रजाई ओढ़कर सोता, मगर ए सी चलाता है
रविकर
खलिश बढ़ती रही घर में, मगर कुछ बोल ना पाता।
फजीहत जब हुई ज्यादा, शहर को रंग दिखलाता।
रजाई ओढ़कर सोता, मगर ए सी चलाता है।
नहाकर पूत गीजर को, खुला ही छोड़ जाता है।
सतत् चलता रहे टी वी, जले दिन रात बिजली भी
नहीं कोई सुने घर में, बढ़ा बिल जान खाता है।
बढ़ा जो रेट बिजली का, मियां तब खूब झल्लाता।
फजीहत जब हुई ज्यादा, शहर को रंग दिखलाता।।
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शुभ प्रभात रविकर भाई
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआभार रविकर जी।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति रविकर जी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवह ... लाजवाब चर्चा ... आभार मुझे शामिल करने का आज ...
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