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मंगलवार, सितंबर 11, 2018

"अनुबन्धों की मत बात करो" (चर्चा अंक-3091)

मित्रों! 
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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उठो द्रौपदी... 

अटलबिहारी वाजपेयी 

उठो द्रौपदी वस्त्र संम्भालोअब गोविन्द न आयेंगे।
कब तक आस लगाओगी तुमबिके.. हुए अखबारों से।
कैसी रक्षा मांग रही होदु:शासन.... दरबारों से।
स्वंय...जो लज्जाहीन पड़े हैंवे क्या लाज बचायेंगे।
उठो द्रोपदी वस्त्र संम्भालोअब गोबिन्द न आयेंगे। Il१॥... 
yashoda Agrawal  
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बहरुपिये जिस्म से बचना 

होश

चांद पर तैरता पानी
बूंद बूंद गिरता 
कि वक्त बहुत कम हैं
बिदा होने का
वक्त आये
कुछ ऐसे कि
जहां कोई जिस्म नही हो... 
संध्या आर्य 
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मक़बरा 

प्यार पर Rewa tibrewa 
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मौजूद रहेंगी ध्वनियाँ 

एक दिन कुछ ऐसा होगा
मिट जाएगी पृथ्वी
ये महल
ये अट्टालिकाएं
ये सभ्यताएं
सब मिटटी बन जाएँगी
फिर भी मौजूद रहेंगी
ध्वनियाँ ... 
सरोकार पर Arun Roy 
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बरसते घन 

थमती ही नहीं,  
रिमझिम बारिश की बूँदें..... 
ये घन,  

रोज ही भर ले आती हैं बूँदें, 
भटकती है हर गली,  
गुजरता हूँ जिधर मैं,  
भिगोती है रोज ही,  
ढूंढकर मुझे... 
purushottam kumar sinha  
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ग़ज़ल 

भाई देकर भाई से’ अलग क्यों कर दिया ?  
कभी इकट्ठा ना रहे ऐसा क्यों घर दिया ... 
कालीपद "प्रसाद"  
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किताबों की दुनिया -  

194 

नीरज पर नीरज गोस्वामी 

9 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    मज़ेदार लगा विभिन्न रचनाओ का ये पिटारा।
    जफ़र का सादर आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. इस सुंदर प्रस्तुति के मध्य अपनी रचना को पाकर प्रसन्नता हुई । सभी रचनाकारों को बधाई ।सुप्रभात

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर मंगलवारीय प्रस्तुति। आभार आदरणीय 'उलूक' के कबूतर के जोड़े को जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  4. उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं

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