मित्रों! आज समय का थोड़ा सा अभाव है, इसलिए औपचारिकता ही पूरी कर रहा हूँ! वो पल अक्सर याद आते हैं , एक प्यारा अहसास दिला जाते हैं । सफ़ेद बर्फ से पटी पहाड़ियाँ, वो बर्फीली सुन्दर घाटियाँ । हर पल बदलता मौसम यहाँ... |
दोस्त को भुलाना गलत बात है, दोस्ती न निभाना भी गलत बात है दोस्ती में दिल दुखाना भी गलत बात है .. |
*बीबी बच्चों का भविष्य बना एक करोड़ का तू बीमा करा इधर अफसर तीन सौ करोड़ घर के अन्दर छिपा रहा है उधर उसका अर्दली दस करोड़ के साथ पकड़ा जा रहा है |
। वेलेंसिया स्पेन में, पागल मानव दंभ । पागल मानव दंभ, होय एड्मिसन लागे । वेश्यावृत्ति सीख, भाग्य निज छलें अभागे । |
)क्लीन चिटें बँटने लगीं, आ विदेश से जाय । तीस साल की गर्द भी, झटपट जाय झड़ाय | |
वह ममता..कितनी प्यारी थी , वह आँचल कितना सुन्दर था, जिसके कोने की गिरहों में थी मेरी ऊँगली बंधी हुई.... |
बिना आहट किसी का करीब से गुज़रना , ध्यान बांटता है … कोई… विदेह , अजन्मा , अविरल , अनंत , जो मेरे सन्निकट था अभी और ठीक उसी... |
पत्रकारों को बुला अवैध गिट्टी वाली टिप्पर दिखाई जा रही* * जैसे कि पाकिस्तान के विरूद्ध कोई लड़ाई जीत ली गई हो... |
जब देखो तब हमारे पीछे हाँथ धोकर पीछे पड़ जाती हैं , देश की मीडिया , अखबार , समाचारपत्र - पत्रिकाएं , हर बार हमको ही निशाना बनाया जाता है ! आखिर क्यों ? |
इतना हो हल्ला और बवाला क्यों ? जनता खड़ी निहारती, चाचा चाबुक तान | हैं घोंघे को ठेलते, लें बाबा संज्ञान | |
किसको घर कहता है पगले दीवारें ही दीवारें घास-फूस की छत है कहीं पर ऊँची-ऊँची मीनारें. तन से निकले प्राण पखेरू काठी है तैयार खड़ी फिर मखमल की सेज कहाँ...? |
वह पीपल है वह नीम है मैं तो आम हूँ । फागुन में बौराती हूँ चैत में जनती हूँ टिकोरे तपती हूँ वैशाख-जेठ की दोपहरी आता है मौसम मेरा भी .... |
मुझे ढूंढती है जैसे मेरी ही तलाश कोई * *साया सा चल रहा है आसपास कोई... ये मेरे भरम हैं या कि आहट तुम्हारी !! वंदना |
देहरादून हमारे घर में, आये हमारे दादाजी। खुशियों की सौगात, हमारे घर में लाये दादाजी।। यहाँ हमारे लिए उन्होंने, नयी कार दिलवायी है। नयी-नवेली श्वेत रंग की, कार सभी को भाई है।। |
जीवित रहूँ सदा मैं जग में, दुआ हमेशा करते हो। मेरे सुख का मुस्तैदी से, ध्यान हमेशा धरते हो।। तुम हो मेरे पूज्य पिता जी, इस जीवन के दाता हो। मेरा जीवन तुमसे ही है, मेरे तुम्हीं विधाता हो।। |
ऊंचे लोग धरातल से जुड़े नहीं होते हुए हैं इस देश में नेता गाँधी,सुभाष पटेल जैसे भी ना अहम् था,ना स्वार्थ था ना ही खुद का ध्यान था जीवित रहे जब तक सोचते रहे देशवासियों के भले के लिए.. |
शायद हमारा देश ही एक ऐसा देश होगा जहाँ रोगों का इलाज करने के लिए दादी नानी से लेकर साधु बाबा तक सभी चिकित्सक का काम धड़ल्ले से करते हैं... |
मै तेरी याद में कुछ इस तरह से आज खो जाऊं, तेरे शानों पे रख के सर को अपने आज सो जाऊं. करूं आँखें जो बंद अपनी मुझे तू ही नज़र आये, ... |
*१३/५/१२ को मात्र दिवस की सबको शुभकामनाएं * *(मेरी दो कवितायें )* * (1) * *वो छोटी सी पगडण्डी * *जिसकी नुकीली झाड़ियाँ * *अपने हाथों से काटकर * *बनाई थी... |
ऐ पहेली ,तुम खुद ही सुलझ जाओ हल हो जाओ ना खुद ही अगर तुम ने ऐसा ना किया तो अनबुझे रह जाने तैयारी रखना , क्यूंकि उलझी हुई चीजे मेरे स्वभाव से मेल नहीं खाती... |
*कई विधाएं जीवन की *** *धाराओं में सिमटीं *** *संगम में हुईं एकत्र * *प्रवाहित हुईं *** *लिया रूप नदिया का *** विचारों की नदिया सतत बहती निरंतर... |
मई मास के दूसरे रविवार (यानी कल 13.05.2012) को मनाया जाने वाला मातृ-दिवस.. |
*आबादी घटायेंगे तो रिश्ते भी घट जायेंगे* * * देश के भविष्य का वास्ता देकर एक नारा दिया गया था ...... दो या तीन बच्चे, होते हैं घर में अच्छे । |
जीवन मेँ कई उतार-चढ़ाव आते रहते हैँ। कभी सुखद और अनूकूल परिस्थितियाँ रहती हैँ तो कभी दुःखद और प्रतिकूल। असल मेँ यह उतार-चढ़ाव ही जीवन को रसमय बनाते हैँ...। |
शेखर जंक्शन पर दामिनी के आने का इंतजार रात के ग्यारह बज़े से ही कर रहा था , जैसे जैसे रात गहराती गयी स्टेशन की दुकाने बंद होती गयी और सन्नाटा पसरने लगा |... |
इसमें आपको अपमान किसका दिख रहा है ? नेहरू का अथवा आंबेडकर का ? अथवा सत्य को बेहद ज़हीन तरीके से दर्शाया गया है ? नज़र अपनी- अपनी...! |
मैं नहीं हूँ शायर जो शब्दों को पिरोकर कोई ख्वाब सजाऊँ नज्मों और गज़लों में दुनिया बसाऊँ,... |
*हो अरुणोदय ,सुप्रभात यश -गान सतत* * तुम्हारा दिनकर -* *खिले पुष्प गुच्छ ,तरुनाई कोपल मांगे * *खग -बृंद सहज आनंद, मधुरतम मांगे... |
रमिया घर-बाहर खटे, मिया बजाएं ढाप । धर देती तन-मन जला, रहा निकम्मा ताप । रहा निकम्मा ताप, चढ़ा कर देशी बैठा | रहा बदन को नाप, खोल कर धरै मुरैठा । |
आज आपको अपनी माँ की एक दुर्लभ रचना पढ़वाने जा रही हूँ जिसका रचना काल सन् १९५५-५६ का रहा होगा ! उन दिनों मातृ दिवस मनाने का चलन नहीं था....! |
हृदय की पीड़ा को, प्रेम रस वीणा को, प्रकट हो जाने दो, आज मुझे गाने दो! नयनों के बादर से, भावों के सागर से, बरस अब जाने दो, आज मुझे गाने दो!... |
सृष्टि तुम प्रकृति तुम सौन्दर्य तुम परिवर्तन तुम तुम ही हो विद्या तुम्हीं हो लक्ष्मी और साहसी दुर्गा तुम तुम हो सपना तुम्हीं हकीकत जीवन का हर स्रोत हो... |
*मैं और मेरी माँ* जब भी जीवन की कश्ती डगमगाई माँ तुम बहुत याद आई.. शीतल पवन ने जब भी मुझे छुआ है तेरे होने का अहसास हुआ है बहुत कुछ दिया है ... |
एक सुखद अहसास है मां का शब्द* *गहरी पीडा में मुक्ति का बोध* *थकान में आराम * *जन्नत है उसकी गोद*... |
जीवहत्या क्यों ?( हाइकु )कस्तूरी होतीअपने ही भीतर ढूंढें बाहर ।... आज के लिए केवल इतना ही..... |
देहरादून जा के आये हैं
जवाब देंहटाएंइतना कुछ तो ले के आये हैं
कम नहीं बहुत कुछ लाके दिखाये हैं
चरचा आज की लाजवाब बनाये हैं
मेरा लिंक भी दिखाये हैं
आभार !!!!!
जल्दी जल्दी में रची, फिर भी चर्चा मस्त |
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचनाएं सजीं, सदा रहें यूँ व्यस्त ||
सार्थक संतुलित अपने उद्देश्य में सफल चर्चा ......शुभकामनायें सर !
जवाब देंहटाएंरविकर गुप्त दिनेश के लिंक चार हैं आज।
जवाब देंहटाएंएक टिप्पणी से नहीं, पूरा होगा साज।।
मातृ दिवस पर विशिष्ट रचनाएं बहुत आकर्षक लगीं शास्त्री जी ! 'उन्मना' से माँ की रचना को आपने चुना आभारी हूँ ! बहुत-बहुत धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंकम समय में भी बहुत से लिंक दे दिए । आभार शास्त्री जी ।
जवाब देंहटाएंरूपचन्द्र जी,
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग की पोस्ट 'क्या बनेँ पलायनवादी या आशावादी' को अपने ब्लॉग पर स्थान देने हेतु आपका शुक्रिया।
चाहे समयाभाव हो , फिर भी दें आशीष
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा - मंच में , लिंक सजे छत्तीस
लिंक सजे छत्तीस ,किंतु तिरसठ आपस में
प्रेम-पगी हर पोस्ट ,भिगो दे जीवन रस में
जहाँ प्रेम - सत्संग , वहाँ दुख पीड़ा काहे
आओ मिलजुल पढ़ें , लिंक अपने मनचाहे .
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार...मातृ दिवस पर सभी रचनाएं बहुत सुन्दर हैं...
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब देंहटाएंमात्र दिवस पर एक से एक रचनाओं की बहार धन्य हैं सब माएं जिनको रचना के रूप में मिले ये उपहार सभी को मात्र दिवस की शुभकामनाएं बहुत ही प्यारे सूत्र सजा कर लायें हैं शास्त्री जी मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंकों से सजी मात्र दिवस पर एक से एक रचनाऐ
जवाब देंहटाएंमेरी रचना,को मंच पर स्थान देनेके लिए आभार,.....
आज चर्चा मंच पर मर्दस डे को मनाया जा रहा है ओर चारो तरफ मॉ की ममता का गुणगान किया जा रहा है शायद यही समझाने के लिये की आज मॉ को वद्वाश्रमो पर निर्भर बना दिया गया है क्यो भूल गये हम मॉ की ममता को इसी को याद दिलाने के लिये चर्चामंच का धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपने सही लिखा है। आज "मातृदिवस" बन गया है मात्र दिवस!
जवाब देंहटाएंमातृ दिवस के अवसर पर आपमे एक से एक लिंक चुन कर नायाब तोहफ़ा दिया है।
जवाब देंहटाएंआभार हमें भी इस पंक्ति में शामिल करने के लिए।
ढेर सारे लिंक पढ़े। सभी अच्छे नहीं लगे। वाकई चर्चा जल्दबाजी में की गई है। कम और चुने हुए अच्छे लिंक ही चर्चा में शामिल किये जाने चाहिए ताकि ब्लॉगर एक ही स्थान से अच्छा पढ़ सके।
जवाब देंहटाएंचर्चामंच को हमारी शुभकामनाएं।
ek se badhkar ek......dhanybad bhi.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब................
जवाब देंहटाएंThanks Shastri ji.
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