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गुरुवार, अगस्त 02, 2018

"गमे-पिन्हाँ में मैं हस्ती मिटा के बैठा हूँ" (चर्चा अंक-3051)

मित्रों! 
गुरूवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 
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बाल कहानी--- 

हमारा कालू 

Fulbagiya पर 
डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar  
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हे मानव मत मानवता छोडो 

अमावसी गगन में जैसे अंजन सा दिखता अंधकार 
दिशा का ज्ञान कराती वैसे तारों का स्नेहिल उपकार. 
एक मात्र आशायें भरकर नेत्र देखता है संसार 
धरा घुमती रहती हरपल लेकर ढेरों भाव उदार... 

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मीना:  

एक दर्द भरा नग़्मा 

हज़ारों बार हंस हंस के अपने ही जवां दिल के टुकडे चुनने वाली मीना को ज़िंदगी ने बहुत दिया पर कुछ अरमान फिर भी थे जो ज़िंदगी से पहले ही दम तोड गये थे. उन्हें मोहब्बत  नही मिली; वे अपने शोहर की बाहों में दम नही तोड पाईं; मां बनने की हसरत मीना के साथ ही दम तोड गई और मीना इस ज़िंदगी से बग़ैर कुछ लिये चली गईं... बेहद तन्हां...
पूरी चांदनी रातें मीना की याद आने पर आज भी गुनगुनातीहैं:  
चांद तन्हां है आसमां तन्हां
दिल मिला है कहाँ कहाँ तन्हां
ज़िंदगी क्या इसी को कह्ते हैं
जिस्म तन्हां और जां तन्हां
राह देखाकरेगा सदियों तक
छोड जायेंगे ये जहां तन्हां... 
आवारगी पर lori ali 
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5 टिप्‍पणियां:

  1. ग़ज़ल के इस सशक्त हस्ताक्षर को वीरुभाई के प्रणाम शायर कहीं नहीं जाते अशआर कहीं नहीं जाते शरीर जाए तो जाए इसे तो जाना ही है :

    गम-ए-पिन्हाँ

    डूब कर तेरे ख्यालों में आके बैठा हूँ
    कौन सा ग़म है जिसे मैं छुपा के बैठा हूँ

    बदलते दौर में कोई बफ़ा नहीं करता
    चाह की फिर भी शम्मा जला के बैठा हूँ

    कुसूर तेरानहीं किस्मत का ही होगा अपनी
    दाग दामन में खुद ही लगाके बैठा हूँ

    मैं तेरे ख्याल से खाली कभी नहीं रहता
    तुम्हारी याद को दिल में बसा के बैठा हूँ

    करके ‘बदनाम’ हमसे दूर चले जाओगे
    गमे-पिन्हाँ में मैं हस्ती मिटा के बैठा हूँ

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा चर्चा...मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ प्रभात
    आज आप को विलम्ब हुआ
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर सूत्रों के साथ सजी आज गुरुवारीय चर्चा में 'उलूक' की ढोर को भी जगह देने के लिये आभार आदरणीय।

    जवाब देंहटाएं

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