आइए आज का चर्चा मंच काब्य की सुन्दर कृतियों से सजाता हूँ।
मगर मेरी मजबूरी है कि लिंक किसी को भी नहीं भेज पाऊँगा।
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थाम लेते हैं सनम जब भी कलाई मेरी
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कब हाथ में तेरा हाथ नहीं
सद शुक्र के अपनी रातों में
अब हिज्र की कोई रात नहीं ...
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आन कs लागे सोन चिरैया........... - .......................................... *वैलेनटाइन* बिसरल बंसत अब तs राजा आयल वैलेनटाइन ।
राह चलत के हाथ पकड़ के बोला यू आर माइन ।
फागुन कs का बात करी...
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हवा जब भी गुज़रती है
सरसों के खेत से होकर
दो चार पीले फूल टंग जाते हैं उसकी कमीज़ के बटन में
और पीठ पर गूंजती दिखती है
एक भीनी भीनी सी थाप इन रंगों ...
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फैज : जगह-जगह पे थे नासेह तो कू-ब-कू दिलबर
जन्मशती पर फ़ैज अहमद फ़ैज (१९११- १९८४) को याद करते हुए ..क्या लिखा जाय उस पर जिस पर इतना लिखा गया है लिखा जाएगा कि उम्र छोटी पड़ जाय। इस बड़े रचनाकार के बड़प्पन की अपनी पसंदीदा बानगी के रूप में आज उनकी दो रचनायें ; पहली महाकवि ग़ालिब को समर्पित और दूसरी मख़दूम मोहिउद्दीन (१९०८-१९६९) की स्मृति में जिसे स्वर दिया है आबिदा परवीन ने। साथ में एक साझा तस्वीर शताब्दी के महान कवि पाब्लो नेरुदा (१९०४-१९७३) के साथ। तो लीजिए जन्मशती पर फै़ज को याद करते हुए प्रस्तुत है यह एक कोलाज :
* नज़्रे ग़ालिब :
किसी गुमाँ पे तवक़्क़ो ज़ियादा रखते हैं।
फिर आज कू-ए-बुताँ का इरादा रखते हैं।
बहार आयेगी जब आयेगी, यह शर्त नहीं
कि तश्नाकम रहें गर्चा बादा रखते हैं।
तेरी नज़र का गिला क्या जो है गिला दिल को
तो हमसे है कि तमन्ना ज़ियादा रखते हैं।
नहीं शराब से रंगी तो ग़र्क़े-ख़ूं हैं के हम
ख़याले-वज्ए-क़मीसो-लबादा रखते हैं।
ग़मे-जहाँ हो, ग़मे-यार हो कि तीरे-सितम
जो आये, आये कि हम दिल कुशादा रखते हैं।
जवाबे-वाइज़े-चाबुक-ज़बाँ में 'फ़ैज़' हमें
यही बहुत है जो दो हर्फ़े-सादा रखते हैं।
किसी गुमाँ पे तवक़्क़ो ज़ियादा रखते हैं।
फिर आज कू-ए-बुताँ का इरादा रखते हैं।
बहार आयेगी जब आयेगी, यह शर्त नहीं
कि तश्नाकम रहें गर्चा बादा रखते हैं।
तेरी नज़र का गिला क्या जो है गिला दिल को
तो हमसे है कि तमन्ना ज़ियादा रखते हैं।
नहीं शराब से रंगी तो ग़र्क़े-ख़ूं हैं के हम
ख़याले-वज्ए-क़मीसो-लबादा रखते हैं।
ग़मे-जहाँ हो, ग़मे-यार हो कि तीरे-सितम
जो आये, आये कि हम दिल कुशादा रखते हैं।
जवाबे-वाइज़े-चाबुक-ज़बाँ में 'फ़ैज़' हमें
यही बहुत है जो दो हर्फ़े-सादा रखते हैं।
फैज़ अहमद "फैज़" को नमन
बगुला भगत बना है कैसा।
लगता एक तपस्वी जैसा।
अपनी धुन में अड़ा हुआ है।
एक टांग पर खड़ा हुआ है।
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हरी नाम की जप ले माला - कटुक वचन मत बोल -
बीत रहा है पल-पल तेरा - क्षणभंगुर जीवन अनमोल ...!!
दिवस गवांया खाए के - फिर रैना गंवाई सोए .....
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बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं….......
इस अवसर पर मेरी एक पुरानी कविता डाल रही हूँ ।
आशा करती हूँ आप सबको पसन्द आयेगी.....
शाम ढल आई मेघ की गहराई
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कविता रच डालीआसमान में बादल छायाछुप गया सूरज शीतल छायामेरे इस उद्वेलित मन नेकविता रच डाली......... |
आओ ना मितवा अभी मन है प्यासा
रुको जब तक हलचल है जीवित है आशा
यमुना का तट था औ कदम्बो की डाली
बिन राधा थे बैठे जहा श्याम खाली
बरनिया के कुंजो मे झूल्र थे हम तुम
उन सखियों से छिपकर मिले भी थे आली......
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*मन ऑन लाइन था, और दिन वैलेन्टाइन था।*
*दिल में उमड़ा प्यार था, हाथ में उपहार था॥*
*खूबसूरत नज़ारा था, बजा रात के ग्यारा था।*
जब बसेरा थी गुफा
(पेश हैं निहायत सीधी सच्ची बातें इस सीधी सादी गैर मुरद्दफ़ ग़ज़ल में)
देश के हालात बदतर हैं, सभी ने ये कहा पर नहीं बतला सका, कोई भी अपनी भूमिका बस गया शहरों में इंसां, फर्क लेकिन क्या पड़ा आदतें अब भी हैं वैसी, जब बसेरा थी गुफा......... |
हर दिन हो प्रेम-दिवस ! |
ऐसे भी प्यार... वेलण्टाईन डे विशेषप्यार के वर्तमान सच...चेटिंग माध्यम में-कृपया इसमें अश्लीलता न देखें |
sagebob
(कृपया काव्य रस की कमी को नज़र अंदाज़ करें,प्रेम रस भरपूर है जी)
आज सुबह सवेरे उठ कर
आँगन में उगी गुलाब की क्यारी में ब्रश किया,
फिर पडोसिओं के साथ लगती
कंटीली झाडी को जस का तस किया
ख्वाब पुराने मत देखा कर
धुंधली यादें मत देखा कर
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बहुत कठिन है मोहब्बत की राहें |
जिंदगी है छोटी हर पल मे खुश हूँ!
दोस्तों आज की पोस्ट आपके लिए खाश है क्युकि आज वैलेंटाइन डे है आज मैं आपको कुछ ऐसी साईट पर लेकर चलूँगा जहाँ आपके लिए 100 लव सोंग होंगे और एक ऍसी साईट पर लेकर चलूँगा जहाँ आपको आपके प्यार के बारे में पता चलेगा कि उसके दिल में आपके लिए कितना प्यार है और अगर आपका दिल टूट चूका है और आप मुस्कुराना भूल गये हो तो आपके लिए एक ऍसी साईट भी है जो आपके मुरझा ...
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नवगीत :: जब होंगे फिर मन पलाश
भटक गए हैं
कालखण्ड में
रंग वसंती, केसू, केसर
आसक्ति का
नेह में तिरना
सुन्दरि का अन्तः निवास।......
हरीश प्रकाश गुप्त
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प्रेम (वेलेंटाइन दिवस पर विशेष)
समर्पण है, त्याग है
प्रेम एक संयोग है
तो वियोग भी है.....
***हर दिन वेलेंटाइन मनाऊं मैं***
बन बेबकूफ क्यों प्यार को मैं,
--------------------एक दिन का ही त्यौहार करूँ, हर दिन को ही क्यूँ ना मैं, वेलेंटाइन डे यार करूँ............. इकतरफा प्यार..........(सत्यम शिवम)
ये दिल का खेल भी बड़ा निराला होता है,
जिससे प्यार करता है,
उससे ही कहने से डरता है।
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"वैलेन्टाइन डे" या "प्यार-प्रण दिवस"
जब भी मैं होऊं रिक्त,
पूर्ण करो मुझे तुम,
और तुम्हारी शून्यता,
गूंज से भरूँ मैं |....
मैं गीत हूँ तेरे इश्क़ का ......मैं बीज हूँ मोहब्बत का ....
तू इश्क़ की ज़मीं पे उगा जरा
मैं गीत हूँ तेरे इश्क़ का ......
तू गुनगुना के मुझे देख जरा
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- nivedita srivastava
"प्रेम दिवस" की पूर्व संध्या पर .....
क्या बांटा जा सकता है ,
प्रेम कुछ दिवसों में ,क्या कह सकते हैं ,आज प्रेम करेंगे ,क्यों कि आज हैदिन प्रेम का !ये तो होगा ......प्यारे से प्रेम काशव -विच्छेदन !..-0-0-0-0-अब आज का चर्चा मंच समाप्त करता हूँ!
sarthak chacha.badhai
जवाब देंहटाएंबहुत से छूटे हुए लिंक यहाँ मिल गए ...
जवाब देंहटाएंपढ़ते हैं बारी- बारी...
सरस काव्य चर्चा !
sundar v suvyavasthit charcha .aabhar
जवाब देंहटाएंबहुत ही लगन और मेहनत से चर्चा मंच सजाया है…………सभी लिंक्स पर हो आई हूँ ज्यादातर …………बाकी बाद मे ……………बहुत बढिया और सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंbahut sundar charcha,,,, bahut.,... kintu uchcharan se nahi khuli... kafi try kiya ...blogspot address se khooli
जवाब देंहटाएंbahut sundar charcha,,,, bahut.,... kintu uchcharan se nahi khuli... kafi try kiya ...blogspot address se khooli
जवाब देंहटाएंबहुत ही मनमोहक चर्चा.......अच्छे लिंक्स मिले...धन्यवाद।
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