सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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चन्द माहिया :
क़िस्त 54
1:
ये कैसी माया है
तन तो है जग में
मन तुझ में समाया है
:2:
जब तेरे दर आया
हर चेहरा मुझ को
मासूम नज़र आया...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
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ये कैसा शहर है..
ये कैसा शहर है ना कोई काफ़िया ना कोई बहर है।
क्यूँ उनींदा सा है ए बोझिल पलकों में सुबह की पहर है...
kamlesh chander verma
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शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआभार आपका राधा बहन जी।
नहीं सुरक्षित अब रही ,बेटी रक्षित आज ।
जवाब देंहटाएंबेटों के प्रति हो रहा, अर्पित सकल समाज।।
सारगर्भित दोहावली राधा तिवारी जी की :
निर्भय होकर नौंचता ,निर्भया को सुत आज ,
नंगा होके रोंद्ता अपने घर की लाज।
kabirakhadabazarmein.blogspot.com
veerubhai1947.blogspot.com
गीत की रीत चातुर की प्रीत ज़वाब नहीं शास्त्रीजी के गीतों का :
जवाब देंहटाएंमन झूम रहा होकर व्याकुल, तुम पंखुरिया फैलाओ तो।
कब से बैठा प्यासा चातुर, गगरी से जल छलकाओ तो।।
veerubhai1947.blogspot.com
vigyanchakshu.blogspot.com
veeruji005.blogspot.com
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंउम्दा रही यह चर्चा भी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्र आज की चर्चा में ! मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार राधा जी ! सस्नेह वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
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