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Wednesday, September 13, 2017

"कहीं कुछ रह तो नहीं गया" (चर्चा अंक 2726)

"कुछ कहना है"

कहीं कुछ रह तो नहीं गया- 

पिलाकर दूध झट शिशु को, फटाफट हो गई रेडी। उठाई पर्स मोबाइल घड़ी चाभी चतुर लेडी। इधर ताके उधर ताके नहीं जब ध्यान कुछ आया। लगा आवाज आया को, वही फिर प्रश्न दुहराया। कहीं कुछ रह तो नहीं गया। हाय री ममता मुई मया।।

शिकायत  

शिकायतों का तुमने ऐसा पहाड़ बना दिया 
ना ख़ुद हँस के जिये, ना हमें जीने दिया... 
RAAGDEVRAN पर 
MANOJ KAYAL  

टुकड़ा-टुकड़ा 

कहानी 

मेरे मन की पर अर्चना चावजी 

मंजर 

Sunehra Ehsaas पर 
Nivedita Dinkar  

सर्कस से भागा जब भालू----। 

डा0 हेमंत कुमार  

6 comments:

  1. शुभ प्रभात रविकर भाई
    आभार
    सादर

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  2. विविध रंगों से सजी सार्थक चर्चा।
    आपका आभार रविकर जी।

    ReplyDelete
  3. रंगबिरंगी उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, शास्त्री जी।

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. चर्चा में लेख को शामिल करने का बहुत आभार!

    ReplyDelete
  6. बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति

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"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

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