मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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उठो द्रौपदी...
अटलबिहारी वाजपेयी
उठो द्रौपदी वस्त्र संम्भालोअब गोविन्द न आयेंगे।
कब तक आस लगाओगी तुमबिके.. हुए अखबारों से।
कैसी रक्षा मांग रही होदु:शासन.... दरबारों से।
स्वंय...जो लज्जाहीन पड़े हैंवे क्या लाज बचायेंगे।
उठो द्रोपदी वस्त्र संम्भालोअब गोबिन्द न आयेंगे। Il१॥...
कब तक आस लगाओगी तुमबिके.. हुए अखबारों से।
कैसी रक्षा मांग रही होदु:शासन.... दरबारों से।
स्वंय...जो लज्जाहीन पड़े हैंवे क्या लाज बचायेंगे।
उठो द्रोपदी वस्त्र संम्भालोअब गोबिन्द न आयेंगे। Il१॥...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
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कबूतर का जोड़ा
कबूतर पकड़ना
कबूतर उड़ाना
सिखाने को फिर से
सुना है नजर आना
शुरु हो जायेगा
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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बहरुपिये जिस्म से बचना
होश
चांद पर तैरता पानी
बूंद बूंद गिरता
कि वक्त बहुत कम हैं
बिदा होने का
वक्त आये
कुछ ऐसे कि
जहां कोई जिस्म नही हो...
हमसफ़र शब्द पर
संध्या आर्य
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मौजूद रहेंगी ध्वनियाँ
एक दिन कुछ ऐसा होगा
मिट जाएगी पृथ्वी
ये महल
ये अट्टालिकाएं
ये सभ्यताएं
सब मिटटी बन जाएँगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ ...
मिट जाएगी पृथ्वी
ये महल
ये अट्टालिकाएं
ये सभ्यताएं
सब मिटटी बन जाएँगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ ...
सरोकार पर Arun Roy
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बरसते घन
रिमझिम बारिश की बूँदें.....
ये घन,
रोज ही भर ले आती हैं बूँदें,
भटकती है हर गली,
गुजरता हूँ जिधर मैं,
भिगोती है रोज ही,
ढूंढकर मुझे...
purushottam kumar sinha
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमज़ेदार लगा विभिन्न रचनाओ का ये पिटारा।
जफ़र का सादर आभार
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
इस सुंदर प्रस्तुति के मध्य अपनी रचना को पाकर प्रसन्नता हुई । सभी रचनाकारों को बधाई ।सुप्रभात
जवाब देंहटाएंसुन्दर मंगलवारीय प्रस्तुति। आभार आदरणीय 'उलूक' के कबूतर के जोड़े को जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत चर्चा
जवाब देंहटाएंतहे दिल से शुक्रिया और आभार !
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा
जवाब देंहटाएं