फेयरवेल-संसर्ग / मिस्र का नया कानून
सदियों से रखते रहे, लोग मिस्र में लाश ।
संरक्षित करते रहे, ममी बनाकर ख़ास ।
ममी बनाकर ख़ास, नई इक खबर सुनाता ।
नगर काहिरा मिस्र, नया कानून बनाता ।
साथी गर मर जाय, मौत के छ: घंटे तक ।
कर सकते संसर्ग, अघोरी कामी साधक ।।
राजीव जी ! आपको तो कोई याद ही नहीं करता
आवश्यक नहीं कि - धर्म के मामले में भी उच्चता को प्राप्त हो ।
चलिये । आपकी बात पर ही आते हैं । श्रीराम शर्मा ने 1939 से अखण्ड ज्योति
में 21st century - नारी शताब्दी " घोषित ही नहीं किया । बल्कि नारी उत्थान
के सूत्र व कार्यकृम भारत में चलाने शुरू किये ।.. मुझे बताईये । क्या
उत्थान हुआ नारी का ? या इसी उत्थान ? की बात करते थे श्रीराम शर्मा ? सच
तो ये है । नारी और नर छोङो । आज मनुष्य मात्र बेहद पतन की दशा में है ।
अगर आप गौर करें । तो आज के तुलनात्मक 1939 में नारी और मनुष्य की स्थिति
आज से बहुत अच्छी थी । |
"अतुकान्त" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')उच्चारण सूर, कबीर, तुलसी, के गीत, सभी में निहित है प्रीत। आज लिखे जा रहे हैं अगीत, अतुकान्त सुगीत, कुगीत और नवगीत। जी हाँ! हम आ गये हैं |
दो धंधे बड़े ही चंगे..........................
भारत .......धर्मं और राजनीति के धंधे की उर्वरा भूमि.............
आज भारत में दो धंधे सोने की खान साबित हो रहे हैं। और ये धंधे बिना लगत याने बिना कैपिटल इन्वेस्टमेंट के हैं और बिना किसी हानि के केवल लाभ ही लाभ हैं. पर........... ये तय करना मुश्किल है कीकौन सा धंधा ज्यादा फायदे का है. पर इतना जरुर कहा जा सकता है कि तस्करी याने आजकल का हैं धर्मं और राजनीती के सबसे की. ये हैं धर्मं और राजनीती ........................
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पोलखोलगोश्त
सड़क पर बिकता गोश्त
कभी कटा हुआ कभी
लटका हुआ
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नन ने यौन शोषण पर से पर्दा हटाया.केरल की एक पूर्व नन ने आत्मकथा के जरिए कैथोलिक चर्चों में पादरियों द्वारा ननों के यौन शोषण पर से पर्दा हटाकर अच्छा-खासा हंगामा कर दिया है। अपनी आत्मकथा 'ननमा निरंजवले स्वस्ति' में सिस्टर मैरी चांडी (67) ने लिखा है कि एक पादरी द्वारा रेप की कोशिश का विरोध किए जाने के कारण ही उन्हें 12 साल पहले चर्च छोड़ना पड़ा था। दो साल पहले भी एक अन्य नन ने अपनी आत्मकथा में पादरियों के ऐसे ही जुल्मो-सितम की दास्तां बयां की थी। |
बॉस्टन में वसंत का जापानी महोत्सव - इस्पात नगरी से [58]
उत्तरी गोलार्ध में वसंतकाल अभी चल रहा है। कम से कम उत्तरपूर्व अमेरिका तो
इस समय पुष्पाच्छादित है। पूरे-पूरे पेड़ रंगों से भरे हुए हैं। -- यह समय नव-पल्लवों का है जबकि वह समय पत्तों के सौन्दर्य का
है जो जाते-जाते भी विदाई को यादगार बना जाते हैं। बाज़ार फ़िल्म के एक गीत
की उस मार्मिक पंक्ति की तरह जहाँ संसार त्यागने का मन बना चुकी नायिका
अपने प्रिय से कहती है:
याद इतनी तुम्हें दिलाते जायें, पान कल के लिये लगाते जायें, देख लो आज हमको जी भर के |
पैबन्द पसन्द हैं हमेंपैबन्द हमारी विकासमान संस्कृति के हिस्से बन चुके हैं, आज बिना स्लम के किसी नगर की कल्पना नहीं की जा सकती। स्लम ही क्यों .....मध्यवर्गीय रिहाइशी इलाकों में भी गंदगी के पैबन्दों के बिना हम जी ही नहीं सकते ....अब गन्दगी ही हमारी ज़िन्दगी हैगन्दगी और विकास ...चोली दामन का साथ |
बुद्धं शरणम् गच्छामि- हाइगा में
वैशाख महीना आते ही वैशाख पूर्णिमा का ध्यान आया जिसे बुद्ध पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है|
एक कोशिश गौतम बुद्ध को हाइगा में उतारने की
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शुक्र है कि टौमी बच गया ....(लघुकथा) |
घातक है खून का थक्का |
काम के घंटे हों -चार |
मगधराजभाषा हिंदी -
श्रीकांत वर्मा
सुनो
भाई घुड़सवार मगध किधर है
मगध से आया
हूं
मगध
मुझे जाना है
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इधर घोटाला है...
इधर घोटाला है, देखिए उधर घोटाला है,
राजनीति के दलदल में सबका मुँह काला है। बातें हैं आदर्शों की पर करनी बिल्कुल उल्टी, उनका यह अंदाज़ सभी का देखा- भाला है। | बबन पाण्डेय की गंभीर कविताएंमैं भी जड़ बनूगा॥
थकती नहीं
पेड़ की जड़ें पानी की खोज में छू ही लेती है भूमिगत जलस्तर ॥ मरने नहीं देती अपनी जिजीविषा ॥ |
मुश्किल हो गयाKavyakosh .... Devendra Khare
परदे में रखकर गम को, छिपाना मुश्किल हो गया l
इन हार की वजह का, बताना मुश्किल हो गया ll
ज़माने की यूं तो मैं, परवाह छोड़ देता l
पर खुद के सवालो को, मनाना मुश्किल हो गया ll
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मुशीबत बन गया है निवाला गरीब का,
हसरत बन गया है उजाला गरीब का-
खैरात में मिला कभी ,पाया हिजाब से
दर्द
बन गया है , दुशाला गरीब का -
कमाल है कि किश्ती भंवर से निकाल ली
किनारे आ डूबता है सफीना गरीब का -
बस ठोकरों से पूछा अपने गुनाह को ,
अब नमूना बन गया है,फूटे नसीब का -
कुरबान कर दी जन्नत ,उम्रो,जमाल भी
बदबूदार हो गया है ,पसीना गरीब का -
माहताब ढूंढ़ लेता मयखाना वो महफिलें
अब तक नढूंढ़ पाया आशियाना गरीब का
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उदय वीर सिंह .
मजदूर दिवस पर विशेष
धूप
में वह झुलसता , माथे पसीना बह रहा
विषमतायें
, विवशतायें , है युगों से सह रहा.
सृजन
करता आ रहा है , वह सभी के वास्ते
चीर
कर
चट्टान को , उसने बनाये रास्ते.
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बाल श्रमिक
तपती धूप , दमकते चहरे , श्रमकण जिन पर गए उकेरे ,
काले भूरे बाल सुनहरे ,
भोले भाले नन्हे चेहरे ,
जल्दी जल्दी हाथ चलाते ,
थक जाते पर रुक ना पाते ,
उस पर भी वे झिड़के जाते ,
सजल हुई आँखे , पर हँसते ,
मन के टूटे तार लरजते |
| मज़दूर यानि पुरुष मज़दूर? |
आज न गणतन्त्र दिवस है न स्वतन्त्रता दिवस है न होली है आज न दिवाली है न 'सितारों' का जन्म दिन है न किस्मत के खुलने का दिन | निकृष्ट जीवन मानिए, जो होते कामांध-रविकर की रसीली जलेबियाँकामकाज में लीन है, सुध अपनी विसराय
उत्तम प्राकृत मनुज की, ईश्वर सदा सहाय ||
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श्रमिक दिवस पर एक कविता
तरु के नीचे श्रमकर सोये, पत्थर की शय्या पर।
दिन भर स्वेद बहाया, अब घर लौटे हैं थककर।
शीतलता कुछ नहीं हवा में, मच्छर काट रहे हैं।
दिन भर की झेली पीड़ाएं, कह-सुन बांट रहे हैं।
अम्बर बन गया वितान, चिंता नहीं दुशालों की।
NCW में ऑनलाइन आपत्ति दर्ज कराने की सुविधा हैंनारी , NAARIआज कल ब्लॉग जगत में महिला ब्लॉगर को "चिकनी चमेली" कहा जा रहा हैं . जिन महिला ब्लॉगर को इस पर आपत्ति हो वो कृपा कर के मुझ से संपर्क कर सकती हैं और लिंक ले कर NCW के इस लिंक पर जा कर अपनी आपति दर्ज करवा सकती हैं .
इतना भोंडा लिंक मे यहाँ नहीं देना चाहती .
सही समय पर कुछ लोगो के खिलाफ आपत्ति दर्ज करवाना जरुरी हैं
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सिनेजगत में अलग मुकाम रखती फिल्म - 'यादें' (1964)सफ़ेद घरअक्सर माना जाता है कि भारत में एक्सपेरिमेंटल फिल्में कम बनती हैं, लोग पसंद नहीं करते या उन्हें बनाने के पीछे उद्देश्य केवल अपने क्रियेटिव मन की क्षुधा शांत करना होता है जो कॉमर्शियल फिल्म मेकिंग के दौरान अतृप्त महसूस करता है।सुनील दत्त निर्देशित 1964 में बनी फिल्म ‘यादें’ उसी क्रियेटिविटी और अनूठेपन की बानगी दर्शाती ‘ब्लैक एण्ड वाइट’ जमाने की एक खूबसूरत कृति है। ‘यादें’ जिसमें कि शुरू से अंत तक केवल और केवल सुनील दत्त नजर आते हैं |
रेंगती सी मानवता ...!Anupama Tripathi
इस जहाँ में कब आई ...पता नहीं ...
आई तो ....शायद किसी पाप का फल भुगतने .... ....!! कहाँ जाना है ...पता नहीं ... पति का नाम ...? हंसकर ...शरमाकर ...कहती है ... ले नहीं सकती ... न अक्षर ज्ञान ..... न कुछ भान ... |
चार गज़लें: कवि- डॉ. किशन तिवारी
१. कोई उत्तर नहीं मिलता
क्या हुआ वो अगर नहीं मिलता। यूं भी मिलता है पर नहीं मिलता।। रास्ते हैं जुदा, जुदा मंजिल। बन के वो हम सफ़र नहीं मिलता।। शब्द के अर्थ ही बदल ड़ाले। वरना मुझको सिफ़र नहीं मिलता।। दिल में जो है वही जुबाँ पर हो। झूठ से ये हुनर नहीं मिलता।। मैंने तुमसे कहा सुना तुमने। कोई उत्तर मगर नहीं मिलता।। |
बारात कौन लाये ....डॉ श्याम गुप्त की कहानी...'हाँ बेटा, यह हो सकता है। परन्तु यदि वह लड़का भी परिवार की इकलौती संतान हो तो ?' 'शाश्वत चले आ रहे मुद्दों पर यूंही भावावेश में, या कुछ नया करें , लीक पर क्यों चलें ? की भावना में बहकर , बिना सोचे समझे चलना ठीक नहीं होता; अपितु विशद- विवेचना, हानि-लाभ व दूरगामी प्रभावों,परिणामों पर विचार करके ही निर्णय लेना चाहिए। |
मेरा गाँव - मेरा देश.
शाम को चलने लगता हूँ तो नानी जी (उनकी उम्र लगभग ९० क्रोस कर गयी है) खाट
से उठ खड़ी होती हैं, उनको लगता है की मुझे कुछ बढिया पकवान नहीं खिला
सकी... खुद ही चौके में जाती है - मेरे लिए विसनन बनाने (विसनन = मक्खन को
गर्म करके उसमे थोडा सा गेंहूँ का आटा और गुड डाला जाता है - आप इसे हेवी
डाईट में शामिल करेंगे) मैं बहुत मना करता हूँ, पर उनके वात्सल्य भाव के
आगे नत्मस्तक हो : डाक्टरी सलाह को एक किनारे कर, कटोरी भर विसंन्न खा -
२५१ रुपे विदाई के जेब में डाल गाँव से निकलता हूँ,
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डिमैन्शा : राष्ट्रीय परिदृश्य ,एक विहंगावलोकन
विश्वस्वास्थ्य संगठन की नवीनतम रिपोर्ट 'Dementia - a public health
priority ' के अनुसार भारत में तकरीबन 37 लाख लोग इस
मर्ज़ के साथ रह रहें हैं .आगामी बीस बरसों में ही यह संख्या
दोगुनी हो सकती है .
टूटते बिखरते न्यूक्लीयर परिवार इसके मरीजों के प्रबंधन में एक बड़ी
बाधा बनने जा रहें हैं .इसी के चलते जहां गाँवों में इसके मरीजों की
देखभाल करने वालों में फिलवक्त 70%बच्चे और जीवन साथी हैं वहीँ शहरों में
केवल ४०%ही ऐसा कर पा रहें हैं |
युद्ध-विराम – अज्ञेय
नहीं, अभी कुछ नहीं बदला है।
अब भी
ये रौंदे हुए खेत
हमारी अवरुद्ध जिजीविषा के
सहमे हुए साक्षी हैं ;
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श्रन्धांजलि
*ये दौलत भी ले लो
ये शोहरत भी ले लो भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी ...मगर मुझको लौटा दो बचपन का
सावन वो कागज़ की कश्ती वो बारिश का पानी ' *और आखरी में उनका अन्तरा . ' *ये दौलत भी ले
लो ये शोहरत भी ले लो *
*मगर मुझको लौटा दो जगजीत वापस ...*
*वो गजलो की शामें वो महफ़िल रूहानी .....' वाह !वाह !वाह
! की..
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इति लोमड़ी कथा !
संतोष त्रिवेदी
लोमड़ी उपदेश अब देने लगी है,
सारे जंगल में खबर ये हो गई है !
(१)
टोटके औ वार सब खाली गए,
दाँत टूटे,बेअसर वो हो गई है !
(२)
अपनी ही कौम की दुश्मन बनी,
शेर से पंजा लड़ाकर खो गई है !
(३)
आइना उसको दिखाया शेर ने,
अपनी सूरत से बहुत डर वो गई है !
(४)
अब तरो-ताज़ा है जंगल हर तरफ़,
घर से अपने लोमड़ी,खुद ही बेघर हो गई है !
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जो अपनी संस्कृति की बात करे, क्या वो पोंगापंथी है?
प्रतुल वशिष्ठ
*कैसे कहें कि हम आज़ाद हैं ! - लेखक : जीवराज सिंघी जी*
हम भारत के लोगों में आजादी का बोध ज़रा भी विकसित नहीं हो पाया. इसके विपरीत
गुलामी के संस्कार लगातार मज़बूत होते गये. इस बात की पुष्टि के लिये किसी तरह
का प्रमाण देने की जरूरत नहीं है. जिनका दिमाग और आँख साफ़ खुली हैं उन्हें
कदम-कदम पर प्रमाण मिल सकते हैं. हमारा स्वाधीनता-संग्राम जिन शानदार मूल्यों
और आदर्शों के बल पर खड़ा था वे तमाम मूल्य और आदर्श आज़ लगभग अप्रासंगिक हो
गये हैं या यूँ कहें कि बना दिये गये हैं. हमारे राष्ट्रीय आन्दोलन के नेताओं
ने जो-जो सपने देखे थे, वे खंडहर की शक्ल में तब्दील हो गये हैं.
स्वाधीन भारत को लेकर सपना..
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कई लिंक्स सार्थक और अच्छे |अच्छी चर्चा है |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए आभार |
विस्तृत,व्यवस्थित, समसामयिक बढ़िया चर्चा ...
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान दिया ...आभार रविकर जी ...!!
आज का संकलन देख मैं हतप्रभ सा हूँ ,चिरस्मरणीय चर्चा ,उन्नत विचारों से भरा विचार सवित समग्र रूप से आलोकित करेगा मेरा विस्वास है ....शुभकामनायें जी /
जवाब देंहटाएंआभार दिनेश जी!
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंको की शानदार प्रस्तुति...आभार!!!
जवाब देंहटाएंचुन चुन लाये पुष्प ज्यों, लाय बसंत बहार
जवाब देंहटाएंकविता मेरी भी चुनी , रविकर जी आभार.
बेहतरीन लिंक्स!!!
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा
जवाब देंहटाएंवाह !!!बेहतरीन लिंक्स के लिए बधाई,रविकर जी,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST.....काव्यान्जलि.....:ऐसे रात गुजारी हमने.....
अच्छी चर्चा है ..आभार.
जवाब देंहटाएंरविकर जी धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंब्लॉग की व्यापक चर्चा।
जवाब देंहटाएंbahut badiya links ke sath sundar charcha prastuti..
जवाब देंहटाएंगजलों ,कविताओं ,लघु कथाओं ,की बरसात लिए आई चर्चा रानी
जवाब देंहटाएंसेहत की भी दस्तक लाइ ,मजदूर दिवस की व्यथा पुराणी .
बधाई .
बुधवार, 2 मई 2012
" ईश्वर खो गया है " - टिप्पणियों पर प्रतिवेदन..!
http://veerubhai1947.blogspot.in/
बहुत बहुत धन्यवाद सर मेरी पोस्ट यहाँ शामिल करने के लिए।
जवाब देंहटाएंसादर
AABHAR RAVIKAR JEE
जवाब देंहटाएंA RAINBOW OF LINKS
अच्छी चर्चा....आभार..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और अच्छे लिंक्स ..बाल श्रम पर विशेष बहुत अच्छा लगा ...आभार
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
प्रतापगढ़ साहित्य प्रेमी मंच
पोस्टों को पकड़ने और उन्हें चयनित करने का तरीका नायब है आपका !
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को शामिल करने का आभार,देर से आने की माफ़ी !