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सोमवार, सितंबर 24, 2018

"गजल हो गयी पास" (चर्चा अंक-3104)

सुधि पाठकों!
 सोमवार की चर्चा में 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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गीत  

"खेतों की शान "  

( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ) 

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हरी भरी हरियाली देखोअब खेतों की शान हो रही
 वर्षा की बौछार धान केलिए आज वरदान हो रही... 
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उम्मीदें 

सु-मन (Suman Kapoor) 
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क्रिकेट में हीरो फिल्म में जीरो,  

एक चिरंतन परंपरा 

इतने बड़े-बड़े नामों के सफल ना होने,  फिल्मों की इतनी भद्द पिटने के बावजूद भी, ना खिलाड़ी फ़िल्मी हीरो बनने का मोह छोड़ पा रहे हैं और ना हीं फिल्मकार उनको लेकर फिल्म बनाने का ! ताजा उदहारण श्री संत हैं ! जो खेल में प्रतिबंधित हो कर ''अक्‍सर 2'' में हाथ आजमा रहे हैं। पर फिल्मों के आकर्षण से मुक्त न रह पाने वाले वे अकेले नहीं हैं ! जिस तरह से वर्तमान कप्तान का झुकाव फिल्मों की तरफ हो रहा है और जैसा माहौल बनाया जा रहा है, हो सकता है, आने वाले दिनों में कोहली भी तेज रफ़्तार कार चलाते, गाना गाते और विलेन की ठुकाई करते जल्द ही ''सिल्वर स्क्रीन'' पर नजर आ जाएं ..... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 
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सरकारी अस्पताल -- 

सरकारी अस्पतालों में क्षमता से ज्यादा रोगियों के आने से सारी व्यवस्था चरमरा जाती है। ओ पी डी में एक डॉक्टर को एक रोगी को देखने के लिए औसतन मुश्किल से डेढ़ मिनट का ही समय मिलता है। वार्डस में एक बेड पर दो या तीन मरीज़ों को भर्ती किया जाना आम बात है।  हमने डेंगू के समय एक बेड पर चार रोगियों को भर्ती होते देखा है। बच्चों के अस्पताल में एक बेड पर जब तीन बच्चे होते हैं तो माँओं को मिलाकर यह संख्या ६ हो जाती है। उस पर डॉक्टर्स और अन्य कर्मचारियों की सीमित संख्या के साथ साथ जगह की भी कमी महसूस होती है क्योंकि अधिकांश बड़े अस्पताल वर्षों पहले बनाये गए थे और तब किसी ने भविष्य में मरीज़ों की संख्या के बारे में अनुमान नहीं लगाया होगा। 
ऐसे में सवाल यह उठता है कि किस तरह सरकारी अस्पतालों की व्यवस्था को सुधारा जाये ताकि अस्पताल में आने वाले रोगियों को उपचार में ज्यादा इंतज़ार न करना पड़े और उन्हें संतुष्टि भी हो। सैद्धांतिक हल तो बहुत हैं लेकिन कोई व्यावहारिक/ वास्तविक हल सुझाईये जिसे कार्यान्वित कर हम भी अपने अस्पताल में स्वास्थयकर्मियों और रोगियों, दोनों को कुछ राहत प्रदान कर सकें। 

अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल 
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अपरिचित 

ओ अपरिचित,  

अपना कुछ परिचय ही दे जाओ.... 

विस्मित हूँ निरख कर मैं वो स्मित, 
बार-बार निरखूं,  
मैं इक वो ही अपरिचित, 
हिय हर जाओ,  
चित मेरा ले जाओ, 
विस्मित फिर से कर जाओ... 
purushottam kumar sinha 
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तृष्णा मन की -  

कविता 

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 मिले  जब  तुम अनायास -
 मन मुग्ध   हुए तुम्हें  पाकर  ;
 जाने थी कौन तृष्णा  मन की - 
जो छलक गयी अश्रु बनकर... 
क्षितिज पर Renu  
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देख तेरे संसार की हालत ..... 

कल एक शोक सभा से लौटते हरियाणा के एक कथित बाबा (जो फिलहाल जेल में हैं) की शिष्या टकरा गईं. अपनी सखी को बाय/विदा/खुदा हाफिज़/राम राम/राधे राधे की बजाये सत् और जाने क्या बुदबुदाई. इसी ने मुझे चौंकाया. मैंने पूछा अभी तुमने अभी क्या कहा . वह फिर बुदबुदाई . मुझे फिर भी समझ नहीं आया तो विस्तार से बताने लगी. हम फलाने गुरू की शिष्या हैं तो यही कहते हैं. हमारे गुरू की बातें सुनो आप. हम किसी भी भगवान को नहीं मानते, पूजा पाठ नहीं करते. अभी वहाँ पंडित जी जब श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी का नाम स्मरण करा रहे थे तब मैं अपनी माला जप रही थी. वो अपने परीचित हैं वरना ऐसे स्थान पर हमको इजाजत ही नहीं है ... 
ज्ञानवाणी पर वाणी गीत  
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हमें उनसे भी हमदर्दी है और वही प्यार भी हमारे नाम से जिन्हें आता गुस्सा बुखार भी गो कि पीठ पीछे की उनकी हर बात पहुंचती है झेंपें न वह इस पर अब या कभी हों न शर्मसार भी बहर रदीफ़ क़ाफिया की कहाँ कोई परवाह हमें अदब तो दोस्त है वैसे ही गज़ल-ओ-अश'आर भी अपना घर जारने वाला कहाँ कोई इस इलाके में इस बात को समझ रहा है जमाना और बाज़ार भी श्यामल नाम मिटा देंगे ऐसा गर लगता हो उन्हें हम देखेंगे ज़रूर तेल और तेल की धार भी 

Shyam Bihari Shyamal  
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4 टिप्‍पणियां:

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