स्नेहिल अभिवादन
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देखिये मेरी पसंद की कुछ रचनाएँ |
अनीता सैनी
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प्रतिरोध का समकालीन स्वर
gopal pradhan at ज़माने की रफ़्तार
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वेदना से हो अंतिम मिलन
प्रीत का पुष्प बन न सका तू कांटों का ताज मुझे दे दो खुशियों की नहीं चाह मगर वो दर्द का साज़ मुझे दे दो न सपनों का संसार मिला तन्हाई हो वो रात मुझे दे दो न प्यार मिला न इक़रार मिला वो ज़ख्म जहां का मुझे दे दो
व्याकुल पथिक
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जीते हुए अपने अस्तित्व
अनुज लुगुन और जसिंता केरकेट्टा की कविताओं में हमारे समय की खल शक्तियों का
गहन प्रतिरोध सुनाई पड़ता है । व्यापक हमले का यह प्रतिरोध भी व्यापकता लिए हुए
है । इनमें सौभाग्य से वर्तमान के साथ अतीत के घाव भी खोले गए हैं । भावुक
नकार की जगह समय की गहरीपहचान से प्रतिरोध के लिए ठोस जमीन खोजी गई है
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वेदना से हो अंतिम मिलन
प्रीत का पुष्प बन न सका तू कांटों का ताज मुझे दे दो खुशियों की नहीं चाह मगर वो दर्द का साज़ मुझे दे दो न सपनों का संसार मिला तन्हाई हो वो रात मुझे दे दो न प्यार मिला न इक़रार मिला वो ज़ख्म जहां का मुझे दे दो
व्याकुल पथिक
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जीते हुए अपने अस्तित्व
बर्फीली ठंडक से हुए बेहाल
पातविहीन वृक्षों में
फूट पड़ी हैं कोंपलें नन्ही
बसंत की नरम आहट के साथ ....
आलम मदहोश सा है
गुलाबी सर्दी का
उतर आया है गुलाबीपन
रूह-ओ-जिस्म में
लगता है यूँ
जैसे सुमधुर सुदर्शन
चेरी ब्लॉसम
डूब रहे हों आँखों के सागर में
एहसास अंतर्मन के
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एहसास अंतर्मन के
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कितनी कमजोर हैं ये औरतें
ये औरतें
लोटे मे समन्दर, उन औरतों की तरह है
जिन्हें यह पता ही नही कि वे समन्दर है
पर लोटे में कैद,
समन्दर में लोटा होता
तो बात कुछ और होती
और वक्त इतना धीरे नही बदलता और
लोटा भी नही खोता!
हमसफ़र शब्द
हमसफ़र शब्द
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क्या मिला उनसे यूँ वफ़ा कर के
तुम जीत लो दिल यूँ मुस्कुरा कर के हाथ को हाथ में ले कर देखो कर के देखो यूँ फ़ैसला कर के बाँधे धागे यूँ मन्नतों के जब तुम मिले हो ख़ुदा ख़ुदा कर के लौट आई अभी अभी मिल कर आँख से आँख मशवरा कर के वो ग़ज़ल के रदीफ़
आवाज
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वेदना की राह पर
Sadhana Vaid at Sudhinama
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नेहरु जी की बिटिया
और हमारी माँ
हमारे घर में इंदिरा गाँधी की पहली पहचान नेहरु जी की बिटिया के रूप में थी. हमारी माँ तो इंदिरा गाँधी की ज़बर्दस्त प्रशंसिका थीं. अख़बारों या पत्रिकाओं में इंदिरा गाँधी की फ़ोटो आती थी तो माँ का एक ही कमेंट होता था – ‘हाय ! कितनी सुन्दर है !’ इंदिरा गाँधी उम्र में माँ से तीन साल से भी ज़्यादा बड़ी थीं लेकिन माँ उन्हें एक अर्से तक लड़की ही माना करती थीं. इंदिरा गाँधी की प्रशंसिकाओं में माँ से भी ऊंची पायदान पर हमारी नानी विराजमान थीं. उन्हें जब भी इंदिरा गाँधी की कोई फ़ोटो दिखाई जाती थी तो वो ठेठ ब्रज भाषा में कहती थीं – ‘जे तो बापऊ ते जादा मलूक ऐ !’...
तिरछी नज़र पर
गोपेश मोहन जैसवाल
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३५६. माँ की खोज
Onkar at कविताएँ
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धूप
Sweta sinha at मन के पाखी
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वेदना जननी प्रीत की
Anita saini at गूँगी गुड़िया
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महज 32 साल की उम्र में दुनिया से विदा हो गए रामानुजन, लेकिन इस कम समय में भी वह गणित में ऐसा अध्याय छोड़ गए, जिसे भुला पाना मुश्किल है। अंकों के मित्र कहे जाने वाले इस जुनूनी गणितज्ञ की क्या है कहानी?
शिवम् मिश्रा at बुरा भला
बहुत ही सराहनीय संकलन है प्रिय अनीता..सभी रचनाएँ अति उत्तम हैं..मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार आपका।
जवाब देंहटाएंशानदार संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनीता सैनी जी।
आज तो बिल्कुल अलग अंदाज़ में और सुंदर सजा हुआ चर्चा मंच है।अनीता बहन आपका श्रम झलक रहा है। पथिक को स्थान.देने के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा. मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार लिंकों से सुसज्जित सुंदर अंक।
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकारों को बधाई।
सुन्दर अंक।
जवाब देंहटाएंवाह ! सभी सूत्र अनुपम ! मेरी रचना को आज के चर्चामंच में स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार अनीता जी ! सप्रेम वन्दे !
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