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शनिवार, जुलाई 04, 2015

"सङ्गीतसाहित्यकलाविहीना : साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीना : " (चर्चा अंक- 2026)

मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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वैदेही सोच रही मन में 

वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते !! 
वैदेही सोच रही मन में यदि प्रभु यहाँ मेरे होते... 
भारतीय नारी पर shikha kaushik
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निशा निमंत्रण के निनाद से 

हर सूरज के शंखनाद तक 

रणभेरी के राग बहुत हैं युद्धभूमि में खड़े हुए 
यह तो बतलाओ कौन कहाँ है ?... 
Shabd Setu पर RAJIV CHATURVEDI 
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दोहे "अपना देश महान"

मर्यादा से हो सजा, जीवन का परिवेश।
रामचरितमानस हमें, देती है सन्देश।१।
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दोहे सन्तकबीर ने, लिक्खे कई हजार।
दिया बिहारी लाल ने, दोहों का उपहार...
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हाईकू 

गलत क्या 
नहीं ज्ञान सच का 
आज के लोग |

ठठरी सजी 
अश्रु न थम सके 
सर धुनते... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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थोड़ी सी जमीन 

*माँ अब खड़ी है जीवन के* 
*अंतिम पड़ाव पर* 
*नहीं चाहिये उसे कोई एशोआराम* 
*बस एक आत्मीय सम्बोधन* 
*सुबह-शाम .. 
Yeh Mera Jahaan पर गिरिजा कुलश्रेष्ठ 
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जीवन 

Kailash Sharma 
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मेरे अंदर के अनाथ प्यार ने 

मैंने सोची थी बात फूलों की , 
बहारों की, सितारों की, नज़ारों की 
चाहा था किसी के आँखों में बन के ख़्वाब 
मैं टिमटिमाती रहूँ 
कोई दिल हो 
जहाँ बस मैं धड़कू... 
Lekhika 'Pari M Shlok' 
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हम टीका नहीं लगाते 

JHAROKHA पर पूनम श्रीवास्तव 
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3 टिप्‍पणियां:

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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