मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ग़ज़ल
"दिलों में पुल बनाओ भी"
( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
कभी मेरी सुनो दिलबर कभी अपनी सुनाओ भी।
जो कहती दिल की हर धड़कन मुझे इतना बताओ भी ...
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मेरो तरीके मज़हब क्या पूछती हो मुन्नी ,
शियों में मैं शिया हूँ ,सुन्नियों में सुन्नी।
Virendra Kumar Sharma
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तृष्णा से मर जाएगा....
बिन पानी के जीवन तेरा
तृष्णा से मर जाएगा
बोलो मानव फिर तुझको
ईश्वर कौन बचेगा ?...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
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ग़ज़ल
राही’ तो राह चला करता है
डाह में दुष्ट जला करता है |
चाँद सा चेहरा’ जुल्फों में
ज्यूँ चाँद बादल में छुपा करता है...
कालीपद "प्रसाद"
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क्यों परीक्षा पड़ती
सब पर भारी!
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुप्रभात, आदरणीय डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री जी, ये अनूप जलोटा को क्या हो गया इस उम्र में, भक्ति गीत गाने वाला ऐसी हरकत करेगा तो आम आदमी इनसे क्या सीखेगा। जल+लोटा :) इसके दिमाग का लोटा खाली हो चूका है फिर भी अपने आपको जलोटा समझता है।
जवाब देंहटाएंबाकि सभी लिंक भी शानदार।
सुप्रभात।
जवाब देंहटाएंशानदार लिंक्स।बढ़िया चर्चा।
आभार
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंकुछ करते हैं दिखाई दे जाते हैं।
कुछ छुपाने में माहिर हो जाते हैं।
अनूप जलोटा जैसे लोग
ऐसे ही कुछ लोगों के बीच से आते हैं।
उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, आदरणीय शास्त्री जी!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा सार्थक सूत्र ! मेरी रचना को आज के मंच पर स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति में मेरी पोस्ट सम्मिलित करने हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंगर लौकिक संसार में, चमकाना हो रूप।
जवाब देंहटाएंग़ज़ल गायकी छोड़कर, गाओ भजन अनूप।।
साँच कहूँ सुन लेओ सभै ,
जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभ पायो।
इश्क की उम्र नहीं होती है ,
ये वो नगमा है जो बाद -ए -मरग भी गाया जाता।
vaahgurujio.blogspot.com
सुंदर दोहावली शास्त्री जी की ,आरती श्री पिलोटा जी की।
अनूप जल लोटा जी को कितने ही लोग पिलोटा अनूप कहते हैं। योगी आनंद जी ने एक बार हमें बतलाया था ये आदमी भजन संध्या(कंसर्ट ) के बाद गेस्ट के साथ भुना हुआ मुर्गा खा रहा था।
जवाब देंहटाएंकबीरा तेरी झौंपड़ी ,गलकटियन के पास,
करेंगे सो भरेंगे ,तू क्यों भयो उदास।
भर सूरत पिलोटा जी का अपना निजी जीवन है हो सकता है वह सूफी वाद को प्रायोगिक जीवन में उतार रहें हों।
ईश्वर जिनकी बहुरिया है ,
अनूप पिलोटा नाम ,
जपो सभै सुबहो - शाम .