मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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डेरा सच्चा सौदा कि झूठा सौदा :
सलिल समाधिया
...तो शुतुरमुर्गों। ..
स्वयं में ही विराजमान उस परम के
अथाह समुन्दर से मुंह छिपा लो
और गुरु और डेरों में मुंह छिपा लोस्वयं का दीपक कभी मत बनना
अज्ञान का डेरा डेल रहो
यही तुम्हारे लिए सच्चा सौदा है
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इक गमगीन सुबह
इक गमगीन सुबह के पहरुए
करते हैं सावधान की मुद्रा में
साष्टांग दंडवत कि वक्त की चाबी है
उनके हाथों में तो अकेली लकीरें
भला किस दम पर भरें श्वांस
ये अनारकली को एक बार फिर
दीवार में चिने जाने का वक्त है
vandana gupta
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मुक्तक
निज काम से थकते हुए देखे कहाँ कब आदमी।
केवल पराये काम से थकते यहाँ सब आदमी।
पर फिक्र धोखा झूठ ने ऐसा हिलाया अनवरत्
रविकर बिना कुछ काम के थकता दिखे अब आदमी।।
रविकर की कुण्डलियाँ पर रविकर
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तलाक
जो जंग जीती औरतों ने आज भी आधी-अधूरी ।
नाराज हो जाये मियाँ तो आज भी है छूट पूरी।
शादी करेगा दूसरी फिर तीसरी चौथी करेगा।
पत्नी उपेक्षा से मरेगी वह नही होगी जरूरी...
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सुना दो राग दरबारी हृदय आघात टल जाये।
अनिद्रा दूर हो जाए अगर तू भैरवी गाये।
हुआ सिरदर्द कुछ ज्यादा सुना दो राग भैरव तुम
मगर अवसाद में तो राग मधुवंती बहुत भाये...
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जंगली पॉलिटिक्स
सरासर झूठ सुन उसका उसे कौआ नहीं काटा।चपाती बिल्लियों को चंट बंदर ठीक से बाँटा।
परस्पर लोमड़ी बगुला निभाते मेजबानी जब।घड़े में खीर यह खाया उधर वह थाल भी चाट...
सरासर झूठ सुन उसका उसे कौआ नहीं काटा।चपाती बिल्लियों को चंट बंदर ठीक से बाँटा।
परस्पर लोमड़ी बगुला निभाते मेजबानी जब।घड़े में खीर यह खाया उधर वह थाल भी चाट...
"लिंक-लिक्खाड़"पररविकर
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1-अनुबन्ध
डॉ कविता भट्ट (हे न ब गढ़वाल विश्वविद्यालय,श्रीनगर गढ़वाल उत्तराखंड}
रीत-रस्म-आडम्बर होते, जग के ये झूठे प्रतिबन्ध
कौन लता किस तरु से लिपटे, इसके भी होते अनुबन्ध
बदली न मचलती ,कभी न घुमड़ती
आँचल चूम चंचल हवा न उड़ती
भँवरे कली से नहीं यों बहकते
तितली मचलती ,न पंछी चहकते
कब, हाथ मिलाना किससे? व्यापारों से होते सम्बन्ध...
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कभी बात करना वृक्षों से
मित्रकभी बैठना पल दो पलवृक्षों के निकटकरना उनसे बाते .वे कभी नहीं करेंगेकोई शिकायत अपने हत्यारे के बारे मेंजानते हुए कि तुम उन लोगों में शामिल होउनके साथ खड़े होजिन्होंने की है वृक्षों की हत्यावे कोई शिकायत नहीं करेंगेउनके पत्ते मुस्कुराएंगेहवा के झोके के साथअपनी गहरी छाया में वे तुम्हेतब तक बिठाएंगे जब तक तुम स्वयंउठकर चले न जाओ ....
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर राविवारीय अंक।
जवाब देंहटाएंसुन्दर लिंक्स. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंचर्चा -मंच की शानदार विचारणीय प्रस्तुति। वैचारिक मंथन के लिए समृद्ध सामग्री का सामयिक संकलन। आभार सादर।
जवाब देंहटाएंसार्थक सामयिक चर्चा प्रस्तुति
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