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सोमवार, सितंबर 17, 2018

"मौन-निमन्त्रण तो दे दो" (चर्चा अंक-3097)

सुधि पाठकों!
 सोमवार की चर्चा में 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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चन्द माहिया :  

क़िस्त 54 

1:  
ये कैसी माया है  
तन तो है जग में  
मन तुझ में समाया है  
:2:  
जब तेरे दर आया  
हर चेहरा मुझ को  
मासूम नज़र आया... 
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक 
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ये कैसा शहर है.. 

ये कैसा शहर है ना कोई काफ़िया ना कोई बहर है। 
क्यूँ उनींदा सा है ए बोझिल पलकों में सुबह की पहर है... 
kamlesh chander verma 
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स्तन कैंसर 

Kishore Ghildiyal  
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8 टिप्‍पणियां:

  1. नहीं सुरक्षित अब रही ,बेटी रक्षित आज ।
    बेटों के प्रति हो रहा, अर्पित सकल समाज।।
    सारगर्भित दोहावली राधा तिवारी जी की :
    निर्भय होकर नौंचता ,निर्भया को सुत आज ,
    नंगा होके रोंद्ता अपने घर की लाज।
    kabirakhadabazarmein.blogspot.com

    veerubhai1947.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  2. गीत की रीत चातुर की प्रीत ज़वाब नहीं शास्त्रीजी के गीतों का :


    मन झूम रहा होकर व्याकुल, तुम पंखुरिया फैलाओ तो।
    कब से बैठा प्यासा चातुर, गगरी से जल छलकाओ तो।।
    veerubhai1947.blogspot.com
    vigyanchakshu.blogspot.com

    veeruji005.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर सूत्र आज की चर्चा में ! मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार राधा जी ! सस्नेह वन्दे !

    जवाब देंहटाएं

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