हे अंध निशा, गूंगी-बहरी !
प्रतुल वशिष्ठ
दर्शन-प्राशन
दर्शन-प्राशन
हे अंध निशा, गूंगी-बहरी !
मत देखों निज पीड़ा गहरी.
तेरी दृष्टि पड़ते ही खिल
उठती है हिय में रत-लहरी.
न बोलो तुम, मृदु हास करो
चन्दा किरणों सह रास करो
तुम सन्नाटे के साँय-साँय
शब्दों पर मत विश्वास करो.
हे मंद-मंद चलने वाली,
तम-पद-चिह्नों की अनुगामी !
पौं फटने से पहले जल्दी
प्रिय-तम से मिल लेना, कामी !
जला श्मशान में भीषण, खड़े खुश हाथ वो सेंके-रही है दोस्ती उनसे, गुजारे हैं हंसीं-लम्हे उन्हें हरदम बुरा लगता, कभी जो रास्ता छेंके || सदा निर्द्वंद घूमें वे, खुला था आसमां सर पर धरा पर पैर न पड़ते, मिले आखिर छुरा लेके || चीनी कडुवी होय, कहाँ अब प्रेम-सेवइयां -"कड़वी चीनी"
Sushil
"उल्लूक टाईम्स "
नमक खाय के भी करें, लुच्चे हमें हलाल ।
घूस खाय के ख़ास-जन, खूब बजावें गाल ।
खूब बजावें गाल, चाल टेढ़ी ही चलते।
आम रसीले चूस, भद्र-जनता को छलते ।
कडुआहट भरपूर, भरें जीवन में भैया ।
चीनी कडुवी होय, कहाँ अब प्रेम-सेवइयां ।।
रोजगार गहरे जुड़े, हिन्दी का व्यवहार |
जार जार बेजार हो, हिंदी बिन बाजार | हिंदी बिन बाजार, अर्थ भी जब जुड़ जाता | रहा विरोधी घोर, शीश खुद चला नवाता |
हिंदी तन मन प्राण, राष्ट्र की मंगल-रेखा |
तुलसी सूर कबीर, प्रेम जय देवी देखा ।।
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जो मेरा मन कहे
लिखे हुए अक्षर कभी नहीं मिटते पर आज जब देखा गले हुए पन्नों वाली एक पुरानी किताब को |
जाग उठा मुर्दा
लंदन। मिस्र में एक व्यक्ति के अंतिम संस्कार में रोते हुए लोग
खुशी से नाच उठे जब वह व्यक्ति अपने ही अंतिम संस्कार के दौरान अचानक से
जिंदा होकर उठ बैठा।
इस समय इकट्ठे हुए लोगों ने भी संस्कार समारोह को रद्द करने के बजाय मिलकर
अपने पारिवारिक सदस्य के फिर से जी उठने का जश्न मनाया।
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तीन बातें
चिड़िया फुदक कर उस शिकारी के बाएं हाथ
पर बैठ गई और पहली बात बताते हुए बोली ,'ऐसी बात पर विश्वास मत करना जो
असम्भव हो . फिर बात चाहे कोई भी हो .'
इसके बाद तुरंत चिड़िया फुदक कर दीवार पर जा बैठी और दूसरी बात बताते हुए
बोली 'कोई चीज तुम्हारे हाथ से निकल जाए , तो फिर पछताने की जरुरत नहीं .'
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माना कि धरातल ..उन्नयन (UNNAYANA)माना कि धरातल ये समतल नहीं है , सागर भी है , सिर्फ मरुस्थल नहीं है कहीं शाम ढलती कहीं पर सवेरा , प्रभाकर कहीं , चाँद डाले है डेरा कहीं नींद में पुष्प, कहीं मुस्कराए , कहीं नीड़ में खग , कहीं नभ को घेरा |
मुकेश पाण्डेय "चन्दन"जिन्दगी की पहली डगर होती है माँ
जिन्दगी की पहली डगर होती है माँ
| चाहत
आमिर दुबई मोहब्बत नामा
भूलकर तुझको ना भुला आज तक भी दिल कभी,
दूर तक चलता रहा पर ना मिली मंजिल कभी। मै तेरी राहों को आँखों में छुपा कर चल दिया , तू पलटकर देख इन राहों में आके मिल कभी। |
कांकेर से जगदलपुर के मार्ग पर ...कौशलेन्द्रबस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना...
इनकी भाषा बाँची जिसने, ईश्वर के वह निकट हुआ है।
सखा वृक्ष हैं, सखी प्रकृति है, रिश्ता ये ही अमर हुआ है॥
भंग भयो ध्यान, अंग गदरायो देख,
तपती दुपहरिया पथिक भरमायो है।
पात-पात रक्षक बन खूब डरवायो किंतु,
मिली, नत नयन कर पथिक जो आयो है॥
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संस्कारों की हथेली पर ....!!!SADAमैं सोचती रही शब्दों की विरासत मिली थी तुम्हें या आत्ममंथन ने की थी रचना शब्दों की जब भी तुम भावनाओं के दीप प्रज्जवलित करती तो उनकी रोशनी से जगमगा उठती मंदिर की मूर्तियाँ ईश वंदना में झुके हुए शीष घंटे की ध्वनि से |
जो बनते हैं सहारा
लोगों के देते हैं हिम्मत होंसला उनको रोते से हंसाते हैं उनको बांटते हैं मुस्कान ज़माने को उन्हें खुद का ख्याल नहीं अकेले अँधेरे कमरे में रोते हैं | अफ़ज़ाल अहमद सैयद की कवितामनोज पटेल
हर रोज़ नए लिबास में
अपनी खूबसूरत आँखों को
एक नई ज़बान सिखाने के लिए
तुम्हारी झुकी हुई गर्दन
और शाने के दरमियान
मुझे अपने दिल के लिए
एक नया शिकंजा मिल जाता है
खिड़की से बाहर देखते हुए
तुम्हारी आँखें
मेरे चेहरे पर ठहर जाती हैं
| तुम गये नहीं अब तक!my dreams 'n' expressions.....याने मेरे दिल से सीधा कनेक्शन. पुराने किसी गीत को सुन कर
कहीं खो जाना...
किसी फूल के खिलने पर
यूँ ही मुस्कुराना...
बारिश में भिगो के पलकें
अश्कों को छिपाना...
बेमौके ही तक-तक,आईना
आँखों में काजल सजाना...
किसी भीनी सी आती खुशबू पर
चौंक कर पलट जाना....
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श्री राम ने सिया को त्याग दिया ?''-एक भ्रान्ति
हे प्रिय ! सुनो इन महलो में
अब और नहीं मैं रह सकती ; महारानी पद पर रह आसीन जन जन का क्षोभ न सह सकती .
एक गुप्तचरी को भेजा था
वो समाचार ये लाई है ''सीता '' स्वीकार नहीं जन को
घर रावण के रह आई है .
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यूँ ही जिए जाता हूँ
Asha Saxena
Akanksha
Akanksha
दरकते रिश्तों का
कटु अनुभव ऐसा
हो कर मजबूर
उन्हें साथ लिए फिरता हूँ
है केवल एक दिखावा
दिन के उजाले में
अमावस्या की रात का
आभास लिए फिरता हूँ
|
क्षणिकाएँ
बेझिझक बोलों के अब
पोल खुले ही रहते हैं
जिसपर बेमानी बुद्धिवाद
चिथड़ों में सजे रहते हैं .
बबूला भी बलबलाकर
बड़ा होने में ही फूटता है
पर इन्द्रधनुषी इठलाहटों का
कोई भ्रम कहाँ टूटता है .
पोल खुले ही रहते हैं
जिसपर बेमानी बुद्धिवाद
चिथड़ों में सजे रहते हैं .
बबूला भी बलबलाकर
बड़ा होने में ही फूटता है
पर इन्द्रधनुषी इठलाहटों का
कोई भ्रम कहाँ टूटता है .
....ताकि ज़हर न बने शहद
कुमार राधारमण
स्वास्थ्य - चाय, कॉफी में शहद का उपयोग नहीं करना चाहिए। शहद का इनके साथ सेवन जहर के समान काम करता है।
- अमरूद, गन्ना, अंगूर, खट्टे फलों के साथ शहद अमृत है।
- इसे आग पर कभी न तपायें।
- मांस, मछली के साथ शहद का सेवन जहर के समान है।
कैसे करता है हिफाज़त नवजात की माँ का दूध
veerubhai
ram ram bhai कौतुक का विषय यह जान लेना था कि नवजात की आँतों का विकास कैसे होता है और इन यौगिकों की इसके विकास में भूमिका क्या रहती है .उन शिशुओं के मामले में जिनका पोषण स्तन पान से ही होता है .ऐसा इसलिए क्योंकि फार्मूला मिल्क पर पलने वाले शिशुओं की आँतों में जुदा किस्म के जीवाणु मिलते हैं . |
धरती की कोख से फूटता अक्षय अंकुर
मधुमय कोष का प्रतीक ,पर जीवन क्षणभंगुर । अथ के साथ रचा इति ,क्या मोह ,क्या विरक्ति अंतश्चेतना जो प्रदीप्त होता ,क्यूँ पालता कोई आसक्ति । |
लेखक या ब्लॉगर होने के नाते !
संतोष त्रिवेदी
बैसवारी baiswari अकसर ऐसा क्यों होता है कि हम समाज या मौज-मजे के लिए लिखते-लिखते व्यक्तिगत आक्षेपों या तुच्छ बहसों में आकर उलझ जाते हैं ? यह ऐसी संक्रामक बीमारी है कि हम इससे अछूते नहीं रह सकते.चाहे बड़े लेखक हुए हों,कवि या आज के ब्लॉगर ,सभी कभी न कभी इस अवस्था से दो-चार होते हैं. |
अहंकारहर किसी को अहंकार से ग्रस्त देखा- किसी को अपने रूप का, किसी को अपनी बुद्धि का, किसी को अपनी शिक्षा का, किसी की इस बात का की मैंने बहुत सी किताबें पढ़ रखी हैं और इतिहास का बहुत बड़ा ज्ञानी हूँ। रावण हो अथवा परशुराम, विश्वामित्र हों अथवा त्रिशंकु, सभी इस दुर्गुण के शिकार होते हैं। फिर हम लोग कौन होते हैं भला। इससे. |
रूहों को जिस्म रोज कहाँ मिलते हैं......... |
दिल मान जाता हैतुम्हारी आंखें बहुत खूबसूरत हैं। उनमें कोई भी खो सकता है। तुम्हारी मासूमियत का मैं कायल हूं। चश्मों में तुम बिल्कुल बुरी नहीं लगतीं। पता नहीं तुम्हें यह सब उतना सहज लगता भी है। |
बस जीना भर हैAnita
मन पाए विश्राम जहाँ
बरस ही रहा है
बस भीगना भर है
सूरज उगा ही है
नजर से देखना भर है
शमा जली है
बस बैठना भर है
धारा बह रही है
अंजुरी भर ओक से पीना भर है |
कविताओं के मन से....!!!!
अक्सर सोचता हूँ ,
रिश्ते क्यों जम जाते है ;
बर्फ की तरह !!!
एक ऐसी बर्फ ..
जो सोचने पर मजबूर कर दे..
एक ऐसी बर्फ...
जो जीवन को पत्थर बना दे......
एक ऐसी बर्फ ..
जो पिघलने से इनकार कर दे... |
श्रीमद्भगवद्गीता-भाव पद्यानुवाद (सातवीं-कड़ी)Kashish - My Poetryद्वितीय अध्याय (सांख्य योग - २.२९-३७) कुछ आश्चर्य सम देखें आत्मा, कुछ आश्चर्य सम वर्णन करते. करते श्रवण मान कुछ आश्चर्य, कथन श्रवण से कुछ न समझते. करती जो निवास सब तन में, नित्य,न उसका वध कर सकते. व्यर्थ सोचते हो सब के बारे में, उचित नहीं तुम शोक जो करते. |
"देश में हम जहर उगलते हैं" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आज खिले कल है मुरझाना
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)Mushayera
जीवन एक मुसाफिरखाना
जो आया है, उसको जाना
झूठी काया, झूठी छाया
माया में मत मन भरमाना
सुख के सपने रिश्ते-नाते
बहुत कठिन है इन्हें निभाना
जो आया है, उसको जाना
झूठी काया, झूठी छाया
माया में मत मन भरमाना
सुख के सपने रिश्ते-नाते
बहुत कठिन है इन्हें निभाना
बहुत दिनों बाद ब्लॉग पर आने का मौका मिला, चर्चा मंच के सार्थक विषयों पर लिंक पढ़ कर मन खुश हो गया..इस के लिए आप को बहुत बहुत आभार !
जवाब देंहटाएंरोज की तरह
जवाब देंहटाएंरविकर की
चटपटी चर्चा
उसके अपने
बनाये नमक
मिर्च के साथ
स्वादिष्ट यम्म्म्म्म्मी !!!
आभार कड़वी चीनी भी मिलाने के लिये ।
रविकर जी!
जवाब देंहटाएंआप बहुत परिश्रम करते हैं।
चर्चा को दमदार रूप से पेश करहने के लिए आपका आभार!
बहुत अच्छा संयोजन. मेरी कविता को शामिल करने के लिए शुक्रिया .
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत चर्चा के लिए साधुवाद जी / आपकी लगन व निष्ठा को भी ......
जवाब देंहटाएंवाह! एक से बढ़कर एक लिंक्स... बढ़िया चर्चा रही!
जवाब देंहटाएं...फिर से चर्चामंच ने कमाल किया,
जवाब देंहटाएंमुझ सहित कइयों को निहाल किया !
आभार आपका !
आज का चर्चा मंच बहुरंगी है |रविकर जी मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत ही अच्छे लिंक्स चयनित किये हैं आपने ..आभार ।
जवाब देंहटाएंइतनी सुन्दर और विस्तृत चर्चा दिनेश रविकर जी बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंकाफी कुछ मिला पढ़ने को.
जवाब देंहटाएंसार्थक लिंक्स से सुशोभित रोचक चर्चा...आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स .
जवाब देंहटाएंsundar links sanyojan ! meri kavita shamil karne ke liye aabhar ravikar ji !
जवाब देंहटाएंअच्छे चयन, अच्छा संकलन... शुक्रिया रविकर जी!!
जवाब देंहटाएंब्लाग पोस्टों की चर्चा प्रभावी है काफी अच्छे लिंक मिले.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चाहमेशा कि तरह , आभार ...
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया लिंक्स्……सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंरविकर जी , हमेशा की तरह रोचक चर्चा..आपको बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा प्रस्तुति
आभार!
रविकर कितना रंग ज़माया ,
जवाब देंहटाएंचर्चा में क्या भंग मिलाया .
रविकर कितना रंग ज़माया ,
जवाब देंहटाएंचर्चा में क्या भंग मिलाया .
बेहतरीन चिट्ठा चर्चा में कई पठनीय लिंक मिले ...
जवाब देंहटाएंआभार !
आपका शुक्रिया बहुत बहुत .
जवाब देंहटाएंमोहब्बत नामा
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा है आज के चर्चा मंच पर ,
पढ़ कर दिल खुश हो गया वाह ''रविकर ''