मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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Daughters Day
मेरे कांधे पर जिस बेटी का सिर है वह है Shivani Billore बेटियों पर गर्व करना यह सारी बेटियां अब काम कर रही हैं मुझे गर्व है कि मेरी बड़ी बेटी शिवानी अगले दो-तीन दिनों में कंपनी की ओर से पुनः एक बार विदेश यात्रा पर होगी इस बार शिवानी जा रही है बेल्जियम के ब्रुसेल्स शहर में जो बेल्जियम की राजधानी है बीच में उसे उसे दुबई भी जाना था किंतु कंपनी की जो भी परिस्थिति रही हो शिवानी Ey में सीनियर एसोसिएट के पद पर पदस्थ है,,,
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प्यास
तृष्णा न गई
प्यासा रहा मन भी
यह कैसी सजा
प्यासा है तन
मन भी तरसे है
जल के बिना
तृष्णा बढ़ती
बिना नियंत्रण के
चित अशांत
Akanksha पर Asha Saxena
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संदेश
हवाओं ने लहरायें,
ग़ुम नाम मनसूबे,
हाथों ने फिर तेरा नाम संवारा,
भूल चुकी थी,
इश्क का गलियारा,
धङकनो ने फिर तेरा नाम पुकारा...
ग़ुम नाम मनसूबे,
हाथों ने फिर तेरा नाम संवारा,
भूल चुकी थी,
इश्क का गलियारा,
धङकनो ने फिर तेरा नाम पुकारा...
गूंगि गुड़िया
"जिंदगी एक अहसास"
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है उम्दा 👌
जवाब देंहटाएंसभी रचना कारों को हार्दिक बधाई ।
धन्यवाद आदरणीय,साहित्य के इस मंच पर मेरी रचना को स्थान दिया ।
सादर
उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा ! सभी को बधाई ।
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय। "डा0 शमशेर सिंह बिष्ट" जी को श्रद्धांजलि को चर्चा मंच में जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंदौलत के दरबार में, पैसे के हैं रंग।।
जवाब देंहटाएंप्रतिभाएँ कुण्ठित हुई, देख अनोखे ढंग।।
शिव भक्तों की भीड़ में राहुल नंगधडंग ,
भोले को भरमाय के पी गए सगरी भंग।
बेहतरीन दोहावली शास्त्री जी की
वीरूभाई
veerusa.blogspot.com
दौलत के दरबार में, पैसे के हैं रंग।।
जवाब देंहटाएंप्रतिभाएँ कुण्ठित हुई, देख अनोखे ढंग।।
शिव भक्तों की भीड़ में राहुल नंगधडंग ,
भोले को भरमाय के पी गए सगरी भंग।
बेहतरीन दोहावली शास्त्री जी की
चली गंगा चली यमुना बनाने को समुंदर है
भुलाया जो नहीं जाता वही यादों का मंजर है
बनेंगे काम सारे ही, अगर हो हौसला मन में
कोई ना भूलता जिसको वही होता सिकंदर है
जन्म के साथ ही बनती हमेशा भाग्य की रेखा
परोसा है वही जाता बना जैसा मुकद्दर है
चला रोटी कमाने को हुनर को बेचने निकला
उछल और कूद जो करता वही होता कलंदर है
राधा कर रही सजदा हमेशा उस ठिकाने को
जहाँ पर ज्ञान के रहते बड़े भारी धुरंधर हैं
वीरूभाई
veerusa.blogspot.com
छला भोले को फिर निकला है बन ने को सिकंदर ,
यहां बनता है वह छैला वहां बनता है बाज़ीगर।
बेहतरीन ग़ज़ल राधा तिवारी जी की।