"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता अंक -१४
"चित्र से काव्य तक प्रतियोगिता अंक-१४"
में सम्मिलित सभी छंद एक साथ |
श्री संजय मिश्र ‘हबीब’
दोहे
ऊपर बैठा वह कहीं, थामे सबकी डोर।
पुतले सारे चल पड़े, वो चाहे जिस ओर।
बाल रूप धरकर करे, लीला अपरमपार।
नन्हें नन्हें हाथ में, लिए जगत का सार।
श्रीमती राजेश कुमारी जी
दोहे
(1)
नन्हीं सी कठपुतलियाँ ,बालक को ललचाय
देख के दो दो गुड्डे , सोते से जग जाय
(2)
कपड़े की कठपुतलियाँ देख- देख ललचाय
राजा- रानी की छबी ,आँखों में बस जाय
श्री दिलबाग विर्क
कुंडलिया
कठपुतली-सा आदमी, नचा रहा भगवान
जो समझ न पाया इसे , दुखी वही इंसान |
दुखी वही इंसान , करे है चिंता फल की
कर्म हमारे हाथ , बात ना हमने समझी |
खुदा के हाथ डोर , वही ताकत असली
करना उसका ध्यान , सभी उसकी कठपुतली |
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श्री राजेंद्र स्वर्णकार
हरिगीतिका छंद
पुतली कभी हूं , आदमी हूं , मैं कभी भगवान हूं !
क्या भेद है ? क्या अर्थ है ? मैं सोच कर हैरान हूं !
इक रोज़ कठपुतली बनूं मैं , एक दिन इंसान हूं !
उसकी कृपा से नाचता मैं , अन्यथा बेजान हूं !
श्री अविनाश एस० बागडे
दोहे...
आँखों की ये पुतलियाँ,थम जाती है आज.
कठपुतली क़े खेल का ,देख सुखद अंदाज़.
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हाँथ लिए कठ-पुतलियाँ,सोच रहा ये बाल.
हम भी ऐसे ही जिसे,नचा रहा है काल!!
श्री अरुण कुमार निगम
कुण्डलिया छंद
जिज्ञासा यह बाल मन ,कठपुतली निर्जीव कैसे नाचे मंच पर , अभिनय करे सजीव अभिनय करे सजीव , लगाए लटके ठुमके पग पैंजन झंकार , झमाझम झमके झुमके कहे अरुण कविराय , जिन्दगी खेल तमासा लेकिन मुश्किल काम,शांत करना जिज्ञासा . |
कठपुतली बन नाचते, मीरा मोहन-मोर |
दस जन, पथ पर डोलते, करके ढीली डोर ||
कौतुहल वश ताकता, बबलू मन हैरान |
*मुटरी में हैं क्या रखे, ये बौने इन्सान ??
*पोटली
बौने बौने *वटु बने, **पटु रानी अभिजात |
कौतुकता लख बाल की, भूप मंद मुस्कात ||
*बालक **चालाक
राजा रानी दूर के, राजपुताना आय |
चौखाने की शाल में, रानी मन लिपटाय ||
भूप उवाच-
कथ-री तू *कथरी सरिस, क्यूँ मानस में फ़ैल ?
चौखाने चौसठ लखत, मन शतरंजी मैल ||
*नागफनी / बिछौना
बबलू उवाच-
हमरा-हुलके बाल मन, कौतुक बेतुक जोड़ |
माया-मुटरी दे हमें, भाग दुशाला ओढ़ ||
------रविकर
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चाँद भी तेरे हुस्न का गर दीवाना हो जाये (जिन्दा ग़ज़ल)
हरीश जयपाल माली
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ज़रा सोचिए!चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
स्वस्थ मनोरंजन के लिए सर्वाधिक पसन्द किये जाने वाले स्थान के रूप में पुस्तकालयों का प्रथम स्थान था। पढ़ा-लिखा तबका अपना ज्यादातर समय पुस्तकालयों में ही गुज़ारता था। पुस्तकालयों से न केवल उसकी ज्ञान पिपशा शान्त होती थी अपितु समाज से सम्बन्धित समस्त सरोकारों की जानकारी पुस्तकालयों से ही प्राप्त होती थी। आज देखें तो हम अपेक्षाकृत अहुत विकसित हो चुके हैं हमारे पास इलेक्ट्रानिक मीडिया है जिसके द्वारा हम संसार भर की जानकारी पलक झपकते प्राप्त कर सकते हैं ई पुस्तकें उपलब्ध हैं जब चाहें तब पढ़ सकते हैं और वह हमारे स्टडी रूम तक आसानी से इलेक्ट्रनिक मीडिया द्वारा पहुंच सकती हैं। साथ ही अन्तर्जाल, दूरदर्शन आदि के द्वारा हम अपने कमरे में ही बैठकर सबकुछ जान समझ सकते हैं।
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गोपनीय जीव विज्ञान देगा सुराग येती के होने ,न ,होने का*गोपनीय जीव विज्ञान देगा सुराग येती के होने ,न ,होने का ****आइये पहले समझें क्या है गोपनीय जीव -विज्ञान (क्रिप्टो -जू -ओ -लाजी ,Cryptozoology).****ऐसे पशुओं का अन्वेषण जो मिथ बने हैं यथार्थ में हैं भी या नहीं कोई नहीं जानता .अलबत्ता किस्से कहानी बहुत हैं लेकिन पुष्ट अभी तक कुछ नहीं हो सका है .****इसे Loch Ness monster भी कहा जाता है .पौराणिक या फिर सुप्रसिद्ध नामचीन ज़रूर कहा जा सकता है इस अनोखे जीव या आदमी नुमा दैत्य को .कोई इसके पदचिन्हों के देखे जाने के वृत्तांत प्रस्तुत करता है कोई बालों के गुच्छ मिलने का दावा करता है किससे कहानियां बयान करता है इससे जुडी हुई |
दाढ़ी बैठ खुजाय, अर्थ का शास्त्री मोहन
आग लगा मोहन गए, लपटें उठती उद्ध ।
लपटें उठती उद्ध, जला पेट्रोल छिड़ककर ।
होती जनता क्रुद्ध, उखाड़ेगी क्या रविकर ।
बड़े कमीशन-खोर, चोर को हलुवा सोहन ।
दाढ़ी बैठ खुजाय, अर्थ का शास्त्री मोहन ।।
| ढूँढ़ सके अस्तित्व, बिता के दस दिन छुट्टी-चल मन ....लौट चलें अपने गाँव
छुट्टी का हक़ है सखी, चौबिस घंटा काम |
रविकर मइके जाय, पिए जो माँ की घुट्टी |बच्चे पती बुजुर्ग की, सेवा में हो शाम | सेवा में हो शाम, नहीं सी. एल. ना इ. एल. | जब केवल सिक लीव, जाय ना जीवन जीयल | ढूँढ़ सके अस्तित्व, बिता के दस दिन छुट्टी || |
सुनहरा कल,,,,,dheerendraकाव्यान्जलि सड़क तट पर लिखे हुए अनगिनत नारे हम एक अरसे से पढ़ रहे है, उनमे से एक 'हम सुनहरे कल की ओर बढ़ रहे है'! |
मैंने तो बस यूँ ही
prritiy---------sneh
PRRITIY .... प्रीति
तुम मुझे कोई जवाब न देना
अपने भाव शब्दों में ना ढालना
प्रश्नों के जाल में उलझे हुए हो
सच की सच्चाई से डरे हुए हो
क्या, कैसे हुआ, सोच सब बंद है
दिल दिमाग में चल रहा द्वंद्व है
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जुग जुग जीयो बेटियोंsudha prajapti
स्कूल जाते हुए
हम जब बनती संवरती
दादी देख-देख गुस्साती
ये रांडे बन संवर के
किधर जाएगीं?
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तुम कहते थे ना !!
सुमन कपूर 'मीत'
तुम कहते थे ना ! ये जिंदगी की बाहें मेरे अथाह प्यार को नहीं समेट पाएंगी .....आज देखो ना ! वही बाहें ताक रही हैं मुझे देख तन्हा अजनबी की तरह .....!!सु-मन
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मज़बूत मांसपेशियों के लिए योग
कुमार राधारमण
भागदौड़ तथा तनाव भरी जीवन शैली ने हमारे शरीर के जिस तंत्र को सबसे अधिक प्रभावित किया है वह है नाड़ी तंत्र। इसकी कमजोरी से हमारी सोचने की शक्ति, मस्तिष्क, हृदय, शारीरिक ताप, पाचन तंत्र, किडनी, वजन बढ़ने लगता है। योग के नियमित अभ्यास से व्यक्ति जीवन शैली के खतरों से बच सकता है। इसके अभ्यास से व्यक्ति मन एवं भावनाओं पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित कर सभी रोगों का सहजता से निदान कर लेता है। स्वास्थ्य |
मैं नारी
Maheshwari kaneri
अभिव्यंजना
मैं नारी,
कभी अबला कभी सबला,
कभी शक्ति स्वरुपा, कभी बेचारी
मैं नारी,
कभी माँ ,कभी बेटी बहन ,
कभी सहचरी बन ,रिश्ते निभाती
मैं नारी, |
कभी रास्ते में उसे निहारा नही वरना वो तो कबसे खड़ा है वहीं.
!! पंखुडी !!
सिर पर अब भी आसमान की चादरपैरों तले टिकी है अब भी जमीनचल रही साँसें अभी तक हमारीकिसी ने तो इन सबको छीना नहीफिर क्यों कभी हो हम उदासक्या है? जो नही हमारे पासहमसे तो कभी भी रूठा नहीहमारा जो था अपना वो है वहीजिंदगी दी, जीने की वजह दीदिखा रहा रास्ता हर सफर मेंहमसे अधिक हमारी चिंता करे
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नहीं पांचवा साथ, सदा पूंजी-पति राक्षस"शिव का डमरू बन जाऊँगा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')चार देवता पक्ष के, नहीं पांचवा साथ । नहीं पांचवा साथ, सदा पूंजी-पति राक्षस ।
देता टांग अड़ाय, होय अच्छा बिल वापस ।
शंकर से फिर बोल, छुडाओ मारक राकेट ।
कटे गधे का शीश, ठीक हो शीर्ष कैबिनेट ।।
खुद को बांधा है शब्दों के दायरे में - - संजय भास्कर
संजय भास्कर at आदत...मुस्कुराने की -
बड़ा कठिन यह काम है , फिर भी साधूवाद | करे जो अपना आकलन , वही बड़ा उस्ताद | वही बड़ा उस्ताद, दाद देता है रविकर | रच ले तू विंदास, कुशल से चले सफ़र पर | मात-पिता आशीष, आपकी सुधी कामना | हो जावे परिपूर्ण, सत्य का करो सामना ||
"उल्लूक टाईम्स "
डाला सेल या दिल दिया, बीच घडी के डाल |
टाइम से आकर करे, इकदम नया बवाल | इकदम नया बवाल, पती सब खेले खाए | पा पत्नी से काम, काम में मगन सिधाए | रविकर नेक सलाह, डाल जा हेरिसन-ताला | कर ले यार विवाह, साज के भेजो डाला || अन्नाबाबा बोल गएपैग सिद्ध अंतिम हुआ, क्या षड्यंत्री रोल | क्या षड्यंत्री रोल, बरस सौ उनको जीना | टैक्स दिया न टोल, छोड़ क्यूँ गए काबीना | अब अंतिम सन्देश, सुनाते लास्ट तमन्ना | परिकल्पना में फर्स्ट, जरा रुक जाते अन्ना || भाभियाँAnita
मन पाए विश्राम जहाँ
भाभी माँ के हाथ की, पूरी साग अचार | स्नेहसिक्त पा भोग को, खाय मार चटकार | खाय मार चटकार, बड़ी बढ़िया है भाभी | बनी मूल आधार, सभी भैया की चाभी | मइके का यह प्रेम, पाइए हरदम जाके | माँ का स्वास्थ्य शिथिल, जाइए भाभी माँ के || मेरा मन
sangita
सहे वेदना मन सभी, बढ़िया ये उदगार | बढ़िया ये उदगार, बोझ मन भर मन धरते | यह जीवन संसार, कभी न पार उतरते | उत्सव का एहसास, कराये हरदम रविकर | मन ही सच्चा दोस्त, भरोसा मन का मनहर || "गॄहकाज"निवेदिता श्रीवास्तव
संकलन
मन्त्र-मुग्ध पढता गया, शब्द-अब्द नि:शब्द | काम घरेलू छोड़ दो, गिरा गिरा मन गद्द | गिरा गिरा मन गद्द , भला सुनने में लागे | लेकिन पति श्री पन्त, काम जब बाकी आगे | कैसे कोई नार, करे सपनों में विचरण | ख़तम करूंगी काम, काम का देखूं दर्पण || |
दिल्लीराजभाषा हिंदी
प्रस्तुत है दिनकरजी की हुंकार देती एक और रचना दिल्ली -
दिल्ली
यह कैसे चांदनी अमा के मलिन तमिस्त्र गगन में
कूक रही क्यों नियति व्यंग्य से इस गोधुली-लगन में ?
मरघट में तू साज रही दिल्ली ! कैसे श्रृंगार ?
यह बहार का स्वांग अरि, इस उजड़े हुए चमन में !
इस उजाड़, निर्जन खंडहर में,
छिन-भिन्न उजड़े इस घर में,
तुझे रूप सजने की सूझी
मेरे सत्यानाश प्रहर में ! |
१- परस्परविश्वास
२-संवादहीनता न रखें
३-एक दूसरेको जानें, ख्याल रखेंव हाथ बटाएं --
४-चिंता काकारण जानें -
५-उपहार दें -
६.प्रशंसाकरें-
८.अपनेस्वास्थ्य व सौन्दर्य का ध्यान रखें -
१०- समर्पणभाव
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Bitter talk , But real talk
अंतरंग क्षणों में, किसी पसंदीदा मजाक पर या किसी मर्द की बेवकूफी भरी रसिकता पर। वे जोर-जोर से हंसती हैं। इसीलिए लगता है कि वे हाथ से निकलती जा रही हैं, वे बगावत कर रही हैं। लेकिन मुझे तो लड़कियों का खिलखिला कर हंसना अच्छा लगता है, कानों में घंटी सी बजने लगती है।
तो पहला ज्ञान तो हम अपनी बेटियों को ही दे देते हैं- ये क्या लड़कों की तरह मुंह फाड़कर हंस रही हो? लड़कियों को बचपन से ही सिखाया जाता है- धीरे-धीरे हंसो। भीतर घर में जाकर हंसो। इतना जोर से मत हंसो कि उसकी आवाज सुनकर लोग पलट कर तुम्हें देखने लग जाएं।
लेकिन दूसरी तरफ मर्द कहीं भी ठहाके लगा सकते हैं। पहले घर की बैठक उनके हंसी-मजाक के लिए हुआ करती थी। वे हंसें तो उसकी आवाज भीतर तक जा सकती थी। लेकिन भीतर से जनानखाने से हंसी की आवाज बैठक तक बिल्कुल नहीं पहुंचनी चाहिए।
लेकिन दूसरी तरफ मर्द कहीं भी ठहाके लगा सकते हैं। पहले घर की बैठक उनके हंसी-मजाक के लिए हुआ करती थी। वे हंसें तो उसकी आवाज भीतर तक जा सकती थी। लेकिन भीतर से जनानखाने से हंसी की आवाज बैठक तक बिल्कुल नहीं पहुंचनी चाहिए।
"भारत माँ के राजदुलारे"(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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विक्की डोनर - एक शुभ संकेत
मनोज कुमार
***आंच-110* मनोज
*विक्की डोनर - एक शुभ संकेत *
** एक फिल्म का संवाद है कि लकडी भले ही जलकर राख हो जाए चूल्हे की गरमी देर तक बनी रहती है। हमारे ब्लॉग पर “आंच” की लकडियाँ (सर्वश्री परशुराम राय, हरीश गुप्त एवं करण समस्तीपुरी) फिलहाल (व्यक्तिगत कारणों से) भले ही ठंडी हो गयी हों “आंच” की गरमी बनी रहनी चाहिए। चूँकि फिल्मी संवाद से अपनी बात आरम्भ की है इसलिए सोचा कि आज यहां क्यों न एक फिल्म की चर्चा की जाए। इसी उद्देश्य से देखी फ़िल्म – *“**विक्की डोनर**”*। यह एक कॉमेडी फ़िल्म है, जो इंटरवल के बाद थोड़ी सीरियस होती है, लेकिन विषयान्तर कहीं नहीं होती है। न तो फ़िल्म कहीं से -----
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हर कदम पर इम्तिहान लेती है ज़िन्दगी
राज चौहान
हर कदम पर इम्तिहान लेती है ज़िन्दगी
हर वक़्त नया सदमा देती है ज़िन्दगी हम ज़िन्दगी से क्या शिकवा करे आप जैसे दोस्त भी तो देती है ज़िन्दगी !!-- राज चौहान |
दूसरी टोकरी की मालकिन को चरित्रहीन बताते हैं
कल दूसरी टोकरी केअंडों ने पहली के एकअंडे को फुसला लियाचरित्रवान अंडाचरित्रहीन कहलाये जानेवाले अंडों मे मिला लियाइधर का एक अंडा उधरके एक अंडे का रिश्तेदार भी बताया जाता हैपहली बार उसने चुराया थाइस बार ये वाला बदलाले जाता है
आमलेट बनाने वाले भीदो तरह के पाये जाते है
एक माँसाहारी दूसरेमाँस के पुजारी बताये जाते हैं
अंडा फोडों का हर बारइन्ही बातों पर झगडा़हो जाता है
ये झगड़ा करते रह जाते हैंइस बीच इनका अपना अंडा
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"कूलर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
(चित्र गूगल सर्च से साभार)
ठण्डी-ठण्डी हवा खिलाये।
इसी लिए कूलर कहलाये।।
जब जाड़ा कम हो जाता है।
होली का मौसम आता है।।
फिर चलतीं हैं गर्म हवाएँ।
यही हवाएँ लू कहलायें।।
तब यह बक्सा बड़े काम का।
सुख देता है परम धाम का।। |
सादर नमस्कार
प्रवास पर हूँ-लखनऊ 27 : दिल्ली 28 & 29 -उत्तरांचल-लखनऊ -झाँसी से 9 जून को धनबाद प्रस्थान ।
रविकर
0852139618509308955496
07499080188 (उ प)
अच्छे लिंकों के साथ विस्तृत चर्चा करने के लिए भाई रविकर जी का आभार!
जवाब देंहटाएंअच्छी लिंक्स दी है पढने में बहुत सी जानकारी हेतु |दोहे और हरिगीतिका अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंआशा
उल्लूक के दो दो अंडे
जवाब देंहटाएंदिख रहे हैं चर्चा में आज
रविकर को इसके लिये
बहुत बहुत धन्यवाद
काम की दूसरी चीज
दाम्पत्य के नुस्खे
नजर आते हैं
चलो हम मिलकर
इनको आजमाते हैं
एक दंपति को चलो एक
अनुक्रमाँक दे जाते हैं
परीक्षाफल जब आयेगा
सब एक दूसरे को भी
यहाँ पर बतायेंगे
जो पास हो जायेगा
उसकी मिठाई खायेंगे
फेल होने वाले को ढाँडस
सब मिल कर बंधायेंगे ।
बहुत शानदा प्रस्तुति आज के चर्चा मंच की खासकर हसनें के कारण असभ्य होती लडकिया आज के समाज का अटूट सत्य है
जवाब देंहटाएंतकनीकी जानकारीयो का ब्लाग
बेहतरीन विस्तृत चर्चा !
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक के साथ विस्तृत चर्चा करने के लिए रविकर जी का आभार!
जवाब देंहटाएंNice links.
जवाब देंहटाएंऔरत की हक़ीक़त Part 4 (प्रेम और वासना की रहस्यमय प...
http://auratkihaqiqat.blogspot.com/2012/05/part-4-dr-anwer-jamal.html
रविकर जी बहुत शानदार चर्चा मंच सजाया है ओ बी ओ का लिंक भी बहुत सुन्दरता से पेश किया हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया विस्त्रित चर्चा .....!!
जवाब देंहटाएंआभार ....मेरी रचना को स्थान दिया ...!!
बेहतरीन विस्तृत चर्चा !
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिये आभार,.....
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि,,,,,सुनहरा कल,,,,,
बहुत ही अच्छे लिंक्स संयोजित किये हैं आपने ..आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक संयोजन्।
जवाब देंहटाएंअच्छा प्रयास। सबके काम का।
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक के साथ विस्तृत चर्चा ....मेरी रचना को स्थान देने के लिए आप का आभार...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा ....... आभार !
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंविस्तृत रंग विरंगी चर्चा.
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर शामिल करने के लिये बहुत बहुत आभार....बेहतर लिंक्स, सुंदर चर्चा....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा...
जवाब देंहटाएंसादर आभार.
charcha manch fir se apne nikhar par hai. links bahut acchhe lage.
जवाब देंहटाएंrajbhasha se dinkarji ki meri post lene k liye aabhar.
सुकून से बैठकर पढ़ते हैं।
जवाब देंहटाएंकोई समंदर से कह दे ये चुपचाप...
जवाब देंहटाएंहम कश्ती में तूफ़ान के साथ उतरे है...
चर्चामंच की शानदार प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारे...बेशकीमती लिंक्स!
मेरी पोस्ट को शामिल करने के लिए तहे-दिल से शुक्रिया आपको.....
itne achhe links mein mujhe sthan dene ke liye abhaar.
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
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