मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ग़ज़ल
यह खुश नसीबी’ ही थी’, कि तुमसे नज़र मिले
हूराने’ खल्क जैसे’ मुझे हमसफ़र मिले |
किस्मत कभी कभी ही’ पलटती है’ अपनी’ रुख
डर्बी के ढेर में तेरे जैसे गुहर मिले...
कालीपद "प्रसाद"
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भीड़ कुत्ता बन भौकती रही
और राजहंस मंद मंद मुस्कराता रहा
सन १९७६ के आसपास की है यह बात...अखबार में उनकी एक कहानी छपी जो अंततः उनकी एकमात्र कहानी बन कर रह गई. उनका कहना है कि बहुत चर्चित रही..अतः आपने पढ़ी ही होगी ऐसा मैं मान लेता हूँ..वो राज हंस वाली, जिसमें एक राज हंस होता है और वो तीन बंदर जिनको वो राज हंस चुनावी मंच पर ले आया था और लोगों से कहा कि यह गाँधी जी वाले तीनों बंदर हैं..एक बुरा मत कहो, दूसरा बुरा मत सुनो और तीसरा बुरा मत देखो..वाला...उद्देश्य मात्र इतना था कि आम जनता उसे गाँधी का उपासक मानकर उनके पद चिन्हों पर चलने वाला समझे...
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किस बात की शर्म
जमावड़े में शरीफों के
शरीफों के नजर आने में
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgdlgrdmk9tfb6FqAO7Cke7Ozt4qvcruqwNbXV2RGKARHm3-u0Vaks8wI_6it4j0zk-hMnYAfjIjJzIxaSLRDKhYcotmH-IZOdsI8H7qgLWMlgCuONVl-1-5G3x0T3o8RcRgaD9p40yd0M/s320/prayer-in-group.jpg)
सीखना जरूरी
है है बहुत
कलाकारी
कलाकारों से
उन्हीं के
पैमानों में
किताबें ही
किसलिये
दिखें हाथ में
पढ़ने वालों के ... कलाकारी कलाकारों से उन्हीं के पैमानों में
किताबें ही किसलिये दिखें हाथ में पढ़ने वालों के ...
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मेरी कलम
पहले लिखा करती थी,
आजकल नहीं लिखती,
पड़ी रहती है थकी-थकी सी,
सहमी सी, यह कलम,
आजकल नहीं लिखती...
Anjana Dayal de Prewitt
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आ अब लौट चलें !
( विश्व ग्रैंड पेरेंट्स डे )
एक समय था जब कि घर की धुरी दादा दादी ही हुआ करते थे या उनके भी बुजुर्ग होते थे तो उनकी हर काम में सहमति या भागीदारी जरूरी थी। उनका आदेश भी सबके लिए सिर आँखों पर रहता था। शिक्षा के लिए जब जागरूकता आई तो बच्चों को घर से बहार शहर में पढ़ने के लिए भेजा जाने लगा और वे गाँव की संस्कृति से दूर शहरी संस्कृति की ओर आकृष्ट होने लगे...
मेरा सरोकार पर रेखा श्रीवास्तव
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हो श्रद्धा, न हो आडम्बर
थे श्रेष्ठ सदा ही पिता हमारे
कर्तव्य निभाकर गए वो सारे
मन का व्यथा भरा नहीं था
टूट-टूटकर उर बिखरा था
भाई भी जग को छोड़ गये
अनंत पीर में डूबो गये
चीत्कार ह्रदय कर रहा निरंतर
स्मृति-हीन हुये ना पलभर...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंएक पठनीय रचनाओं का संगम
आभार
सादर
सार्थक चर्चा, आभार
जवाब देंहटाएंचर्चा हमेशा ही सुन्दर होती है। एक और सुन्दर पंखुड़ी। आभार 'उलूक' के सूत्र को चर्चा में शामिल करने के लिये आदरणीय।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपका चयन हमेशा पारखी होता है । इससे यह पता चलता है कि आप इसके पीछे बहूत मेहनत करते है । इतने सारे बेहतरीन लेखों मे से उम्दा लेख चुनना कोई बच्चों का खेल नही । कितना समय देना पड़ता है ज्ञात है ।
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