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शनिवार, अगस्त 25, 2018

"जीवन अनमोल" (चर्चा अंक-3074)

मित्रों! 
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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दोहे  

"पूजा का " 

( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ) 

सीमाओं पर है डटे, देखो लाखों लाल ।
वो ही है पहचानते, दुश्मन की सब चाल... 
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ओस की बूंद 

प्यार पर Rewa tibrewal  
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बारौठी ,  

एक हरियाणवी रिवाज़  

जो अब लुप्त हो गई है --- 

बारौठी : शहर और हरियाणवी गांवों की शादियों में बहुत अंतर होता है। हालाँकि अब शहरों में रहने वाले हरियाणवी लोग भी गांव की रीति रिवाज़ों को छोड़ कर शहरी ढंग से शादियां करने लगे हैं। लेकिन यू एस से आये लड़के के परिवार को सांकेतिक रूप में सब रीति रिवाजों को निभाने की इच्छा थी। इसलिए शहर के परिवेश में पारम्परिक रूप से सभी रस्में निभाई गईं। फिर भी एक रिवाज़ रह गई जिसे बारौठी कहते हैं क्योंकि इसके लिए गुंजाईश ही नहीं थी। आइये बताते हैं कि बारौठी क्या होती थी... 
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल  
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समय के पदचिन्ह... 

कुछ सुखद कुछ दुःखद  
कुछ अनुकरणीय खुरदरी -कठोर  
अनुभवों की जमीन पर  
जाता हुआ समय  
छोड़ जाता है पदचिन्ह... 
Upasna Siag  
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संगत का असर :  

नवजोत सिंह सिद्धू 

संग का रंग चढ़ता है यह तो सब जानतें हैं लेकिन इतना जल्दी चढ़ता है यह हमें भी नहीं मालूम था। कल का गुर -सिख (गुरु का प्यारा सिख )आज कांग्रेसी हो गया मणिशंकर अय्यर की जुबान बोलने लगा।उन्हीं की भाषा बोलने लगा जिसकी शरण में गया था। कल जब बोलता था तो लगता था एक सच्चा इंसान दिल से बोल रहा है... 
Virendra Kumar Sharma  
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पार्श स्वर... 

पूजा प्रियंवदा 



वहाँ कहीं बहुत दूर 
उसका मुश्किल नाम वाला 
जर्मन गाँव रहता है

मैं अक्सर बैठी मिलती हूँ 
उस तालाब के किनारे 
जो जाड़ों में 
बर्फ हो जाता है
और याद करती हूँ 
दिल्ली की धूप

मेरी भाषा नहीं जानते उसके लोग 
मेरा भूरा रंग 
उनके लिए अनमना है 
जैसे किसी तस्कर ने 
हिंदुस्तानी इतिहास की रेत 
की एक मुट्ठी 
चुपचाप बिखेर दी 
उनके श्वेत किनारों पर

कहानियाँ रंग बिरंगे धागों जैसी 
देखो तो बस उलझी हैं 
समझो तो जैसे कोई 
नक्श उभरने वाला है

गाँठें बांधती तो हैं 
दो सिरे 
लेकिन याद के रेश्मी धागे 
कब खींच ले 
गिरह खोलकर सारी 
कौन जाने

यहीं कहीं 
बर्फ में ढका 
कब्रिस्तान इनका 
न जाने कौन सी भाषा में 
लिखें ये मेरा नाम 
मेरी कब्र पर !
-पूजा प्रियंवदा
मेरी धरोहर पर yashoda Agrawal 

7 टिप्‍पणियां:

  1. आभार शास्त्री जी, जानकर प्रसन्नता हुई कि आप अपने इस कार्य मे निस्वार्थभाव से निरंतर जुटे हैं। आपके स्वस्थ और सुखी जीवन की कामना करता हूँ।

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  2. उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति 👌👌👌

    जवाब देंहटाएं
  4. एक से बढ़कर एक, मनमोहक प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं

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