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सोमवार, मई 14, 2012

मंदी के इस दौर में, सेक्स कोर्स प्रारंभ : चर्चामंच-879


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11/05/2012

शुक्रवार की चर्चा का व्यू-काउंट 200 पार हुआ ।
पाठक-गण !!
चर्चामंच आपका आभार व्यक्त करता है ।।
परन्तु रिकार्ड 412 का है-
गुरु-जी के नाम  
"सच्चाई का दमन" (चर्चा मंच-835)चर्चाकारःडॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
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31/03/2012
कुछ और अधिकतम व्यू काउंट वाले लिंक -

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05/04/2012

हम सांझ बन जाएंगे..... चर्चा मंच 817चर्चाकार : अतुल श्रीवास्‍तव
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13/03/2012


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04/03/2012

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29/02/2012



मंदी के इस दौर में, सेक्स कोर्स प्रारंभ ।
वेलेंसिया स्पेन में, पागल मानव दंभ ।

पागल मानव दंभ, होय एडमिशन लागे ।
वेश्यावृत्ति सीख, भाग्य निज छलें अभागे ।

माता-पुत्र दलाल, पिता पुत्री छल-छंदी ।
निकृष्ट भौतिक सोच, दूर करते हैं मंदी ।।

कोना मदर डे हैप्पी ?

जगदानंद झा 'मनु'   अपन गाम अपन बात  
आब केहन जमाना आबि गेल बर्ख में एक्के दिन माय कए यादि करै छी, 'मदर डे' कए नाम पर माय कए याद करै छी की हुनक सुखएल घा कए काठी कय क' जगाबै छी | हम बिसैर गेलहुँ अपन माय कए मुदा ओ नहि बिसरली, जाहिखन हुनका भेटलैन्ह सुन्दर कार्ड 'हैप्पी मदर डे' लिखल भेलैन्ह करेजा तार-तार नोर टघैर क' अपन स्पर्श सँ गाल कए छुबैत हुनक करेजा तक चलि गेल आ करेजा में बंद महामाय कए कोंढ़ सँ सोनित में डुबल शव्द निकलल आह! की ई हमर ओहे लाल ? जेकरा पोसलौं खून सँ पाललहुँ अपन दूध सँ अपने सुतलहुँ भिजल में ओकरा लगेलहुँ करेज सँ | आई चारि बर्ख सँ भेटल नहि रहि रहल अछि परदेश 

यूरेका

जो नंगा है , वही चंगा है .....

[image%255B2%255D.png]
नंगा होने का सुख नंगा ही जान पायेगा. वस्तुत: नंगई एक नैसर्गिक गुण है जो अर्जित भी की जा सकती है और विरासत में भी मिल सकती है. नंगई के लिए आवश्यक संसाधन है माँ-बहन की गालियाँ.  . राजनीति, ठेकेदारी, भाईगिरी, उठाईगिरी आदि. प्रथम दो क्षेत्रों (राजनीति, ठेकेदारी) में यह थोड़े परिमार्जित रूप में परिलक्षित होती है पर अन्य दो क्षेत्रों (भाईगिरी, उठाईगिरी) में यह अपने नैसर्गिक रूप में ही कारगर है.

मुद्दों की रुपहली फ़िल्म ना बन जाए ‘सत्यमेव जयते’

अनुराग मुस्कान का ब्लॉग..
  जहां किसी न्यूज़ चैनल का रिपोर्टर किसी भी ज्वलंत मुद्दे की रिपोर्टिंग करते हुए उस मुद्दे से जुड़े सवालों का जवाब संबंधित अधिकारी अथवा विभाग से लेने की ज़िद में थानों, चौकियों, जेलों, मंत्री निवासों और पीएमओ के बाहर भूखा-प्यासा डटा रहता है और अंततः जवाब लेकर ही दम लेता है, उन मुद्दों को लेकर आमिर इस शो के अंत में कहते हैं कि वो अमुक विषय से संबंधित अधिकारी को इस विषय में कार्यवाई करने के लिए चिट्ठी लिखेंगे। उनके इसी क्लोज़िंग नोट से शो की सार्थकता का आकलन किया जा सकता है। जहां दो अहम मुद्दों को लेकर अन्ना और रामदेव को सकड़ों पर निकलकर अनशन करके संघर्ष करना पड़ रहा है, वहां अगर आमिर की चिट्ठी काम कर जाए तो बात ही क्या है।

आप सबसे पहले तो माफ़ी चाहता हूं कि अमर वचन का सिलसिला मेरी व्यस्तता के चलते बीच में टूट गया था...डॉक्टर अमर कुमार के हमारे बीच से ​गए करीब नौ महीने हो गए हैं...लेकिन  इन नौ महीनों में मैंने रोज़ाना अपने दिवंगत  पिता को याद  किया तो डॉक्टर  साहब  ​रिफ्लेक्स   एक्शन की​तरह खुद-ब-खुद हमेशा मेरे ज़ेहन में आते रहे... टिप्पणियों  के रूप में उनके अनमोल शब्दों को अपने ब्लाग की मैं सबसे बड़ी धरोहर मानता हूं...

             

   

नमन माँ


तेरे संघर्षों को, 
तेरी घुटन को,

सुंदर दिखने की चाहत और आंतरिक दमक

सुंदर दिखने की चाहत को पूरा करने के लिए क्या-क्या नहीं किया जाता। शादी से पहले कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट कराने की बात कुछ दशक पहले तक विज्ञान कथाओं की फंतासी जैसी लगती थीं। अब ऐसा नहीं है। आधुनिक सौंदर्य चिकित्सा विज्ञान की कई नई खोजें अब देश में इलाज के तौर पर उपलब्ध हैं। चेहरे के छोटे से छोटे दाग़ या धब्बे को अब आसानी से हटाया जा सकता है। कोई यह नहीं जान पाता है कि रिसेप्शन के मौके पर मुस्कुराकर दोस्तों और रिश्तेदारों का स्वागत करने वाले इस दंपति ने चेहरे की दमक हासिल करने के लिए कौन सा कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट लिया है। चेहरे को और अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए किए जा रहे इस तरह के उपचार की .

इससे बेहतर है कि कार्टून बनाना-छापना बैन कर दीजिए

लगता है कुएं में भाँग पड़ी है। सन 1949 में बना एक कार्टून विवाद का विषय बन गया। संसद में हंगामा हो गया। सरकार ने माफी माँग ली। एनसीईआरटी की किताब बैन कर दी गई। किताब को स्वीकृति देने वाली समिति के विद्वान सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया। मानव संसाधन मंत्री ने कहा, '' मैंने एक और फैसला किया है कि जिस पुस्तक में भी इस तरह के कार्टून होंगे, उन्हें आगे वितरित नहीं किया जाएगा।'' बेहतर होता कि भारत सरकार कार्टून बनाने पर स्थायी रूप से रोक लगा दे। साथ ही हर तरह की पाठ्य पुस्तक पर हर तरह की आपत्तिजनक सामग्री हटाने की घोषणा कर दे। उसके बाद किताबों में कुछ पूर्ण विराम, अर्ध विराम, कुछ क्रियाएं और

भारत के महान वैज्ञानिक (Famous Indian Scientists - Popular Indian Scientists - Great Indian Scientists)

यह है मेरी सद्य प्रकाशित पुस्‍तक, जिसका विवरण निम्‍नानुसार है:    पुस्तक: भारत के महान वैज्ञानिक लेखक: डॉ. ज़ाकिर आली ‘रजनीश’ प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ पृष्ठ: 150 (पेपर बैक) मूल्य: 150/- पुस्‍तक में जिन भारतीय वैज्ञानिकों की जीवनी और उनके महत्‍वपूर्ण अवदानों को रेखांकित किया गया है, वे निम्‍नानुसार हैं: चरक (Charak) सुश्रुत (Shushrut) आर्यभट

लोग जो भी कहें, ब्लागजगत ने मेरी सोच ,अनुभव और ज्ञान को जो नए आयाम दिए हैं उसके लिए मन में कृतज्ञता के भाव ही उठते हैं ....मानव व्यवहार के कई अबूझ पहलुओं को नजदीक से जानने समझने का मौका दिया . कई मिथों को तोडा है और ऐसी सीखे दी हैं जो शेष जीवन के लिए बड़ी उपयोगी हैं .कितने ही नए चाहे दोस्त दिए हैं तो अनचाहे दुश्मन भी ...सहिष्णुता दी है ,सहने की क्षमता दी है ,अगले को सुनंने का धैर्य दिया है.नयी सीखे दी हैं और यह भी बताया है कि हमारी औकात की लक्ष्मण रेखाएं क्या हैं . मैं २००७ के आस पास अंतर्जाल से सक्रिय रूप से जुड़ा...अब दिन तारीख समय याद करने का काम कोई दूसरा कर रहा है तो काहे.

हाइगा

दिलबाग विर्क
बेसुरम्‌ -


इति हैप्पी मदर्स डे !

कही किसी छोटे से घर में नन्हे हाथों से बनाये कार्ड बगिया से तोड़ लिया गया एक फूल गुल्लक के पैसों से खरीदी चॉकलेट या माँ के बालों के लिए क्लचर गले में बाहें डाल कर गालों से गाल सटाकर गीली छाती से गर्वोंन्मत नन्हे मुन्नों को दुलारते निहाल हुई जायेगी कोई माँ ! ऐसे ही किसी और ख़ास दिन घर के किसी कोने से बाहर खींच लाई जाएगी कोई माँ! गलियारे से खटिया हटकर बैडरूम में सज जाएगी. नई सूती साडी में चश्मे के पीछे भीगी कोर से कुछ पल की ख़ुशी में ही पैरों में सिर झुकाते लोगों को देगी आशीष फूलों के गुलदस्ते होंगे हो सकता है मिठाई भी हो. मदर्स डे मनाने लोंग और भी तो आएंगे ! किसी.

फिर मैं कैसे अव्यक्त को व्यक्त कर सकती हूँ......

क्या बहती हवा बंध सकती है क्या खुशबू मुट्ठी मे कैद हो सकती है क्या धड़कन बिना दिल धड़क सकता है नहीं ना ...........तो फिर कहो तुम्हें कैसे शब्दों में बांधू .....माँ माँ ...........सिर्फ अहसास नहीं तो कैसे शब्दों में बंधे शब्दों की बंदिशों से परे हो तुम और मेरे शब्द भी चुक गए हैं नहीं बांध पा रही तुम्हें माँ हो ना ...........कौन बांध पाया है माँ को, उसके ममत्व को उसके त्याग को , उसके निस्वार्थ प्रेम को निस्वार्थ भावनाएं भी कभी शब्दों में बंधी हैं फिर मैं कैसे बांध सकती हूँ कैसे शब्दों में पिरो सकती हूँ चाहे जितना व्यक्त करने की कोशिश करूँ हाँ माँ ...........तुम हमेशा अव्यक्त...

माँ .....मातृ दिवस ...मुबारक हो 

जिस माँ ने, छोड़ा न तुझे 
दुखों और तकलीफों, में एक दिन 
उसी माँ के वास्ते, तुझ को मिला 
याद करने के लिए, साल में सिर्फ एक दिन

माँ का मकाम

'' मदर्स डे स्पेशल ''
 मकामो मर्तबा तुझ सा किसी का हो नही सकता , 
तेरे अहसान का बदला तो अदा हो नही सकता . 
जिसे गिरा दे तू एक बार अपनी नज़रों से , 
 पूरी दुनिया में कोई उसका सगा हो नही सकता. 
 

"हैप्पी मदर्स डे"

  "उल्लूक टाईम्स "
*गाय भी माता कहलाती है
सूखी हरी जैसी भी मिले घास
खा ही जाती है
दूध की नदियाँ बहाती है
दूध देना बंद करती है
 तुरंत कसाई को बेची जाती है
कुछ नहीं कहती है
चुपचाप चली जाती है
 इसी तरह कई प्रकार की
माँऎं संसार में पायी जाती हैं

माँ

  Kashish - My Poetry

नहीं महसूस  हुआ  तुम्हारा भार 
जब भी उठाया गोदी में,
पकड़े रही उंगलियां 
कहीं भटक न जाओ,
जब भी आये रोते 
लगा लिया कंधे से.

|| माँ ||

शिवम् मिश्रा
बुरा भला

बेसन की सौधी रोटी पर
खट्टी चटनी - जैसी माँ
याद आती है चौका - बासन
चिमटा , फुकनी - जैसी माँ ||

बान की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे
आधी सोयी आधी जागी
थकी दोपहरी - जैसी माँ ||

"माँ दुनिया की जननी-जाता" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')


ममता से जिसका है नाता।
वो ही कहलाती है माता।।

पाल-पोषकर हमें सँवारा,
माता से अस्तित्व हमारा,
सारा जग जिसके गुण गाता।
वो ही कहलाती है माता।।

मातृ दिवस पर सभी माताओं को हार्दिक नमन!

मेरे एक मित्र ने एक बार यह कथा सुनाई थी। वही क़िस्सा आज मातृदिवस के अवसर पर आपकी सेवा में प्रस्तुत है। *मातृ देवो भवः, पितृ देवो भवः, आचार्य देवो भवः, अतिथि देवो भवः॥* एक बार एक पहुँचे हुए सत्पुरुष ने सिनाई पर्वत पर ईश्वर का साक्षात्कार किया। ईश्वर ने उन्हें बताया कि अमुक स्थान में रहने वाला एक वधिक स्वर्ग में उनका साथी होगा। इस वार्ता के बाद वे सत्पुरुष अपनी पहचान गुप्त रखते हुए उस वधिक को मिले। अतिथि की सेवा करने के उद्देश्य से वह वधिक उन्हें अपने घर ले गया। घर पहुँचकर उन्हें बिठाकर कुछ देर इंतज़ार करने के लिये कहकर यजमान अपनी वृद्ध और जर्जर माँ के पास पहुँचा और उनके हाथ पाँव धो...

Chanakya,,,,,,, जब आत्मा के तार जुड़ जाएँ

*Chanakya*........ 
"जिससे  आत्मा के तार जुड़ जाते हैं , 
फिर उसे देखने के लिए आँखों की आवश्यकता नहीं पड़ती ...."
- *चाणक्य* 
* जेय माँ भारती जेय माँ भारती *
HAPPY MOTHER'S DAY 

होती क्या है टीके की दवा वैक्सीन ?

होती क्या है टीके की दवा वैक्सीन ?कैसे काम करती है और क्या कुछ खतरे भी हो सकतें हैं इसके इस्तेमाल से ? वैक्सीन या टीके की दवा एक जैविक नुस्खा है एक 'Biological preparation ' है .ख़ास बीमारियों से बचाव के लिए ख़ास टीके तैयार किये जाते हैं . यह व्यक्ति की रोग -प्रतिरोधन क्षमता इम्युनिटी को बढातें हैं . इनमे मौजूद रहता है एक सक्रिय क्रियाशील अभिकर्मक ,एक एक्टिव एजेंट यह बीमारी पैदा करने वाली सूक्ष्म जैविक आवयविक संगठन (सूक्ष्म जीव ,रोगकारक ) Microorganism का ही प्रति रूप होता है .अकसर यह रोग पैदा करने वाले माइक्रोब्स के कमज़ोर रूप(weakened form) या मृत रूप(killed form ) से ही तैयार क..

प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच -BHRAMAR KA DARD AUR DA

ओ माँ ओ माँ ..प्रेम सुधा रस प्राण-दायिनी जान हमारी "माई" है



प्रेम सुधा रस प्राण-दायिनी जान हमारी "माई" है 
ओ माँ ओ माँ ...........
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मै अनभिज्ञं  रहा था कुछ दिन नाल तुम्हारे लटका 
अंधकार था सोया संग -संग साथ तुम्हारे भटका 
चक्षु हमारे भले बंद थे -साथ रहा हंसता रोता 
तेरा सहारा -भोजन ले मै -खून भी लेकर पला -बढ़ा 
तेरे दुर्दिन -कड़े परिश्रम -आह-आह तेरा करना 
दोल रहा था साक्षी बन मै मन ही मन रोया करता 

चटनी का स्वाद

गांधी जी बोले, “आपको भी चटनी चाहिए?” उन्होंने एक चम्मच चटनी महाराजा की थाली में डाल दी। महाराज ने स्वाद लेने की अधीरता में ढेर सारी चटनी एक बार में ही मुंह में भर लिया। मुंह में चटनी के जाते ही उनके मुंह का स्वाद बिगड़ने लगा। उन्हें अब न तो निगलते बन रहा था और न ही उगलते। उन्होंने पूछा, “बापू ये चटनी तो बहुत कड़वी है। नीम की है क्या?”
बापू ने कहा, “हां, नीम की ही है। मैं तो सालों से इसे खा रहा हूं। आप भि अगर अपने मुंह का स्वाद नहीं बदलेंगे, तो आन्दोलन के कष्ट को कैसे भोग सकेंगे।”

कोढ़ियों के मिस्ल होगा यह समाज

ज़ुल्मो-सितम को ख़ाक करने के लिए,
लाज़िमी है कुछ हवा की जाय और।
उस लपट की ज़द में तो आएगा ही;
बाबा या नाती या चाहे कोई और।।

एक जब फुंसी हुई ग़ाफ़िल थे हम,
शोर करने से नहीं अब फ़ाइदा।
अब दवा ऐसी हो के पक जाय ज़ल्द;
बस यही है इक कुदरती क़ाइदा।।
                                                   -ग़ाफ़िल


26 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर चर्चा! कुछ कड़ियाँ पढ लीं कुछ अभी पढी जायेंगी। आभार!

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  2. बहु आयामी विचारों भरी चर्चा ,विशेष रूप से मात्री-दिवस पर उमड़ता प्यार ,सराहनीय है .......देर आये दुरुस्त आये ....शुभकामनायें

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  3. बहुआयामी, चहकती-महकती चर्चा करने के लिए रविकर जी आपका आभार!

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  4. चर्चामंच को आकर
    देखने वाले कितने थे
    देख कर आये हैं
    टिप्पणी लिखने वालों
    को भी गिन लाये हैं
    चर्चाँमंच की सांख्यिकी
    आज हमें पढा़ये हैं
    रोज का काम पर
    नहीं भूल पाये हैं
    सुंदर सुंदर लिंको
    की पिटारी साथ
    जरूर दिखाये है
    रविकर तेरे
    आभारी हैं हम
    हमारा लिंक भी
    जब आप उठाये हैं ।

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  5. बहुत अच्छे लिंक हैं, चर्चा मंच का स्तर उतरोत्तर बढ़ता रहा है. धन्यवाद.

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  6. इन दिनों व्यस्तता की वजह से कई ब्लॉगों पर जाना संभव नहीं हो पाता। ऐसे में,ऐसी चर्चा ही काम आती है।

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  7. पढ़ने, पढ़वाने का क्रम नित बढ़ता रहे, सुन्दर सूत्र..

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  8. बहुत ही अच्‍छे लिंक्‍स का चयन किया है आपने ...आभार ।

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  9. सुन्दर लिंक्स...रोचक चर्चा...आभार

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  10. badi acchi link hai aj.poora charchamanch ma ko samrpit ..bahut accha laga padhkar

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  11. बहुत बढ़िया लिंक्स..
    सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
    आभार!

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  12. बहुत सुन्दर
    समग्र चर्चा

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  13. बहुत ही व्यापक कलेवर वाली चर्चा आई है ,

    हर तरफ माँ छा आई है ,
    आज बचपन की याद आई है .

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  14. बहुत ही व्यापक कलेवर वाली चर्चा आई है ,

    हर तरफ माँ छा आई है ,
    आज बचपन की याद आई है .

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  15. आसमानी आलम है मुहब्बत है आजमाइश की खुशबू भी..
    लगता है 'चर्चा' ने जियारत सा सुकून पाया है....!
    आप सभी कलमकारों को आदाब, और 'गाफिल' साहब को मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए अतिरिक्त शुक्रिया भी!

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  16. मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार !

    जवाब देंहटाएं

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