नमस्कार , इस साल का एक माह समाप्त हुआ ..फरवरी की पहली तारीख …सर्दी जाने को है ..पर जाने का नाम अभी नहीं ले रही ….ऋतुराज बसंत ने दरवाज़े पर दस्तक दे दी है …रंग बिरंगे फूलों से उपवन की शोभा निराली हो गयी है …और ऐसे में ज़िंदगी के उपवन को भी सुंदरता प्रदान कर रहे हैं डा० रूप चन्द्र शास्त्री जी ,जो बच्चों के लिए पुस्तक ला रहे हैं हँसता गाता बचपन ….आज की चर्चा यहीं से प्रारंभ करते हैं .. |
हँसता गाता बचपन हँसता खिलता जैसा , इन प्यारे सुमनों का मन है गुब्बारों स नाज़ुक , सारे बच्चों का जीवन है | |
आज है द्वंद्व / युवा मानस में / सत्य का, संघर्ष का / कर्त्तव्य का / अनभिज्ञ चाहत का| |
अमृता तन्मय दे रही हैं विजिगीषा का सन्देश विजिगीषा ( विजय पाने की इच्छा ) घनघोर बियाबान घुप्प अँधेरा घातक जीव-जन्तुयें घड़ी-घड़ी घुटन से घिघियाती हुई...... | आशाजी मंथन कर रही हैं कि क्या सुंदरता अभिशाप है ? --स्वार्थी दुनिया होता नहीं विश्वास कभी विष कन्याएं भी होती थीं होता था इतना आकर्षण कोई भी बंध जाता था मोह पाश में उनके | |
साधना वैद जी की मर्मस्पर्शी रचना पढ़िए चूक .. सुने बिना ही देवता यूँ रूठ न जाते और वे पल भर में ही निष्फल ना हो जातीं ! |
शारदा अरोरा लायी हैं एक गज़ल --मिट्टी हूँ , ख़्वाबों में महक जाउंगी कच्ची मिट्टी हूँ , तराश लो प्याला-ए-मीना या सागरो-सुराही की तरह | रवि शंकर लाये हैं जुड़वां मुन्तज़िर आँखें ज़िन्दगी की सड़क पर ख्वाबों ने, रफ़्तार जो पकड़ी न जाने हमकदम कितने मैं पीछे छोड़ आया हूँ |
मनोज ब्लॉग पर श्री श्याम नारायण मिश्र का एक नवगीत पढ़िए ---प्रणयगंधी याद में चू रहा मकरंद फूलों से,
घाटियों में दूर तक फैली हुई है चांदनी
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फिरदौस खान की डायरी का नया पन्ना पढ़िए -मेरी रूह महकती रही है , तुम्हारी मुहब्बत से मेरे महबूब... मुहब्बत के शहर की ज़मीं का वो टुकड़ा आज भी यादों की ख़ुशबू से महक रहा है | सुनीता शर्मा जी दोस्ती के बीच भी किस बात का ध्यान रखना चाहिए यह बताते हुए कह रही हैं कि -गैरों ने तो फिर भी गले लगाया है . आस्तीन में है कुछ सांप डसने को है हर दम तैयार इनको सर उठाने न दो एक बार जो उठ गये इनका डसना जरूर है। |
सूखी रोटी ये भी खाते हैं , वे भी खाते हैं। डाइटिंग ये भी करते हैं , वे भी करते हैं। जो डाइटिंग अमीरों का शौक है , वही गरीबों के जीवन का खौफ है। |
मुस्कान अर्थात एक प्यारा सा गान प्रेम का जो गालों की सरगम और | नंदलाल बिहारी जी बहुत संजीदगी से बता रहे हैं -पेड़ का दर्द मै एक पेड़ हूँ कोई अपराधी नहीं मैंने तो कोइ अपराध नहीं किया है आदमी की आज़ादी में कोइ खलल भी तो नहीं डालता हूँ |
कुँवर कुसुमेश जी छटा बिखेर रहे हैं ऋतुराज की --- खुशबू बसंत की चारो तरफ़ से आयेगी खुशबू बसंत की, बादे-सबा भी लायेगी खुशबू बसंत की. रंगीनिये-हयात की खुशबू संभल ज़रा, तुझको भी आज़मायेगी खुशबू बसंत की. |
स्वप्निल “ आतिश “ की पढ़िए घुंघराले बालों वाली शाम वो एक घुंघराले बालों वाली शाम थी और मुझे नहीं पसंद सीधे सादे बाल मायने ये कि वो शाम मुझे पसंद थी, बालियों के खूबसूरत गुच्छे की तरह | सांझ की एक प्यारी सी नज़्म मेरी जाँ और किसी नाम से पुकार मुझे बर्फ़ से लगते हैं यादों के आब’शार मुझे मेरी जाँ और किसी नाम से पुकार मुझे अपने होठों पे मेरा नाम आ जाने न देना |
वंदना सिंह जी बता रही हैं कि सब तय होता है …खुदा की रजाएं ....तय होती हैं वफायें ..जफ़ाएं तय होती है / इश्क में सजाएं तय होती हैं पाना खोना हैं जीवन के पहलू / खुदा की रजाएं.. तय होती हैं | |
काश ऐसा होता ! मेरा ख्वाब हकीकत बन जाता, और वक़्त का पहिया चलते-चलते इन लम्हों में थम जाता... | समंदर खोलो पैरों से, साहिल की आड़ में बैठो ज़रा सी धूप मिल जाए नम-सर्द ख्वाबो को ! |
कैलाश सी० शर्मा जी देश की हालत से हताश होते हुए कह रहे हैं --फिर एक बार आओ बापू.. बापू ! / फिर एक बार आओ / अपने सपनों का महल को देखने, / जिसे आपके ही वारिसों ने / खँडहर कर दिया है. |
मुदिता गर्ग की एक प्रेम-मयी रचना -प्राण प्रतिष्ठा प्राण-प्रतिष्ठा कर दी तुमने मूरत थी पत्थर की भारी छुआ भावः भीनी दृष्टि से अंतस को बन प्रेम पुजारी | अशोक व्यास जीवन के यथार्थ को लिख रहे हैं मेरे होने का सत्य में अब ये भी बोध है कि सीमित तो है ही देहयुक्त उपस्थिति का यह काल, |
सुरेश यादव जी अपनी बात में लाये हैं दो कविताएँ ….
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जोया चाँद की सहेली पर पूछ रही हैं एक प्रश्न ---मेरे तुम्हारे सिवा ! तुम क्यूँ चले गये क्यूँ नहीं लड़े मुझसे क्यूँ नहीं झगड़े मुझसे क्यूँ आंसू पी गये सारे |
नदियाँ के पार चली चढ़ के पहाड़ चली दरिया के पीछे जंगल के अन्दर नाचे मोर, झूमे बन्दर | यशवंत माथुर कोमल से एहसास ले कर पूछ रहे हैं एक प्रश्न बिन आहट आकर के क्यों मेरी तन्हाईयाँ छीन लीं तुमने मैं अकेलेपन में जीता था मेरी परछाईयाँ छीन लीं तुमने |
मिताली पुनेठा जी अपनी बात कह रही हैं “तुम्हें शामिल करके " मर के इक दिन मिट्टी में मिल जाना है मुझे, / उसी मिट्टी में बनके फूल, खिल जाना है मुझे... चुपके से तुम्हारे सपने में आ जाना है मुझे, / उसी सपने में तुम्हें चुरा के, पा जाना है मुझे... |
इमरान अंसारी गहन विचार करते हुए कह रहे हैं ..आओ , अपने संबंधों पर पुनर्विचार करें आओ, अपने संबंधो पर पुनर्विचार करें, थोड़ी सी कलह, थोड़ा प्यार करें, | धीरेन्द्र सिंह जी के खूबसूरत एहसास भोर आज छू गयी मुझे भोर आज छू गई हौले से मुस्कराई दूब पर फैली नमी चहचहाती चिड़ियों का वृंद गान खिल गई है छटामयी ज़मीं |
रचनाकार पर पढ़िए संजय दानी जी की एक गज़ल .. मेरा सफर रात उम्मीद से भारी है, सुबह होने नहीं वाली है। / मुश्किलों से भरा है सफ़र, आज ज़ख्मों की दीवाली है। / मैं चरागों का दरबान हूं, वो हवाओं की घरवाली है। /क़ातिलों को ज़मानत मिली, न्याय मक़तूल ने पा ली है |
वटवृक्ष पर त्रिपुरारि कुमार शर्मा की रचना ..बेबस ज़िंदगी ज़मीन और जिस्म के बीच सुगबुगाता आदमी जैसे फूट रही हो बाँस की कोपलें छू ली मैंने बहती हुई रात कितनी सर्द, कितनी बेदर्द | हरीश भट्ट राष्ट्रपिता की पुण्यतिथि मना रहे हैं उदघोष पर - गाँधी... गाँधी नाम का विचार ६२ वर्ष पहले नहीं ओर न ही किसी गोडसे ने न ही किसी धर्मान्धता ने न ही किसी सामाजिकता ने न अस्त्र ने न शस्त्र ने |
एस० एम० हबीब पढ़ा रहे हैं हम सबको ---वर्तमान की पाती राष्ट्र के गगन तुम्हें है मेरा सदनमन। पर देख कैसे सूख रहा तेरा ये चमन।। राष्ट्र अस्मिता के तुम उत्थान हो गए। याद कर तुम्हें सजल हैं मेरे दो नयन॥ |
स्वतंत्र विचार पर मीनाक्षी पन्त की रचना सफर घर से चले थे घर का पता साथ लेके हम ! चल पड़े थे काफिले संग दूर तलख हम ! मिलते भी रहें राही बदल बदल के राह मै , रुकते भी गये अपने काफिले के संग हम ! | ज़खीरा ब्लॉग पर बशीर बद्र की गज़ल ..उसकी आँखों को गौर से देखो- बेवफा रास्ते बदलते है हमसफ़र साथ चलते है किसके आसू छिपे है फूलो में चूमता हू तो होठ जलते है |
साहित्य शिल्पी पर अनिल कान्त जी की कविता अनुगमन यह महज इत्तेफाक नहीं /कि / हम शोषित और अव्यवस्थित है । /व्यवस्थित सोच से उत्पन्न समाज में / श्रंखलित व्यवस्था के पायदान पर खड़े हो / शोर भर मचाना / हमारी फितरत है, बस / और कुछ नही । |
अनुभूतियों के आकाश पर कुश्वंश कह रहे हैं …जागने का वक्त है जागो, जागने का वक्त है, देश को बचाना है तुम्हे, जिनके सहारे छोड़ा था, वो खा गए, भूखे जो थे, भूखे तो तुम भी हो, लेकिन भूख से बचो, भूख हमें कही का नहीं रहने देती, | ज्योति डांग कह रही हैं ..अपना एक मुकाम बनायेंगे बोलता हर कोई क्या मुझे मिला देश ने क्या दिया नेताओं ने देश का बेडा गर्क किया सोचा कभी हमने क्या देश के लिए किया |
मृदुला प्रधान जी की यह रचना विसंगतियों की ओर इंगित कर रही है नींद थी एक रोज जल्दी खुल गयी खुल गयी / औ' दृश्य बाहर था /दिखा जो, कुसुम कलियों से / अलग था, /पुलिन-पंकज से परे था. | कुंवर बेचैन की गज़ल पढ़िए --नींद के पांव पे पत्थर बन कर आते है ख्वाब नींद के पाँव पे पत्थर बन के आते है ख्वाब जख्म देते है उन्हें और टूटते जाते है ख्वाब |
सप्तरंगी पर पढ़िए आशीष जी की रचना मन के कोमल भावों से सजी सुन्दर अभिव्यक्ति - कमनीय स्वप्न कौन थी वो प्रेममयी , जो हवा के झोके संग आई जिसकी खुशबू फ़ैल रही है , जैसे नव अमराई क्षीण कटि, बसंत वसना, चंचला सी अंगड़ाई |
राजभाषा ब्लॉग पर एक संवेदनशील रचना ---ज़िम्मेदारी अक्सर मैं सोचती हूँ कि दुनिया में कितने रंग हैं अपने गम से बाहर निकलो तो दुनिया में कितने गम हैं । |
कुछ नए लिंक्स --- १- धूप – चाँद – रंग – खुशबू ! ( इन्द्रनील भट्टाचार्जी ) २- अपने जन्मदिन पर ( अरुण सी० राय ) ३-- मिस्र से आ रही तस्वीरों को देख कर ग़ज़ल ( तहसीन मुन्नवर ) ४-- हँसना मना है ( अनीता ) ५-- ‘‘तू अपना मैं पराया ( के० आर० भास्कर ) ६- आँखों में व्यर्थ सा पानी ( रश्मि रविजा ) |
इसीके साथ आज की चर्चा यहीं समाप्त करती हूँ …अब चर्चा की उपयोगिता आपके हाथ में है …..आपके सुझाव और प्रतिक्रियाएं हमेशा उत्साहित करती हैं …आभार ……नमस्कार ---संगीता स्वरुप |
चहकते हुए रंगों से सजी चर्चा को देखकर लगता है कि बसन्त आज की चर्चा में सिमट आया है!
जवाब देंहटाएंकवितायें आपका पैशन हैं -ढेर सारी मिलीं पढने को ..बसंत चल पड़ा है !
जवाब देंहटाएंआज की बहुरंगी चर्चा बड़ी लुभावनी लग रही है संगीता जी ! मुझे इसमें स्थान देने के लिये बहुत बहुत धन्यवाद ! पूरा प्रयास रहेगा मेरा कि आज हर लिंक पर जाऊँ ! आपकी लगन और मेहनत की जितनी प्रशंसा की जाए शब्द कम पड़ जायेंगे ! बधाई एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स हैं आज के चर्चा मंच पर.
जवाब देंहटाएंमेरा नाम वहां पर सही कर दें तो कृपा होगी.
कृपया "कुँवर कुसुमेश" लिखें.
मुझे स्थान दिया, कृतज्ञ हूँ.
आभार ....
जवाब देंहटाएं@ कुँवर कुसुमेश जी
नाम ठीक कर दिया है ...त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिये आभार ..
साधना जी जैसे ही भाव मेरे भी हैं ...
जवाब देंहटाएंचर्चा करना भी आपके लिए एक साधना ही है ...
आभार !
आदरणीया संगीता स्वरूप (गीत जी) का सर्वप्रथम आभार मेरी गज़ल को "चर्चा मंच " में स्थान देने के लिये। हमेशा की तरह आज भी आपकी चर्चा का स्वरूप बेहतरीन है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स हैं आज के चर्चा मंच पर.
जवाब देंहटाएंआपकी चर्चा के लिंक पढ़ रहा हूँ ...अच्छी रचनाओं से परिचय करवाने के लिए आभार आपका !!
जवाब देंहटाएंbahut sundar charcha ... post shamil karne ke liye shukriya.
जवाब देंहटाएंbahut saare acche link mile.
बहुत सुंदर चर्चा संगीताजी ...आभार
जवाब देंहटाएंkya kahoon shabd hi nahi mil rahe hain aapki mehnat ki tareef ke liye,bahut sunder ,sarthak charcha.achchhe links aabhar...
जवाब देंहटाएंसंगीता जी मै आपकी बहुत बहुत शुक्रगुजार हूँ की आपने मेरी रचना को चर्चा मंच की शोभा बनने का मोका दिया और मुझे कई अच्छे अच्छे ब्लोगेर्स से मिलने का सोभाग्य प्राप्त हुआ !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया !
sarthak charcha -sundar links .
जवाब देंहटाएंआदरणीय संगीता जी , मैंने सोचा भी नहीं था की आप चर्चा मंच में मुझे भी जगह देंगी, धन्यवाद् अभिवादन. साहित्य जगत में आपकी उपस्थिति काव्य को नए आयाम दे रही है पुनः धन्यवाद्. मंच पर बेहतर से बेहतरीन संकलन कर हमारी साहितिक भूंख मिटने के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंसंगीता जी,
जवाब देंहटाएंसारे लिंक्स बहुत ही अच्छे हैं......मेरे ब्लॉग की पोस्ट शामिल करने के लिए आपका आभार.....वक़्त मिलते ही सब पड़ने की कोशिश करूँगा......एक बार फिर धन्यवाद|
सुन्दर काव्य चर्चा , बहुत सारी मनमोहक रचनाओ को पढने का सौभाग्य मिल जाता है आपकी चर्चा से . आभार .
जवाब देंहटाएंइतने सारे लिंक्स लिए इतनी प्यारी चर्चा ....और ये क्या मेरी रेलगाड़ी चलते चलते यहाँ भी आगई :)
जवाब देंहटाएंइस सुन्दर चर्चा में मुझे स्थान देने के लिए थैंक यू मौसीजी .
विभिन्न रंगों, उमंगों और तरंगो की रचनाओं को पढ़ने के बाद अंत में हृदय आपके प्रति आभार प्रकट कर रहा है।
जवाब देंहटाएंhar moti nayab hai.aapki aabharee hoon is sunder uphaar ke liye.....
जवाब देंहटाएंसंगीता जी आपको बहुत-बहुत बधाई इस बेहतरीन चर्चा के लिये ।
जवाब देंहटाएंवासंतिक रंगो से सजी सुन्दर और सुव्यवस्थित चर्चा के लिये आभार्।
जवाब देंहटाएंकई पहलुओं को छूती सारगर्भित चर्चा के लिए हार्दिक बधाई |आप इतनी सारी लिंक्स पढ़ने के लिए दे देतीं हैं कि कब दोपहर कट जाती है पता ही नहीं चलता |अच्छी चर्चा के लिए बधाई और आभार मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए |
जवाब देंहटाएंआशा
संगीता जी..बहुत सुन्दर चर्चा करती हैं आप... चर्चामंच सुन्दर लिंक्स और मनभावन तरीके से किये गए रंग संयोजन से सुवासित कर देती है आप... एक बेहतरीन रोचक अंदाज,,, सादर
जवाब देंहटाएंकई लिंकस पर पठनीय सामग्री मिली ...बहुत अच्छी चर्चा ..... ,एरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ... :)
जवाब देंहटाएंसंगीता दी ...जानती हैं..आपकी चर्चा में मुझे...सबसे अच्छी बात क्या लाती है.....आपके दिए लिनक्स तो देखने का दिल करता ही है...परन्तु..आपने जो मन से उनपे अपने कमेंट्स दिए होते या बात लिखी होती है..वो पड़ने में बहुत मज़ा आता है ....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे लिंके हैं...बसंत आपकी चर्चा में लहराता हुआ दिख रहा है
मेरी रचना को भी अपने गुलदस्ते में जोड़ने के लिए शुर्किया
Take care
mujhe shamil karne ke liye bohot bohot shukriya dadi....aur aaj to bohot kuch padhne ko mila hai....bohot khoob jama hai manch aaj....
जवाब देंहटाएंसंगीता जी नमस्कार..बहुत ही सुंदरता से सजाती है आप चर्चा मंच,बड़ा अच्छा लगता है...बहुत सारे लिंक्स मिल जाते है....धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंदीदी,हमेशा की तरह बहुत सुन्दर चर्चा मंच....बहुत अच्छे लिंक्स.. मेरी प्राण प्रतिष्ठा को शामिल करने के लिए शुक्रिया :)
जवाब देंहटाएंसंगीता जी धन्यवाद, आपने मेरे ब्लॉग को अपनी चर्चा में स्थान दिया |और भी कई लिंक पढ़ने को मिले |
जवाब देंहटाएंआदरणीया संगीता जी,
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छे लिंक्स पढने को मिले आज.
मेरी पंक्तियों को स्थान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.
सादर
सुन्दर लिंक्स से सजी बहुत सुन्दर चर्चा..मेरी रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए धन्यवाद...आभार
जवाब देंहटाएंआहा , सारा काव्य यहाँ संग्रह में सिमट आया है ...धन्यवाद संगीता जी , जब से ब्लॉगवाणी बंद हुई है , तब से मेरी रचनाओं के विजिटर्स भी कम हो गए हैं , आज आपकी बदौलत एक साथ कुछ लोगों ने दस्तक दी है ...
जवाब देंहटाएंउत्तम चयन, पठनीय लिंक. आभार...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिंक्स हैं आज के चर्चा मंच पर.
जवाब देंहटाएंआभार
आज तो पूरा हिंदी ब्लॉगजगत समेट लिया ..आभार.
जवाब देंहटाएंbahut hi sarthak charcha
जवाब देंहटाएंसभी पाठकों का आभार
जवाब देंहटाएं@@ वीनस --- जोया ,
आपकी बात ने हौसला बढ़ाया ...मुझे लगता था की मेरा लिखा शायद लोग पढते नहीं हैं ..इसीलिए कमेंट्स साथ में लिखना कम कर दिया था ...शुक्रिया एहसास दिलाने का ..
"वस्त-ए-गमार-ए-खुशबु-ओ-गुल आ गया हूँ.
जवाब देंहटाएंलगता है, अदबीयत की स्कूल आ गया हूँ.
सच कहूं तो, आकर यहाँ वक्फा-ए-चंद में
सारे जहां से गोया, मिल जुल आ गया हूँ."
संगीता दी, इस महफ़िल-ए-दानां में नादाँ हबीब को शामिल कर इज्ज़त बख्शने के लिए बहुत शुक्रिया,
एक से बढ़कर एक हैं सभी लिंक्स, काफी देर से हूँ यहाँ, पर पूरा नहीं पढ़ पाया... फिर आना होगा इस अधूरे आनंद को पूरा प्राप्त करने के लिए... इस मंच को सजाने में आपकी मेहनत को नमन.. फिर से शुक्रिया.. सादर....
संगीताजी
जवाब देंहटाएंसमर्पण और संवेदना से
साहित्यिक अभिव्यक्ति की इतनी
सुन्दर, सारगर्भित अभिव्यक्ति सरिताओं को
निष्ठां से एक मंच पर प्रस्तुत करने की
मधुर सेवा के लिए साधुवाद
मुझे भी इस 'ब्लॉग समाज' के साथ
आत्मीयता का यह स्वाद चखाने के लिए
ह्रदय से आभार
शुभकामनाएं
aapane hamari rachana ko charcha -manch me shamil kiya ,Ham aapake aabhari hai.charchamanch ki upsthiti sahitya-jagat me sadaiv bani rahe. Hardik shubhkaamanaayen..Nand Lal Bharati
जवाब देंहटाएंसारगर्भित चर्चा
जवाब देंहटाएंसंगीता जी , सर्वप्रथम सुन्दर चर्चा के लिए आपको धन्यवाद .....अगर आप मुझे माफ़ करेंगी तो मैं कहना चाहती हूँ ....कि आप मेहनत से अच्छे लिनक्स देती हैं ...अगर इसकी संख्या कुछ कम हो तो चर्चा और सुन्दर होगी...आशा है कि आप अवश्य ध्यान देंगी .
जवाब देंहटाएंसंगीता जी , सर्वप्रथम मेरी रचना को शामिल करने के लिए व सुन्दर चर्चा के लिए आपको धन्यवाद ..... कहना चाहती हूँ कि आप कितनी मेहनत से अच्छे लिनक्स देती हैं .आगे भी आपकी तीक्ष्ण नजरे चर्चा मंच को और उंचाईयों तक ले जाएगी ....आप सबों का आभार . .
जवाब देंहटाएंमेरे चार ख्यालों को मंच देने के लिए शुक्रिया :)
जवाब देंहटाएंबाकी क्या कहूँ, यहाँ आके तो सब तरह के मसाले मिल जाते .. तीखे मीठे .. बढ़िया !
aaj kayi dino baad charcha-manch ki dahleez par kadam rakha...sabki rachnaon se dil prasann ho gaya...meri rachna shamil karne ke liye aur mera hausla badhane ke liye aapka bahut-bahut dhanyawaad...
जवाब देंहटाएंचर्चा मँच पर रचनाओँ का बहुत ही सुन्दर गुलदस्ता प्रस्तुत किया है संगीता दी आपने । आभार !
जवाब देंहटाएं" कुछ फूल पत्थर के भी हुआ करते हैँ..........गजल "
सभी पाठकों का आभार ...
जवाब देंहटाएं@@ वर्ज्य नारी स्वर ...
आपका कथन सही है ...लेकिन आज कल चिट्ठा जगत और ब्लॉग वाणी बंद हो जाने के कारण चर्चा मंच का एक उद्देश्य यह भी हो गया है की अधिक से अधिक लिंक पाठकों तक पहुंचाए जा सकें ...आपकी बात पर अवश्य विचार किया जायेगा ...आभार
संगीता जी आपने मेरी रचना "गैरों ने तो फिर भी
जवाब देंहटाएंगले लगाया है।" को इस मंच पर लिया आपका आभार कुछ व्यस्तताओ के कारण समय पर नही देखा इसका मुझे खेद है।
संगीता जी ,चर्चा मंच पर विलम्ब से पहुंचा हूँ लेकिन आनंद आया .मेरी कवितायेँ देने के लिए आप का ह्रदय से आभारी हूँ .आप के द्वारा किया गया रचनाओं का चयन महत्व का है साथ ही प्रस्तुति भी नयापन लिए हुए है .बधाई.
जवाब देंहटाएंdhaniyawaad aapka aapne meri rachna ko shamil kiya tahe dil se shukria ji
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