मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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1.
आम है आया
सूरज की पार्टी में
जश्न मनाया!
2.
फलों का राजा
शान से मुस्कुराता
रंग बिरंगा!
3...
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रेल हादसा
कितना कुछ पीछे छोड़ चली
जीवन की रेल चली !
एक स्टेशन पीछे रह गया
अगला आने को था
पेड़ पीछे भाग रहे थे
बड़ा सुहाना मंज़र था !
रात गहराई और सब खो गए
नींद की आगोश में सारे यात्री सो गए !
एकाएक हुआ धमाका...
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शीर्षकहीन
भोर भई रवि की किरणें
धरती कर आय गईं शरना
लाल सवेर भई उठ जा
कन-सा अब देर नहीं करना...
आपका ब्लॉग पर
jai prakash chaturvedi
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एक गीत :
कुंकुम से नित माँग सजाए----
कुंकुम से नित माँग सजाए ,प्रात: आती कौन ?
प्राची की घूँघट अधखोले
अधरों के दो-पट ज्यों डोले
मलय गन्ध में डूबी डूबी ,तुम सकुचाती कौन...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
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खेजड़ली बलिदान कथा
अरे! जब राजमहल बन रहा है और उसका चूना पकाने के लिए लकड़ियाँ चाहिए, तो राजा अपने राज्य में चाहे जहां से लकड़ी कटवाए! बिश्नोई कौन होते हैं रोकने वाले ? दीवान गिरधरदास ने राजा अभयसिंह को उसकी शक्तियाँ याद दिलाई। राजा असमंजस में खड़ा रहा! दीवान ने उसे अपनी युक्तियों पर विश्वास करने को कहा...
Laxman Bishnoi Lakshya
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मैं तो सिर्फ तुम्हारी होना चाहती हूं....!!!
मेरी-तुम्हारी सोच से कही परे था...
अमृता,साहिर और इमरोज़ को समझना...
'आहुति' पर Sushma Verma
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ग़ज़ल -
शायद कोई नशा है यहां इंकलाब में
आ जाइये हुजूर जरा फिर हिजाब में ।
लगती बुरी नजर है यहां माहताब में...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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उम्र की चाबी
उम्र तो जिंदगी की दहलीज़ का बस एक पैमाना हैंजिन्दा रहने को साँसें भी एक बहाना हैं
संघर्ष ही इसके अंदाज का आशियाना हैं...
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लोहे का घर-28
*सुबह* (दफ्तर जाते समय) ट्रेन हवा से बातें कर रही है। इंजन के शोर से फरफरा के उड़ गए धान के खेत में बैठे हुए बकुले। एक काली चिड़िया उम्मीद से है। फुनगी पकड़ मजबूती से बैठी है। गाँव के किशोर, बच्चे सावन में भर आये गढ्ढे/पोखरों के किनारे बंसी डाल मछली मार रहे हैं। क्या बारिश के साथ झरती हैं आकाश से मछलियाँ...
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शायद कभी सुलग उठें
राख में दबे विचार
क्या टेक्नॉलॉजी में बदलाव से इंसान की मानसिकता भी बदल जाती है ? माहौल देखकर तो ऐसा ही कुछ महसूस हो रहा है ! कुछ बरस पहले तक चिट्ठी - पत्री के जमाने में लोग जिस आत्मीयता से एक - दूसरे के साथ अपने मनोभावों की अदला - बदली करते थे और उस आदान -प्रदान में जो संवेदनाएं होती थी , आज मोबाइल और स्मार्ट फोन जैसे बेजान औजारों एसएमएस ,ट्विटर इंटरनेट और वाट्सएप जैसी बेजान अमूर्त मशीनों से निकलने वाले शब्दों में उन संवेदनाओं को महसूस कर पाना असंभव नहीं तो कठिन जरूर हो गया है...
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आनंद अपने अन्दर है
आनंद प्राप्त करने के लिए बहार के साधनों मैं भटकने वाला आनंद के बदले दुःख ही प्राप्त करता है निर्मल आनंद प्राप्त लिए तो अंदर झांकना आवश्यक है ा इन्द्रियां अंतर्मुखी हों तो आनंद प्राप्त होगा और यदि वे बहिर्मुखी होगी तो सुख दुःख मैं पड़ेंगी अर्थात बहार के साधनों मैं आनंद है ही नहीं इतना निश्चित है मन जब अंतर्मुखी होता है तभी वह चैतन्य परमात्मा का स्पर्श कर सकता है और जब चेतन प्रभु का स्पर्श होता है तभी अनिर्वचनीय आनंद प्राप्त होता है
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बेहतरीन प्रस्तुति ......एवं चयन आभार आपका
जवाब देंहटाएंसादर
सुन्दर लिंक्स
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबधाई आदरणीय शास्त्री जी इस विविधतापूर्ण ,वैचारिक एवं जनोपयोगी प्रस्तुतीकरण के लिए।
सभी चयनित रचनाकारों को बधाई एवं शुभकामनाऐं।
बहुत बढ़िया लिंक्स। मेरी रचना शामील करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुतिकरण . इस बार भी बहुत अच्छे और उपयोगी लिंक्स मिले हैं .ब्लॉग जगत में चर्चा मंच के जरिये विगत आठ वर्षों से आपकी और आपके सहयोगी मित्रों की लगातार सक्रिय उपस्थिति वाकई प्रभावित करती है .नये-पुराने सभी ब्लॉगरों को आप लोगों का स्नेह और प्रोत्साहन मिल रहा है .
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और हार्दिक शुभेच्छाएं .
बहुत सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
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