फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

सोमवार, अक्तूबर 01, 2012

“आईने पर कुछ तरस तो खाइए” (चर्चा मंच-1019)

मित्रों!
आज श्री चन्द्र भूषण मिश्र ग़ाफ़िल जी का
चर्चा लगाने का दिन था लेकिन वो इस समय घर से बाहर प्रवास पर हैं।
उनके अनुरोध पर मैं
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’
सोमवासरीय चर्चा को प्रस्तुत कर रहा हूँ।

आईने पर कुछ तरस तो खाइए!

ग़ाफ़िल की अमानत

आइए तो इत्तिलाकर आइए!
जाइए तो बिन बताए जाइए!
दिल मेरा है साफ़ मिस्ले-आईना,
अपने चेहरे को तो धोकर आइए!..
"जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई"
खाओ रबड़ी और मिठाई।
जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।

मन है सुन्दर, प्यारी सूरत,
तुम तो ममता की हो मूरत,
वाणी में बजती शहनाई


बाप्पा सुबुद्धि दो I
कल पूरी नगरी “गणपत्ति बाप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ” इस नाद से झूम रही थी I ढोल ताशे और उसपर थिरकते युवा कदम, मदहोश करनेवाला समां था I बारिश का मौसम आते ही हमारे यहाँ उत्सव का दौर शुरू हो जाता है I भारतीय समाज बहुत उत्सव प्रिय है I उत्तर से दक्षिण तक कई सारे एक जैसे उत्सव मनाये जाते है, बस मनाने की विधि और नाम में कुछ फर्क होता है I आज भी हमारे देश की ८० प्रतिशत आबादी खेती पर अवलंबित है और ये सारे उत्सव कहीं ना कहीं उसी से जुड़े हुए है I हमारा समाज उसी के आस पास सदियों से बंधा हुआ है I पर आज सब कुछ बदल रहा है I सामाजिक परिवर्तन बहुत कुछ हो रहे है…
सितमगर बन जाओ तो हक़ है तुमको...
तुझे भूल पाना मुमकिन नहीं,
तुम भूल जाओ तो हक़ है तुमको!
जुदाई की कल्पना भी संभव नहीं मेरे लिए,
तुम छोड़ जाओ तो हक़ है तुमको!…
भारतीय काव्यशास्त्र – 125
आचार्य परशुराम राय पिछले अंक में वक्रोक्ति अलंकार पर चर्चा की गयी थी। इस अंक में अनुप्रास अलंकार पर चर्चा की जाएगी। वर्णों की समानता (आवृत्ति) को अनुप्रास कहा गया है- वर्णसाम्यमनुप्रासः। भले ही व्यंजनों के साथ संयुक्त स्वरों में समानता न हो, लेकिन व्यंजनों में समानता होनी चाहिए। ऐसा होने पर अनुप्रास अलंकार होगा…
* दावा *
सारी दुनिया को कैसे छले जा रहे हैं ,ख़ुदा, खुद को अब वो कहे जा रहे हैं, सियासत कमीनी की किये जा रहे हैं, दावा मसीही का वो किए जा रहे हैं…

आकांक्षा यादव को 'हिंदी भाषा-भूषण' की मानद उपाधि

युवा कवयित्री, ब्लागर एवं साहित्यकार सुश्री आकांक्षा यादव को एक विशिष्ट हिंदी-सेवी के रूप में हिंदी दिवस सम्मलेन में "हिंदी भाषा-भूषण" की मानद उपाधि से अलंकृत किया गया|

रूपये तो पेड़ों पर ही लगते हैं सरदार जी !चिल्हर संकट के कारण पैसा तो बाज़ार से कब का गायब हो चुका है . अब तो रूपए का जमाना है .इसलिए सरदार जी को कहना ही..
मूली हो किस खेत की, क्या रविकर औकात
हर दो-दस को हम करें, मिलकर धुर-पाखण्ड ।
खण्ड-खण्ड खेलें खलें,
खुलकर फिर उद्दंड ।
खण्ड-खण्ड खेलें खलें, खुलकर फिर उद्दंड ।
खुलकर फिर उद्दंड , जमे सब राज-घाट पर ।…
अपनी रचनाओं का कॉपीराइट मुफ़्त पाइए
क्या आपका ब्लॉग कापीराइट प्रोटेक्टेड (Copyright Protected) है? क्या आप जानते हैं कि आपके ब्लॉग के लेख, कविताएँ, कहानियाँ इत्यादि कहाँ-कहाँ कापी करके आपकी आज्ञा के बिना प्रकाशित व प्रसारित की जा रही हैं? अगर नहीं तो क्या आप जानना चाहते हैं..
कंप्यूटर के हार्डवेयर की पूरी जानकारी सिर्फ एक क्लिक में|
अगर आप अपने कंप्यूटर या लैपटॉप के हार्डवेयर की पूरी जानकारी देखना चाहते है तो आप आज ही System Information Viewer नाम के इस सॉफ्टवेर को डाउनलोड कर लीजिये…
उसकी यादों में आये इतवार तो अच्छा हो....

दर्द का रुक जाए ये कारोबार तो अच्छा हो उसकी यादों में आये इतवार तो अच्छा हो
बागवान परेशान
दिगम्बर नासवा जी के ब्लॉग पर ग़ज़ल का सबसे छोटा रूप देखा...वैसा उत्कृष्ट तो नहीं लिख सकती पर कोशिश करने में हर्ज़ क्या है...
बागवान परेशान बँगला है आलीशान भरा हुआ सामान..
कौशल्या *कलिकान, कलेजा कसक **करवरा
मन्त्र मारती मन्थरा, मारे मर्म महीप । स्वार्थ साधती स्वयं से, समद सलूक समीप । समद सलूक समीप, सताए सिया सयानी । कैकेई का कोप, काइयाँ कपट कहानी…
जन गण मन या अंग्रेज जार्ज पंचम की आरती ?
‘’ वन्दे मातरम ’’ बंकिम चंद्र चटर्जी ने लिखा था । उन्होने इस गीत को लिखा । लिखने के बाद 7 साल लगे । जब यह गीत लोगो के सामने आया…
विगत 6-मास के शीर्षक
मूली हो किस खेत की, क्या रविकर औकात ? - पाता जीवन श्रेष्ठ, लगा सुत पाठ-पढ़ाने- - मानव जीता जगत, किन्तु गूगल से हारा - - गैरों का दुष्कर्म, करे खुद को भी लांछित- - पूँछ-ताछ में आ गई, कैसे टेढ़ी पूँछ- - रविकर लागे श्रेष्ठ, सदा ही गाँठ जोड़ना- - माल मान-सम्मान पद, "कलमकार" की चाह - - गंगा-दामोदर ब्लॉगर्स एसोसियेशन - - पैसा पा'के पेड़ पर, रुपया कोल खदान- - जूं रेंगे न कान पर, सत्ता बेहद शख्त- - कायर ना कमजोर, मगर आदत के मारे - - गोरे लाले मस्त, रो रहे लाले काले- - रविकर गिरगिट एक से, दोनों बदलें रंग- - कवि "कुश" जाते जाग, पुत्र रविकर के प्यारे - ...
ये सुबह सुहानी हो - इस्पात नगरी से

शामे-अवध और सुबहे बनारस की खूबसूरती के बारे में आपने सुना ही होगा लेकिन पिट्सबर्ग की सुबह का सौन्दर्य भी अपने आप में अनूठा ही है। किसी अभेद्य किले की ऊँची प्राचीर सरीखे ऊँचे पर्वतों से अठखेलियाँ करती काली घटायें मानो आकाश में कविता कर रही होती हैं। भोर के चान्द तारों के सौन्दर्य दर्शन के बाद सुबह के बादलों को देखना किसी दैवी अनुभूति से कम नहीं होता है…
बोली हमरी पूरबी : मलयाली कविताएँ

*:: मलयालम :: *** *के*.* सच्चिदानन्दन *: *कवि, अनुवादक एवं आलोचक श्री के. सच्चिदानन्दन का जन्म 28 मई 1946 को हुआ. वे अंग्रेजी के प्रोफेसर रहे है तथा एक लम्बे समय तक साहित्य अकादमी से जुड़े रहे हैं. 23 कविता-संग्रह, 16 अनूदित काव्य-संग्रह एवं नाटक व साहित्य से जुड़ी अन्य तमाम कृतियाँ. उन्होंने अनेक प्रतिष्ठित विदेशी कवियों की रचनाओं से हमें मलयालम व अंग्रेज़ी के माध्यम से परिचित कराया है. उनकी तमाम अनूदित कविताओं के संग्रह विभिन्न भारतीय व विदेशी भाषाओं में छप चुके हैं. श्री सच्चिदानन्दन आधुनिक मलयालम कविता के प्रणेता एवं एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं. यहाँ उनकी एक हालिया कविता का…
डिश :जीवन शैली और घरेलू उपचार
आप काज महा काज .बिना मरे स्वर्ग नहीं मिलता ,बुजुर्गों ने ये ऐसे ही नहीं कह दिया होगा .* * * *नियमित ऐसे व्यायाम करें जिनमें ऑक्सीजन की खपत बढती हो -मसलन सैर करना ,तैराकी के लिए जाना ,कुलमिलाकर शरीर द्वारा ऑक्सीजन का प्रयोग सुधारना है .उम्र के अनुरूप कुछ भी करें .इससे आपकी दर्द ,जकड़न बर्दाश्त करने का माद्दा भी बढेगा ,सहनशक्ति में भी बढ़ोतरी होगी .* * * *शरीर को फुर्तीला रखने के लिए कुछ भी करें जो संभव हो…
अनाम रिश्ते

कुछ रिश्ते धरा पर ऐसे भी हैं दुष्कर होता जिनको परिभाषित करना, सरल नहीं जिनको नाम दे पाना, फिर भी वो होते गहराइयों में दिल के, जीवन में समाए, भावनाओं से जुड़े, अन्तर्मन में व्याप्त, औरों की समझ से बिलकुल परे, खाश रिश्ते; दुनिया के भीड़ से सर्वथा अलग, नहीं होता जिनमे बाह्य आडंबर, मोहताज नहीं होते संपर्क व संवाद के, समग्र सरस, सुखद सानिध्य…
अजीब शौक़ है मुफ़लिसी को ; मारूफ़ शायरों से लिपट जाती है !
डॉ.शिखा कौशिक जी की ये प्रस्तुति यहाँ प्रस्तुत करना मुझे ज़रूरी लगी क्योंकि शायरी के शहंशाह ''मुज़फ्फर रज्मी ''जी को यदि यहाँ खिराज-ए-अकीदत पेश नहीं की गयी तो मुशायरे ब्लॉग के मेरी नज़रों में कोई मायने ही नहीं हैं…
विध्‍नविनाशक के भक्‍तों को बचाएं विध्‍न से...
दस दिनों तक उत्साह और उमंग का पर्याय रहे गणपति बप्पा की विदाई हो गई। विदाई भी पूरे जोशोखरोश के साथ हुई। जगह जगह जुलूस और झांकियां निकाली गईं और अगले बरस तू जल्दी आ के बुलंद नारों के बीच भक्तों ने विध्नहर्ता को विदाई दी…
अब खुश नजर नहीं आता
My Photo
आँखों में इतनी धुंध छायी है कि बस
आइने में अपना अक्स नज़र नहीं आता ।
आने वाले पल के मंज़र में खोये हो तुम
मुझे तो बीता कल नज़र नहीं आता ।
रात की बात करते हो सोच लिया करना
मुझे दिन के सूरज में नज़र नहीं आता…
चाह में दम
*आह में दम हो तो असर होता है *
*सीना हो नम तो ज़िगर होता है * *
**शिकवे-शिकायत भला किसको नहीं *
*बात में दम हो तो असर होता है…

गीत,,,

तुम न्यारी तुम प्यारी सजनी
लगती हो पर- लोक की रानी
नख से शिख तक तुम जादू
फूलों सी लगती तेरी जवानी,

केशों में सजता है गजरा
नैनों में इठलाता है कजरा
खोले केश सुरभि है बिखरे
झुके नैन रच जाए कहानी...
_______________

और अन्त में
टीवी चैनलों की कारस्तानी को बयान करता हुआ महेन्द्र श्रीवास्तव के नये ब्लॉग TV स्टेशन से 'मीडिया जिम्मेदार कब होगी?'


_______________
आज के लिए बस इतना ही…!
नमस्ते जी!!

55 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन सुन्दर सार्थक प्रस्तुति ।
    आभार शास्त्री जी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. पैसे तो पेड़ों पर ही लगते हैं
    पर क्या करें
    सड़कों की चौड़ाई
    बढ़ाने के लिये
    सारे पेड़ ही कटवा दिये
    अब अबाध गाड़ी दौड़ती है
    डीज़ल/पेट्रोल बचता है

    जवाब देंहटाएं
  4. आईने पर कुछ तरस तो खाइए!
    आइए तो इत्तिलाकर आइए!
    जाइए तो बिन बताए जाइए!

    दिल मेरा है साफ़ मिस्ले-आईना,
    अपने चेहरे को तो धोकर आइए!

    पाइए! जी पाइए! बेहद सुकूँ,
    चश्म ख़म करके ज़रा मुस्काइए!

    रूख़ को झटके से नहीं यूँ मोड़िए!
    आईने पर कुछ तरस तो खाइए!

    हुस्न है बा-लुत्फ़ जो पर्दे में हो,
    आईने से भी कभी शर्माइए!

    छोड़िए! 'ग़ाफ़िल' को उसके नाम पर,
    आप तो ग़ाफ़िल नहीं हो जाइए!

    आइये आजाइए आजाइए ,

    यूं न रह रहके हमें तरसाइए .

    छोडये सरकार को उसके रहम ,

    अब न रह रह तरस उसपे खाइए .

    क्या बात है गाफ़िल साहब कहतें हैं सब्र का फल मीठा होता है आते आप देर से हैं लेकिन सजसंवर के आतें हैं ,बढ़िया अश आर लातें हैं .

    जवाब देंहटाएं
  5. आप आधा सच बोलना छोडिये मीडिया खुद बा खुद जिम्मेवार हो जायेगी .आप अभी तक अन्ना फोबिया अन्ना ग्रंथि से ग्रस्त हैं कोई अन्न भी कहे तो आपको लगता है अन्ना कह रहा है .इतने बढ़िया आलेख का आपने सत्यानाश कर दिया .पहला हाल्फ बहुत बढ़िया काबिले तारीफ़ और बाकी हाल्फ अन्ना ,अन्ना ,अन्ना ,आपकी अन्ना ग्रन्थि की भेंट चढ़ गया .नर भुलूँ, नारायण न भुलूँ.

    और अन्त में
    टीवी चैनलों की कारस्तानी को बयान करता हुआ महेन्द्र श्रीवास्तव के नये ब्लॉग TV स्टेशन से 'मीडिया जिम्मेदार कब होगी?'

    जवाब देंहटाएं
  6. आईने पर कुछ तरस तो खाइए!
    आइए तो इत्तिलाकर आइए!
    जाइए तो बिन बताए जाइए!

    दिल मेरा है साफ़ मिस्ले-आईना,
    अपने चेहरे को तो धोकर आइए!

    पाइए! जी पाइए! बेहद सुकूँ,
    चश्म ख़म करके ज़रा मुस्काइए!

    रूख़ को झटके से नहीं यूँ मोड़िए!
    आईने पर कुछ तरस तो खाइए!

    हुस्न है बा-लुत्फ़ जो पर्दे में हो,
    आईने से भी कभी शर्माइए!

    छोड़िए! 'ग़ाफ़िल' को उसके नाम पर,
    आप तो ग़ाफ़िल नहीं हो जाइए!

    आइये आजाइए आजाइए ,

    यूं न रह रहके हमें तरसाइए .

    छोडये सरकार को उसके रहम ,

    अब न रह रह तरस उसपे खाइए .

    क्या बात है गाफ़िल साहब कहतें हैं सब्र का फल मीठा होता है आते आप देर से हैं लेकिन सजसंवर के आतें हैं ,बढ़िया अश आर लातें हैं .

    जवाब देंहटाएं
  7. आप आधा सच बोलना छोडिये मीडिया खुद बा खुद जिम्मेवार हो जायेगी .आप अभी तक अन्ना फोबिया अन्ना ग्रंथि से ग्रस्त हैं कोई अन्न भी कहे तो आपको लगता है अन्ना कह रहा है .इतने बढ़िया आलेख का आपने सत्यानाश कर दिया .पहला हाल्फ बहुत बढ़िया काबिले तारीफ़ और बाकी हाल्फ अन्ना ,अन्ना ,अन्ना ,आपकी अन्ना ग्रन्थि की भेंट चढ़ गया .नर भुलूँ, नारायण न भुलूँ.

    जवाब देंहटाएं
  8. आप आधा सच बोलना छोडिये मीडिया खुद बा खुद जिम्मेवार हो जायेगी .आप अभी तक अन्ना फोबिया अन्ना ग्रंथि से ग्रस्त हैं कोई अन्न भी कहे तो आपको लगता है अन्ना कह रहा है .इतने बढ़िया आलेख का आपने सत्यानाश कर दिया .पहला हाल्फ बहुत बढ़िया काबिले तारीफ़ और बाकी हाल्फ अन्ना ,अन्ना ,अन्ना ,आपकी अन्ना ग्रन्थि की भेंट चढ़ गया .नर भुलूँ, नारायण न भुलूँ.

    जवाब देंहटाएं
  9. आप आधा सच बोलना छोडिये मीडिया खुद बा खुद जिम्मेवार हो जायेगी .आप अभी तक अन्ना फोबिया अन्ना ग्रंथि से ग्रस्त हैं कोई अन्न भी कहे तो आपको लगता है अन्ना कह रहा है .इतने बढ़िया आलेख का आपने सत्यानाश कर दिया .पहला हाल्फ बहुत बढ़िया काबिले तारीफ़ और बाकी हाल्फ अन्ना ,अन्ना ,अन्ना ,आपकी अन्ना ग्रन्थि की भेंट चढ़ गया .नर भुलूँ, नारायण न भुलूँ.

    जवाब देंहटाएं
  10. आईने पर कुछ तरस तो खाइए!
    आइए तो इत्तिलाकर आइए!
    जाइए तो बिन बताए जाइए!

    दिल मेरा है साफ़ मिस्ले-आईना,
    अपने चेहरे को तो धोकर आइए!

    पाइए! जी पाइए! बेहद सुकूँ,
    चश्म ख़म करके ज़रा मुस्काइए!

    रूख़ को झटके से नहीं यूँ मोड़िए!
    आईने पर कुछ तरस तो खाइए!

    हुस्न है बा-लुत्फ़ जो पर्दे में हो,
    आईने से भी कभी शर्माइए!

    छोड़िए! 'ग़ाफ़िल' को उसके नाम पर,
    आप तो ग़ाफ़िल नहीं हो जाइए!

    आइये आजाइए आजाइए ,

    यूं न रह रहके हमें तरसाइए .

    छोडये सरकार को उसके रहम ,

    अब न रह रह तरस उसपे खाइए .

    क्या बात है गाफ़िल साहब कहतें हैं सब्र का फल मीठा होता है आते आप देर से हैं लेकिन सजसंवर के आतें हैं ,बढ़िया अश आर लातें हैं .

    जवाब देंहटाएं
  11. तुमसे ही तो ये घर, घर है,
    तुमसे ही आबाद नगर है,
    मन में तुमने जगह बनाई।
    जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।
    बहुत सुन्दर रचना .अमर भारती सी सहज सरला .बधाई ब्लॉग जगत की भारती जी को .

    जवाब देंहटाएं
  12. तुमसे ही तो ये घर, घर है,
    तुमसे ही आबाद नगर है,
    मन में तुमने जगह बनाई।
    जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।
    बहुत सुन्दर रचना .अमर भारती सी सहज सरला .बधाई ब्लॉग जगत की भारती जी को .

    जवाब देंहटाएं
  13. आप आधा सच बोलना छोडिये मीडिया खुद बा खुद जिम्मेवार हो जायेगी .आप अभी तक अन्ना फोबिया अन्ना ग्रंथि से ग्रस्त हैं कोई अन्न भी कहे तो आपको लगता है अन्ना कह रहा है .इतने बढ़िया आलेख का आपने सत्यानाश कर दिया .पहला हाल्फ बहुत बढ़िया काबिले तारीफ़ और बाकी हाल्फ अन्ना ,अन्ना ,अन्ना ,आपकी अन्ना ग्रन्थि की भेंट चढ़ गया .नर भुलूँ, नारायण न भुलूँ.

    जवाब देंहटाएं
  14. आईने पर कुछ तरस तो खाइए!
    आइए तो इत्तिलाकर आइए!
    जाइए तो बिन बताए जाइए!

    दिल मेरा है साफ़ मिस्ले-आईना,
    अपने चेहरे को तो धोकर आइए!

    पाइए! जी पाइए! बेहद सुकूँ,
    चश्म ख़म करके ज़रा मुस्काइए!

    रूख़ को झटके से नहीं यूँ मोड़िए!
    आईने पर कुछ तरस तो खाइए!

    हुस्न है बा-लुत्फ़ जो पर्दे में हो,
    आईने से भी कभी शर्माइए!

    छोड़िए! 'ग़ाफ़िल' को उसके नाम पर,
    आप तो ग़ाफ़िल नहीं हो जाइए!

    आइये आजाइए आजाइए ,

    यूं न रह रहके हमें तरसाइए .

    छोडये सरकार को उसके रहम ,

    अब न रह रह तरस उसपे खाइए .

    क्या बात है गाफ़िल साहब कहतें हैं सब्र का फल मीठा होता है आते आप देर से हैं लेकिन सजसंवर के आतें हैं ,बढ़िया अश आर लातें हैं

    जवाब देंहटाएं
  15. आप आधा सच बोलना छोडिये मीडिया खुद बा खुद जिम्मेवार हो जायेगी .आप अभी तक अन्ना फोबिया अन्ना ग्रंथि से ग्रस्त हैं कोई अन्न भी कहे तो आपको लगता है अन्ना कह रहा है .इतने बढ़िया आलेख का आपने सत्यानाश कर दिया .पहला हाल्फ बहुत बढ़िया काबिले तारीफ़ और बाकी हाल्फ अन्ना ,अन्ना ,अन्ना ,आपकी अन्ना ग्रन्थि की भेंट चढ़ गया .नर भुलूँ, नारायण न भुलूँ.

    जवाब देंहटाएं
  16. आप आधा सच बोलना छोडिये मीडिया खुद बा खुद जिम्मेवार हो जायेगी .आप अभी तक अन्ना फोबिया अन्ना ग्रंथि से ग्रस्त हैं कोई अन्न भी कहे तो आपको लगता है अन्ना कह रहा है .इतने बढ़िया आलेख का आपने सत्यानाश कर दिया .पहला हाल्फ बहुत बढ़िया काबिले तारीफ़ और बाकी हाल्फ अन्ना ,अन्ना ,अन्ना ,आपकी अन्ना ग्रन्थि की भेंट चढ़ गया .नर भुलूँ, नारायण न भुलूँ.

    जवाब देंहटाएं
  17. आप आधा सच बोलना छोडिये मीडिया खुद बा खुद जिम्मेवार हो जायेगी .आप अभी तक अन्ना फोबिया अन्ना ग्रंथि से ग्रस्त हैं कोई अन्न भी कहे तो आपको लगता है अन्ना कह रहा है .इतने बढ़िया आलेख का आपने सत्यानाश कर दिया .पहला हाल्फ बहुत बढ़िया काबिले तारीफ़ और बाकी हाल्फ अन्ना ,अन्ना ,अन्ना ,आपकी अन्ना ग्रन्थि की भेंट चढ़ गया .नर भुलूँ, नारायण न भुलूँ.

    जवाब देंहटाएं
  18. साबाप्पा सुबुद्धि दो Iर्थक चिंतन का आवाहन करती पोस्ट .

    जवाब देंहटाएं
  19. हर बंद हर अ -दा खूबसूरत है ,
    कहते हो हंसना नहीं आता .

    अब खुश नजर नहीं आता


    आँखों में इतनी धुंध छायी है कि बस
    आइने में अपना अक्स नज़र नहीं आता ।
    आने वाले पल के मंज़र में खोये हो तुम
    मुझे तो बीता कल नज़र नहीं आता ।
    रात की बात करते हो सोच लिया करना
    मुझे दिन के सूरज में नज़र नहीं आता…

    जवाब देंहटाएं
  20. तुमसे ही तो ये घर, घर है,
    तुमसे ही आबाद नगर है,
    मन में तुमने जगह बनाई।
    जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।
    बहुत सुन्दर रचना .अमर भारती सी सहज सरला .बधाई ब्लॉग जगत की भारती जी को .

    जवाब देंहटाएं
  21. आप आ -धा सच बोलना छोडिये मीडिया खुद बा खुद जिम्मेवार हो जायेगी .आप अभी तक अन्ना फोबिया अन्ना ग्रंथि से ग्रस्त हैं कोई अन्न भी कहे तो आपको लगता है अन्ना कह रहा है .इतने बढ़िया आलेख का आपने सत्यानाश कर दिया .पहला हाल्फ बहुत बढ़िया काबिले तारीफ़ और बाकी हाल्फ अन्ना ,अन्ना ,अन्ना ,आपकी अन्ना ग्रन्थि की भेंट चढ़ गया .नर भुलूँ, नारायण न भुलूँ.

    जवाब देंहटाएं
  22. आईने पर कुछ तरस तो खाइए!
    आइए तो इत्तिलाकर आइए!
    जाइए तो बिन बताए जाइए!

    दिल मेरा है साफ़ मिस्ले-आईना,
    अपने चेहरे को तो धोकर आइए!

    पाइए! जी पाइए! बेहद सुकूँ,
    चश्म ख़म करके ज़रा मुस्काइए!

    रूख़ को झटके से नहीं यूँ मोड़िए!
    आईने पर कुछ तरस तो खाइए!

    हुस्न है बा-लुत्फ़ जो पर्दे में हो,
    आईने से भी कभी शर्माइए!

    छोड़िए! 'ग़ाफ़िल' को उसके नाम पर,
    आप तो ग़ाफ़िल नहीं हो जाइए!

    आइये आजाइए आजाइए ,

    यूं न रह रहके हमें तरसाइए .

    छोडये सरकार को उसके रहम ,

    अब न रह रह तरस उसपे खाइए .

    क्या बात है गाफ़िल साहब कहतें हैं सब्र का फल मीठा होता है आते आप देर से हैं लेकिन सजसंवर के आतें हैं ,बढ़िया अश आर लातें हैं .

    जवाब देंहटाएं
  23. तुमसे ही तो ये घर, घर है,
    तुमसे ही आबाद नगर है,
    मन में तुमने जगह बनाई।
    जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई।।
    बहुत सुन्दर रचना .अमर भारती सी सहज सरला .बधाई ब्लॉग जगत की भारती जी को .आप आ -धा सच बोलना छोडिये मीडिया खुद बा खुद जिम्मेवार हो जायेगी .आप अभी तक अन्ना फोबिया अन्ना ग्रंथि से ग्रस्त हैं कोई अन्न भी कहे तो आपको लगता है अन्ना कह रहा है .इतने बढ़िया आलेख का आपने सत्यानाश कर दिया .पहला हाल्फ बहुत बढ़िया काबिले तारीफ़ और बाकी हाल्फ अन्ना ,अन्ना ,अन्ना ,आपकी अन्ना ग्रन्थि की भेंट चढ़ गया .नर भुलूँ, नारायण न भुलूँ.

    जवाब देंहटाएं
  24. तुम अगर भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको ,

    मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की है .

    तुम अगर आँख चुराओ तो ये हक़ है तुमको, मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की है .

    बढ़िया अश - आर है आपके सभी .
    सितमगर बन जाओ तो हक़ है तुमको...


    तुझे भूल पाना मुमकिन नहीं,
    तुम भूल जाओ तो हक़ है तुमको!
    जुदाई की कल्पना भी संभव नहीं मेरे लिए,
    तुम छोड़ जाओ तो हक़ है तुमको!…

    जवाब देंहटाएं
  25. सौदाहरण सुन्दर प्रस्तुति अनुप्रासिक वि -भेद की .

    भारतीय काव्यशास्त्र – 125


    आचार्य परशुराम राय पिछले अंक में वक्रोक्ति अलंकार पर चर्चा की गयी थी। इस अंक में अनुप्रास अलंकार पर चर्चा की जाएगी। वर्णों की समानता (आवृत्ति) को अनुप्रास कहा गया है- वर्णसाम्यमनुप्रासः। भले ही व्यंजनों के साथ संयुक्त स्वरों में समानता न हो, लेकिन व्यंजनों में समानता होनी चाहिए। ऐसा होने पर अनुप्रास अलंकार होगा…

    जवाब देंहटाएं
  26. अमर भारती जी को जन्मदिन पर शुभकामनायें। इस्पात नगरी से शामिल करने का धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  27. सुन्दर सहज अभिव्यक्त हुए हैं ये हाइकु -
    नेताओं की ,
    हरदम ,
    पौ बारह .

    साहित्य सुरभि

    बेवफाई ( हाइकु )

    जवाब देंहटाएं
  28. अरे वाह !
    चर्चा मंच तो सजा है
    वीरू भाई जो दौड़ा रहे हैं
    टिप्पणियों की रेल
    उसका देखिये अलग ही
    मिल रहा मजा है !

    जवाब देंहटाएं
  29. आदरणीय अमर भारती जी को उनके जन्मदिन पर ढेरों शुभकामनाऎं !

    जवाब देंहटाएं
  30. आईने पर कुछ तरस तो खाइए!
    ग़ाफ़िल की अमानत

    बहुत सुंदर !

    वो आते हैं चले जाते है
    हमे पता कहाँ चलता है
    अपनी हर खबर तो वो
    सिर्फ आईने को ही बताते हैं !

    जवाब देंहटाएं
  31. बाप्पा सुबुद्धि दो I

    गणपति तो बरसों से
    हर बरस आ रहा है
    बुद्धि दे कर जा रहा है
    आदमी अपने हिस्से से
    सु और कु लगा कर
    अपनी ढपली अपने आप
    बजाता चला जा रहा है !

    जवाब देंहटाएं
  32. सितमगर बन जाओ तो हक़ है तुमको...

    उसे हक है भूल जाने का
    याद रखने का हक मुझे है
    अपने अपने हक लिये बैठे हैं
    ना उसे शक है ना मुझे शक है !

    जवाब देंहटाएं
  33. भारतीय काव्यशास्त्र – 125
    बहुत सुंदर प्रस्तुति !

    जवाब देंहटाएं
  34. * दावा *

    उम्दा !

    बदल गया है दृश्य देखिये कितना
    कृ्ष्ण ही शुरु कर दिया है चीर हरना !

    जवाब देंहटाएं
  35. मूली हो किस खेत की, क्या रविकर औकात

    वाह !
    रविकर की टिप्पणी और आपका लेखन
    मिलकर करते हैं अलग सा सम्मोहन !

    जवाब देंहटाएं
  36. विगत 6-मास के शीर्षक

    देखो गागर खुद बन रहा है
    रविकर सागर पे सागर
    बना बना कर भर रहा है !

    जवाब देंहटाएं
  37. ये सुबह सुहानी हो - इस्पात नगरी से

    बहुत खूबसूरत !

    आँख मिचौली आकाश में
    चल रही होती हो कहीं
    दिल में घर की ही फिल्म
    बन रही होती है वहीं !

    जवाब देंहटाएं
  38. सुंदर लिंक्स उपलब्ध कराती सुंदर चर्चा | मेरी रचना "अनाम रिश्ते" को शामिल करने के लिए बहुत बहुत आभार |
    "दीप"

    जवाब देंहटाएं
  39. नियमित ऐसे व्यायाम करें जिनमें ऑक्सीजन की खपत बढती हो -मसलन सैर करना ,तैराकी के लिए जाना ,कुलमिलाकर शरीर द्वारा ऑक्सीजन का प्रयोग सुधारना है .उम्र के अनुरूप कुछ भी करें .इससे आपकी दर्द ,जकड़न बर्दाश्त करने का माद्दा भी बढेगा ,सहनशक्ति में भी बढ़ोतरी होगी .

    वीरू भाई का जवाब नहीं फिर से याद दिलाने के लिये आभार !

    कबिरा खड़ा बाजार ब्लाग खोलने पर टिप्पणी वाला औप्शन नहीं मिलता है कई बार !

    जवाब देंहटाएं
  40. अनाम रिश्ते

    सुंदर !

    नाम का रिश्ता हो
    और काम का ना हो
    अच्छा है अनाम का हो
    एक ही रिश्ता कहीं !

    जवाब देंहटाएं
  41. सुंदर चर्चा...हमारी पोस्ट को शामिल करने के लिए बहुत आभार शात्रीजी |

    जवाब देंहटाएं
  42. "जन्मदिवस पर तुम्हें बधाई"



    दीदी जी स्वीकारिये, मेरा यह उपहार ।

    जन्म दिवस की दे रहा, शुभकामना अपार ।

    शुभकामना अपार, आपके श्री चरणन में ।

    दिवस बिठाये चार, अमोलक मम जीवन में ।

    रविकर करे प्रणाम, स्वस्थ तन मन से रहिये ।

    मिले सभी का स्नेह, सदा जय माता कहिये ।।

    जवाब देंहटाएं
  43. बहुत सार्थक लिंक्स,,,,
    मेरी रचना को मंच में स्थान देने के लिये बहुत२ आभार,,,,शास्त्री जी,,,जन्म दिन की बधाई,,,

    जवाब देंहटाएं
  44. बहुत सुसज्जित चर्चामंच है आज का शास्त्री जी ! राष्ट्रगान के सन्दर्भ में श्री राजीव कुलश्रेष्ठ जी का विस्तृत आलेख पढ़ा ! यह भ्रान्ति लंबे समय से सभी बुद्धिजीवियों को आंदोलित कर रही है कि यह गीत जॉर्ज पंचम की स्तुति में लिखा गया है इसलिए इसे राष्ट्र गान का गौरव नहीं दिया जाना चाहिए ! इसी सन्दर्भ में पिछले साल एक आलेख अपने ब्लॉग सुधीनामा पर मैंने भी प्रस्तुत किया था जिसमें कविवर रवीन्द्रनाथ टैगोर के उन दुर्लभ पत्रों का भी उल्लेख है जिसमें उन्होंने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि उक्त गीत जॉर्ज पंचम की स्तुति में नहीं वरन परम पिता परमेश्वर की स्तुति में उन्होंने लिखा था और 'अधिनायक' व 'भाग्यविधाता' संबोधन जॉर्ज पंचम के लिये नहीं वरन ईश्वर के लिये उद्धृत किये गये हैं ! मैं उस आलेख कि लिंक दे रही हूँ ताकि राजीव जी के साथ साथ उन लोगों की भ्रांतियां भी दूर हो जाएँ जो आज भी इस सन्दर्भ में असमंजस की स्थति से ग्रस्त हैं ! मेरे आलेख का शीर्षक है "राष्ट्रगान-किसकी जयगाथा" तथा उसकी लिंक इस प्रकार है !

    http://sudhinama.blogspot.in/2011/05/blog-post_12.html

    सशन्य्वाद !

    जवाब देंहटाएं

  45. भारतीयकाव्यशास्त्र – 125
    आचार्य परशुराम राय
    मन्त्र मारती मन्थरा, मारे मर्म महीप ।
    स्वार्थ साधती स्वयं से, समद सलूक समीप ।
    समद सलूक समीप, सताए सिया सयानी ।
    कैकेई का कोप, काइयाँ कपट कहानी ।
    कौशल्या *कलिकान, कलेजा कसक **करवरा ।
    रावण-बध परिणाम, मारती मन्त्र मन्थरा ।।
    *व्यग्र
    *आपातकाल

    जवाब देंहटाएं
  46. बढिया चर्चा
    मुझे भी स्थान देने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  47. सुंदर सूत्रों से सजा सुंदर चर्चामाच...मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार!!

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।