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शनिवार, अगस्त 19, 2017

"चीनी सामान का बहिष्कार" (चर्चा अंक 2701)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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बयान !! 

प्रकृति के बीच अंकुरित संस्कारों का ताजा संस्करण हैं आशीष - बटरोही !!* आशीष नैथानी (जन्म : 8 जुलाई, 1988) के साथ मेरा परिचय अरुण देव के चर्चित ब्लॉग 'समालोचन' में प्रकाशित उनकी कविताओं के माध्यम से हुआ. वो हैदराबाद में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है. उनके लेखन से लगता है कि उनकी जड़ें गढ़वाल के ग्रामीण परिवेश में हैं. शुरू-शुरू में ऐसा लग सकता है कि उनकी कविताओं का स्वर नोस्तेल्जिक है, मगर अगली कविताओं में बहुत साफ हो जाता है कि वे अपनी जड़ों के माध्यम से व्यापक मानवीय सन्दर्भों को उद्घाटित कर रहे होते हैं... 
तिश्नगी पर आशीष नैथाऩी 
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तुम गाँधी तो नहीं ! 

ना ना पीछे मुड़ कर ना देखना 
क्या पाओगे वहाँ वीभत्स सचाई के सिवा 
जिसे झेलना तुम्हारे बस की बात नहीं 
तुम कोई गाँधी तो नहीं ! 
सामने देखो तुम्हें आगे बढ़ना है 
वह रास्ता भी तो आगे ही है 
जिसका निर्माण तुमने स्वयं किया है... 
Sudhinama पर sadhana vaid 
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जाने कैसे जाने क्यों ?? 

जाने क्यों कभी-कभी ये मन 
बावरा बन उड़ने लगता है 
न जाने उसमे इतना हौसला कहाँ से आता है कि 
अपनी सारी हदें तोड़ हवा से बातें करने लगता है... 
प्यार पर Rewa tibrewal 
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युद्ध 

(1) जीवन मानव का हर पल एक युद्ध है मन के अंतर्द्वन्द्व का स्वयं के विरुद्ध स्वयं से सत्य और असत्य के सीमा रेखा पर झूलते असंख्य बातों को घसीटकर अपने मन की अदालत में खड़ा कर अपने मन मुताबिक फैसला करते हम धर्म अधर्म को तोलते छानते आवश्यकताओं की छलनी में बारीक फिर सहजता से घोषणा करते महाज्ञानी बनकर क्या सही क्या गलत हम ही अर्जुन और हम ही कृष्ण भी जीवन के युद्ध में गांधारी बनकर भी जीवित रहा जा सकता है वक्त शकुनि की चाल में जकड़.कर भी जीवन के लाक्षागृह में तपकर कुंदन बन बाहर निकलते है हर व्यूह को भेदते हुए जीवन के अंतिम श्वास तक संघर्षरत मानव जीवन.एक युद्ध ही है ... 
कविता मंच पर sweta sinha 
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जो चुप हैं , वे हैं अपराधी 

देखिये अँधेरा है घना 
रौशनी को है लाना 
अच्छी नहीं ये ख़ामोशी 
जो चुप हैं , वे हैं अपराधी 
बोलेंगे नहीं आप तो बोलेगा कौन 
कब तक रहेंगे आप दमन पर मौन... 
सरोकार पर Arun Roy 
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कितना आसाँ है आसाराम बन जाना --- 

मेरा मेरा करती है दुनिया सारी, 
मोहमाया से मुक्ति पाओ , तो जाने । 
कितना आसाँ है आसाराम बन जाना , 
राम बनकर दिखलाओ , तो जाने... 
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल 
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संयोग 

कैसा ऐ संयोग हैं लंबे अंतराल बाद 
किस्मत आज फ़िर उस मोड़ पे ले आयी 
सोचा था जिस राह से फिर ना गुजरूँगा 
ठिठक गए कदम खुद ब खुद 
पास देख उस आशियाने को 
फड़फड़ाने लगे यादों के पन्ने 
बेचैन हो गए दिल के झरोखें... 
RAAGDEVRAN पर 
MANOJ KAYAL 
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इग्‍जामिनी इज बेटर देन एग्‍जामनर 

हमारे बार में बीएसपी के रिटार्यड ला आफीसर सिंह साहब प्रेक्टिस करते हैं। वे जितने कानून में कुशाग्र हैं उतने ही करेंट अफेयर और इतिहास की जानकारी रखते हैं। कल उन्‍होंनें सुभाष चंद्र बोस और डॉ.राजेन्‍द्र प्रसाद के संबंध में बहुत रोचक किस्‍सा बताया, हालांकि बहुत से लोग इन किस्‍सों को जानते होंगें किन्‍तु हम इसे आपके समक्ष प्रस्‍तुत कर रहे हैं... 
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----- || दोहा-एकादश || ----- 

बाहन ते परचित भयो बिरचत बैला गाड़ि | 
चरनन चाक धराई के जग ते चले अगाड़ि || १ || 
भावार्थ : - बैलगाड़ी की रचना के द्वारा यह विश्व वाहन से परिचित हुवा | वह जब अपने पाँव पर स्थिर भी नहीं हुवा था तब यह देश पहियों पर चलता हुवा प्रगत रूप में अग्रदूत के पद पर प्रतिष्ठित था... 
NEET-NEET पर Neetu Singhal 
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लालच की सजा 

Fulbagiya पर डा0 हेमंत कुमार 
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बहारें ज़िन्दगी में प्यार ले कर आप आयें है 

बहारें ज़िन्दगी में प्यार ले कर आप आयें हैं 
कलम से खींच सपने आज काग़ज़ पर सजायें हैं... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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किस्सा गुलाब का 

कोठी भी छूटी कोठे की तो पूछिए ही मत
 होगा बुरा अब और भी क्या मह्वेख़्वाब का 
काँटों से अट चुका है मुसल्सल मेरा लिबास 
फ़ुर्सत मिली तो लिक्खूँगा किस्सा गुलाब का 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ 
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देश में इन दिनों उग्र राष्ट्रवाद और कट्टर धर्मान्धता की अफीम का समन्दर ठाठें मार रहा है। भ्रष्टाचार और कालेधन का खात्मा न होना, बढ़ती बेरोजगारी, स्कूलों-कॉलेजों में दिन-प्रति-दिन कम होते जा रहे शिक्षक, घटती जा रही चिकित्सा सुविधाएँ, किसानों की बढ़ती आत्महत्याएँ जैसे मूल मुद्दे परे धकेल दिए गए हैं। असहमत लोगों को देशद्रोही घोेषित करना और विधर्मियों का खात्मा मानो जीवन लक्ष्य बन गया है। लेकिन सब लोगों को थोड़ी देर के लिए मूर्ख बनाया जा सकता है। कुछ लोगों को पूरे समय मूर्ख बनाए रखा जा सकता है। किन्तु सब लोगों को पूरे समय मूर्ख नहीं बनाए रखा जा सकता... 
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इंतज़ार मत करना..... 

राजेश "ललित" शर्मा 

इंतज़ार मत करना अब मेरा 
थक गये हैं पाँव 
मुश्किल है चलना 
मोड़ अभी भी बहुत हैं 
ज़िंदगी के याद कर लेना 
कभी हो सके मेरे अक्स को 
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal 
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मेरी नज्म दरिया से उठा लो 

बह गई दरिया में जी करे तो उठा लेना 
पूछ लेना उस से मेरा हाल कुछ 
उसको भी सहला देना 
भीग कर आई है वो कही दूर से 
हो गया होगा उसको खांसी जुकाम 
थोड़ी ताज़ा अदरक की गर्म चाय पिला देना... 
रूहानी सुहानी पर Aparna Khare 
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8 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात शास्त्री जी ! बहुत सुन्दर एवं पठनीय सूत्र आज की चर्चा में ! मेरी रचना, 'तुम गाँधी तो नहीं' को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार !

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  2. चर्चा मंच पर विविधतापूर्ण रचनाओं का सुन्दर समागम है। वाचन की लिप्सा को संतुष्ट करता सराहनीय प्रयास। बधाई।

    जवाब देंहटाएं

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