जन्म लिया जिस देश में, खाया जिसका अन्न।
इसको हिंसा-लूट से, करना नही विपन्न।१।
भाषा, धर्म, प्रदेश से, ऊपर होता देश।
भेदभाव, असमानता, से बढ़ता है क्लेश।२।
वृक्ष धरोहर धरा की, इन्हे बचाना धर्म।
प्राण वायु के दूत ये, समझो इनका मर्म।३।
माता-पिता, बुजुर्ग का, जिस घर में सम्मान।
उस घर में रमते सदा, साक्षात् भगवान।४।
सादे जीवन में सदा, होते उच्च विचार।
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मित्रों!
मंगलवार के लिए चर्चा मंच सजाने हेतु भ्रमण पर निकला हूँ। पेश हैं मेरी पसन्द के कुछ लिंकों की चर्चा!
कभी मुझे वापस लाना चाहो मुझसे बातें कर बचपन जीना चाहो तो पाए के पीछे से आवाज़ देना मैं लुकती छुपती आ जाऊँगी ..बुलाकर देखना तो ! मरे हुए सपनो को फिर से, जीवन दिलवाने के खातिर सपनो का संसार दिखा कर, फिर से बहलाने के खातिर पांच साल में...अब आने वाला चुनाव है! खबर आयी है कि भगवान कृष्ण कन्हैया की पवित्र भूमि वृन्दावन में संचालित सरकारी आश्रय गृहों की अनाथ विधवाओं के मरने के बाद उनके शरीर के टुकड़े -टुकड़े करके स्वीपरों द्वारा जूट की थैलियों में भर कर यूं ही फेंक दिया जाता है ! यह समाचार कल एक हिन्दी सांध्य दैनिक 'छत्तीसगढ़ ' में प्रकाशित हुआ है, जो अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू ' में छपी खबर का अनुवाद है. अगर यह खबर सच है तो....कृष्ण कन्हैया की धरती पर यह कैसा कलंक ? पिछले दो दिनों से आकाश साफ़ है। कल पूर्णिमा है लेकिन आज भी चन्द्रमा बहुत सुन्दर लग रहा है। आइये देखें - चौदहवीं का चांद - कुछ चित्र! अक्षय कंदील *कविता- श्याम बिहारी श्यामल वह तो हृदय प्रदेश का झरना... कौन रोके यह झरना-बहना... सांस-सांस में जिसके सवाल...! उदासी के धुएं में - मनोज! उन्मुक्त से गगन में, पूर्ण चन्द्र की रात में, निखार पर है होती ये धवल चाँदनी । मदमस्त सी करती, धरनि का हर कोना, समरुपता फैलाती ये धवल चाँदनी! सड़क़ पर आम आदमी की बलि लेने वाले रईसजादों को जमानत मिल जाती है,क्या उन्हे कठोर सज़ा नही होनी चाहिये? भावनायों के समंदर में , भावो की एक नदी बहती हैं जो इंसान को देती हैं ... अपने ही डर से डरने की वजह एक सिकुडन,एक असुरक्षा का भाव जो एक रेखा खींचती है - द्वन्द्व की! ख़ुशी है जिंदगी उधार की है हुजुर , रब कहाँ होता , जो अपनी होती - हर स्वांस का हिसाब रखता है कौन , टूटने के वक्त सोचते हैं - खाक -ए- गजल! कम्प्यूटर जी-कुत्ता भौं भौं करते झपटा! जसबीर बेदर्द लंगेरी पति की मौत के भोग के समय गाँव के सभी लोगों ने जसप्रीत के सिर पर हमदर्दी भरा हाथ रखा और इसे ‘भगवान की मर्जी’ कह ढाढ़स बँधाया....लाल बूटियों वाला सूट ! भगीरथ वह अपनी टांगों के सहारे नहीं चलता था, क्योंकि उसकी महत्वाकाक्षाएं ऊँची थी क्योंकि वह चढ़ाइयाँ बड़ी तेजी में चढ़ना चाहता था....बैसाखियों के पैर! पौष के महीने में, बर्फीली कड़कती ठंड में, तेज ठिठुराती हवा में, एक जानवर सा शरीर, कोई चीथड़ा लपेटे हुये.... नफरत की आग में, भ्रष्ट नेतृत्व के संताप में...जानवर सा शरीर! बेरहमी से क़त्ल किसी और ने किया पर मेरी हथेलियों में खून के दाग होते हैं आत्मा कराहती है उड़ने का मनोबल क्षीण होता है ..जी हाँ! मैं कातिल हूँ ....! कर्तव्य - पथ बिसराता मनुष्य अधिकार पर हर्षाता युग निकृष्ट जीवन आत्मा अशुद्ध भूलते यथार्थ अनर्गलता पुष्ट चेतो रे चश्मों बहाओ...नव-वर्ष! क्योंकि सबसे भ्रष्ट ही, हो गया है हमारा सरदार! जादू से आँखें आश्चर्यचाकित थी,ये नज़रों का धोखा था या हाथ की सफाई,पल पल में रूप रंग स्वतः ही बदल जाता था ,या आसमानी ताकत आ कर मदद कर रही थी ..कुछ ऐसे ही ...होते हैं जादूगर! फेस बुक पर मनीषजी पूछते हैं .इस प्रेम का क्या अर्थ है? जो जीता किताबों में, वो कभी तन्हा नहीं होता। सुबहों का कोई ठिकाना नहीं कि वे कब आ धमकें. कभी तो आधी रात को दरवाजे पर दस्तक देती हैं और कभी दिन के दूसरे पहर भी ऊंघती सी आसमान के किसी कोने में दुबकी रहती है...जाने क्या चाहे मन बावरा...! शांति... मन की शांति जो अवरुद्ध हो तो इंसान बड़ा निरीह हो जाता है... अकारण पीड़ा झेलता है बेवजह ही आंसू बहाता है...ऐ जिंदगी! दिल से बुलाता हूँ तुम आती नहीं हो या तो पहुँचती नहीं मेरी आवाज़ तुम तक या मजबूर हो ज़माने से डरती हो घबराती हो कहीं टूट ना जाए दिल का रिश्ता ...आवाज़ देता हूँ! हर शब्द व्यथित है क्यूं इसे पीड़ा का भान है पढ़ता है मन ही मन अन्तर्मन को मेरे बिखरने को देता है शब्द मेरे मौन को कहता है सुनता है....यही अस्त्र शेष था .! नहीं जानती कि जब ढलती शाम को पेड़ के पत्तों पर पीली आभा बिखरती है और सर्द हवाएं तन को चुभने सी लगती हैं तब डूबते सूरज से इतर...याद तुम्हारी....जरूर आती है! 2009 में इस कहानी के कुछ अंश ब्लाग पर आ चुके हैं । आज पूरी कहानी --छोटा कमरा --! चलते -चलते ....! उम्मीद है , वक्त यूँ ही सुहाना रहेगा, हमारी दुआ से खुश जमाना रहेगा, भुला देना गम जिन्दगी के सब यही बात आज हर दीवाना कहेगा! छात्रावास में आज अनुराग का दूसरा दिन है। कल जब पिता जी उसे यहाँ छोड़कर गये थे, तब से अनुराग को अजीब सी बेचैनी हो रही थी। अपने दस वर्ष के जीवन में अनुराग ने घर ही तो देखा था, अनुराग को लगातार उसी घर की याद आ रही थी...स्नेह से ध्येय तक!
एक बाल कविता तितली रानी की पढ़िए-"प्रांजल-प्राची" ब्लॉग पर!
और अन्त में देखिए-एक बाल कविता तितली रानी की पढ़िए-"प्रांजल-प्राची" ब्लॉग पर!

बड़ी ही सुन्दर और प्रवाहमयी चर्चा सजायी है आपने, आभार..
ReplyDeleteआपके च्रर्चा मंच का विचरण करना बड़ा ही आनंददायक लगता है । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद। .
ReplyDeleteवाह आज की चर्चा तो अपने आप में ही एक पठनीय पोस्ट है
ReplyDeleteअच्छी प्रवाह मान चर्चा और लिंक्स |
ReplyDeleteआशा
Rekha Srivastava
ReplyDelete7:22 पूर्वाह्न (7 मिनट पहले)
मुझे
शास्त्री जी,
शुभ प्रभात!
चर्चा मंच मेरे लैपटॉप पर खुलता ही नहीं है कोई प्रॉब्लम दिखता है इस लिए वहाँ तक पहुँच ही नहीं पाती हूँ. . इसलिए यही से धन्यवाद कर रही हूँ.
अच्छी चर्चा में ढेर सारे अच्छे लिंक्स मिले ...
ReplyDeleteआभार !
हृदयस्पर्शी चर्चाएँ संकलित करने के लिए धन्यवाद..
ReplyDeleteमेरे लेख 'जादूगर ' को स्थान मिला ..आभार !
kalamdaan.blogspot.com
हमारा सन्देश और भाव यहाँ शामिल करने के लिए आपका आभार
ReplyDeleteकन्हैया की पवित्र भूमि वृन्दावन में संचालित सरकारी आश्रय गृहों की अनाथ विधवाओं के मरने के बाद उनके शरीर के टुकड़े -टुकड़े करके स्वीपरों द्वारा जूट की थैलियों में भर कर यूं ही फेंक दिया जाता है !
ReplyDeleteकन्हैया की धरती पर यह कैसा कलंक ?
Too informative post.
सुंदर चर्चा!
ReplyDeleteसुन्दर और प्रवाहमयी चर्चा ||
ReplyDeleteअच्छी चर्चा में ढेर सारे अच्छे लिंक्स मिले ...
ReplyDeleteआभार !
बहुत बढ़िया चर्चा ....!!
ReplyDeleteबहत विस्तृत चर्चा शास्त्री जी | मेरी रचना को स्थान देने के लिए आभार | आपने बहुत मेहनत से बहु अच्छे लिंक्स का संयोजन किया | बहुत बहुत आभार |
ReplyDeleteमेरी कविता
अच्छी चर्चा.......अच्छे लिंक्स.......
ReplyDeleteबहुत अच्छी चर्चा...सार्थक लिंक्स..
ReplyDeleteआपका बहुत शुक्रिया.
सादर.
बढिया चर्चा।
ReplyDelete्सुन्दर चर्चा
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति बढ़िया लिंक ....
ReplyDeletewelcome to new post --"काव्यान्जलि"--
har baar nayaa rang roop
ReplyDeleteadhik man bhaavan
बढीया चर्चा लिंक्स है...
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteब्लॉग का नाम भी श्रेष्ठ है।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
http://vicharbodh.blogspot.com
सुन्दर और विस्तृत चर्चा के लिए आभार ...
ReplyDeletebahut badiya links ke sath sarthak charcha prastuti..aabhar!
ReplyDeleteशास्त्रीजी चर्चा मंच की पोस्ट अच्छी तरह से संजोयी गई है। '.बैसाखियों के पैर' को इस मंच मे शामिल करने का धन्यवाद्।
ReplyDeleteआदरणीय शास्त्री जी अभिवादन बहुत सुन्दर रही चर्चा ...एक सुन्दर कहानी के साथ झांकी..... सुन्दर और प्रवाहमयी झांकी ...
ReplyDelete.मेरे ब्लॉग "बाल झरोखा सत्यम की दुनिया" से आप ने कम्प्यूटर जी .कुत्ता भौं भौं करते झपटा को भी चुना -बच्चों के लिए आप के समर्पण को सलाम ...
जय श्री राधे ..नव वर्ष आप सपरिवार और सभी मित्र मण्डली के लिए मंगलमय हो
भ्रमर ५
सुंदर चर्चा ,सदा की तरह
ReplyDeleteचर्चा के साथ चर्चा .. बहुत पसंद आया।
ReplyDeleteअच्छी चर्चा और कई लिंक मिले मुझे। धन्यवाद....मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार।
ReplyDeleteबहुत ही बढि़या लिंक्स का संयोजन.. जिसमें मेरी रचना को शामिल करने के लिए आभार ।
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