सुधि पाठकों!
बुधवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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शिक्षक दिवस "बिकता है ज्ञान"
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
ऊँची दूकान
फीका पकवान
आज के युग में
बिकता है ज्ञान
यही तो है
शिक्षा की पहचान...
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खुशबू उसी की है
( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
जो बस गई है मुझ में वो खुशबू उसी की है
जो जी रही हूं जिंदगी वो भी उसी की है
रहता है आसपास मेरे साथ में सदा
हंसते हुए लबों की बंदगी उसी से है...
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कुछ बरसें
कुछ बरसात करें
बात सुनें और
बात सुनायें
बातों की
बस बात करें
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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चन्द माहिया :
क़िस्त 53
:1:सब क़िस्मत की बातें
कुछ को ग़म ही ग़म
कुछ को बस सौग़ातें
:2:
कब किसने है माना
आज नहीं तो कल
सब छोड़ के है जाना...
आपका ब्लॉग पर
आनन्द पाठक
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हां हम नारी हैं
मत समझो हमको
कि हम बेचारी हैं
हां हम नारी हैं
तूफानों के आगे
कभी न रुकना
फितरत हमारी है...
anuradha chauhan at
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मुक्त
जितना आसान होता है,
ये कह देना कि जाओ मुक्त किया तुम्हें,
उतना ही मुश्किल होता है,
साल - दर - साल साथ निभाये गये
लम्हों से मुक्त होना,..
Anita Maurya
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इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं
जो बाप का नाम पूछने पर
खुश होकर कहते हैं माओत्से ,
देश का नाम पूछने पर भी
कहते हैं माओत्से
Virendra Kumar Sharma
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सुंदर प्रस्तुति शानदार रचनाएं सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिए धन्यवाद राधा जी
शिक्षा दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
शिक्षक दिवस की बधाइयाँ
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन प्रस्तुति
आभार
सादर
बढ़िया चर्चा।
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएँ।
सुन्दर शिक्षक दिवस चर्चा। शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं। आभार राधा जी 'उलूक' की बात को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की बधाइयाँ
जवाब देंहटाएंबढ़िया संकलन.
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंशिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सभी गुरुजनो को
शिक्षक दिवस पर सरस्वती पुत्र डॉ. रूप चंद शास्त्रीजी के उदगार :शास्त्री जी वैसे डॉक्टर नहीं हैं जैसे यूनिवर्सिटी में पाए जाते हैं आयुर्वेद के विज्ञचिकित्सक एवं मर्मज्ञ हैं इसीलिए साहित्य सेवी भी हैं :
जवाब देंहटाएंओम् जय शिक्षा दाता, जय-जय शिक्षा दाता।
जो जन तुमको ध्याता, पार उतर जाता।।
तुम शिष्यों के सम्बल, तुम ज्ञानी-ध्यानी।
संस्कार-सद्गुण को गुरु ही सिखलाता।।
कृपा तुम्हारी पाकर, धन्य हुआ सेवक।
मन ही मन में गुरुवर, तुमको हूँ ध्याता।।
कृष्ण-सुदामा जैसे, गुरुकुल में आते।
राजा-रंक सभी का, तुमसे है नाता।
निराकार है ईश्वर, गुरु-साकार सुलभ।
नीति-रीति के पथ को, गुरु ही बतलाता।।
सद्गुरू यही चाहता, उन्नति शिष्य करे।
इसीलिए तो डाँट लगाकर, दर्शन समझाता।।
श्रीगुरूदेव का वन्दन, प्रतिदिन जो करता।
सरस्वती माता का, वो ही वर पाता।।
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मैं बोलता हूँ जो भी ये जुबान उसी की है ,
जवाब देंहटाएंलिखू जो भी कलम उसी की है ,
धड़के जो दिल ये मेरा साँसें उसी की हैं।
बेहद खूबसूरत बंदिश पढ़िए राधेगोपाल राधा तिवारी जी की :
खूबसूरत चर्चा
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