अपनी सुविधा से लिए, चर्चा के दो वार। चर्चा मंच सजाउँगा, मंगल और बुधवार।। घूम-घूमकर देखिए, अपना चर्चा मंच। लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।। |
"टीचर जी! मत पकड़ो कान" |
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ठीक हैं लेकिन क्या करूँ, ख्वाब बिना जिंदगी जिंदगी नही लगती...... लगता हैं शमशान है... |
हमारे देश में तो सिर्फ "सनातन धर्म " था। जिसमें 'सेवा-भाव' को ही धर्म कहा गया है ! लेकिन अब धर्म की सच्ची परिभाषा कौन समझता है भला?.. |
बात दिल की फ़िर होंठों तक आ कर रह गई टूटी न खामोशी आज भी पहली रातों की तरह ख्वाव उजले लिये यह रात भी काली रह गई.. |
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संजीदगी, वाबस्तगी, शाइस्तगी, खुद-आगही आसूदगी, इंसानियत, जिसमें नहीं, क्या आदमी वाबस्तगी.. |
२५ अगस्त' २००९ को लिखे गए कुछ पन्ने हाथ आ गए... पढ़ा उन्हें... सहेजने का मन हुआ उन पन्नों को और पढ़ते हुए वो भाव फिर से जी गए.. |
जब पूरी ज़मीन ढकी होती है सफ़ेद रूई से... |
और दरिया के किनारों की तरह नसीब बांटे थे बदन झटके तो एक बदन की वीरानी इस पार थी और एक बदन की वीरानी उस किनारे फिर... |
क्योंकि |
मंदिर है मन : प्रणय कविता |
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लाजवाब प्रविष्टि और सुन्दर लिंक्स
ReplyDeletenice links....
ReplyDeleteसार्थक, सु-संयोजित पोस्ट के लिए बधाई हो मान्यवर.
ReplyDeleteशुभप्रभात ....बहुत सुंदर चर्चा ...
ReplyDeleteमुझे स्थान दिया ...मेरे प्रश्न को स्थान दिया ...आभार आपका ...!!
सुन्दर और ढेर सारे लिंक्स के साथ बहुत खूबसूरती से आपने चर्चा प्रस्तुत किया है!मेरी शायरी चर्चा में शामिल करने के लिए धन्यवाद!
ReplyDeleteसुसज्जित चर्चा,बढ़िया लिंक्स...
ReplyDeleteमेरी रचना काश तुम ना पधारते को स्थान देने के लिए आभार|
बढिया तरीके से सजा मंच।
ReplyDeleteसुंदर लिंक्स।
सुंदर लिंक्स
ReplyDeleteकुछ नए अंदाज में चर्चा है आज
sundar charcha ....achchhe links.
ReplyDeleteधन्यवाद ...अन्नपूर्णा के लिये..
ReplyDeleteBahut pyari koshish .
ReplyDeletejitnaa rang birangaa blog hai ,utne hee rang birange links
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रंग-रँगीली चर्चा!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.:)
ReplyDeleteसुंदर चर्चा!
ReplyDeleteप्रभाव शाली चर्चा
ReplyDeleteसुंदर लिंक्स से सजी रंगीन चर्चा, अभी-अभी ही पूरी पढ़ पाये.आभार.
ReplyDeletebahut badhiya links hai..
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