मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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दोहे
"हिन्दी से है प्यार"
हिन्दी भाषा का हुआ, दूषित विमल-वितान।स्वर-व्यंजन की है नहीं, हमको कुछ पहचान।।
बात-चीत परिवेश में, अंग्रेजी उपलब्ध।क्यों हमने अपना लिए, विदेशियों के शब्द।।
सिसक रही है वर्तनी, खिसक रहा आधार।अपनी हिन्दी का किया, हमने बण्टाधार।।
बात-चीत परिवेश में, अंग्रेजी उपलब्ध।क्यों हमने अपना लिए, विदेशियों के शब्द।।
सिसक रही है वर्तनी, खिसक रहा आधार।अपनी हिन्दी का किया, हमने बण्टाधार।।
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हिंदी दिवस
सभी मित्रों को हिंदी दिवस की
हार्दिक शुभकामनाएं
हिंदी मेरी पहचान है
हिंदी से ही सम्मान है
ये नाम यश जो दिए
हिंदी तेरा एहसान है
चांदनी रात पर
रजनी मल्होत्रा नैय्यर
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रात रागिनी
बादलों ने रात संग इक तान छेड़ी
फूल महके पत्तियां भी गुन गुना दीं
रजनीगंधा मस्त थिरकी ,
बावली कोयल कहीं से कुहू कुहाई ..
सरसराती पवन गूँजी ..
Manjula Saxena -
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जन्मदिन मुबारक हो !!
ओह मेरी मातृभाषा
तुम कितनी शांत सी हो
निर्मल सी
कटुता की भाषा तुम्हे आती नहीं
दिल भर जाता है
जब कोई खुद के लफ़्ज़ों में
तुम्हे पिरोता है
जब कोई खुद को
बयां करता है
फिर भी आज की समझ कुछ
अजब सी है
शायद किसी को याद भी नहीं
कि आज तुम्हारा दिन है
अपनी मातृभाषा का जन्मदिन है
कहने को हम सब कुछ याद रखतें हैं
सारे दिवस मनातें है
तो आज हम तुम्हारा दिन कैसे भूल गए
मुबारक हो तुमको ये दिन ये साल
मुबारक हो तुमको तुम्हारी पहचान!!
तुम कितनी शांत सी हो
निर्मल सी
कटुता की भाषा तुम्हे आती नहीं
दिल भर जाता है
जब कोई खुद के लफ़्ज़ों में
तुम्हे पिरोता है
जब कोई खुद को
बयां करता है
फिर भी आज की समझ कुछ
अजब सी है
शायद किसी को याद भी नहीं
कि आज तुम्हारा दिन है
अपनी मातृभाषा का जन्मदिन है
कहने को हम सब कुछ याद रखतें हैं
सारे दिवस मनातें है
तो आज हम तुम्हारा दिन कैसे भूल गए
मुबारक हो तुमको ये दिन ये साल
मुबारक हो तुमको तुम्हारी पहचान!!
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ब्राह्मण की पोथी लुटी
और बणिये का धन लुटा
हम बनिये-ब्राह्मण उस सुन्दर लड़की की तरह हैं जिसे हर घर अपनी दुल्हन बनाना चाहता है। पहले का जमाना याद कीजिए, सुन्दर राजकुमारियों के दरवाजे दो-दो बारातें खड़ी हो जाती थी और तलवार के जोर पर ही फैसला होता था कि कौन दुल्हन को ले जाएगा? तभी से तो तोरण मारने का रिवाज पैदा हुआ था...
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कुछ कतरनें ::
बियाबान में चलते-चलते
ऐसे कैसे सीधी सरल रहती,
वक्र हो गयी,
ये खुद से ही है हारी दुनिया
गलती हमारी ही होगी,
जाने क्या हुआ,
रहने लायक रही नहीं हमारी दुनिया ...
अनुशील पर अनुपमा पाठक
शुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंआभार और फिर से आभार
सादर
'क्रांतिस्वर ' की पोस्ट को स्थान देने हेतु धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंचर्चा सार्थक रही
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और रोचक चर्चा....
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