मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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"स्लेट और तख्ती"
(प्रकाशन जयविजय-सितम्बर,2018)
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राधे की परछाई
( राधा तिवारी "राधेगोपाल " )
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दुनिया के सवालों का
जवाब न आया
Dilbag Virk
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लिखना जरूरी
हो जा रहा होता है
जब किसी के गुड़ रह जाने
और किसी के शक्कर हो जाने का
जमाना याद आ रहा होता है
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मितवा मेरे
मैं धरती
तुम आकाश
कैसे हो दूरी पार
कैसे मिलन हो पाए |
हम दौनों नदिया के किनारे
चलते हैं साथ साथ
पर कभी मिल नहीं पाते
जानते हो क्यूँ ...
Akanksha पर
Asha Saxena
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खेवैय्या
purushottam kumar sinha
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स्व के अर्थ...
शिल्पा शर्मा
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
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नोटबन्दी:
इसमें देश कहीं नहीं था
नोटबन्दी की विफलता का बचाव करते हुए वित्त मन्त्री अरुण जेटली सच ही कह रहे थे कि नोटबन्दी का मकसद यह देखना नहीं था कि बन्द किए गए नोटों में से कितने नोट वापस आएँगे। यह कहते हुए वे यह भी कह रहे थे कि आठ सितम्बर 2016 की रात को, नोटबन्दी की घोषणा करते हुए प्रधान मन्त्री मोदी झूठ बोले थे कि नोटबन्दी का लक्ष्य आतंकवाद, नकली मुद्रा, काले धन और भ्रष्टाचार से मुक्ति पाना था। आँकड़े और जमीनी वास्तविकताएँ बता रही हैं कि जेटली ही सच्चे हैं, प्रधान मन्त्री नहीं। नोटबन्दी का लक्ष्य देश की बेहतरी नहीं था...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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कामनाओं का जँगल -
ग्राउण्ड ऑफ़ स्कल्पचर, न्यू जर्सी
यात्रानामा पर
parmeshwari choudhary
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चेतन भगत ने नए अंदाज में
किया नई किताब
The Girl in Room 105
का खुलासा
अब छोड़ो भी पर
Alaknanda Singh
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Secrets of RSS Demystifying the Sangh
(HINDI ALSO )
Virendra Kumar Sharma -
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ऐतिहासिक त्रासदी
भारतीय शिक्षा व्यवस्था की
शरारती बचपन पर sunil kumar
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Yamunotri Yatra :
Janki chatti to Yamunotri
Naresh Sehgal
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भगवान का धन,
भगवान के बंदों के लिए ही
उपलब्ध नहीं हो पा रहा
सवाल यह उठ रहा है कि मंदिरों की यह अकूत धन-सम्पदा कब और किस काम आएगी ? किस ख़ास आयोजन के लिए इसे संभाल कर रखा जा रहा है ? क्या समय के साथ यह सब जमींदोज हो जाने के लिए है ? मंदिरों में जमा यह धन का पहाड़ देश की अमानत है ! यह अकूत, बेशुमार दौलत साधारण लोगों के द्वारा दान करने पर ही इकट्ठा हो पाई है ! तो आज जब वही आम इंसान मुसीबत में है, पूरा देश चिंताग्रस्त है, तो फिर इस बेकार पड़े, भगवान के नाम के धन का उपयोग भगवान के बंदों के लिए क्यों नहीं किया जा रहा है...
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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शिक्षक दिवस पर...
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सुप्रभात।
जवाब देंहटाएंइस शानदार प्रस्तुति के लिए बधाई।
स्लेट तख्ती दुम तोड़ रहे हैं।कितने अच्छे थे दिन जब ब्लैकबोर्ड रंगकर सूखने की राह देखते थे।कमेट भीगाते थे।
जवाब देंहटाएंसुप्रभात।
यात्रानामा शामिल करने के लिए आपका बहुत आभार
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर शुक्रवारीय चर्चा। आभार आदरणीय 'उलूक' के गुड़ शक्कर को भी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स |
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सेतु चयन लिए आया चर्चा मंच। साज सज्जा भी खूबसूरत प्रस्तुति नायाब।
जवाब देंहटाएंveerujialami.blogspot.com