मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
--
--
--
--
--
--
--
हिम्मत तो की होती बुलाने की
चुन ली राह ख़ुद को तड़पाने की
क्यों की ख़ता तूने दिल लगाने की।
ये हसीनों की आदत होती है
चैन चुराकर नज़रें चुराने की...
--
इज्जत मत उतारिये ‘उलूक’ की
बात कर साहित्य और साहित्यकारों की
समझिये जरा वो
बस अपनी उल्टियाँ लिख रहा है
उलूक टाइम्स पर सुशील कुमार जोशी
--
--
--
--
बुलेट विचार
सुना कि बुलेट ट्रेन आने वाली है अतः इसी घोषणा के साथ बुलेट गति से उपजे विचार बुलेट पाईंट में आपकी खिदमत में पेश किये जा रहे हैं: - · बुलेट ट्रेन में एक डिब्बा मुंबई लोकल टाईप स्टैंडिंग का भी रहेगा. कुल दो घंटे की तो बात है. - · बुलेट फिल्म प्रोडक्शन के नाम से एक नई प्रोडक्शन कंपनी बनेगी जो डेढ़ घंटे की फिल्में बनायेगी सिर्फ बुलेट ट्रेन के लिए. देखना है तो यात्रा करो..पधारो म्हारे देश गुजरात में!! - ·
--
भाषा में मुहावरों का तड़का
हिंदी में तो मुहावरों की भरमार है। इसमें *मनुष्य के सर से लेकर पैर तक हर अंग के ऊपर एकाधिक मुहावरे बने हुए है। इसके अलावा खाने-पीने, आने-जाने, उठने-बैठने, सोने-जागने, रिश्ते-नातों, तीज-त्योहारों, हंसी-ख़ुशी, दुःख-तकलीफ, जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों, कथा-कहानियों, स्पष्ट-अस्पष्ट ध्वनियों, शारीरिक-प्राकृतिक या मनोवैज्ञानिक चेष्टाओं तक पर मुहावरे गढ़े गए हैं; और तो और हमने ऋषि-मुनियों-देवों तक को इनमे समाहित कर लिया है...
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
--
--
इम्तिहान भी तय है
न-अपमान भी तय है ,वितृष्णा भरी आँख का सामान भी तय है
न भटकना ऐ दिल , तुझको सहना है जो वो तूफ़ान भी तय है
न राहों से गिला , न कश्ती से शिकायत मुझको
तूफानों के समन्दर में , मेरा इम्तिहान भी तय है...
न भटकना ऐ दिल , तुझको सहना है जो वो तूफ़ान भी तय है
न राहों से गिला , न कश्ती से शिकायत मुझको
तूफानों के समन्दर में , मेरा इम्तिहान भी तय है...
गीत-ग़ज़ल पर शारदा अरोरा
--
--
चिड़िये रँ सुख-दुख ::
अंगिका अनुवाद :
डॉ. अमरेन्द्र
आज अपनी एक पुरानी कविता फ़ेसबुक पर शेयर किया हमने और कविता का सौभाग्य कि डॉ. अमरेन्द्र जी ने कविता को अंगिका में अनूदित कर दिया! इसे सहेज लें यहाँ भी ! बहुत बहुत आभार, डॉ. अमरेन्द्र जी...
--
--
ब्लॉगिंग के 9 वर्ष !
आज से नौ वर्ष पहले इस विधा से परिचित हुई थी और तब शायद फेसबुक से इतनी जुडी न थी क्योंकि स्मार्ट फ़ोन नहीं थे। थे तो लेकिन मेरे पास न था और साथ ही आइआइटी की नौकरी में समय भी न था। लेकिन ऑफिस के लंच में मैं अपने ब्लॉग पर लेखन जारी रखती थी और काम उसी तरह से कुछ न कुछ चलता ही रहा। फेसबुक और ट्विटर के आने से लोगों को त्वरित कमेंट और प्रतिक्रिया आती थी और लोगों को वह अधिक भा गया ...
--
--
--
--
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंवाह..
आभार..
सादर
शुभप्रभात आदरणीय
जवाब देंहटाएंआभार शुक्रिया आपका
सादर
आज की सुन्दर चर्चा में 'उलूक' के सूत्र को भी स्थान देने के लिये आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री अंकल
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंसादर नमस्ते।
सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआभार!
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbahut bahut shukriya Shastri ji .
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय...
जवाब देंहटाएंshandar prastuti ....aabhar aapka
जवाब देंहटाएं