मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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दोहे
"महापुरुष अवतार"
बादल नभ में छा रहे, बरस रहा है नीर।
हुआ देवकी-नन्द का, मन तब बहुत अधीर।।
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बन्दीघर में कंस की, पहरे थे संगीन।
खिसक रही वसुदेव के, पैरो तले जमीन।।
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बालकृष्ण ने जब रची, लीला स्वयं विराट।
प्रहरी सारे सो गये, सब खुल गये कपाट...
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भरे पेट भुखमरी के दर्द को
कौन समझता है
पहनने वाला ही जानता है जूता कहाँ काटता है
जिसे कांटा चुभे वही उसकी चुभन समझता है
पराये दिल का दर्द अक्सर काठ का लगता है
पर अपने दिल का दर्द पहाड़ सा लगता है...
जिसे कांटा चुभे वही उसकी चुभन समझता है
पराये दिल का दर्द अक्सर काठ का लगता है
पर अपने दिल का दर्द पहाड़ सा लगता है...
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देश बहुत बड़ी चीज है
खुद के आस पास देख
‘कबूतर’
‘साँप’
ही खुद एक
‘नेवला’
जहाँ पाल रहा होता है
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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जनता तुम्हारा नोटा बना देगी
हमने पिताजी और माँ के जीवन को देखा था, वे क्या करते थे, वह सब हमारे जीवन में संस्कार बनकर उतरता चला गया। लेकिन जिन बातों के लिये वे हमें टोकते थे वह प्रतिक्रिया बनकर हमारे जीवन में टंग गया। प्रतिक्रिया भी भांत-भांत की, कोई एकदम नकारात्मक और कोई प्रश्नचिह्न लगी हुई। जब हवा चलती है तब हम कहते हैं कि यह जीवन दायिनी है लेकिन जब यही हवा अंधड़ के रूप में विकराल रूप धर लेती है तो कई अर्थ निकल जाते हैं। ऐसी ही होती हैं स्वाभाविक क्रिया और प्रतिक्रिया...
smt. Ajit Gupta
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इशारे
आँखों के इशारों से
क्या खूब खत लिखें उन्होंने
भाषा ख़त की परिभाषा
मानों नयनों के रंगो में रंग गयी
आँखे लबों के अल्फ़ाज़ और इशारें...
RAAGDEVRAN पर
MANOJ KAYAL
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर चर्चा
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की शुभकामनाएं। आभार आदरणीय 'उलूक' के सूत्र को भी जगह देने के लिये आज की चर्चा में।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा, मेरी रचना को जगह देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंजन्माष्टमी की सभी को हार्दिक शुभकामनाएं!