मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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स्वाभिमानी
माना ज्ञानी नहीं अज्ञानी हूँ मैं
फ़िर भी गुरुर से सराबोर रहता हूँ
मैं तिलक हूँ किसीके माथे का
महक से इसकी नाशामंद रहता हूँ...
RAAGDEVRAN पर MANOJ KAYAL
अस्तित्व
रेलगाड़ी की दो पटरियां
एक दूसरे का साथ देती
चलती चली जाती हैं
एक ही मंजिल की ओर...
कविताएँ पर Onkar
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चाह मेरी जाके मैख़ाने लगी
जिस अदा से आ मेरे शाने लगी
मुझको अब रुस्वाई भी भाने लगी...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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हमें अपनी झील के आकर्षण में बंधे रहना है
मैं कहीं अटक गयी हूँ, मुझे जीवन का छोर दिखायी नहीं दे रहा है। मैं उस पेड़ को निहार रही हूँ जहाँ पक्षी आ रहे हैं, बसेरा बना रहे हैं। कहाँ से आ रहे हैं ये पक्षी? मन में प्रश्न था। शायद ये कहीं दूर से आए हैं और इनने अपना ठिकाना कुछ दिनों के लिये यहाँ बसा लिया है...
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....हमारी ओर से भी अब पासे श्री कृष्ण फैंकेंगे....
आज़ादी की 71वीं वर्षगाँठ पर पूछता हूं मैं, भ्रष्ट नेताओं से बिके हुए अधिकारियों से, स्वतंत्रता दिवस पर या गणतंत्रता दिवस पर तुम तिरंगा क्यों लहराते हो? ...तुम क्या जानो तिरंगे का मोल... एक वो थे, जो आजादी के लिये मर-मिटे एक ये हैं, जो आजादी को मिटा रहे नेताओं को चंदा मिल रहा, और अधिकारियों को कमिशन फिर राष्ट्रीय दिवस क्यों मनाते हो? ...तुम क्या जानों इन पर्वों का मोल.... कल हम अंग्रेजों के गुलाम थे, और आज भ्रष्टाचार के कल जयचंद के कारण गुलाम हुए, आज भी कुछ लोग हैं उसी परिवार के, जो रक्षकों पर पत्थर बरसा रहे, चो वंदे मातरम न गा रहे, होने वाला है कृष्ण का अवतार अब, ...
kuldeep thakur
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राष्ट्रभक्ति
राष्ट्रभक्ति के नाम पर काली कमाई करने वाले बेहिसाब लोग हैं, पर कुछ ऐसे भी दृष्टांत जानकारी में आते हैं कि आभावों में पलने वाले कई लोगों का देशप्रेम का ज़ज्बा अमीर लोगों की सोच से बहुत ऊपर होता है. ऐसा ही एक सच्च्चा किस्सा है कि झोपडपट्टी में पलने वाला एक १० वर्षीय बालक व्यस्त शहर की एक लाल बत्ती पर अपने पुराने से वाइपर पर पोचे का गीला कपड़ा बाँध कर खड़ी कारों के शीशों को बिना पूछे ही साफ़ करने लगता है, कुछ दयावान लोह उसे छुट्टे सिक्के दे भी जाते हैं; एक बड़े सेठ जी को अपनी लक्ज़री कार के शीशे पर उसका ये पोचा लगाना हमेशा नागवार गुजरता है,
बालक ‘जो दे उसका भी भला, जो ना दे उसका भी भला ...
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थोथा चना बाजे घना
शांत गहरे सागर रहते झर झर झर झरने छलकते ,
ज्ञानी मौन यहां पर रहें पोंगे पण्डित ज्ञान देवें ,
थोथा चना बाजे घना
गुणगान करे अपना *यहां*...
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अनुच्छेद ३७० है
'भारतीय एकता व अक्षुणता' को
बनाये रखने की गारंटी और इसे हटाने की मांग है-
साम्राज्यवादियों की गहरी साजिश.------
विजय राजबली माथुर
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नदी
नदी अब वैसी नहीं रही
नदी में तैरते हैं नोटों के बंडल,
बच्चों की लाशें
गिरगिट हो चुकी है नदी...
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय
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सरकारी आदेश का पालन:
जैसा तूने गाया,
वैसा मैंने बजाया
यह घटना इसी रविवार, तेरह अगस्त की है। यह घटना मुझे इसके नायक ने आमने-समाने बैठकर सुनाई है। वास्तविकता मुझे बिलकुल ही नहीं मालूम। इस घटना का नायक मध्य प्रदेश सरकार के, ग्रामीण सेवाओं से जुड़े विभाग का कर्मचारी है। उसके जिम्मे 19 गाँवों का प्रभार है। प्रदेश सरकार ने इस विभाग के सभी अधिकारियों, कर्मचारियों को एक-एक सिम दे दी है। इनके लिए एण्ड्राइड फोन अनिवार्य है। सबको वाट्स एप से जोड़ दिया गया है और कह दिया गया है कि वाट्स एप पर मिले सन्देश को राज्य सरकार का औपचारिक और आधिकारिक आदेश माना जाए...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर लिंक्स. मेरी रचना शामिल की. आभार.
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच की प्रस्तुति समय और वैचारिक योगदान का सार्थक अर्पण है। इसमें संकलित विविध रचनाओं को पढ़कर समाज की वास्तविक स्थिति की तस्वीर सामने उभरती है। बधाई एवं नमन आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंsunder charcha ,meri kavita shamil karane hetu sadar dhanyavad !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंक्रांतिस्वर की 'अनुच्छेद 370 ' संबंधी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार एवं धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा।
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