बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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दोहागीत
"जनता का जनतन्त्र"
कल तक मस्त वज़ीर थे, आज हुए हैं त्रस्त।
निर्वाचन ने दलों के, किये हौसले पस्त।।
शासक सब खाते रहे, नोच-नोचकर देश।
वीराना सा कर दिया, वासन्ती परिवेश।।
छेद स्वयं के पात्र में, करने लगे दलाल।
जनता आहत हो रही , दशा देख विकराल।।
मत के प्रबल प्रहार से, दुर्ग करेगी ध्वस्त...
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वाह!!
आज तुमने फिर बहुत सुन्दर लिखा है!!
... मैं आपकी स्नेह भरी वाहवाही लूटने की चाहत में इसी २००७ के आलेख को जल्दी जल्दी बदलने लगता हूँ ताकि लगे कि आज ही लिखा है.
मगर आप नहीं आये. ये बस एक वहम था. आप अब कभी नहीं आओगे.
किन्तु मैं लिखता रहूँगा आपके इन्तजार में. शायद कहीं दूर से कभी आपकी आवाज सुनाई दे कि वाह!! आज तुमने फिर बहुत सुन्दर लिखा है!!
-समीर लाल ’समीर’
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विश्वासघात या अवसरवाद
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चुनाव चक्र अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच रहा है और अब एक नये दुष्चक्र के आरम्भ का सूत्रपात होने जा रहा है । मंत्रीमंडल में अपनी कुर्सी सुरक्षित करने के लिये सांसदों की खरीद फरोख्त और जोड़ तोड़ का लम्बा सिलसिला शुरु होगा और आम जनता ठगी सी निरुपाय यह सब देख कर अपना सिर धुनती रहेगी । व्यक्तिगत स्तर पर चुनाव लड़ने वाले निर्दलीय प्रत्याशियों और छोटी मोटी क्षेत्रीय पार्टियों के नेताओं का वर्चस्व रहेगा । उनकी सबसे मँहगी बोली लगेगी और सत्ता लोलुप और सिद्धांतविहीन राजनीति करने वाले आयाराम गयारामों की पौ बारह होगी...
Sudhinama पर
Sadhana Vaid
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अपना कोना
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"जीवन से लम्बे हैं बंधु , इस जीवन के रस्ते .. " सुरम्या ने अपना चहेता गीत इतने दिनों बाद सुना तो वॉल्यूम बढ़ा दिया। मन्ना दा का गाया यह गीत जब से सुना था, तब से ही ना जाने क्यों बहुत अपना लगता था। अपना शहद-नीबू पानी का गिलास लेकर सुरम्या खिड़की के पास बैठ गई। खिड़की के पास लगे काले पत्थर पर बैठना उसे बेहद सुकून देता था। खिड़की में लगे तीन-चार पौधे और विविधभारती पर बजते गीत उसके हमेशा के साथी थे। हमेशा के हमजोली। बाकी सब आते-जाते रहे जीवन भर। आज भी यह गीत प्ले हुआ तो ऐसा लगा मानो कोई सुन रहा है। कोई समझ रहा है, जो उस पर बीत रही है। वास्तव में .. जीवन से लम्बे हैं बंधु, इस जीवन के रस्ते ..
noopuram
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सेना पर सियासत न हो ------
सेवा निवृत लेफ्टिनेंट
जनरल एच ॰ एस ॰ पनाग
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क्रांति स्वर पर
vijai Rajbali Mathur
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सारांश
संक्षेप में वृत्तांत सुनाऊसार का सारांश बतलाऊ
परिदृश्य कोई भी हो
किनारा भूमिका मंडित कर
मूल आलेख जागृत कर पाऊ ।।
RAAGDEVRAN पर
MANOJ KAYAL
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राजनीति से संबंधित विषयों को समेटा सुंदर मंच, प्रणाम।
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात...
जवाब देंहटाएंआभार..
सादर..
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसार्थक सूत्रों से सुसज्जित आज का चर्चामंच ! मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी ! सादर वन्दे !
जवाब देंहटाएंबहुत बढियां चर्चा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा प्रस्तुति आदरणीय
जवाब देंहटाएंसादर