आइये दोस्तों बासंतिक मौसम के संग चर्चा मंच के रंगों में कुछ देर भीगिये और मन को प्रफुल्लित कीजिये चर्चा मंच की वासंतिक बयार से
दर्द का मौसम अभी आया नहीं
शायद तभी मन मेरा मुस्काया नहीं
प्रेमाभिव्यक्ति का मौसम आया है
मन को बहुत भाया है
पुरुषार्थ से ही संभावनाएं प्रबल होती हैं
लायेगा परिवर्तन की बयार
खुद को भुलावे में रखकर
दर्द का दरिया बहा दिया
दर्द अंगडाइयां लेता है
दर्द उसी रोज़ अपनी इन्तिहाँ पूरी समझ लेगा
महंगाई की महिमा निराली
ठहाकों पर लगा दी पाबन्दी
लीजिये मज़ा बसंत में सावन का
और हम खामोश?
यही है जनतंत्र
अजी कैसे ?
कुछ खट्टे कुछ मीठे
मन भरमाते दिल को लुभाते
मेरे घर दिवाली मन जाती है
क्यों डरा रहे हैं ?
घर घर की कहानी
अपनी यादें
अपना खज़ाना
लिबास तो बहाना होता है
ये तो बिल्कुल सही कहा
अजी सवाल ही नहीं उठता
"अनूठा परिवर्तन्………क्या आप भी ऐसा सोचते हैं?"
सोच अपनी ख्याल अपना
क्या लेखक , कवि और ब्लॉगर्स कुंठित मानसिकता वाले होते हैं ? -- एक विमर्ष
आप ही बता दीजिये
मक्खन-पालिश !!
पालिश हो तो ऐसी
मक्खन भी पिघल जाये
कुर्सी पे बैठा एक कुत्ता...खुशदीप
शायरी का मारा
मक्खन बेचारा
दुःख का मूल कारण – अपेक्षा और उपेक्षा
बिल्कुल सही कहा
एक रात कुछ यूँ गुजरे....वीरान कविता रचते
और वक्त वहीँ थम जाए
कुछ तो दिल की निकल जाये
एक प्रश्न दहेज़- प्रथा पर कितने ही निबंध लिखें होंगें उसने;
पर क्या कोई इससे बच पाया
जाने कितने पंछी उड़तेइस अंतर आकाश में, कुछ काले कुछ
अंतस के रंग
परिवर्तन
कौन नहीं चाहता
जो वक्त ना कर सका
वो माँ कर गयी
बेटे को नई
ज़िन्दगी दे गयी
लय लागी है किस से अन्दर
जब नारी शील उघड़ने लगे——— मिथिलेश दुबे
वो ही है जो बसता उर अन्दर
बसंत की पूर्वसंध्या - मेरी फोटोग्राफी - डॉ नूतन गैरोला -
मन आंगन भीग गया
ये बदलता स्वरुप
सब कुछ बदल गया
***प्यार को निभाना, बड़ी ही टेडी खीर है.***
आपको अब पता चला?
इन दिनों
अघटित भी देख लेता हूँ
मानव हूँ ना
एक रेखा खींच लेता हूँ
"खाकी क्या संवेदनाएं हर लेती है?"
शायद!!!!
कुछ तो संभलिये
अंतर्राष्ट्रीय शिखर हिन्दी पत्रिका हिन्दी-चेतना के जनवरी-मार्च २०११ अंक में प्रकाशित एक लघुकथा------->>> दीपक मशाल
कटु सत्य कैसे उदघाटित हो
कटु सत्य कैसे उदघाटित हो
अब दीजिये मुझे आज्ञा और आप लीजिये
मौसम का मज़ा
vividh vishyon ko samete hue sarthak charcha prastut karne me aap sidh hast hain .meri kavita ''ek prashan 'ko charcha me sthan dene ke liye hardik dhanywad .
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा बहुत सुन्दर ढंग से पेश की है आपने!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंकों का चयल किया गया है!
बेह्तरीन चर्चा प्र्स्तुति वन्दना जी !आभार !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा.... एक से बढ़कर एक लिंक दिए है आपने... आपकी मेहनत को सलाम...
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन.
जवाब देंहटाएंमुझे शामिल करने के लिए आभार.
velentine weak chal raha ho aur prem ki abhivyakti na ho aisa to ho hi nahi sakta.vandna ji aapne bahut hi khoobsoorti se aaj ke charcha manch ko prem ki aur unmukh kiya hai .links bhi achchhe liye hain .badhai...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा....वन्दना जी... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत से अच्छे अच्छे लिंक मिले विविध रंग लिए हुए ! सार्थक चर्चा !मेरी कविता परिवर्तन को भी स्थान मिला, आभार !
जवाब देंहटाएंबसंत की शुभकामनाएँ एवं धन्यवाद !
hamesha ki trah bahut achchhi charchaa sajay aapane aur aaj ka rang to bilkl mausam k anukool hai . Thanks for selecting my blog.
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स -सुंदर प्रस्तुति. आभार .
जवाब देंहटाएंचुनिन्दा पठनीय लिंक्स. आभार...
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा ...
जवाब देंहटाएंsundar charcha ..vandna ji....
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ..मेरी भी एक पोस्ट है... मेरी पोस्ट को चर्चा में जगह दी आपने .. आपका तहे दिल शुक्रिया ...
अन्या लिंक भी में देख रही हूँ...
हमेशा की तरह बेहतरीन.
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट शामिल करने के लिए आभार
मेरी कविता को शामिल करने हेतु अभारी हूँ प्रयास रहेगा की कुछ और सार्थक विषयों पर लिख सकूँ
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा की बानगी देखी, बेहतरीन लिनक्स विभिन्न रंगों को समेटे,सार्थक चर्चा , वंदना जी धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंक्स , बहुत ही अच्छी चर्चा , आभार वन्दना जी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय वंदना जी,
जवाब देंहटाएंसभी लिंक्स बहुत ही अच्छे हैं.
मेरी कविता को यहाँ स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
सादर
आज एक बार फिर से मै आपकी तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ की आपकी मेहनत और लग्न आज फिर से मुझे यहाँ जोड़ने और सबसे मिलवाने ले आई मै आपकी इस कोशिश और निस्वार्थ भाव से किये गये काम की शुक्रगुजार हूँ !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दोस्त !
बेहतरीन चर्चा.
जवाब देंहटाएंएक अच्छी प्रस्तुति से मौसम का मज़ा दोगुना हो जाता है। पता नहीं क्यों मन और पाने की ज़िद कर रहा था, शायद दो -चार राग-रंग और होते तो मौसम और भी खिला-खुला लगता। शायद यह ज़िद मौसम का ही कारनामा है।
जवाब देंहटाएंअच्छी है जी चर्चा भी ...
जवाब देंहटाएंवंदना जी...बहुत ही सुंदरता से सजाया है आपने आज का चर्चा मंच....बहुत खुब।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा........आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन चर्चा वंदना जी ! आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चर्चा ...एवं बेहतरीन लिंक ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन चर्चा वंदना जी । शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएं"इन दिनों " कविता अरुणजी की बेहतरीन रचनाओं में से एक है . संवेदना के शिखर पर कवि मन आज की परिस्थितियों में खोते जा रहे जीवन मूल्यों के प्रति आशंकित और चिंतित है . वंदनाजी को बधाई कि चुन चुन कर मंच सजाया है .
जवाब देंहटाएंवंदना जी,
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा में बहुत अच्छे लेखों से रूबरू हुई. सभी अपने आप में बहुत सही रहे. ये मंच ही अब मेरी दृष्टि में ऐसा मंच है जहाँ पर चुने हुए और सार्थक आलेखों को लेकर प्रस्तुत किया जाता है.
मेरे आलेख को सम्मिलित करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.
बहुत से खूबसूरत लिँकोँ के रंगोँ मेँ रंगा आज का चर्चा मंच मन को मोह रहा है । होली से पहले ही यहाँ होली मन गई ।
जवाब देंहटाएंआपकी लगन और कौशल कमाल कर गया वन्दना जी !
बहुत बहुत आभार ।
मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार क्या मेरी रचना वास्तब में इस लायक थी या यूँही ?
जवाब देंहटाएंबेहतरीन लिंक्स और सुन्दर चर्चा के लिए आभार वंदना जी ।
जवाब देंहटाएंअच्छा संग्रह ,एक ही जगह पर इतने लोगों की रचनाएँ मिली . एक-से बढकर एक . सम्पादक को भी बधाई .
जवाब देंहटाएं----- sahityasurbhi.blogspot.com
'Parhit saras dharam nahin bhaai' ko sahi maayno me aatmsaat kiye hue Charchamanch aage badh raha hai.. blog-media ka kaam karta ye manch yoon hi aage badhta rahe. aabhar Vandna ji.
जवाब देंहटाएंवन्दे मातरम वन्दना जी,
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन.
मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार