मित्रों!
आज कमल सिंह (नारद) जी ने इच्छा प्रकट की है कि उनका चर्चा का दिन बुधवार कर दिया जाए। उनके इस आग्रह को मैंने स्वीकार कर लिया है और रविवार का चर्चा मंच आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ!
मतदान लोक तन्त्र का महापर्व है इसलिए मतदान अनिवार्य होना चाहिये - चुनाव आयोग ने मतदाताओं को अधिक मतदान हेतु प्रेरित करने के लिए अपने एम्बेसडर नियुक्त किये है...! समय के साये में-चारित्रिक गुण तथा व्यक्ति का दृष्टिकोण - हे मानवश्रेष्ठों, यहां पर मनोविज्ञान पर कुछ सामग्री लगातार एक श्रृंखला के रूप में प्रस्तुत की जा रही है...। दिल की तरकीब - खास कुछ काम न आ या न दिल को मिला सुकून न मन को चैन आया दिल लहूलुहान हुआ आँखे रो रो कर रात काटे चाहत आपने ही थी जताई नाहक हमें बदनाम किया ..! अंधेर नगरी चौपट राजा और दीप तले अँधेरा ! - देश के महान विचारक एवं दार्शनिक *स्वामी विवेकानंद* ने कहा था - " कि अपने जीवन में सत्यता हेतु जोखिम उठाना चाहिए.... ! सोच का दायरा व्यापक करना होगा- इक्कीसवीं सदी, पॉप कल्चर, आधुनिकता, औद्योगीकरण, भूमण्डलीकरण, वैश्वीकरण आदि-आदि नये-नये शब्दों के बीच न जाने कितनी तरह के सम्बन्धों ने भी अपना सिर उठाया है...! क्या होता है धर्म और क्या अन्तर है धर्म और सम्प्रदाय में..? - क्या होता है धर्म? “धृ” धातु से निष्पन्न है, जिसका सरल अर्थ “धारण करना है” अर्थात् जिनसे लोक, परलोक....! तुम्हारी याद गुनगुनी धूप सी पसरी है - घर से बाहर निकलकर अपन जबलपुर आ गये। पिछले इतवार को बैठ गये चित्रकूट एक्सप्रेस में और सोमवार सबेरे पहुंच गये जबलपुर! नयी फ़ैक्ट्री में ज्वाइन भी कर लिया...! ब्लागिंग के इस प्रांगण में - यूँ तो हम सब भाई भाई, ब्लागिंग के इस प्रांगण में मगर सहजता की मँहगाई,...! ... सदियों सा लगता है ! - वक्त से कौन जीता है ? फिर भी हम लड़ रहे हैं लड़ते-लड़ते, सुलह का कोई रास्ता ढूंढ रहे हैं ! ... खिजाँ का मौसम - *टूटे हुए दिल से भला क्या पाओगे खिजाँ का मौसम किस तरह निभाओगे इक कदम भी भारी है बहुत जंजीरों में उलझ , न चल पाओगे रुका है वक्त क्या किसी के लिए सैलाब ...! अंग्रेजों के लिए मुसीबत थे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस -वैसे तो भारत के प्रायः क्रान्तिकारियों ने अंग्रेजों के नाम में दम कर दिया था पर नेताजी सुभाष चन्द्र बोस तो अंग्रेजों के लिए साक्षात मुसीबत थे....। ब्लॉग जगत में एक अदद उद्धव की तलाश! - अब आप तो यह बात जानते ही हैं कि प्रेम का इज़हार कर पाने में कुछ लोग पैदाईशी कमज़ोर किस्म के होते हैं ..! जीवन ही आग ....आग ही जीवन - रुग्ण मन व्याकुल ह्रदय नंगी पीठ पर बरसती जेठ की दुपहरी में दहकती आँखों के सामने सुर्ख लाल भट्टी पर तापित करों से यंत्रवत सा....! Save Your Voice: अपनी आवाज बचाओ - .........*अभी नहीं बोले तो कभी नहीं बोल पाओगे...! वृक्ष कितना तटस्थ छायादार खुशियाँ अपार हरा फूलों से भरा अटल मन सा चंचल ये वृक्ष भगवान का अक्ष अकेला पक्षी का बसेरा...! मचलें न दिल तो फिर जवानी है क्या, छलकें न आंसू फिर कहानी है क्या. बेशक इश्क की समझ रखते है नही, मगर फिर भी कहते निशानी है...! कविता को माध्यम बनाया - अरुण चन्द्र रॉय ने! महिला का नाम लेने भर से ही पुरुषों की बुद्धि पर ताला - ये कोई नई बात नहीं ऐसा तो सदियों से जाना और माना जाता हैं. आप भी जानिए, हाल ही का एक अध्ययन बताता है कि *किसी खूबसूरत महिला का सिर्फ नाम लेने भर से ही....! तिरंगा कहाँ छूट गया??.... दर्द और एहसास -एहसासों के जंगल में हर इंसान अकेला होता है, दर्द कभी बोला या बताया नहीं जाता...... वह तो तनहा ही सहा जाता है....! :: लोककथा :: - चतुर लड़की एक गरीब आदमी था। एक दिन वह राजा के पास गया और बोला- 'महाराज, मैं आपसे कर्ज ...! तीन साल का लेखा जोखा तो दीजिए पहले! सत्ता-सर के घडियालों यह गाँठ बाँध लो, जन-जेब्रा की दु-लत्ती में बड़ा जोर है ....! जीवन कथा- हाइगा में- एम कुश्वंश सर के हाइकुओं पर आधारित हाइगा परिचय...! संसार के पटल में, मैं एक छवि हूँ, पेशे से अभियंता और दिल से कवि हूँ | भावना के उदगार को, व्यक्त ही तो करता हूँ, हृदय के जज्बात को, प्रकट ही तो करता हूँ; बस...! सद-गृहिणी युक्त जगह ही गृह है -वेदों में उसी स्त्री को नारी कहा है जो पतिवल्लभा तथा पति का अनुगमन करने वाली है। ऐसी नारी ही सद-गृहिणी कहलाती है और ऐसी गृहिणी से संपन्न घर...! अनिल पुसदकर और ललित शर्मा जी ! क्षमा करना ..रायपुर में मैंने जो देखा वो द्रवित करने वाला तो था ही क्रोधित भी कर गया...! शीत की भयंकरता - इस तरह हाड तोड़ सर्दी ने * कर दिए थे सारे उत्साह ठंडे * जमने लगे थे सम्बन्ध * परन्तु फिर भी श्न्वास की ऊष्मा * *उर्जावान बनाये हुए थी उन्हें * *नही तो ...! कई शरीर जिंदा होते हैं ! ... साँसों के जिंदा होने का सुकून बहुत बड़ा होता है यूँ जीना तो बस एक मुहर है - वो भी नकली ! आत्महत्या आसान नहीं गुनाह भी है तो जबरदस्ती जीनाआशा है अब तक लोगों पर से नए साल 2012 के आने का खुमार उतर चूका होगा तो क्यूँ न सन 2012 के इतिहास के बारे में कुछ चर्चा हो जाए क्या आप जानते हैं इस सन के कडवे अनुभव...? मत भूलिए 712 से 2012 तक!
आज के लिए इतना ही...!
फिर मिलेंगे....!!
फिर मिलेंगे....!!
बहुत सुन्दर चर्चा । कई उम्दा कड़ियों का समायोजन लग रहा है । छुट्टी के दिन के लिए अच्छी खुराक । दिन भर पढ़ा जायेगा आज घुम घुम के । आशा है हमेशा की तरह सभी रचनाएँ बेहतरीन होंगी ।
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से धन्यवाद ।
प्रणाम शास्त्री जी ।
सुन्दर प्रस्तुति ! बेहतरीन लिंक
जवाब देंहटाएंआभार शास्त्री जी
सुन्दर प्रस्तुति ! बेहतरीन लिंक
जवाब देंहटाएंआभार शास्त्री जी
अच्छी लिंक्स के लियेआभार |
जवाब देंहटाएंआशा
अच्छे लिंक्स
जवाब देंहटाएंइतवार की अच्छी खुराक......:)
prabhaavashaalee prastutikaran ...
जवाब देंहटाएंaabhaar ...
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति|मेरी रचना को शामिल करने के लिए तहे दिल से धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच से नाता जुड़ गया है ,तो सभी लिनक्स पर जाना भी है..
जवाब देंहटाएंkalamdaan.blogspot.com
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअच्छे लिंक्स के साथ अच्छी परिचर्चा...हाइगा शामिल करने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंbahut badiya charcha prastuti..aabhar!
जवाब देंहटाएं♥ उच्चारण की वर्ष-गाँठ पर हार्दिक शुभ कामनाएं |
जवाब देंहटाएं♥ ♥ एक अच्छी चर्चा के लिए आपका आभार !
http://hbfint.blogspot.com/2012/01/gandhi.html
बड़े ही रोचक ढंग से सजायी चर्चा..
जवाब देंहटाएंkal regular ho jaunga--
जवाब देंहटाएंabhi pahuncha hun.
milta hun fir--
चर्चा ही चर्चा, बहुत अच्छी।
जवाब देंहटाएंbndhuvr ashet kii bhynkrta kii shridytapoor chrcha mnch pr pstuti ke liye hardik aabhar vykt krta hoon kripya swikar kr anugrhit kren
जवाब देंहटाएंचर्चामंच की प्रस्तुति है महान
जवाब देंहटाएंब्लॉगजगत के लिंकों की खान
जिसकी रचना लिंक हो जाए,
ब्लोगर की बढ़ जाती है शान,....
शास्त्री जी,बहुत सुंदर प्रस्तुति,...बधाई
अच्छी सजाई है मंच चर्चा .बधाई .लिंक्स भी खूबसूरत .
जवाब देंहटाएंबढिया चर्चा।
जवाब देंहटाएंachchhe links.......
जवाब देंहटाएंधर्म का अर्थ - सत्य, न्याय एवं नीति (सदाचरण) को धारण करके कर्म करना एवं इनकी स्थापना करना ।
जवाब देंहटाएंव्यक्तिगत धर्म- सत्य, न्याय एवं नीति को धारण करके, उत्तम कर्म करना व्यक्तिगत धर्म है ।
असत्य, अन्याय एवं अनीति को धारण करके, कर्म करना अधर्म होता है ।
सामाजिक धर्म- मानव समाज में सत्य, न्याय एवं नैतिकता की स्थापना के लिए कर्म करना, सामाजिक धर्म है । ईश्वर या स्थिरबुद्धि मनुष्य सामाजिक धर्म को पूर्ण रूप से निभाते है । वर्तमान में न्यायपालिका भी यही कार्य करती है ।
धर्म को अपनाया नहीं जाता, धर्म का पालन किया जाता है । धर्म पालन में धैर्य, संयम, विवेक जैसे गुण आवश्यक है ।
धर्म संकट- सत्य और न्याय में विरोधाभास की स्थिति को धर्मसंकट कहा जाता है । उस स्थिति में मानव कल्याण व मानवीय मूल्यों की दृष्टि से सत्य और न्याय में से जो उत्तम हो, उसे चुना जाता है ।
व्यक्ति विशेष के कत्र्तव्य पालन की दृष्टि से धर्म -
राजधर्म, राष्ट्रधर्म, मनुष्यधर्म, पितृधर्म, पुत्रधर्म, मातृधर्म, पुत्रीधर्म, भ्राताधर्म इत्यादि ।
जीवन सनातन है परमात्मा शिव से लेकर इस क्षण तक व अनन्त काल तक रहेगा ।
धर्म एवं मोक्ष (ईश्वर की उपासना, दान, पुण्य, यज्ञ) एक दूसरे पर आश्रित, परन्तु अलग-अलग विषय है ।
धार्मिक ज्ञान अनन्त है एवं श्रीमद् भगवद् गीता ज्ञान का सार है ।
राजतंत्र में धर्म का पालन राजतांत्रिक मूल्यों से, लोकतंत्र में धर्म का पालन लोकतांत्रिक मूल्यों से होता है । by- kpopsbjri
वर्तमान युग में पूर्ण रूप से धर्म के मार्ग पर चलना किसी भी मनुष्य के लिए कठिन कार्य है । इसलिए मनुष्य को सदाचार के साथ जीना चाहिए एवं मानव कल्याण के बारे सोचना चाहिए । इस युग में यही बेहतर है ।
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