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" ईश्वर खो गया है " - टिप्पणियों पर प्रतिवेदन..!ram ram bhai
udaya veer singh ने कहा…
इश्वर खोता नहीं ,संजोता है ,आत्म
निरीक्षण के आभाव में अपना वजूद कहीं और तलाश का कारण ही निर्णय व विवेक
को प्रभावित करता है / इश्वर है इसीलिए उसके न होने का प्रमाण पेश करते
हैं ,खो गया है तो पाना भी होगा ...... सुन्दर प्रकरण ...
è “इश्वर खोता नहीं , संजोता है ...”
| तीन-पांच में शाम, रात छत्तिस हो जाती-"इनविजिलेटर"
पाठ पढ़ाती पत्नियाँ, घरी घरी हर जाम |
बीबी हो गर शिक्षिका, घर में ही इक्जाम |
घर में ही इक्जाम, दृष्टि पैनी वो राखे |
गर्दन करदे जाम, जाम रविकर कस चाखे |
तीन-पांच में शाम, रात छत्तिस हो जाती | पति तेरह ना तीन, शिक्षिका पाठ पढ़ाती || |
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घर से बाहर निकलते समय धूप का चश्मा जरूर लगाएं। इससे धूप, धूल-मिट्टी से
तो आपकी आंखों की रक्षा होगी ही, बार-बार आंखों को छूने की भी जरूरत महसूस
नहीं होगी। धूप से रक्षा करने वाली कैप भी पहनना फायदेमंद रहेगा।
इस मौसम में आंखें शुष्क हो जाती हैं। उनमें खुजली या जलन जैसी समस्या आ
सकती है। आंखें लाल भी हो सकती हैं। आंखों को दो-तीन बार धोएं।
पानी खूब पीएं। रात में सोने से पहले आंखों को साफ पानी से धोएं, लेकिन
आंखों में पानी का छींटा न मारें, इससे नाजुक आंखों को नुकसान होता है।
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कवि की मृत्यु
जब गीतकार मर गया, चाँद रोने आया,
चांदनी मचलने लगी कफ़न
बन जाने को
मलयानिल ने शव को कन्धों पर उठा लिया,
वन ने भेजे चन्दन
श्री-खंड जलाने को !
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धीरज धरती का |
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आरोग्य समाचार
नीम्बू पानी ज्वर ग्रस्त व्यक्ति ,फ्ल्यू ग्रस्त व्यक्ति के इलाज़ में
प्रयुक्त हो सकता है ..यह बुखार को तोड़ने में यक्ति को ज्वर मुक्त करने में
मदद करता है क्योंकि इसके सेवन से पसीना ज्यादा आता है .और जब पसीना उड़ता
है काया से तब पसीने के अणु अपने संग शरीर से ताप भी ले उड़ते है .पसीने
के वाष्पीकृत होने से शरीर से गरमी बाहर निकल जाती है ठंडक पैदा होती है
ज्वर उतर जाता है सामान्य परास (नोर्मल रेंज )में आ जाता है .
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एक युवा कवि चाहिए जो लगभग ५५ का हो, जो भी उसने लिखा हो कोई समझ न पाया हो, चाहे पहले कुछ भी लिखा हो, पर अब क्षेत्रीयता विरोध अपनाया हो, साथ ही यह पक्का कर लेना वो यू.पी., बिहार का जाया हो, | ज़रुरत है हिंदी साहित्य के विकास के लिए....काव्य मंजूषाएक कवयित्री चाहिए,जिसका रंग गोरा, कद ५ फीट ३ इंच | और बायें गाल पर तिल हो, जिसने ख़ूब ख़ूबसूरती पाई हो, और अपनी हर कविता में मर्दों की, की धुनाई हो, ऐसा हो तो और अच्छा हो कि उसके हर लेख में नारी शक्ति की ही चर्चा हो, |
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लोकार्पण----बेंगलूर में डा श्याम गुप्त के उपन्यास 'इन्द्रधनुष ' का लोकार्पण ......
डा. श्याम गुप्त
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गीता संकेत 46
वह वैज्ञानिक कहता है-------
मैं ने वस्त्र का निर्माण किया था तन ढकनें के लिए
लेकिन
आज लोग इसका प्रयोग तन दिखानें के लिए कर रहे हैं,फिर तूं सोच मैं रोऊँ न तो
और क्या करूँ?
====ओम्======
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अभी तो तुमने सिर्फ शुक्ल पक्ष देखा हैअभी तो तुमने सिर्फ शुक्ल पक्ष देखा है उजाला पाक कहते है ना जिसमे सब हरा ही हरा नज़र आता है महबूब का हर रंग खूब नज़र आता है मगर अभी तुमने कृष्ण पक्ष तो देखा ही नहीं जिसमे अमावस भी आती है और चन्द्रमा की चाँदनी पर श्राप सी पड़ जाती है |
क्या देश में केवल संसद ही अपने काम को ठीक से अंजाम नहीं दे पा रही है ? कुछ सवाल पूछे जाएँ तो सभी को असहज होना ही पड़ेगा ? क्या समाज
की सेवा करने वाले एनजीओ पूरी निष्ठा से काम कर रहे हैं ? क्या देश के हर
विभाग में काम करने वाले कर्मचारी ठीक काम करने सही तरीके से लगे हुए हैं ?
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तब न कविता अधूरी होगी
शब्द सिक्कों की तरह
दिमाग में खन-खन बजें आप जेब में हाथ डाल कर मन-मन गिनें कुल कितने है ? कहाँ-कहाँ से बीने हैं ? |
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कांटे से ही कांटे को निकाला मैंने ….
जिस्म को बेइंतिहाँ उछाला मैंने
बिखरकर खुद को संभाला मैंने
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बेदर्द का दिया दर्द सह नहीं पाया
पत्थर का एक ‘वजूद’ ढाला मैंने
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हम भी बचपन में ननिहाल जाते थे। छोटे से गाँव में था हमारा ननिहाल। रेल के
सामान्य कोच में ही यात्रा होती थी, यह कोच भी खाली ही रहता था। चन्द
रूपयों में ही ननिहाल जा पहुंचते थे। स्टेशन से घर पैदल ही चले जाते थे,
रास्ते के खेतों को निहारते हुए। पूर्व में मायका आसपास ही हुआ करते थे,
100 कोस होने पर तो बहुत दूर की श्रेणी में आता था। लेकिन अब तो सारी
दुनिया ही एक गाँव में बदल गयी है तो दूरियां मायने नहीं रखती। लेकिन
यात्रा का सुख अब जद्दोजहद में बदल गया है। पहले साधन कम थे लेकिन सुलभ थे
और अब साधन खूब है फिर भी दुर्लभ है।
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भारतीय सिनेमा के 100 वर्ष पूरेखैय्याम ,ओ पी नैय्यर, शंकर औ जयकिशन
सी.
राम चंद पे हजारों जाँ - निसार
हैं.
कल्याण जी आनंद जी , जयदेव, चित्रगुप्त
हुस्न लाल भगत राम के भी तलबगार
हैं.
Untitled
जनकवि कोदूराम “दलित”ज्जन
संगत सज्जन के करो , सज्जन सूपा आय
दाना – दाना ला रखय , भूँसा देय उड़ाय
भूँसा देय उड़ाय , असल दाना ला
बाँटय
फुन-फुन के कनकी , कोंढ़ा,गोंटी सब छाँटय
छोड़ो तुम कुसंग , बन जाहू
अच्छा मनखे
सज्जन हितुवा आय, करो संगत सज्जन के. |
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इस तरह हर ग़म भुलाया कीजिये …हसरत जयपुरीडा. मेराज अहमद
समय-सृजन (samay-srijan)
इस तरह हर ग़म भुलाया कीजिये
रोज़ मैख़ाने में आया कीजिये
छोड़ भी दीजिये तकल्लुफ़ शेख़ जी
जब भी आयें पी के जाया कीजिये
ज़िंदगी भर फिर न उतेरेगा नशा
इन शराबों में नहाया कीजिये
ऐ हसीनों ये गुज़ारिश है मेरी
अपने हाथों से पिलाया कीजिये |
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रूप-अरूप
मगर लागू कहां जीवन में मेरे यह बात होती है जो पाया...गंवाया, सब मिले बिछड़ने के लिए हो जिसकी उजली सहर, कहां वैसी मेरी कोई रात होती है जब भी राहे-मंजिल को चले, कदम चौराहे पर ठिठके रहे मनचाहा आसमान पाने वालों में जरूर कोई खास बात होती है.. |
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बिस्मिल का यह शेर- "अजल से वे डरें जीने को जो अच्छा समझते हैं। मियाँ! हम चार दिन की जिन्दगी को क्या समझते हैं?" | BharatYogi.net * भारत योगी* अशफाक की इस कता के कितना करीब जान पडता है- "मौत एक बार जब आना है तो डरना क्या है! हम इसे खेल ही समझा किये मरना क्या है? वतन हमारा रहे शादकाम और आबाद, हमारा क्या है अगर हम रहे,रहे न रहे।।" मुल्क की माली हालत को खस्ता होता देखकर लिखी गयी बिस्मिल की ये पंक्तियाँ || | शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' की तरह अशफाक भी बहुत अच्छे शायर थे।"कभी तो कामयाबी पर मेरा हिन्दोस्ताँ होगा। रिहा सैय्याद के हाथों से अपना आशियाँ होगा।।" | बिस्मिल की एक बडी मशहूर गजल उम्मीदे-सुखन की ये पंक्तियाँ- अशफाक को बहुत पसन्द थीं। उन्होंने इसी बहर में सिर्फ एक ही शेर कहा था :- "बहुत ही जल्द टूटेंगी गुलामी की ये जंजीरें, किसी दिन देखना आजाद ये हिन्दोस्ताँ होगा।" |
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हम दुकान सजाते रहे और बाज़ार उठ गया,
chakresh singh
हम दुकान सजाते रहे और बाज़ार उठ गया,
कुछ सामान दिखाते रहे और खरीदार उठ गया ;
हाथ पकड़ के हमने उसे बिठाया बार बार,
हाथ झटक के वो मेरा, बार बार उठ गया ;
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जिसकी जैसी नज़र ....!!!शब्दो का अलाव मत जलाओ इनकी जलन से तुम्हारे मन की तपिश शीतलता में नहीं बदलेगी जो शब्द अधजले हैं उनके धुंए से दम घुट जाएगा भावनाओं को आंच पर जिस किसी ने भी रखा है उसकी तपिश से वह भी सुलग गया है भीतर ही भीतर |
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अमन का चमन ये वतन है हमारा।
नही दानवों का यहाँ है गुजारा।। खदेड़ा हैं गोरों को हमने यहाँ से, लहू दान करके बगीचा सँवारा। दरियादिली बुजदिली मत समझना,
समझदार बन कर समझना इशारा।
हिदायत हमारी है सीमा न लाँघो,
मिटा देंगे पल भर में भूगोल सारा।
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22 / A-F
Blog Weather Report - मौसम का हाल, मो सम की ज़ुबानीइक कंकड़ रख सड़क पर, एम् वी ठोकर मार | कितने फुट जाता खिसक, खेलें साथी चार | खेलें साथी चार, धार की महिमा गाते | मिलकर सारे यार, अधिकतम पांच बढाते | रविकर आता बाप, डांट कर उन्हें भगाता | खेल खेल में सात, फीट वह खुद सरकाता || कैंसर रोगसमूह से हिफाज़त करता है स्तन पान
देह सौष्ठव की तरफ, अधिक दे रही ध्यान ।
अमृत से महरूम है, वह नन्हीं सी जान ।
वह नन्हीं सी जान, मान ले मेरा कहना ।
स्तन-पान संतान, करे जो तेरा बहना ।
शिशू निरोगी होय, घटे कैंसर के खतरे ।
बाढ़े शाश्वत प्रेम, नहीं बीमारी पसरे ।|
6 Tips to say "I Am Sorry"भुक्खड़ को क्या चाहिए, बस बढ़िया पकवान | सॉरी तो क्या चीज है, ले लो सारी जान || तुम आ गये मोहनलीला कृष्णा की गजब , रानी-गोपी भक्त । पहुंचें प्रेम पुकार पर, बिना गँवाए वक्त ।। आपका खेल
प्रतुल वशिष्ठ at दर्शन-प्राशन
गैला पर जब तक चले, पहिया ऐ मनमीत ।गाडी फंसने से बचे, मिले अंत में जीत । मिले अंत में जीत, प्रीत की कविता गाओ ।
घूंसों से भयभीत, हुवे क्यूँ मीत बताओ ।
करता प्रभु से विनय, होय निर्मल जो मैला ।
गाडी चलती जाय. मिलेगा उनका गैला ।।
वो आँखें अब भी देखतीं हैं मुझे.......मीठा पानी झील का, देता प्यास बुझाय । खारे अश्रू जो पिए, झलक तनिक दिखलाय ।। |
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औरत के रूप
आमिर दुबई
मोहब्बत नामा
मोहब्बत नामा
बढ़िया चर्चा ..... बेहतरीन लिनक्स लिए
जवाब देंहटाएंbadhia charcha ...
जवाब देंहटाएंविस्तृत आयाम लिए चर्चा |
जवाब देंहटाएंआशा
बहुरंगी चर्चा करें, रविकर चर्चाकार।
जवाब देंहटाएंलिंक करीने से सजे, बहुत-बहुत आभार।।
वाह ! बेहतरीन लिंक्स !
जवाब देंहटाएंदुकानें सुंदर सजाता है
जवाब देंहटाएंरविकर सामान आज
बदल कर लाता है
हवाई चक्कर लगा लिया
खरीददार कोई है भी
पता ही नहीं चल पाता है।
उलूकाभार कबूल हो ।
हर किसी की पसंद का कुछ न कुछ जुटाया आपने।
जवाब देंहटाएंवाह! वाह! वाह! वाह!
जवाब देंहटाएंबहुत परिश्रम से सजाए हैं सारे उपयोगी लिंक, आभार।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा.................लिंक्स अब देखते हैं.....बारी-बारी.............
जवाब देंहटाएंहमारी रचना को शामिल करने का शुक्रिया रविकर जी.
सादर.
जायकेदार सुंदर लिक्स सयोजन,...आभार
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति रविकर जी !
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर लिंक संयोजन ………सार्थक चर्चा
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा....सुंदर लिंक्स। मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा...
जवाब देंहटाएंbadhiyaa links padhvaaaye aapne bhaaisaahab ,bismillaah se bismil tak ,sab kuchh lok kavi se lekar dinkar tak .shukriyaa .
जवाब देंहटाएंबिस्मिल्लाह से बिस्मिल तक सब भा गए ,
जवाब देंहटाएंचर्चा में रविकर छा गए .
आज की चर्चा के लिए विशेष शुक्रिया भाई साहब .
बहुत बढ़िया लिंक्स..
जवाब देंहटाएंसार्थक चर्चा प्रस्तुति..
आभार!
bahut sunder charcha manch sajaya hai. aapki mehnat prashansneey hai. mera lekh "Dinkar ji ke jeewan darpan bhag-6 se KAVI KI MRITYU" ko yahan sthan dene ke liye aabhar.
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा .....
जवाब देंहटाएंडॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) said...
जवाब देंहटाएं" बहुरंगी चर्चा करें, रविकर चर्चाकार।
लिंक करीने से सजे, बहुत-बहुत आभार।।"
बहुत-बहुत आभार, कृपा हम सब पर करियो |
कविवर रविकर आप, सदा चर्चा में रहियो ||
Blogger SHEKHAR GEMINI said...
जवाब देंहटाएंडॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण) said...
" बहुरंगी चर्चा करें, रविकर चर्चाकार।
लिंक करीने से सजे, बहुत-बहुत आभार।।"
बहुत-बहुत आभार, कृपा हम सब पर करियो |
कविवर रविकर आप, सदा चर्चा में रहियो ||
प्रभु का नित आशीष, रहे मन सेहत चंगी |
शेखर चन्द्र दुलार, करूँ चर्चा बहुरंगी ||
स्तरीय सूत्र...
जवाब देंहटाएंनाईस रविकर कवि जी.आपकी चर्चा की वजह से ही शायद मेरा कलम ''औरत के रूप '' बहुत ज्यादा पसंद किया गया.इतने इमेल्स को कमेंट्स किसी पोस्ट्स पर नही आये जितने इस एक आर्टिकल पर आये हैं.बहुत आभार.
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