Followers



Search This Blog

Sunday, February 06, 2011

रविवासरीय चर्चा (०६.०२.२०११)

नमस्कार मित्रों!
मैं मनोज कुमार एक बार फिर हाज़िर हूं।

My Photo१. चर्चा की सुरुआत करते हैं सुरेन्द्र सिंह " झंझट " के नव दोहों से। जीवन के सत्य को उद्घाटित करते ये दोहे सूक्ति वचन जैसे हैं।


जंगल  के  कानून में  , न्याय का हो सम्मान |
मछली चाहे मगर से  ,  जैसे       जीवनदान |
घर-घर अँधियारा घुसा ,सपना हुआ विहान |
मुट्ठी में  सूरज  लिए  ,   हँसता है  शैतान |


आप में सच को सच कहने का पुरजोर साहस है।

यह एक सशक्त प्रस्तुति है, तल्ख और तेवरदार भी।

मन मनमानी  कर रहा, गूँगा हुआ  जमीर |
भरी सभा में खिंच रही, द्रुपदसुता की चीर |

आज हाशिये पर हुए , कर्ण और  हरिचंद |
मुख्यपृष्ठ पर उभरते , जाफ़र औ जयचंद  | 

मेरा फोटो२. Navin C. Chaturvedi हैं लेकर आए

कुदरत का सौंदर्य ::


कहीं इतरा रहीं नदियाँ, कहीं झरने करें झर-झर|
कहीं शबनम के हैं जलवे, कहीं नीला समन्दर है|


आज कविता में आए शुष्क एवं रुक्ष गद्य की बाढ़ के विरुद्ध ये कविता बेहद सुकून देती है।

३. नवीन प्रकाश लुटा रहें हैं … लूट सको तो लूट

अब हर महीने एक फ्री डोमेन ::

पहले कि तरह ही किसी पोस्ट में इसकी घोषणा कर दी जाएगी ।
तो इंतजार कीजिये ...


आपका प्रयास सराहनीय है।

My Photo४. लता 'हया' का कहना है, सोचती हूँ "हादसे" उन्वान से एक blog ही खोल दूँ और उसमे पहली ग़ज़ल ये डालदूं :-


हादसों से मेरी वैसे तो है पहचान बहुत
फिर भी बेख़ौफ़ हूँ , ख़ुशबाश मेरी जान बहुत
एक-एक हर्फ़ जो इस ग़ज़ल में ताक रहे हैं वे अपनी तर्ज़-ए-बयां से अपने समय के विकट-प्रकट यथार्थ को सामने लाते हैं।


My Photo५. Vivek Rastogi की पेशकश आपके लिए,

घर पर पॉपकार्न केवल कैटल कॉर्न (Kettle Corn, Microwave Popcorn) ::: शुरु हो जाओ आलसियों और पॉपकार्न के दीवानों केवल २ मिनिट में अपनी हसरतें पूरी करें और यूट्यूब पर कवि सम्मेलन सुनते हुए पॉपकार्न खायें।
यह आलेख इस बात का सबूत है कि आपकी निगहबान आंखों से न तो जीवन के उत्सव और उल्लास ओझल हैं और न ही जीवन के खुरदुरे यथार्थ।

My Photo६. यशवन्त माथुर महसूस कर रहे हैं

आँचल तले धूप, ::

जैसे खींचता है चुम्बक

लोहे को

अनजान ममता ने

खींच  लिया उसे 

और दिखा दी

धूप

अपने आँचल की

छाँव तले.

इनकी कविता पढ़ने पर लू में शीतल छाया की सुखद अनुभूति मिलती है।

मेरा फोटो७. venus****"ज़ोया" ने ले लिया है

नया सबक


अब के धो लिया है मैंने

लिखा पिछला सबक वो सारा

रिश्तों की मीठी मीठी धुप में

अब धूली तख्ती सुखा लेती हूँ !

कविता की भाषा सीधे-सीधे जीवन से उठाए गए शब्दों और व्यंजक मुहावरे से निर्मित हैं।


My Photo८. संजय ग्रोवर जी,

हवाएं टपकी तो लपके ठूंठ... 

हवाएं टपकी तो लपके ठूंठ
कमाल ये भी बुरा नहीं

जड़ें तो क्या इन हवाओं से
वो पीला पत्ता हिला नहीं

यह ग़ज़ल महज अपने समय का बयान भर नहीं है । इसमें ऐसा कुछ है जो इस संश्लिष्‍ट और अर्थसघन बनाता है।
मेरा फोटो९. Anita जी के लिए

पुण्य सम पावन यह प्यार

आँख भर के देख लो
बूंद कितनी देर ठहरी,


सप्तवर्णी अमिय धारे


ज्यों मधुर संगीत लहरी !
हो तिरोहित पूर्व उसके
थाम लो बन जाओ धार !


कौन जाने कब खिलेगा? 
पुण्य सम पावन यह प्यार !

यह एक ऐसी संवेद्य कविता है जिसमें हमारे यथार्थ का मूक पक्ष भी बिना शोर-शराबे के कुछ कह कर पाठक को स्पंदित कर जाता है।

मेरा फोटो

१०. रेखा श्रीवास्तव दे रही हैं जवाब, प्रश्न है

कन्या त्याज्य है तो क्यों? -- लड़कियों को त्यागने की एक वजह सिर्फ और सिर्फ दहेज़ ही बनती जा रही है. कुलदीपक की चाह में तो बेटियाँ अधिक हो सकती हैं और फिर ये भी है कि तथाकथित घर वाले पोते या बेटे के बिना घर आने की हिदायत देकर जो भेजते हैं तो फिर बेटी लेकर वे घर कैसे जा सकती हैं?
इस आलेख में स्‍त्री नियति की विविध परतों को उद्घाटित किया गया है और लिंग भेद की शिकार स्‍त्री को विद्रोह के लिए प्रेरित भी किया है।
आज बस इतना ही। अगले हफ़्ते फिर मिलेंगे।



तब तक के लिए --



हैप्पी ब्लॉगिंग!!

19 comments:

  1. आज की रविवासरीय चर्चा को आपने बहुत ही सुन्दर लिकों से सजाया सँवारा है!

    ReplyDelete
  2. bahut sundar links se saji sarhtak charcha.aabhar......

    ReplyDelete
  3. sankshep me aapne aaj ke charcha manch ki sarthakta ko hi prastut kiya hai.badhai...

    ReplyDelete
  4. रविवासरीय चर्चा सुन्दर है,आभार.

    ReplyDelete
  5. बहुत ही अच्छे लिंक्स दिए हैं...आभार.

    ReplyDelete
  6. विश्लेषण के साथ खूबसूरत लिंक्स बढ़िया पाठ्य सामिग्री से लैस. अच्छी चर्चा प्रस्तुती के लिए बधाई.

    ReplyDelete
  7. बहुत ही बढ़िया नगीने.चर्चा भी सुन्दर.
    मनोज जी और चर्चा मंच को शुभ कामनाएं

    ReplyDelete
  8. मनोज भाई नमस्कार| इस बार आपने पोस्ट्स के साथ साथ अपने विचार भी व्यक्त किए हैं, इस से हम लोगों को सन्दर्भ समझने में काफ़ी आसानी रहेगी|

    सम्यक चर्चा प्रस्तुत करने के लिए बधाई|

    मुझे अपनी चर्चा में स्थान देने के लिए बहुत बहुत आभार भाई साब|

    ReplyDelete
  9. मनभावन लिंक्स , सुन्दर चर्चा।

    ReplyDelete
  10. उम्दा लिंक्स से सजी इस चर्चा के लिए आभार !

    ReplyDelete
  11. सुन्दर लिंक्स के साथ सार्थक चर्चा बहुत पसन्द आई।

    ReplyDelete
  12. आदरणीय मनोज सर!
    बहुत ही अच्छे लिंक्स दिए हैं आपने.
    मेरी कविता को स्थान देने के लिए तहे दिल से शुक्रिया.

    सादर

    ReplyDelete
  13. अंदाज़ पसंद आया !
    शुभकामनायें !

    ReplyDelete
  14. puree padh li ek he baar men .bahut achchi-achchi kavitaaen mili.

    ReplyDelete
  15. बहुत सुन्दर चर्चा..

    ReplyDelete
  16. बहुत सुन्दर चर्चा ..

    ReplyDelete

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।