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रविवार, फ़रवरी 18, 2018

"कुन्दन सा है रूप" (चर्चा अंक-2884)

मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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पाब्लो नेरुदा -  

"इस तरह मरते है हम" -  

अनुवाद - संदीप नाईक 

मरना शुरू होता है धीरे से 
जब तक शुरू ना हो एक यात्रा 

शुरू नहीं करते बांचना जीवन का ककहरा
सुनना शुरू नहीं करते जीवन संगीत और अनहद नाद 
शुरू नहीं करते पहचानना अपने आपको 
इस तरह मरना शुरू करते है धीमे से 
मार देते है जब अपने जमीर को 
बंद कर देते है दूसरों से मदद लेना अपने लिए.... 
ज़िन्दगीनामा पर Sandip Naik  
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6 टिप्‍पणियां:

  1. सभी चयनित रचनाएं ताजगी से भरी हुई है आपकी मेहनत दिखती है... मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत आभार आपका...!

    जवाब देंहटाएं

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