रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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स्वप्न अधूरा रह जाता
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एक ग़ज़ल :
जब भी शीशे का ---
जब भी शीशे का इक मकां देखा
पास पत्थर की थी , दुकां देखा
दूर कुर्सी पे है नज़र जिसकी
उसको बिकते जहाँ तहाँ देखा...
आपका ब्लॉग पर
आनन्द पाठक
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महत्वपूर्ण सबक
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... मतदान के रूप में खड़े जनविरोध को जनसमस्याओ के विरुद्ध जनांदोलन में बदला जा सकता है और बदल देना चाहिए | जनहित के लिए जनांदोलन को बहुआयामी बनाने की शुरुआत अगर ब्रिटिश काल में ब्रिटिश राज विरोधी आंदोलनों से हुई थी तो आज की शुरुआत चुनाव में जनविरोधी नीतियों के जनविरोध की अभिव्यक्ति के साथ ''नोटा '' पर मतदान के रूप में की जा सकती है |
शरारती बचपन पर
sunil kumar
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एक औरत .....
पूजा प्रियम्वदा
तुम्हारे बच्चों की माँ को
उनके साथ सोता छोड़कर
एक औरत दुनिया में लौटती है
हँसती है
जितना वो चाहें
जब वो चाहें और
पहनती है जो वो चाहें...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
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बात है शब्द नहीं हैं -
रवीन्द्र भ्रमर
बात है
शब्द नहीं हैं
कैसे खोल दूँ ग्रंथित मन !!
तुम अधीर प्रान हुए कुछ सुनने को
मर्म के उगे दो आखर चुनने को,
प्रीति है
मुक्ति नहीं है,
कैसे तोड़ दूँ सब बंधन ...
शब्द नहीं हैं
कैसे खोल दूँ ग्रंथित मन !!
तुम अधीर प्रान हुए कुछ सुनने को
मर्म के उगे दो आखर चुनने को,
प्रीति है
मुक्ति नहीं है,
कैसे तोड़ दूँ सब बंधन ...
काव्य-धरा पर
रवीन्द्र भारद्वाज
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बहुत सारी सामग्री है मंच पर,धर्म पर लिखी मेरी रचना को स्थान देने के लिये आभार शास्त्री सर।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंप्रणाम आदरणीय 🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति👌👌
मुझे स्थान देने के लिए सहृदय आभार आदरणीय
सादर
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंमेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सिय |
सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंआपका हृदय से आभार सर
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