचार या मुद्दे पर चर्चा करते हुए
विवाद अक्सर व्यक्तिगत क्यों हो जाता है...
नकाब में हुस्न की मूरत हो तुम
रंगे-खुशबू सी खुबसूरत हो तुम
जिंदगी की बेनजीर जागीर हो
किसी गरीब की दौलत हो तुम...
अन्त में देखिए
यह कार्टून!

18 टिप्‍पणियां:

  1. कई सार्थक लिंक्स से सजा चर्चा मंच और उपयोगी जानकारी |
    मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर चर्चा -
    गुरु जी ||
    आभार ||

    जवाब देंहटाएं
  3. यह पोस्ट देखकर ख़ुशी हुई.
    ऐसा लिखना ज़रूरी है
    ...ताकि बचा रहे ब्लॉग परिवार Blog Parivar

    Shukriya.

    जवाब देंहटाएं
  4. नयें अंदाज में निखर आया है आज का चर्चा मंच
    शास्त्री जी ने दिल लगा के सजाया है चर्चा मंच।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत बढ़िया लिंक्स, सार्थक चर्चा प्रस्तुति के लिए आभार!

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर विशेष लिंक्स से सजी चर्चा शास्त्री जी आभार

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत ही बेहतरीन और अच्छी चर्चा....


    इंडिया दर्पण
    की ओर से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  8. आज के चर्चा मंच को सवारने के लिये शास्‍त्री जी का यून‍कि ब्‍लाग yunik.blogspot.com की तरफ से धन्‍यवाद है

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर और रोचक चर्चा....आभार

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  10. कई ऐसे लिंक थे जिन पार जाना न हो सका था।

    जवाब देंहटाएं
  11. .छा गए शाष्त्री जी ,एक बार फिर मन भा गए शाष्त्री जी .
    व्यापक कितना हो गया ,देखो चर्चा मंच ,
    कौन यहाँ पर पञ्च है कौन यहाँ सरपंच .
    कृपया यहाँ भी पधारें -
    ram ram bhai
    http://veerubhai1947.blogspot.in/
    रविवार, 20 मई 2012
    कब असरकारी सिद्ध होता है एंटी -बायटिक : ये है बोम्बे मेरी जान (तीसरा भाग ):

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  12. बहुत सारे पठनीय लिंक विस्तृत चर्चा के साथ !
    आभार !

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  13. दोस्तों खेद है कि किसी कारणवश हम आज इस चर्चामंच की संगत में पधारे है...
    शास्त्रीजी का तहे दिल से शुक्रिया जो हमारी पोस्ट को चर्चा मंच में जगह दी...वाकई बहुत ही साहित्यिक चर्चा है...बाकी लिंक्स पढ़कर मन बाग़-बाग़ सा हो गया है

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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