मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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मनुवा खिन्न हुआ
देख बहस टीवी पर मनुवा खिन्न हुआ
लोकतंत्र भी अब पहले से भिन्न हुआ
भ्रष्टाचार मिटाने खातिर जो आए
भ्रष्टाचारी उनका मित्र अभिन्न हुआ...
मनोरमा पर
श्यामल सुमन
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घूंंघट के पट खोल रे
हमारे अस्तित्त्व में देह, प्राण, मन बुद्धि, स्मृति, और अहंकार हैं. इनमें से आत्मा के निकटतम रहने वाला अहंकार ही वह पर्दा है जो हमें शांति, आनंद और ज्ञान से दूर रखता है. हम सदा स्वयं को बड़ा सिद्ध करना चाहते हैं...
Anita
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अभिनंदन राम का
भारत की माटी ढूँढ रहीअपना प्यारा रघुनंदनभारी भरकम बस्तों मेंदुधिया किलकारी खोई होड़ बढ़ी आगे बढ़ने कीलोरी भी थक कर सोई
महक उठे मन का आँगनबिखरा दो केसर चंदन...
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(आलेख) आख़िर वो गए तो गए कहाँ ?
घरेलू या पारिवारिक डॉक्टर गाँवों , कस्बों और छोटे शहरों में भले ही कभी - कभार नज़र आ जाते हों ,लेकिन कड़वी सच्चाई ये है कि बड़े शहरों में वो अब विलुप्त हो चुके हैं । उनके साथ ही हमारे देश की एक समृद्ध सामाजिक परम्परा भी कहीं गुम हो चुकी है। पारिवारिक डॉक्टर अब कॉल करने पर आपके घर नहीं आते । पहले प्रत्येक भारतीय परिवार का एक 'फ़ैमिली डॉक्टर ' हुआ करता था । उस परिवार के नन्हें बच्चों से लेकर बड़े -बुजुर्गों तक से उसके आत्मीय सम्बन्ध रहते थे ,लेकिन जमाना बदल गया है । अब तो खासकर बड़े शहरों में अगर आपको इलाज करवाना हो तो विशाल भवनों में...
Swarajya karun
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सुप्रभात आदरणीय 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा प्रस्तुति
सादर
सुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना को चर्चा मंच में स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
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