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Tuesday, January 10, 2012

"हमारी दुआ से खुश जमाना रहेगा" (चर्चा मंच-754)


जन्म लिया जिस देश में, खाया जिसका अन्न। 
इसको हिंसा-लूट से, करना नही विपन्न।१।
भाषा, धर्म, प्रदेश से, ऊपर होता देश। 
भेदभाव, असमानता, से बढ़ता है क्लेश।२।
वृक्ष धरोहर धरा की, इन्हे बचाना धर्म। 
प्राण वायु के दूत ये, समझो इनका मर्म।३।
माता-पिता, बुजुर्ग का, जिस घर में सम्मान। 
उस घर में रमते सदा, साक्षात् भगवान।४।
सादे जीवन में सदा, होते उच्च विचार। 
तड़क-भड़क में जन्मते, अनाचार-व्यभिचार।५। 
मित्रों!
     मंगलवार के लिए चर्चा मंच सजाने हेतु भ्रमण पर निकला हूँ। पेश हैं मेरी पसन्द के कुछ लिंकों की चर्चा!
      कभी मुझे वापस लाना चाहो मुझसे बातें कर बचपन जीना चाहो तो पाए के पीछे से आवाज़ देना मैं लुकती छुपती आ जाऊँगी ..बुलाकर देखना तो ! मरे हुए सपनो को फिर से, जीवन दिलवाने के खातिर सपनो का संसार दिखा कर, फिर से बहलाने के खातिर पांच साल में...अब आने वाला चुनाव हैखबर  आयी है कि भगवान कृष्ण कन्हैया की पवित्र भूमि वृन्दावन में संचालित सरकारी आश्रय गृहों की अनाथ विधवाओं के मरने के बाद उनके शरीर के टुकड़े -टुकड़े करके स्वीपरों द्वारा जूट की थैलियों में भर कर यूं ही फेंक दिया जाता है !   यह समाचार कल एक हिन्दी सांध्य दैनिक 'छत्तीसगढ़ ' में प्रकाशित हुआ है, जो अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू ' में छपी खबर का अनुवाद है.  अगर यह खबर सच है तो....कृष्ण कन्हैया की धरती पर यह कैसा कलंक ? पिछले दो दिनों से आकाश साफ़ है। कल पूर्णिमा है लेकिन आज भी चन्द्रमा बहुत सुन्दर लग रहा है। आइये देखें - चौदहवीं का चांद - कुछ चित्रअक्षय कंदील *कविताश्‍याम बिहारी श्‍यामल वह तो हृदय प्रदेश का झरना... कौन रोके यह झरना-बहना... सांस-सांस में जिसके सवाल...! उदासी के धुएं में - मनोजउन्मुक्त से गगन में, पूर्ण चन्द्र की रात में, निखार पर है होती ये धवल चाँदनी । मदमस्त सी करती, धरनि का हर कोना, समरुपता फैलाती ये धवल चाँदनीसड़क़ पर आम आदमी की बलि लेने वाले रईसजादों को जमानत मिल जाती है,क्या उन्हे कठोर सज़ा नही होनी चाहिये? भावनायों के समंदर में , भावो की एक नदी बहती हैं जो इंसान को देती हैं ... अपने ही डर से डरने की वजह एक सिकुडन,एक असुरक्षा का भाव जो एक रेखा खींचती है - द्वन्द्व की! ख़ुशी है जिंदगी उधार की है हुजुर , रब कहाँ होता , जो अपनी होती - हर स्वांस का हिसाब रखता है कौन , टूटने के वक्त सोचते हैं - खाक -ए- गजलकम्प्यूटर जी-कुत्ता भौं भौं करते झपटा! जसबीर बेदर्द लंगेरी पति की मौत के भोग के समय गाँव के सभी लोगों ने जसप्रीत के सिर पर हमदर्दी भरा हाथ रखा और इसे ‘भगवान की मर्जी’ कह ढाढ़स बँधाया....लाल बूटियों वाला सूट !  भगीरथ वह अपनी टांगों के सहारे नहीं चलता था, क्योंकि उसकी महत्वाकाक्षाएं ऊँची थी क्योंकि वह चढ़ाइयाँ बड़ी तेजी में चढ़ना चाहता था....बैसाखियों के पैर! पौष के महीने में, बर्फीली कड़कती ठंड में, तेज ठिठुराती हवा में, एक जानवर सा शरीर, कोई चीथड़ा लपेटे हुये.... नफरत की आग में, भ्रष्ट नेतृत्व के संताप में...जानवर सा शरीरबेरहमी से क़त्ल किसी और ने किया पर मेरी हथेलियों में खून के दाग होते हैं आत्मा कराहती है उड़ने का मनोबल क्षीण होता है ..जी हाँ! मैं कातिल हूँ ....कर्तव्य - पथ बिसराता मनुष्य अधिकार पर हर्षाता युग निकृष्ट जीवन आत्मा अशुद्ध भूलते यथार्थ अनर्गलता पुष्ट चेतो रे चश्मों बहाओ...नव-वर्ष! क्योंकि सबसे भ्रष्ट ही, हो गया है हमारा सरदारजादू से आँखें आश्चर्यचाकित थी,ये नज़रों का धोखा था या हाथ की सफाई,पल पल में रूप रंग स्वतः ही बदल जाता था ,या आसमानी ताकत आ कर मदद कर रही थी ..कुछ ऐसे ही ...होते हैं  जादूगरफेस बुक पर मनीषजी पूछते हैं .इस प्रेम का क्या अर्थ है? जो जीता किताबों में, वो कभी तन्हा नहीं होता सुबहों का कोई ठिकाना नहीं कि वे कब आ धमकें. कभी तो आधी रात को दरवाजे पर दस्तक देती हैं और कभी दिन के दूसरे पहर भी ऊंघती सी आसमान के किसी कोने में दुबकी रहती है...जाने क्या चाहे मन बावरा... शांति... मन की शांति जो अवरुद्ध हो तो इंसान बड़ा निरीह हो जाता है... अकारण पीड़ा झेलता है बेवजह ही आंसू बहाता है...ऐ जिंदगी! दिल से बुलाता हूँ तुम आती नहीं हो या तो पहुँचती नहीं मेरी आवाज़ तुम तक या मजबूर हो ज़माने से डरती हो घबराती हो कहीं टूट ना जाए दिल का रिश्ता ...आवाज़ देता हूँहर श‍ब्‍द व्‍यथित है क्‍यूं इसे पीड़ा का भान है पढ़ता है मन ही मन अन्‍तर्मन को मेरे बिखरने को देता है शब्‍द मेरे मौन को कहता है सुनता है....यही अस्‍त्र शेष था .! नहीं जानती कि‍ जब ढलती शाम को पेड़ के पत्‍तों पर पीली आभा बि‍खरती है और सर्द हवाएं तन को चुभने सी लगती हैं तब डूबते सूरज से इतर...याद तुम्‍हारी....जरूर आती है! 2009 में इस कहानी के कुछ अंश ब्लाग पर आ चुके हैं । आज पूरी कहानी --छोटा कमरा --! चलते -चलते ....! उम्मीद है , वक्त यूँ ही सुहाना रहेगा, हमारी दुआ से खुश जमाना रहेगा, भुला देना गम जिन्दगी के सब यही बात आज हर दीवाना कहेगा! छात्रावास में आज अनुराग का दूसरा दिन है। कल जब पिता जी उसे यहाँ छोड़कर गये थे, तब से अनुराग को अजीब सी बेचैनी हो रही थी। अपने दस वर्ष के जीवन में अनुराग ने घर ही तो देखा था, अनुराग को लगातार उसी घर की याद आ रही थी...स्नेह से ध्येय तक!
एक बाल कविता तितली रानी की पढ़िए-"प्रांजल-प्राची" ब्लॉग पर!
और अन्त में देखिए-

32 comments:

  1. बड़ी ही सुन्दर और प्रवाहमयी चर्चा सजायी है आपने, आभार..

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  2. आपके च्रर्चा मंच का विचरण करना बड़ा ही आनंददायक लगता है । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .

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  3. वाह आज की चर्चा तो अपने आप में ही एक पठनीय पोस्ट है

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  4. अच्छी प्रवाह मान चर्चा और लिंक्स |
    आशा

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  5. Rekha Srivastava
    7:22 पूर्वाह्न (7 मिनट पहले)

    मुझे
    शास्त्री जी,

    शुभ प्रभात!
    चर्चा मंच मेरे लैपटॉप पर खुलता ही नहीं है कोई प्रॉब्लम दिखता है इस लिए वहाँ तक पहुँच ही नहीं पाती हूँ. . इसलिए यही से धन्यवाद कर रही हूँ.

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  6. अच्छी चर्चा में ढेर सारे अच्छे लिंक्स मिले ...
    आभार !

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  7. हृदयस्पर्शी चर्चाएँ संकलित करने के लिए धन्यवाद..
    मेरे लेख 'जादूगर ' को स्थान मिला ..आभार !
    kalamdaan.blogspot.com

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  8. हमारा सन्देश और भाव यहाँ शामिल करने के लिए आपका आभार

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  9. कन्हैया की पवित्र भूमि वृन्दावन में संचालित सरकारी आश्रय गृहों की अनाथ विधवाओं के मरने के बाद उनके शरीर के टुकड़े -टुकड़े करके स्वीपरों द्वारा जूट की थैलियों में भर कर यूं ही फेंक दिया जाता है !

    कन्हैया की धरती पर यह कैसा कलंक ?

    Too informative post.

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  10. सुन्दर और प्रवाहमयी चर्चा ||

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  11. अच्छी चर्चा में ढेर सारे अच्छे लिंक्स मिले ...
    आभार !

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  12. बहुत बढ़िया चर्चा ....!!

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  13. बहत विस्तृत चर्चा शास्त्री जी | मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार | आपने बहुत मेहनत से बहु अच्छे लिंक्स का संयोजन किया | बहुत बहुत आभार |
    मेरी कविता

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  14. अच्छी चर्चा.......अच्छे लिंक्स.......

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  15. बहुत अच्छी चर्चा...सार्थक लिंक्स..
    आपका बहुत शुक्रिया.
    सादर.

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  16. ्सुन्दर चर्चा

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  17. बहुत सुंदर प्रस्तुति बढ़िया लिंक ....
    welcome to new post --"काव्यान्जलि"--

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  18. har baar nayaa rang roop
    adhik man bhaavan

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  19. बढीया चर्चा लिंक्स है...

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  20. सुन्दर अभिव्यक्ति.....
    ब्लॉग का नाम भी श्रेष्ठ है।
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
    http://vicharbodh.blogspot.com

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  21. सुन्दर और विस्तृत चर्चा के लिए आभार ...

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  22. bahut badiya links ke sath sarthak charcha prastuti..aabhar!

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  23. शास्त्रीजी चर्चा मंच की पोस्ट अच्छी तरह से संजोयी गई है। '.बैसाखियों के पैर' को इस मंच मे शामिल करने का धन्यवाद्।

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  24. आदरणीय शास्त्री जी अभिवादन बहुत सुन्दर रही चर्चा ...एक सुन्दर कहानी के साथ झांकी..... सुन्दर और प्रवाहमयी झांकी ...
    .मेरे ब्लॉग "बाल झरोखा सत्यम की दुनिया" से आप ने कम्प्यूटर जी .कुत्ता भौं भौं करते झपटा को भी चुना -बच्चों के लिए आप के समर्पण को सलाम ...
    जय श्री राधे ..नव वर्ष आप सपरिवार और सभी मित्र मण्डली के लिए मंगलमय हो
    भ्रमर ५

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  25. सुंदर चर्चा ,सदा की तरह

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  26. चर्चा के साथ चर्चा .. बहुत पसंद आया।

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  27. अच्‍छी चर्चा और कई लिंक मि‍ले मुझे। धन्‍यवाद....मेरी कवि‍ता शामि‍ल करने के लि‍ए आभार।

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  28. बहुत ही बढि़या लिंक्‍स का संयोजन.. जिसमें मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार ।

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