निमंत्रण बिन गई मैके, करें मां बाप अन्देखी-
रविकर
विधाता छंद
निमंत्रण बिन गई मैके, करें मां बाप अन्देखी।
गई जब यज्ञशाला में, बघारे तब बहन शेखी।
कहीं भी भाग शिव का जब नहीं देखी उमा जाकर।
किया तब दक्ष पुत्री ने कठिन निर्णय कुपित होकर।
स्वयं समिधा सती बनती, हुआ विध्वंस तब रविकर।
उठाकर फिर सती काया, वहां ताँडव करें शंकर।।
प्रलय संभावना दीखे, उमा-तन से शिवा सनके।
सुदर्शन चक्र से टुकड़े करें तब विष्णु उस तन के।।
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Untitledगजल
निर्मला कपिला
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कुएँ का मेंढक
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.....बच बच के,बच के कहाँ जाओगे
एक पुरानी फिल्म, यकीन, का गाना है, "बच बच के, बच के, बच बच के, बच के कहाँ जाओगे" ! जो आज पूरी तरह देश के मध्यम वर्ग पर लागू हो फिर मौंजूं है ! उस गाने के बोलों को बिना जुबान पर लाए, आजमाया जा रहा है, देश के इस शापित वर्ग पर। देश की जनता समझ तो सब रही है ! फिलहाल चुप है। पर उसकी चुप्पी को अपने हक़ में समझने की भूल भी लगातार की जा रही है। आम-जन के धैर्य की परीक्षा तो ली जा रही है, पर शायद यह सच भुला दिया गया है कि हर चीज की सीमा होती है। नींबू चाहे कितना भी सेहत के लिए मुफीद हो, ज्यादा रस पाने की ललक में अधिक निचोड़ने पर कड़वाहट ही हाथ लगती है....
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इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है ,,,,,,,दुष्यंत कुमार
yashoda Agrawal
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लोकतांत्रिक आचरण को सीखने की जरूरत
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रविकर
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दोहे "हरकत हैं नापाक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
-- जिन्दगी
जिन्दगी विवशता में हाथ कैसे मल रही है
जिन्दगी मनुज से ही मनुजता को छल रही है...
आपका ब्लॉग पर
jai prakash chaturvedi
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत बढिया चर्चा..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबिन बुलाए कही भी नही जाना चाहिए चाहे वह फिर मायका ही क्यों न हो! बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, शास्त्री जी।
सुन्दर रविकर चर्चा।
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